04-Jun-2016 09:29 AM
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मप्र में वाणिज्यकर विभाग में सुनियोजित तरीके से टैक्स चोरी चल रही है। जिससे सरकार को हर साल करोड़ों रुपए का चूना लगाया जा रहा है। आलम यह है कि विभाग में प्रमुख सचिव और आयुक्त के रूप में दो ईमानदार अफसर कार्यरत हैं फिर भी उनके कारिंदो की सांठगांठ के कारण विभाग को करोड़ों रुपए की चपत लग रही है। सरकार को 10 करोड़ रुपए की चपत लगाने वाले एक ऐसे ही अफसर खुलेआम घूम रहे हैं और उनके खिलाफ अभी तक एफआईआर भी दर्ज नहीं हो सकी है। यह अफसर हैं एंटी इवेजन ब्यूरो के उपायुक्त यूएस बैस जो फिलहाल निलंबित हैं और इंदौर मुख्यालय अटैच किया गया है। वे अपनी बहाली के लिए अफसरों के दर पर गुहार लगा रहे हैं।
यही नहीं एक तो चोरी और ऊपर से सीना जोरी की तर्ज पर बैस ने प्रमुख सचिव को आवेदन देकर विभागीय जांच से संबंधित आरोपों की प्रति मांगी है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि मुझे पेपटेक के ब्लॉक पीरियड प्रांतीय, कर प्रवेश कर निर्धारण में पारित आदेश दिनांक 27.2.15 के विरूद्ध धारा 34 के अंतर्गत जारी अनुमति पत्र संबंधी फाइल की प्रति दी जाए। साथ ही उन्होंने सरकार को जवाब देने के लिए 15 दिन की बजाए 30.6.2016 की अवधि तक का समय मांगा है। यही नहीं बैस यह कहते फिर रहे हैं कि मैंने कोई गलती नहीं की है बल्कि टीसी कोरी का जो आदेश था उसे यथावत रखा है। फिर भी मुझे क्यों निलंबित किया गया है यह मेरी समझ में नहीं आ रहा है। इस पूरे मामले में टीसी कोरी सेवानिवृत्त हो गए हैं परंतु विभाग ने उनके विरूद्ध आर्थिक घोटाले की शिकायत न तो लोकायुक्त और न ही आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में की है। जबकि इस विभाग के बड़े अफसरों की जिम्मेदारी बनती थी कि इतनी बड़ी अनियमितता के खिलाफ वे स्वयं सक्रिय होते और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करते।
उल्लेखनीय है कि छतरपुर और सतना में मेसर्स पेपटेक हाउसिंग प्राइवेट लिमिटेड के नाम से काम करने वाले व्यापारी के यहां वाणिज्यकर विभाग सतना द्वारा वर्ष 2013 में छापा मारा गया था। कार्रवाई में व्यापारी के यहां से तमाम दस्तावेज एवं लेखा पुस्तकें जब्त की गई। विभाग ने वर्ष 2007 से लेकर 2013 तक का टैक्स असेसमेंट किया और मामले की गंभीरता देखकर प्रकरण दर्ज किया। प्रकरण क्रमांक 370/13 के अंतर्गत दो साल तक इसका असेसमेंट किया। 14 बार व्यापारी को अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया गया, लेकिन वह नहीं आया। तब फरवरी 2015 में सहायक आयुक्त वाणिज्यकर इंदौर एके श्रीवास्तव ने धारा 20 (6) के अंतर्गत एक पक्षीय कर निर्धारण आदेश पारित कर व्यापारी पर अतिरिक्त वेट में 952.25 लाख और 81.59 लाख रुपए का इंट्री टैक्स निकाला। यानी दस करोड़ का कुल वेट टैक्स व्यापारी को चुकाना था।
इस पूरे आदेश को सागर के तत्कालीन उपायुक्त टीसी कोरी (वैश्य) ने धारा 34 के अंतर्गत निरस्त कर दोबारा टैक्स निर्धारण की बात लिख दी। हद तो यह है कि उन्हें ऐसा करने का अधिकार ही नहीं था, क्योंकि मामले में दोबारा टैक्स निर्धारण के लिए जिस धारा का इस्तेमाल किया गया, वह केवल पंजीकृत व्यापारियों के लिए ही है, जबकि मे. पेपटेक गैर पंजीकृत डीलर है। यानी उनका वाणिज्यकर विभाग में पंजीयन ही नहीं हुआ है। इसके बाद भी न केवल दोबारा वेट टैक्स निर्धारण की बात कही गई, बल्कि व्यापारी पर लगाया गया दस करोड़ रुपए का टैक्स भी माफ कर दिया। इसके बाद बिल्डर्स ने सहायक आयुक्त को धारा 34 के अंतर्गत एकपक्षीय कार्यवाही पर विचार करने के लिए आवेदन लिखा था। इस पर सहायक आयुक्त नेे उपायुक्त यूएस बैस को मामला भेजते हुए कार्यवाही करने के लिए कहा। बैस ने उक्त आवेदन को मान्य कर मूल कर निर्धारण आदेश को अपास्त कर दिया। और नियम विरुद्ध निर्णय लेते हुए 10 करोड़ से अधिक की अतिरिक्त मांग को निरंक कर दिया।
विभाग को करोड़ोंं रुपए की क्षति होता देख उसके बाद अपर आयुक्त पीके शिवहरे ने इस पूरे प्रकरण को स्वप्रेरणा से जांच में लिया और पाया गया कि संभागीय उपायुक्त यूएस बैस ने गलत तरीके से उक्त व्यापारी को लाभ पहुंचाया। अगर बैस उक्त आदेश पारित नहीं करते तो शासन को इतनी बड़ी हानि नहीं होती। उसके बाद बैस को निलंबित कर इंदौर मुख्यालय अटैच कर दिया गया।
अब इस मामले में जांच चल रही है लेकिन जांच के दौरान यह तथ्य भी सामने आया है कि छापे की मूल फाइल गायब हो गई है। वहीं पेपटेक हाईकोर्ट चली गई है कि टैक्स वसूली को यथावत रखा जाए। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर विभाग के अफसर सरकार के लिए काम कर रहे हैं या किसी कम्पनी विशेष के लिए। सूत्र बताते हैं कि इस षड्यंत्र में 3-4 लोग शामिल हैं। जिसमें मुख्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी और दूसरे सेवानिवृत्त हो चुके अधिकारी हैं। बताया जाता है कि इन सभी लोगों की पेपटेक में साझेदारी भी है। उसी चक्कर में यह पूरा खेल खेला गया है। अगर यूएस बैस इस मामले में ईमानदारी से कार्य करते तो न उन्हें निलंबन का सामना करना पड़ता और न ही सरकार को 10 करोड़ रुपए की चपत लगती। बैस को अपने वरिष्ठ अधिकारियों से इस मामले में सलाह लेनी चाहिए थी। लेकिन उन्होंने टीसी कोरी के आदेश को यथावत रख दिया। इससे इस बात की संभावना जताई जा रही है कि कहीं न कहीं ऐसा करने में उनको कंपनी द्वारा लाभ पहुंचाया गया है। अगर पीके शिवहरे ने इस मामले को स्वप्रेरणा से जांच में नहीं लिया होता तो सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगना तय था। लेकिन अभी भी इस मामले में खेल चल रहा है। बताया जाता है कि अभी पिछले माह रिटायर हुए एक वरिष्ठ अधिकारी इसमें खेल-खेल रहे थे जिससे विभाग में आपसी लड़ाई का वातावरण निर्मित हो गया है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि विभाग में षड्यंत्र पूर्वक एक-दूसरे को फंसाया जा रहा है। अभी हाल ही मेें सागर में एक मामला सामने आया है जहां विभाग के एक अधिकारी एचएस ठाकुर को लोकायुक्त ने रिश्वत लेते पकड़ा। बताया जाता है कि ठाकुर ने कोई रिश्वत नहीं ली बल्कि उन्हें महुरानी ट्रांसपोर्ट कंपनी ने फंसाने के लिए यह षड्यंत्र रचा और ठाकुर को बली का बकरा बनाया गया। क्योंकि जब लोकायुक्त ने छापा मारा तो पैसा ठाकुर के टेबिल पर रखा था। बताया जाता है कि कंपनी के लोग उक्त पैसा ठाकुर की टेबिल पर रखकर चले गए और लोकायुक्त ने उसे रिश्वत मानते हुए जब्त किया। विभाग में चल रहा यह खेल आगे और घातक हो सकता है। लेकिन विसंगति यह देखिए कि विभाग के आला अधिकारी इस मामले में मौन साधे हुए हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि जिस विभाग में दो ईमानदार अफसर कार्य कर रहे हैं उस विभाग में टैक्स चोरी और सीना जोरी का यह खेल कैसे चल रहा है। दरअसल यह एक बड़ा षड्यंत्र है और अधिकारियों की आपसी सांठगांठ से टैक्स चोरी का धंधा जोरों पर चल रहा है। फिलहाल पूरे मामले में जांच जारी है। अगर इस मामले की निष्पक्ष जांच हो तो कुछ और अफसरों पर भी कार्रवाई होने की संभावना है।
इसलिए नहीं दे सकते थे लाभ
टीसी वैश्य ने जिस व्यापारी पर निकाले गए वैट टैक्स को माफ किया है, वह मात्र एक कांट्रेक्टर है। जो कि निर्माणाधीन मकानों का संभावित खरीददार के रूप में अनुबंध करके उन भवनों का निर्माण करता था। इसके बाद ग्राहक ढूंढ़कर उन्हें बेच दिया करता था। इस दौरान वह एक बिल्डर की भांति ग्राहकों से पैसा लेता था। जैसे भवन की प्लिंथ लेवल, आरसीसी स्लैब, सुपर स्ट्रेक्चर, फिनिशिंग आदि के लिए समय-समय पर ग्राहकों से पैसा लिया करता था। इस पूरे लेन-देन में रजिस्ट्री आदि का पैसा वह बचा लेता था। यानी उक्त फर्म केवल एक ठेकेदार के रूप में मान्य है, न कि बिल्डर का काम करने के लिए पंजीकृत है। इसके बाद भी वह बिल्डर की भांति काम कर रही थी।
इस काम के लिए फर्म के पास टिन नंबर भी नहीं था। विभाग की तरफ से पहली बार की गई कार्रवाई यानी वेट टैक्स निकालने वाली रिपोर्ट में इन सब बातों का जिक्र विस्तार से किया गया है, लेकिन टीसी वैश्य ने इन्हीं बातों को नजरअंदाज करके मामले में निर्णय लिया और समस्त वेट टैक्स और पेनल्टी को निरंक यानि जीरो कर दिया। अपने निर्णय के लिए उन्होंने प्रथम कार्रवाई को झूठा बताया।
विधानसभा में भी उठ चुका है मामला
छतरपुर और सतना में मेसर्स पेपटेक हाउसिंग प्राइवेट लिमिटेड का टैक्स चोरी का मामला कितना संदिग्ध है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बजट सत्र के दौरान विधानसभा में भी इसको लेकर सवाल उठ चुका है कांग्रेस विधायक गोविन्द सिंह के एक सवाल के जवाब में मंत्री जयंत मलैया ने बताया कि दिनांक 20/02/2013 को एन्टी इवेजन ब्यूरो सतना द्वारा मेसर्स पेपटेक हाउसिंग प्रा.लि. पर छापा मारा गया था। मेसर्स पेपटेक हाउसिंग प्रा.लि. छतरपुर वैट प्रकरण क्र. 370/13 में श्री ए.के. श्रीवास्तव तत्कालीन सहायक आयुक्त, वाणिज्यिक कर इन्दौर कैंप सागर द्वारा एकपक्षीय आदेश पारित दिनांक 27/02/2015 से अपवंचित वैट रूपये 3,17,51,787/- एवं शास्ति रूपये 6,35,03,574/- कुल रूपये 9,52,55,361/- का मांग पत्र जारी किया गया एवं प्रवेश कर प्रकरण 371/13 आदेश पारित दिनांक 27/02/2015 में प्रवेश कर एवं ब्याज राशि रूपये 81,59,314/- का मांग पत्र जारी किया गया। मेसर्स पेपटेक हाउसिंग प्रा.लि. छतरपुर प्रकरण क्र. मध्यप्रदेश वेट अधिनियम की धारा 34 (1) के अधीन नवीन कर निर्धारण आदेश पारित दिनांक 15.5.15 से टी.सी. वैश्य तत्कालीन सहायक आयुक्त (वर्तमान में सेवानिवृत्त) वाणिज्यिक कर सागर द्वारा वैट एवं प्रवेश कर प्रकरण में अतिरिक्त मांग निरंक निकाली गई है। इस आदेश को धारा 47 (2) के तहत पुन: कार्यवाही हेतु लिया गया है, प्रकरण का परीक्षण किया जा रहा है। अंतिम आदेश पारित होने पर प्रावधानों के अनुरूप वसूली कार्यवाही की जावेगी।
-इंदौर से विकास दुबे