04-Jun-2016 08:49 AM
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आगामी विधानसभा चुनाव को भले ही अभी दो साल से अधिक का समय बाकी है लेकिन भाजपा ने मैदानी तैयारी शुरू कर दी है। भाजपा की तैयारी को देखते हुए कांग्रेस में हलचल शुरू हो गई है। सत्ता में रहने के आदी हो चुके कांग्रेस के दिग्गज नेता पद और प्रतिष्ठा पाने की होड़ में लग गए हैं। आलम यह है की चार राज्यों में मिली हार के बाद अभी पार्टी मातम भी नहीं मना पाई है कि सांसद कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्यप्रदेश का अध्यक्ष बनने की दावेदारी ठोक दी है। उधर, महासचिव दिग्विजय सिंह वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। ऐसे में घमासान होता देख आलाकमान ने घोड़ाडोंगरी उपचुनाव का पैमाना बनाकर अपने नेताओं की परख शुरू कर दी है। आलाकमान के पैमाने पर खरा उतरने के लिए नेताओं ने उपचुनाव में अपनी ताकत दिखाने के लिए ताल ठोक दी है। बताया जाता है कि यह क्षेत्र कमलनाथ के क्षेत्र में आता है। इसलिए यहां कांग्रेस की हार-जीत कमलनाथ को प्रभावित करेगी। लेकिन अन्य नेता जिन क्षेत्रों में प्रचार कर रहे हैं वहां पार्टी की स्थिति का भी आंकलन होगा। उसके आधार पर अगले प्रदेश अध्यक्ष का नाम तय किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि मप्र में जन-जन के मन में पैठ बना चुके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुकाबिल कांग्रेस पिछले एक दशक से दमदार चेहरे की तलाश कर रही है। लेकिन पार्टी को अभी तक कोई ऐसा चेहरा नहीं मिला है जो शिवराज को चुनावी मुकाबले में पटखनी दे सके। अभी तक जिनको भी शिवराज के मुकाबिल खड़ा किया गया है वे नाकाबिल साबित हुए हैं। चाहें वे सुरेश पचौरी हों या कांतिलाल भूरिया या अरूण यादव। एक बार फिर कांग्रेस में प्रदेशाध्यक्ष के रूप में दमदार चेहरे की तलाश शुरू है और सांसद कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं।
प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के नेतृत्व पर सीधे सवाल खड़े करना भले ही अब बंद हो गए हों लेकिन कमलनाथ और ज्योतिरादित्य के समर्थक उनकी अपनी मौजूदगी में सार्वजनिक मंचों पर आवाज को और हवा देने लगे हैं। यहां सवाल खड़ा होना लाजमी है कि कांग्रेस हाईकमान इन दोनों में से किसे चौहान की काट के तौर पर पेश करता है लेकिन इससे भी बड़ा सवाल ये है कि क्या सिंधिया और नाथ कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना की उस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं जो दावा तो प्रदेश अध्यक्ष के लिए ठोंक रहे लेकिन उनकी नजर राष्ट्रीय स्तर पर उस महासचिव की कुर्सी पर आकर टिक गई है जिस पर अपना कब्जा ठोंककर दिग्विजय सिंह राष्ट्रीय राजनीति में नाथ और सिंधिया के मुकाबले खुद को बेहतर और प्रभावी साबित कर रहे हैं।
विधानसभा के बजट सत्र से पहले यदि महाकौशल के मंच से कमलनाथ को नेतृत्व सौंपे जाने की मांग उनके समर्थक विधायकों ने उठाई थी तो उसे प्रभारी नेता प्रतिपक्ष की कमान संभाल रहे बाला बच्चन ने सत्र के दौरान हवा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। कमलनाथ के दौरे महाकौशल क्षेत्र तक ही सीमित होकर रह गए तब ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों ने कालापीपल की किसान रैली से नेतृत्व की जरूरत जताकर मानो इस पुरानी बहस को नए सिरे से हवा दे दी है। खुद सिंधिया ने एक ऐसे चेहरे की जरूरत जताई जिस पर जनता भरोसा कर सके। लंबे अर्से बाद ज्योतिरादित्य ने मानो प्रदेश की राजनीति में रुचि ली और इशारों इशारों में चेहरे की आड़ में प्रदेश कांग्रेस के प्रदर्शन और संभावनाओं पर सवाल खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। नेतृत्व की इस होड़ में दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गज यदि फिलहाल तटस्थ हैं तो उनकी मजबूरी को समझा जा सकता है जिनके पास राष्ट्रीय महासचिव का दायित्व है लेकिन चिंता बेटे जयवर्धन को आगे बढ़ाने में है। यदि दिग्गी राजा ने खुद को प्रदेश की राजनीति से दूर रखा है तो कोई न कोई वजह जरूर होगी।
-भोपाल से रजनीकांत पारे