16-Apr-2016 07:39 AM
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छत्तीसगढ़ को देश का सबसे गरीब राज्य माना जाता है। लेकिन छत्तीसगढ़ के हर भ्रष्ट सरकारी अधिकारी-कर्मचारी के पास तीन करोड़ रुपयों की संपदा है। पिछले पांच साल में एंटी करप्शन ब्यूरों द्वारा मारे छापे से इसका खुलासा हुआ है।

यानी छत्तीसगढ़ के निवासी भले ही गरीब हैं, लेकिन प्रदेश के विकास के लिए चल रही योजनाओं-परियोजनाओं में जो धन बह रहा है उससे राज्य के अधिकारी-कर्मचारी मालामाल हो रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार छत्तीसगढ़ देश का सबसे गरीब राज्य है। छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे की आबादी का आंकड़ा 39.93 फीसदी है (साल 2011-12)। छत्तीसगढ़ के गांवों में यह 44.61 फीसदी तथा शहरों में 24.75 फीसदी है। एंटी करप्शन ब्यूरों ने पिछले पांच सालों में सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों के यहां मारें कुल 64 छापे में 2 अरब 32 करोड़ 8 लाख 50 हजार 187 रुपयों के चल तथा अचल संपदा का खुलासा हुआ है। इन 64 प्रकरणों में से केवल 2 के खिलाफ अदालत में चालान पेश किया जा सका है। 6 प्रकरणों में अभियोजन की स्वीकृति मिलने के बाद चालान पेश करने की तैयारी की जा रही है। इनमें से 4 प्रकरणों में शासन, संबंधित विभाग से अभियोजन स्वीकृति के लिये लंबित हैं। वहीं 49 प्रकरणों में विवेचना जारी है। इन 64 प्रकरणों में से 3 में अपराध नहीं पाये जाने के बाद उनका खात्मा कर दिया गया है। यानी छत्तीसगढ़ भ्रष्टाचारियों के लिए भाग्यशाली राज्य साबित हुआ है।
विधानसभा में मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी यह स्वीकार किया है कि छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के दल ने पिछले पांच सालों में 64 अधिकारियों और कर्मचारियों के यहां छापेमारी की कार्रवाई कर 232 करोड़ रुपये से ज्यादा अनुपातहीन संपत्ति का पता लगाया है। लेकिन इनमें से किसी के खिलाफ अभी तक कोई कठोर कदम नहीं उठाया गया है।
अपनी स्थापना के समय से छत्तीसगढ़ भ्रष्टाचार का गढ़ बनता गया है। आलम यह हैं कि यहां ऐसी कोई भी योजना-परियोजना नहीं है जिसमें जमकर भ्रष्टाचार नहीं हुआ हो। छत्तीसगढ़ में एक साल में 65.14 लाख रुपए की रिश्वतखोरी हुई है। मध्यप्रदेश के मुकाबले यहां भ्रष्टाचार की शिकायतें कम हैं, लेकिन रिश्वतखोरी की यह रकम मध्यप्रदेश के मुकाबले दोगुना है। यह खुलासा बेंगलुरू के एक सामाजिक संस्थान के ऑनलाइन सर्वे में हुआ है। देश के 636 शहरों में कराए गए इस सर्वे में कुल 480.69 करोड़ रुपए की रिश्वतखोरी होने की जानकारी दी गई है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने वाली संस्था जनाग्रह सेंटर फॉर सिटीजनशिप एंड डेमोक्रेसी (जेसीसीडी) की इस ऑनलाइन रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में 178 और मध्यप्रदेश में 806 लोगों ने भ्रष्टाचार की शिकायतें की हैं। इसमें मध्यप्रदेश के 31.4 लाख रुपए के मुकाबले छत्तीसगढ़ में दोगुना से कुछ अधिक 65.14 लाख रुपए बतौर रिश्वत दिए गए। आम लोगों के दैनिक और छोटे- छोटे कामों में होने वाले भ्रष्टाचार को लेकर यह सर्वे किया गया है।
संस्था ने यह रिपोर्ट वेबसाइट आईपेडएब्राइव डॉट कॉम पर जारी की है। जनाग्रह की तरफ से ऐसी रिपोर्ट हर साल जारी की जाती है। इस मामले में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल कहते हैं कि प्रदेश में सरकार के संरक्षण में भ्रष्टाचार हो रहा है मुख्यमंत्री रमन सिंह को भ्रष्टाचारियों का भरपूर संरक्षण मिल रहा है। इसलिए भ्रष्टाचारी अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। वहीं विधायक अमित जोगी भी आरोप लगाते हुए कहते हैं कि छत्तीसगढ़ का विकास भ्रष्टाचार से बाधित
हुआ है।
पड़ोसी राज्यों में महाराष्ट्र और झारखंड आगे
छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र और झारखंड में यहां के मुकाबले भ्रष्टाचार की शिकायतें और रकम दोनों ही ज्यादा है। महाराष्ट्र में 6954 मामलों में 117.28 करोड़ और झारखंड में 470 मामलों में 92.89 लाख रुपए की रिश्वतखोरी हुई। इसके विपरीत ओडिशा में 610 मामलों में 15.36 लाख की घूसखोरी हुई।
कमीशनखोरी, भ्रष्टाचार पर रोक की एक पहल...
ऐसा लगता है कि सरकार को यह बात अब समझ आने लगी है कि उसके अफसर और कर्मचारी क्यों मालामाल होते जा रहे हैंं। अभी हाल ही जारी एक आदेश से तो यही लगता है कि विभाग को वह सिरा मिल गया है जहां से भ्रष्टाचार की शुरूआत होती है। वास्तविकता यही है कि भ्रष्टाचार के कई कारणों में से एक यह भी है कि विभागों के लिये निर्माण हेतु वस्तुओं व उपकरणों की बाजार से खरीदी होती है। जबकि अधिकांश वस्तुएं सरकार के केन्द्रीय भंडारगृह में मौजूद रहती है जो सरकार स्वयं गुणवत्ता व का वाजिब दाम के आधार पर सीधे कंपनी से खरीदती है। इसके बावजूद विभाग के लोग इसकी खरीदी ठेकेदारों के मार्फत या स्वंय होकर बाजार से करते हैं। इससे अधिकारियों-ठेकेदारों की तो जेब भर जाती है लेकिन सरकार के खजाने और जनता की जेब पर डाका पड़ता है। नये आदेश के अनुसार अब प्रदेश में कम से कम नगरी निकायों के लोग तो बाजार से सामान नहीं खरीद सकेंगे। उन्हें केन्द्रीय भंडारण की शरण में जाना पड़ेगा। राज्य सरकार इस पहल से प्रदेश के नगरीय निकायों में भ्रष्टाचार पर कितना अंकुश लगा सकेगा यह तो अभी नहीं कहा जा सकता। लेकिन नगरीय प्रशासन के उस आदेश से संभावना बलवती हुई है कि ऐसा करके भ्रष्टाचार पर अंकुश की एक सीढ़ी तो पार ही कर लेगा। नये आदेश में कहा गया है कि विभाग में सप्लाई होने वाली समस्त सामग्री व उपकरण केन्द्रीय भंडारण से ही खरीदे जाये। बिजली की बचत करने के उद्देश्य से नगरीय निकायों के लिए एलईडी के तमाम तरह के प्रोडक्ट की सप्लाई की जा रही है। इसमें एलईडी के छोटे बल्ब से लेकर हाईमास्क एलईडी बल्ब की भी सप्लाई की जा रही है, जो मार्केट के दर से कम और गुणवत्तायुक्त हैं। अब नगरीय निकाय के बिजली विभागों में केन्द्रीय भण्डार से ही उक्त लाइट की खरीदी होगी। सरकारी आदेशानुसार निकायों को सरकार द्वारा अपने गोदाम में भरकर रखे गये उन वस्तुओं की खरीदी करनी होगी जो अब तक बाजार से खरीदी जाती रही है सरकार के केन्द्रीय भण्डार की सूची में सीमेंट, छड़, डामर, पेंट, सफाई सामग्री सहित करीब दो सौ समान है।
-रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला