पांच अरब की शराब गटक जाते हैं बुंदेलखंड के लोग
16-Jun-2016 08:47 AM 1235165
बुंदेलखंड भयानक सूखे के दौर से गुजर रहा है। अकाल जैसे हालात हैं। बूंद-बूंद पानी के लिए मारामारी मची है। लेकिन यहां मदिरा की कोई कमी नहीं है। जो बुंदेलखंड बूंद-बूंद पानी को तरस रहा हो, वहां के लोग पांच अरब से अधिक कीमत की शराब गटक जाते हैं। सुनने में जरूर आश्चर्यजनक लग रहा होगा। लेकिन सागर संभाग के पांच जिलों के शराब ठेकों की नीलामी पांच अरब को छू गई है। यह तो सरकारी बोली का आंकड़ा है। अगर इसमें नंबर दो यानी ब्लैक में बिकने वाली दारू का आंकड़ा जोड़ दिया जाए तो यह राशि दस अरब के लगभग पहुंच जाती है। मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि मध्यप्रदेश में अब कोई भी नई शराब की दुकान नहीं खुलेगी, यह सुनने में जरूर राम राज्य की कल्पना परिलक्षित करने जैसा लगता है। दूसरी ओर, शराब ठेकों से बढ़ते राजस्व से ये घोषणाएं बेमानी-सी लगती हैं। सागर संभागीय मुख्यालय में इस बार सरकार ने 35 मदिरा समूह का आरक्षित मूल्य 2 अरब 1 करोड़ 1 लाख 52 हजार 355 रुपए तय किया था, जिसे लगभग पूरा कर लिया गया। 35 मदिरा समूह में से 14 समूहों से ही पहले चरण की नीलामी में ही सरकार को 87 करोड़ 37 लाख 31654 रुपए प्राप्त हो गए थे। जबकि कुल 35 मदिरा समूह हेतु आरक्षित मूल्य 2 करोड़ एक लाख 52355 रुपए था। दमोह जिले में 41 देशी और 17 विदेशी मदिरा की दुकाने हैं। याद करें 2010 में मुख्यमंत्री ने मध्यप्रदेश बचाओ यात्रा में शराबबंदी की वकालत की थी। दूसरी ओर नई शराब की दुकाने खुलती रहीं। जनसंख्या के आधार पर औसतन हर 12 हजार की जनसंख्या पर एक शराब की दुकान खुली हुई है। खासकर मलिन, दलित और कमजोर तबके जिन मोहल्लों में रहते हैं, उस इलाके में देशी शराब का ठेका जरूर संचालित मिल जाएगा। सरकार की प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने की कोशिश और शराब दुकानों का इन बस्तियों में बिक्री कराने के पीछे क्या मंशा है, यह स्वत: ही समझा जा सकता है। शराब की उपलब्धता जहां होम डिलीवरी जैसी है, वहीं पानी की एक बूंद पाने के लिए आम लोग तरस रहे हैं। सरकार इस नैसर्गिक आवश्यकता को पूरा करने में शराब की उपलब्धता जैसी ही योजना बनाती तो आज पानी के लिए सिरफुटव्वल जैसी नौबत नहीं आती। फिलहाल पानी न मिले, पर शराब अवश्य उपलब्ध है। ऐसे ही हालात उत्तरप्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड में भी है। उत्तरप्रदेश के हिस्से में भी अकाल जैसे हालात हैं। बूंद-बूंद पानी के लिए मारामारी मची है। लेकिन यहां मदिरा की कोई कमी नहीं है। झांसी शहर के किसी भी रास्ते पर चले जाएं, पानी के लिए जरूर ही भटकना पड़ जाएगा, लेकिन शराब आपको बड़ी आसानी से मिल जाएगी। पूरे शहर भर में सड़क किनारे सिर्फ 3 हैंडपंप हैं। वहीं, सिर्फ एक प्याऊ लगा है। लेकिन शराब की दुकानों की भरमार है। पिछले तीन साल में अकेले बांदा के लोग साढ़े 88 करोड़ रुपए की शराब पी गए, जबकि पेयजल में सिर्फ आठ करोड़ रुपए ही खपत हुए। बुंदेलखंड में दारू-मीट का चलन कुछ ज्यादा ही है। मध्यम व गरीब वर्ग के लोग इसके सबसे ज्यादा लती हैं। शादी-विवाह हो या कोई और संस्कार, बिना शराब के सम्पन्न नहीं होता। यही वजह है कि सूखे की मार झेलने के बाद भी आबकारी विभाग के मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी के गृह जनपद बांदा में पिछले तीन साल में पानी कम, शराब ज्यादा पी गई है। बांदा जिले के आबकारी अधिकारी एस.पी. तिवारी बताते हैं, वर्ष 2008-09 में देसी मदिरा से 14 करोड़ 51 लाख 96 हजार, अंग्रेजी शराब से 5 करोड़ 73 लाख 26 हजार 980 रुपए, बीयर से 83 लाख 97 हजार 472 रुपए। वर्ष 2009-10 में देसी मदिरा से 16 करोड़ 93 लाख 56 हजार व अंग्रेजी शराब से 85 लाख 34 हजार, बीयर से एक करोड़ 24 लाख 77 हजार 376 रुपए और वर्ष 2010-11 में देसी शराब से 19 करोड़ 93 लाख 76 हजार, अंग्रेजी शराब से 12 करोड़ 75 लाख 57 हजार, बीयर से 12 लाख 98 हजार रुपए राजस्व के रूप में प्राप्त हुए हैं। इन दो विभागों के तीन सालों के आंकड़ों से जाहिर है कि बुंदेलखंड में शराब पीने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। मयखानों में ज्यादातर युवा पीढ़ी की भीड़ होती है। साथ ही अपराधों में भी इजाफा हो रहा है। सपा के बबेरू से विधायक विशम्भर सिंह यादव का कहना है कि बेकारी और बेरोजगारी की वजह से युवा वर्ग नशेड़ी हुआ जा रहा है। सरकार की गलत नीतियों के चलते ये हालात पैदा हुए हैं। -जबलपुर से धर्मेंंद्र सिंह कथूरिया
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