कांग्रेस मुक्त भारत!
04-Jun-2016 09:17 AM 1234816
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ है। एक तरह से कहें तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया है। पुड्डिचेरी के अलावा किसी भी राज्य में कांग्रेस न तो अपने बूते और न सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बना पाई है। केरल और असम कांग्रेस के हाथ से निकल गए। असम में भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की है। यहां कांग्रेस का 15 साल का राज खत्म हो गया। वहीं केरल में दोबारा सत्ता में लौटने का कांग्रेस का सपना पूरा नहीं हो पाया। पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टियों का साथ भी कांग्रेस को सत्ता तक नहीं पहुंचा पाया। बंगाल में दीदी यानि ममता बनर्जी की सत्ता में वापसी हो गई। तमिलनाडु में भी कांग्रेस का यही हाल हुआ। पार्टी ने डीएमके से गठबंधन किया लेकिन यहां जयललिता ने दोबारा सत्ता में लौटकर इतिहास रच दिया है। कांग्रेस की अब सिर्फ 7 राज्यों में सरकारें बची है। कांग्रेस की पहले 9 राज्यों में सरकारें थी। कांग्रेस की पूर्वोत्तर के तीन राज्यों, दक्षिण भारत के एक राज्य और दो उत्तर भारत के राज्यों में सरकार है। वहीं भाजपा की 11 राज्यों में सरकार हो गई है। 7 राज्यों में अकेले भाजपा की सरकार है वहीं चार राज्यों में सहयोगी दलों के साथ सत्ता में है। हालिया विधानसभा चुनावों के नतीजों से स्पष्ट है कि देश में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस के लिए बुरा दौर चल रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस का राज्यों में पतन होना शुरू हुआ जिसका सिलसिला अभी तक जारी है। लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा और महाराष्ट्र कांग्रेस के हाथों से निकल गए। झारखण्ड में भी कमल खिल गया। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी सत्ता में आ गई। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का जैसा प्रदर्शन रहा था वह चौंकाने वाला था। पार्टी सिर्फ 45 सीटों पर सिमट गई थी। यूपी,पंजाब और उत्तराखण्ड पर रहेगी नजर अगले साल यानि 2017 में तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें उत्तराखण्ड, पंजाब और उत्तर प्रदेश शामिल है। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने अपना दमखम दिखाया है। वह कांग्रेस और भाजपा को कड़ी चुनौती दे सकती है। उत्तराखण्ड में हालिया घटनाक्रम के बाद कांग्रेस को ज्यादा उम्मीद है लेकिन पांच साल के बाद सत्ता परिवर्तन की वहां परंपरा रही है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। वहां मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच ही रहेगा। हालांकि भाजपा भी खुद को मुख्य मुकाबले में मान रही है। पांच राज्यों के चुनाव परिणाम देखने के बाद जहां कांग्रेस के खेमे में चिंता की लहर फैल गई है वहीं भाजपा जश्न में डूबी हुई है। भले ही भाजपा केवल असम में सरकार बना रही हो लेकिन उसकी खुशी इसलिए भी बड़ी है क्योंकि बाकी के तीन राज्यों में भी कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा है। इस जीत ने जहां देशभर में भाजपा शासित राज्यों की संख्या बढ़ा दी है वहीं कांग्रेस के शासन को और कम कर दिया है। अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो देश की 43 प्रतिशत आबादी पर भाजपा की सरकार है वहीं दूसरे नंबर पर अन्य दल आते हैं जो 41 प्रतिशत जनता पर शासन कर रहे हैं। कांग्रेस इस लिस्ट में सबसे नीचे है। अगर यही आलम रहा तो आने वाले समय में पीएम मोदी का कांग्रेस मुक्त राष्ट्र का भाषण सही साबित हो जाएगा और आजादी के बाद से देश पर राज करने वाली सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी को अपने वर्चस्व के लिए क्षेत्रीय पार्टियों से संघर्ष करना पड़ेगा। अगर पार्टी अनुसार शासन की बात करें तो भाजपा सबसे ज्यादा आबादी और राज्यों में राज कर रही है। आंकड़ों के अनुसार भाजपा मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड, हरियाणा, गोवा के बाद अब असम में भी सरकार बना रही है। इन 9 राज्यों में अगर आबादी का प्रतिशत देखा जाए तो यह 35.6 प्रतिशत है। इसके अलावा एनडीए के शासन वाले राज्यों को देखें तो आंध्र प्रदेश, पंजाब, जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल में एनडीए का शासन है। इन चार राज्यों में आबादी का प्रतिशत 7.55 है। अब अगर भाजपा और एनडीए के राज्यों की आबादी को मिलाएं तो भाजपा कुल 43.1 प्रतिशत आबादी पर राज कर रही है। वहीं अगर कांग्रेस शासित राज्यों पर नजर डालें तो नतीजों के बाद अब कांग्रेस कर्नाटक, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और पुडुचेरी जैसे बेहद कम आबादी वाले राज्यों में सत्ता में है। इन 7 राज्यों की आबादी का प्रतिशत देखें तो यह महज 7 प्रतिशत है। इसके अलावा बिहार के गठबंधन को देखें तो कांग्रेस यहां 8.85 प्रतिशत आबादी पर राज कर रही है। कांग्रेस के स्वयं और गठबंधन के राज्यों को मिलाकर देखें तो यह कुल 15.58 प्रतिशत आबादी पर राज कर रही है। वर्तमान हालातों को देखें तो कांग्रेस भाजपा के मुकाबले आधी पर भी शासन नहीं कर रही। वहीं अन्य दलों की बात करें तो वो देश की 41. 16 प्रतिशत आबादी पर राज करते हैं। इनमें सपा, बसपा, आप जैसी पार्टियां शामिल हैं। देश के कुल 10 राज्यों में यह अन्य दल मौजूद हैं। कांग्रेस को भारतीय राजनीति में वाकई अस्तित्व बचाना है तो अपनी रीति-नीति में अमूल-चूल बदलाव लाना होगा। कार्यकर्ता अब सम्मान चाहता है। अपनी बात पर गौर चाहता है। अपने सिपहसालारों की सलाह पर चलने वाले राहुल गांधी (सोनिया उन्हें जिम्मेदारी देर-सवेर सौंप ही देगी) को आम कार्यकर्ता को तरजीह देनी होगी। उनके सुझाव समस्याओं को देखना होगा। कोटरी से बाहर आना होगा। वरना मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, असम, बिहार, राजस्थान जैसा हश्र पार्टी का आगामी चुनावों में न हो जाए। बात तो प्रियंका गांधी को भी आगे लाने की चली है लेकिन यह परिवारवाद को आगे बढ़ाना ही होगा। माना वे करिश्माई चेहरा हो सकती हैं लेकिन जनता और कार्यकर्ताओं में विश्वास तभी जागेगा जब निचले स्तर तक उनकी पूछ होगी। अब पार्टी के थिंक टैंक को पार्टी बचाने के लिए हर स्तर पर मेहनत करनी होगी। एक व्यक्ति की जगह ए.ओ.ह्यूम की तरह सर्वजन पार्टी के सिद्घांत पर चलना होगा । क्योंकि इस देश में कोई भी नहीं चाहेगा कि एक सदी से ज्यादा पुरानी और साठ साल देश पर राज करने वाली पार्टी यूं ही अपने कर्मों से डूब जाए। नेतृत्व में विकल्पहीनता के हालात दूर करने होंगे पांच राज्यों के चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन निश्वित रूप से खराब रहा है। यूं कहना चाहिए कि इन चुनावों में कांग्रेस की जितनी बुरी हालत हुई वह कभी नहीं हुई। लेकिन राजनीति में ऐसे उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। हम याद करें जब सोनिया गांधी ने 1998 में कांग्रेस का नेतृत्व संभाला तब वह सिर्फ पांच राज्यों में सत्ता में थी और 2004 तक 14-15 प्रदेशो में उसकी सरकार रही। समस्या कांग्रेस में बने दो पावर सेंटर की है। सोनिया गांधी रिटायरमेंट की बात कर रही है और राहुल गांधी को अध्यक्ष की कमान सौंपने की चर्चा शुरू हो गई है। मौके गंवाए कांग्रेस ने : बात असम की करें। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के लिए असम, हरियाणा, महाराष्ट्र में कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को हटाने की मांग उठी थी। तीनों को बचा लिया गया। शायद तब चिंता यह थी कि ऐसा कदम उठाया तो यह मांग भी उठने लगेगी कि मुख्यमंत्रियों को ही क्यों? पार्टी अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को क्यों नहीं हटाया जाए? असम में तो 75 में से 52 विधायकों ने तरूण गोगोई में अविश्वास जताया था। हो सकता है कि पार्टी तब ही असम में नए नेतृत्व को मौका देती तो आज कांग्रेस की यह हालत नहीं होती। असम में कांग्रेस की हार के बड़ेे कारणों में यह भी है कि उसने समय रहते गठबंधन की तरफ ध्यान नहीं दिया। बदरूद्दीन की पार्टी के साथ गठबंधन के लिए तरुण गोगोई इसके लिए सहमत नहीं हुए। यदि यह गठबंधन होता तो कांग्रेस की स्थिति में सुधार तो हो ही सकता था। वाम से दोस्ती पड़ी महंगी : पश्चिम बंगाल में तो ऐसे नतीजे अपेक्षित ही थे लेकिन देखा जाए तो वाम दलों का साथ लेना कांग्रेस के लिए भारी रहा। खास तौर से राहुल गांधी और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की मंच पर साझा की गई तस्वीरें जारी होने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर हुआ। 2008 में न्यक्लियर डील को लेकर हुए झगड़े के बाद वाम नेतृत्व की कभी कांग्रेस से सुलह नहीं हुई थी। कांग्रेस मुक्त भारत बनाने के लिए दो कदम आगे बढ़ा है देश : शाह देश भाजपा के कांग्रेस मुक्त भारत अभियान के लिए दो कदम आगे बढ़ा है। नतीजे देखकर कोई भी कांग्रेस के साथ जाने का साहस नहीं करेगा, जो जो गया वे सब हारे हैं। भाजपा ने सभी पांच राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया है। भाजपा असम के विकास के लिए प्रतिबद्ध है और पार्टी की कोशिश रहेगी कि आने वाले दिनों में असम देश के विकसित राज्यों में शामिल हो सके। केरल में हिंसा की राजनीति के सामने भाजपा ने बड़ा प्रयास किया और सफलता भी मिली। केरल में पार्टी का वोट शेयर 6 से 15 फीसदी तक बढ़ा है। तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में हमने अपना वोट शेयर कायम रखा है। इन नतीजों ने 2019 के चुनावों के लिए अच्छी नींव डालने का काम किया है, जहां हमारा संगठन कमजोर था, वहां भी हमें अच्छी स्वीकृति मिली है। हमने भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का वादा किया था, वह निभाया है। संसद में बाधा पैदा कर विकास में अडंगा लगाने का काम कर रही कांग्रेस को जनता ने रास्ता दिखाने की कोशिश की है। -दिल्ली से रेणु आगाल
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