साख पर सवाल
16-Jun-2016 09:21 AM 1234824
महाराष्ट्र में भाजपा की साख लगातार गिरती जा रही है। प्रदेश में भाजपा के मंत्रियों पर जितने आरोप लगे हैं उतने किसी अन्य राज्य के मंत्रियों पर नहीं लगे हैं। प्रदेश में भाजपा को अपनी साख बनानी और बचानी है तो उसे कुछ कठोर कदम उठाने ही पड़ेंगे। हालांकि ताजे मामले में महाराष्ट्र के राजस्व एवं कृषि मंत्री एकनाथ खड़से को आखिरकार इस्तीफा देना पड़ा है। इससे भाजपा पर पड़ रहा विपक्षी दलों का चौतरफा वार कुछ थम गया है। मगर उसकी मुश्किलें इतनी जल्दी कम होने वाली नहीं। खड़से महाराष्ट्र में भाजपा के अन्य पिछड़ी जाति के बड़े जनाधार वाले नेता हैं। सरकार में वे दूसरे नंबर के ताकतवर नेता माने जाते थे। मगर उन पर महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम की भूमि खरीद में गड़बड़ी करने, रिश्वतखोरी और दाउद इब्राहीम से संबंध रखने के आरोप लगे। महाराष्ट्र में भाजपा ने पहली बार अपने बल पर सरकार बनाई है। इसलिए न सिर्फ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी उसे घेरने में जुटी थी, बल्कि बरसों तक उसकी दोस्त रही शिव सेना ने भी तीखे वार शुरू कर दिए थे। शिव सेना को सरकार में मनचाही हैसियत न मिल पाने के कारण वह शुरू से भाजपा से नाराज चल रही है। इसलिए खड़से के मामले को वह अभी और भुनाने की कोशिश करेगी। कांग्रेस अब पंकजा मुंडे और विनोद तावड़े आदि पर लगे भ्रष्ट्राचार के आरोपों को रेखांकित कर राजनीति का रुख मोडऩे की कोशिश कर रही है। उसका कहना है कि भाजपा ने क्यों सिर्फ बहुजन समाज के नेताओं को दंडित करना मुनासिब समझा, दूसरी जातियों के नेताओं पर लगे आरोपों को उसने अनदेखा क्यों कर दिया। हालांकि खड़से लगातार तर्क दे रहे हैं कि उन्होंने जमीन खरीद में कोई गड़बड़ी नहीं की, उन्होंने नैतिक आधार पर इस्तीफा दिया है और जब वे आरोपमुक्त हो जाएंगे तो फिर अपनी पुरानी जगह लौट आएंगे। मगर न तो उनके लिए रास्ता आसान लगता है और न भाजपा के लिए कठिनाइयां कम होती नजर आ रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह लगातार दावा करते रहे हैं कि उनकी पार्टी की सरकारें किसी भी रूप में भ्रष्ट्राचार को बर्दाश्त नहीं कर सकतीं। इस तरह इसे मोदी सरकार के समय भाजपा पर भ्रष्ट्राचार के पहले कलंक के रूप में देखा जा रहा है। पार्टी के केंद्रीय कमान ने मुस्तैदी दिखाते हुए खड़से का इस्तीफा लेकर साबित करने का प्रयास किया कि वह भ्रष्ट्राचार के मामले में सख्त है। हालांकि इस मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए गए हैं, पर बहुत-से लोगों को उसे लेकर आशंका है कि सही तस्वीर सामने आ पाएगी। ऐसे में भाजपा और महाराष्ट्र सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह निष्पक्ष जांच होने दे। एकनाथ खड़से पर केवल सस्ती दर पर जमीन खरीदने का नहीं, दाउद इब्राहीम जैसे माफिया से संबंध रखने का भी आरोप है। इससे भाजपा की देशभक्ति को पलीता लग सकता है। इसलिए उसे जांच को प्रभावित किए बगैर, उस पर परदा डालने के बजाय निष्पक्ष रूप से तथ्यों को सामने आने देना चाहिए। अब जब खड़से ने इस्तीफा दे दिया है तो विपक्षी दल इसे अपनी जीत मानकर जश्न मनाने में व्यस्त हैं और बीजेपी खड़से के उत्तराधिकारी के चयन को लेकर मंथन करने में मशगूल है। वर्तमान में पार्टी ऐसे अनुभवी चेहरों की कमी से जुझ रही है जो खड़से की जगह ले सकें और और राजस्व और कृषि विभाग जैसे महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा सकें। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता स्वीकारते हैं कि खड़से के इस्तीफा देने के बाद पार्टी के भीतर उनका स्थान लेने वाले चेहरे को खोजना काफी टेढ़ी खीर है। वे कहते हैं, खड़से का स्थान लेने लायक एक नेता को खोजने का काम रस्सी पर चलने जैसा है।ÓÓ राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे को लगता है कि बीजेपी को आने वाले विधासभा सत्र में खड़से को मंत्रिमंडल से निकाले जाने का नतीजा भुगतना पड़ेगा। खड़से के इस्तीफे से ओबीसी फैक्टर पर इफेक्ट इस बात की पूरी संभावना है कि खड़से के इस्तीफा देने के बाद बीजेपी के ओबीसी नेता स्वयं को पीडि़त महसूस करना प्रारंभ कर दें। वास्तव मेें इसे ही खड़से के खिलाफ हुई कार्रवाई का मूल कारण माना जा रहा है। कांग्रेस के राणे कहते हैं, स्पष्ट है कि खड़से के खिलाफ की गई कार्रवाई राज्य से ओबीसी नेतृत्व का सफाया करने के इरादे से की गई है। पहले छगन भुजबल को निशाना बनाया गया और अब खड़से। ऐसा लगता है कि इस सरकार ने ओबीसी नेताओं को निशाना बनाने का फैसला कर लिया है।ÓÓ हालांकि वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक कुमार केतकर का मानना बिल्कुल इतर है। उनके अनुसार नेतृत्व की कमी का मुद्दा बीजेपी में कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। केतकर कहते हैं, आज के घटनाक्रम का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि बीजेपी ने पहली बार इस तरह के बड़े झटके का सामना किया है और वह भी एक ओबीसी चेहरे के चलते। यह क्षण राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक क्षण साबित होगा।ÓÓ उनका कहना है कि इस्तीफा और जांच का दिया गया आदेश आंखों में धूल झोंकने के अलावा और कुछ नहीं है। खड़से को पहले से ही क्लीन-चिट देने का आश्वासन दे दिया गया है और उन्हें ग्रेटर मुंबई नगर निगम के चुनाव से पहले मंत्रिमंडल में दोबारा शामिल कर लिया जाएगा।ÓÓ -मुंबई से बिन्दु ऋतेन्द्र माथुर
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