अटक गई स्मार्टसिटी!
04-Jun-2016 09:40 AM 1234791
अधिकारियों की नाफरमानी का नतीजा है कि बमुश्किल 20 स्मार्ट सिटी शहरों में नामित हुए भोपाल से स्मार्टसिटी का तमगा छिनने की नौबत आ गई है। अब प्रदेश सरकार और अधिकारी इस कोशिश में लगे हैं कि कैसे भी हो यह तमगा हाथ से नहीं जाना चाहिए। स्मार्टसिटी की दूसरी लिस्ट में प्रदेश के एक भी शहर का नाम नहीं होने से इस बात का संकेत मिल गया है कि केंद्र प्रदेश की नौकरशाही के प्रोजेक्ट को विश्वसनीय नहीं मान रही है। उल्लेखनीय है कि भोपाल को स्मार्टसिटी की पहली सूची में शामिल किए जाने के बाद अधिकारियों ने बिना जांच-पड़ताल के शिवाजी-तुलसी नगर में स्मार्टसिटी बनाने का प्रस्ताव बनाकर केंद्र को भेज दिया और वहां से पहली किस्त का फंड भी आ गया है। लेकिन  शिवाजी-तुलसी नगर में स्मार्टसिटी बनाने का विरोध शुरू हुआ और राजधानी के सभी भाजपाई नेता इसके समर्थन में कूद पड़े तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को आगे आकर शिवाजी-तुलसी नगर में प्रस्तावित स्मार्टसिटी प्रोजेक्ट को रिजेक्ट करना पड़ा। शिवाजी-तुलसी नगर साइट रद्द होने के बाद नई साइट यानी नार्थ टीटी नगर में स्मार्टसिटी बनाने का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। मैदानी काम शुरू होने में पांच से छह माह का समय लगना तय है। नगरीय विकास विभाग को नगर निगम की ओर से भेजी गई प्रारंभिक रिपोर्ट में इस बात की पृष्टि हुई है कि डेवलपमेंट का ब्लू प्रिंट बनाने में अभी एक माह का वक्त लगेगा। इसके बाद ड्राफ्ट संचालनालय और वल्लभ भवन समीक्षा के लिए भेजा जाएगा। स्टेट लेवल डेवलपमेंट कमेटी इसे सभी आपत्तियों के निराकरण के बाद केंद्र सरकार को भेजेगी। उसके बाद केंद्र इस प्रस्ताव को हरी झंडी देगा तभी भोपाल में स्मार्टसिटी का काम शुरू होगा। यानी अभी तक जो काम आसान दिख रहा था उसे अधिकारियों की लापरवाही ने बेहद कठिन बना दिया। केंद्र की मंजूरी मिलने के बाद कंसलटेंट ब्लू प्रिंट के आधार पर डीपीआर तैयार करेगा जिसके बाद कंस्ट्रक्शन एजेंसी की तलाश शुरू होगी। इस पूरी कवायद के चलते इस साल स्मार्ट सिटी की प्रस्तावित साइट पर मैदानी काम शुरू नहीं हो सकेगा। केंद्र सरकार शहरी विकास मंत्रालय को भेजे पुराने ड्राफ्ट में भोपाल ने एरिया बेस्ड डेवलपमेंट फार्मूले पर स्मार्ट सिटी बसाने का दावा किया था। स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर छवि भारद्वाज कहती हैं कि नई साइट का ब्लू प्रिंट तैयार करने में एक माह का वक्त लगेगा। केंद्र सरकार को साइट बदलने की जानकारी दी है, इसकी विस्तृत रिपोर्ट जून में ही भेजी जा सकेगी। नई साइट पर एरिया बेस्ड डेवलपमेंट के लिए प्रारंभिक रिपोर्ट में 342 एकड़ जमीन की आवश्यकता बताई गई है। उल्लेखनीय है कि पब्लिक कंसलटेंसी राउंड में स्मार्टसिटी के लिए भोपाल को देश में सर्वाधिक 1 लाख 71 हजार वोट भी मिले थे। अब इस मामले में कांग्रेसी विवाद के बाद सरकार अब नॉर्थ टीटी नगर की खाली जमीन पर स्मार्ट सिटी बसाने की कोशिश कर रही है। जिस साइट पर स्मार्ट सिटी बसाने की तैयारियां चल रही हैं वहां 650 एकड़ जमीन खंडहरनुमा मकान और वृक्षों से भरी पड़ी है। नगर निगम की प्रारंभिक रिपोर्ट में इस साइट पर 342 एकड़ जमीन स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कार्पोरेशन के नाम स्थानांतरित करने की बात कही गई है। एरिया बेस्ड डेवलपमेंट फार्मूले के तहत सैंकड़ों एकड़ जमीन लेने के लिए निगम के खिलाफ पर्यावरणविद पहले से मोर्चा खोल चुके हैं। जब एरिया बेस्ड डेवलपमेंट के लिए 50 एकड़ जमीन जरूरी है तो क्यों सैंकड़ों एकड़ में कांक्रीट का जंगल उगाया जा रहा है। नगर निगम ने इसका जवाब अपनी रिपोर्ट में दिया है। इसके मुताबिक एबीडी प्रोजेक्ट की बेसिक जरूरत 50 एकड़ जमीन है और गाइडलाइन के अनुसार इससे ज्यादा जमीन भी इस फार्मूले के तहत विकसित की जा सकती है। भोपाल की आबादी और माइग्रेशन रेशो के मद्देनजर यहां 342 एकड़ जमीन मांगी गई है। सिविल स्ट्रक्चरल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष राजेश चतुर्वेदी कहते हैं कि अभी तो केंद्र से मंजूरी आनी शेष है। बीएमसी के ब्लू प्रिंट के हिसाब से डीपीआर बनाने में कम से कम छह महीने लगेंगे। प्रक्रिया अभी कागजों पर चल रही हैं। मैदानी काम शुरू होने में छह माह से भी ज्यादा वक्त लगना तय है। टीटी नगर की ढलान वाली जमीन पर हाईराइज बिल्डिंग खड़ी करना भी एक बड़ी चुनौती है। और खर्च हो गए 1.30 करोड़ शिवाजी-तुलसी नगर में स्मार्टसिटी बनाने को लेकर सरकार की फजीहत तो हुई ही साथ ही सरकार को एक करोड़ 30 लाख की राजस्व हानि भी हुई है। ज्ञातव्य है कि स्मार्ट सिटी की तैयारियों और डीपीआर तक सरकार को सवा करोड़ खर्च करना पड़ गए। अब नार्थ टीटी नगर का चयन होने के बाद सारी कवायद फिर से हो रही है। फिर से प्रोजेक्ट तैयार करने में इतनी ही राशि और लगनी है। उल्लेखनीय है कि  2015 के आखिरी तीन महीने से लेकर 2016 तक करीब नौ माह में प्रोजेक्ट की कागजी प्रक्रिया में एक करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं। जिन सुझावों के बूतें भोपाल को स्मार्ट सिटी का तमगा दिया गया, उन्हीं पर 30 लाख रुपए खर्च कर दिए गए। अगर अफसर नाफरमानी न करते तो यह रकम डूबती नहीं। भोपाल स्मार्टसिटी सेल के सीईओ चंद्रमौली शुक्ला कहते हैं कि कवायद में पैसा तो खर्च हुआ ही है, लेकिन कितना यह नहीं मालूम। उधर कांग्रेस जिलाध्यक्ष पीसी शर्मा कहते हैं कि राजधानी में प्रदेश सरकार और अफसर मिलकर कागजी योजनाएं बनाकर लाखों-करोड़ों रुपए बर्बाद कर रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि गलत प्लानिंग के कारण कई विकास योजनाएं शुरू होने से पहले ही दम तोड़ रही हैं। यह बात सही भी है कि मास्टर प्लान हो या मोती मस्जिद पर डिजाइन किया गया फ्लाईओवर। सभी का विरोध हुआ और प्लानिंग टाल दी गई। इनके विकल्प अभी तक तैयार नहीं हो पाए। यही हाल स्मार्ट सिटी और स्लाटर हाउस की शिफ्टिंग का हुआ। यानी अफसरों ने योजना पर उठने वाले सवालों पर गौर किए बिना प्रस्ताव बना डाले। राजधानी में 2009 में मास्टर प्लान का मसौदा जारी हुआ था। इसमें ग्रीन बेल्ट और तालाबों के आसपास निर्माण की अनुमति दी गई थी। इसका विरोध हुआ और अगस्त 2010 में मास्टर प्लान का प्रारूप निरस्त हो गया। उसके बाद अभी तक यह नहीं बन सका है। आदमपुर छावनी में नगर निगम ने करीब 1 एकड़ में स्लाटर हाउस बनाने का प्लान तैयार किया था। स्थानीय लोगों और हुजूर विधायक रामेश्वर शर्मा के विरोध के बाद महापौर आलोक शर्मा ने प्रस्ताव निरस्त कर दिया। महापौर कहते हैं कि स्मार्ट सिटी हो या अन्य विकास योजना सभी लोगों को ध्यान में रखकर ही बनाई गई थीं। लोगों की ही भावनाओं का सम्मान करते हुए इन्हें बदला गया है। अब देखना है कि स्मार्टसिटी का भविष्य क्या होता है। नई जगह पर भी देनी पड़ेगी छह हजार पेड़ों की बलि शहर में बनने वाली स्मार्ट सिटी का स्थान भले ही बदल गया है लेकिन 6 हजार पेड़ों पर अब भी काटे जाने की तलवार लटक गई है। यहां बीडीए ने रिडेंसीफिकेशन योजना के तहत वन विभाग से सर्वे कराया था और छह हजार वृक्ष चिन्हित हुए थे, जिन्हें काटा जाना पहले ही तय हो चुका था। नार्थ टीटी नगर में पंद्रह साल पहले मकानों को गिराने का सिलसिला लोक निर्माण विभाग ने शुरू किया था। 2011 में शासन ने यह जमीन बीडीए को सौंप दी ताकि रिडेंसीफिकेशन के तहत 3304 आवास गृहों के अलावा अच्छी सड़कें दो फ्लाई ओवर आदि का निर्माण हो सके। इस योजना में कुछ फेरबदल के बाद कैबिनेट ने 2015 में अपनी अनुमति जारी की और योजना की डीपीआर तैयार हो गई। खास बात यह थी कि मकान टूटने के बाद सैकड़ों पेड़ तो लोगों ने पहले ही काट लिए थे, लेकिन कुछ बड़े पेड़ योजना में आ रहे थे, जिनके लिए बीडीए ने राजधानी परियोजना के तहत वन विभाग से सर्वे कराया। इस साल जनवरी में वन विभाग ने यह सूची बीडीए को सौंप दी थी, जिसमें कहा गया था कि छह हजार वृक्षों को काटा जाना जरूरी है और इसके लिए बीडीए से राशि भी मांगी गई थी, जो बीडीए ने वन विभाग को जारी कर दी थी। इन वृक्षों की कटाई का काम वन विभाग शीघ्र शुरू करने वाला था कि अब योजना परिवर्तित हो गई और यह काम स्मार्ट सिटी कंपनी को करना होगा। विरोध नहीं होता तो मनमानी हो ही जाती : निर्मला बुच हम विकास के विरोधी नहीं हैें, लेकिन विकास प्रकृति के विनास पर  आधारित हो तो उसका विरोध जरूर करना चाहिए। शिवाजी नगर और तुलसी नगर में स्मार्टसिटी बनाने का विरोध नहीं होता तो यहां मनमानी हो ही जाती। प्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच कहती हैं कि तुलसी नगर ग्रीन वैली की तरह है। यदि यहां स्मार्ट सिटी के तौर पर कांक्रीट का नया पहाड़ खड़ा होता तो हवा का मूवमेंट खतरे में पड़ता। यह ठीक वैसी ही स्थिति होती, जैसी दो पहाड़ों के बीच एक नए पहाड़ को खड़ा करने के बाद होती है। अभी एमपी नगर से न्यू मार्केट तक जाने में जैसा सुकून महसूस होता है कांक्रीट का पहाड़ खड़ा होने के बाद यह वाहनों की भीड़भाड़ में खत्म हो जाता। पुनर्विकास के मॉडल के लिए केन्द्र सरकार ने मुंबई के भिंडी बाजार और दिल्ली में पूर्वी किदवई नगर का उदाहरण दिया था। तुलसी नगर और शिवाजी नगर का इलाका केन्द्र द्वारा दिए गए मॉडल से मेल नहीं खाता है। तुलसी नगर और शिवाजी नगर 1960 में बनकर तैयार हुआ था। इतने सालों बाद भी यहां न तो ट्रैफिक का दबाव, न ही प्रदूषण की समस्या है। -कुमार राजेन्द्र
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^