बुंदेलखंड में न दाना है न पानी
04-Jun-2016 08:09 AM 1234964
हिंदुस्तान का एक हिस्सा बूंद-बूंद पानी से लिए तड़प रहा है। चुल्लू भर पानी के लिए इंसान धरती को खोद रहा है। गांव के गांव सिर्फ एक नदी का पानी पीने को मजबूर हैं। 14 लाख की प्यासी आबादी का दर्द बहुत बड़ा है। प्यासे बांदा की एक-एक तस्वीर इंसान की आंखों में आंसू भर देता है। यकीन नहीं होता कि ये 21वीं सदी के हिंदुस्तान की तस्वीर है। बांदा की ही एक बस्ती में हैंडपंप पर छुआछूत दिखती है। यहां की नदी में भी दंबंगों का दबदबा है। अवैध रेत खनन से कई गांवों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। बुंदेलखंड में बूंद-बूंद के लिए जंग है, बूंद-बूंद पानी में जिंदगी कैद है। नदी, तालाब, कुएं सब प्यासे हैं। हैंडपंप सूख चुके हैं। इंसान बूंद-बूंद पानी के लिए तड़प रहा है। बांदा जिले के लोग गला तर करने के लिए मीलों चलते हैं। घंटे, दिन, महीने सब पानी ढोने में निकल जाते हैं। इंसानों और पशुओं के लिए ये एक मात्र उम्मीद की नदी है। ये दर्द है प्यास से कराहते, तड़पते बुंदेलखंड का, जो आंसू के शक्ल में छलक रहे हैं। बुंदेलखंड में बिन पानी सब सून है। गेहूं, ज्वार, कपास उगाने वाले खेतों में दरारें पड़ी हैं। लगातार तीन साल से फटते खेतों को देख किसान दम तोड़ रहे हैं। कहते हैं कि पानी सबका है, सबके लिए है। लेकिन प्यास के कराहते बुंदेलखंड की नदी में माफिया राज है। बुंदेलखंड में भूख और कर्ज से किसानों की मौत की खबरें लगातार आती रहती हैं। सरकार हालांकि दावे तो बहुत कर रही है, लेकिन इन सबके बीच बुंदेलखंड की स्थिति काफी भयावह है। यहां के किसानों के खेत तो पहले ही सूखे पड़े थे, अब गर्मी बढऩे के साथ ही उनका हलकÓ भी सूख रहा है। यहां कोई भूख मिटाने के लिए मिट्टी खाता है तो कोई भीख मांगकर पेट की आग बुझाता है। ऐसा ही एक मामला है बुंदेलखंड के सूखा प्रभावित जिला ललितपुर के रजवारा गांव का। यहां की शकुन रायकवार (45) नाम की एक महिला को जब खाने के लिए कुछ नहीं मिलता है तो वह भूख मिटाने के लिए मिट्टी खाती है। इससे आप साफ अंदाजा लगा सकते हैं कि क्या हालत होगी वहां रहने वाले लोगों की। शकुन का पेट पत्थर हो गया है। ये कहानी नहीं हकीकत है। रूह कांप जाती है ये सोचने पर कि कोई 12 सालों से पत्थर खा कर कैसे जीवित रह सकता है। यह सवाल जब शकुन से किया गया तो उसके आंखों में आंसू थे। भरी आवाज में उसने कहा कि पति की मौत के बाद सब उजड़ गया। दो बेटे हैं, लेकिन वो भी छोड़कर भाग गए। राशन कार्ड तक उसके पास नहीं है। लोग खाने को दे देते हैं, लेकिन सूखे में लोग भी कब तक साथ दें। जब सबने साथ छोड़ दिया तो इस धरती ने उसका दिया। राज्य और केंद्र सरकार की तरफ से पैकेज की घोषणा तो की जाती है, लेकिन किसानों को इसका फायदा न के बराबर ही मिल रहा है। क्या किसी ने ये सोचा कि सूखे से निपटने के लिए गांव में कुएं बनाए जाएं। दिल्ली से राज्य में पैसा आता है, लेकिन निचले स्तर तक पहुंचते-पहुंचते वह पैसा न जाने कहां गायब हो जाता है। पानी की तरह खर्च हुआ पैसा पानी पर पानी की तरह पैसा खर्च करने के बाद भी बुंदेलखंड प्यासा है। जल संरक्षण की तमाम योजनाओं पर ईमानदारी से खर्च होता तो शायद अल्प बारिश की स्थिति में बदतर हालात यहां के न होते। बुंदेलखंड पैकेज तो बुंदेलखंड को सूखे से निजात दिलाने के लिए आवंटित किया गया था। अरबों रुपए खर्च होने के बाद इन जल संवर्धन और संरक्षण योजनाओं में पानी की बूंद की तलाश जारी है। कहा जा रहा है कि बे-ईमान न होता तो आज बुंदेलखंड सूखा न होता। बूंद-बूंद पानी की तडफ़न और सूखे से पलायन के हालात तब बने हैं, जब पिछले कुछ सालों में बुंदेलखंड पैकेज सहित मनरेगा, जलअभिषेक अभियान जैसे जल संरक्षण कार्यों पर अरबों रुपए खर्च कर दिए गए। सरकारी कागज इन कार्यों पर खर्च को लेकर रंगे हुए हैं। जिससे नहीं लगता कि बुंदेलखंड में इस कदर पानी की समस्या हो सकती है। बुदेलखंड पैकेज की राशि से मनरेगा के तहत प्रथम चरण में जल संवर्धन कार्यों पर 863.69 करोड़ रुपए व्यय किए गए। आंकड़े चौंकाने वाले हैं कि इस राशि से मार्च 2016 तक बुंदेलखंड के छह जिलों- सागर, छतरपुर, दमोह, टीकमगढ़, पन्ना, दतिया में 45451 कुआं, 2646 खेत तालाब खोदे गए। वहीं 2559 जल संरचनाओं का जीर्णोद्धार, पुनर्जीवन, पुनर्भरण यानी लघु तालाबों व माईनर नहरों का रखरखाव, तालाबों का गहरीकरण व जीर्णोद्धार, गाद निकालने जैसे कार्य किए गए। जिन पर 75.57 करोड़ रुपए खर्च किए गए। खेतों में निर्मित कराए गए तालाबों पर 10.60 और कुओं पर खर्च की जाने वाली राशि 777.52 करोड़ रुपए है। मध्यप्रदेश योजना आयोग के अनुसार सूखे से निपटारे के लिए बुंदेलखंड के बरसाती नालों, सहायक नदियों और बड़ी नदियों पर स्टापडेम बनाए गए। जिससे पानी को रोक कर जलस्तर बढ़ाया जा सके। सुनकर आश्चर्य होगा कि बुंदेलखंड के छह जिलों में 774 स्टापडेम बनाए गए, जिन पर 20859.5 लाख खर्च किए गए। पिछले चार सालों में जल संरक्षण के नाम पर बुंदेलखंड में अरबों रुपए बहा दिए गए। खासकर बुंदेलखंड पैकेज की राशि से जिस तरह सरकार के दावे के अनुरूप कार्य हुए, उससे लगता है कि बुंदेलखंड का हर इलाका पानीदार होगा। दूसरी ओर पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची हुई है। आरोप लगते रहे हैं कि पानी के नाम पर सरकारी कागज रंगे गए और अधिकारियों, नेताओं व ठेकेदार के नेक्सेस ने जमकर लुटाई की। सूखे के नाम पर जनता को एक बार फिर सूखा नसीब हुआ। लेकिन जिम्मेदारों ने अपनी तिजोरियों को लबालब कर लिया। काश! ईमान के साथ मानवीय और नैतिकता के आधार पर पानी के लिए पानी के नाम पानीदार होकर खर्च होता तो शायद बुंदेलखंड सूखा न होता। यहां की जनता प्यासी न होती। -जबलपुर से धर्मेंंद्र सिंह कथूरिया
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