04-Jun-2016 09:07 AM
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ईरान की यात्रा की शुरुआत करने समय कहा कि इसे लेकर अटकलें न लगाएं, किंतु हमें हमारे संबंधों के इतिहास में एक नये अध्याय की शुरुआत और हमारी व्यापक सामरिक भागीदारी में एक नए आयाम का पूरा भरोसा है। गहराई से देखने पर साफ हो जाता है कि मोदी ने जो कुछ कहा था, परिणाम ठीक वैसे ही आया है। यह बात ठीक है कि चाबहार बंदरगाह समझौता इसमें काफी महत्वपूर्ण है और इसकी चर्चा सबसे ज्यादा होना भी अस्वाभाविक नहीं है। लेकिन यह समझौता अपने आप में ईरान का भारत पर विश्वास और उसके साथ लंबे और स्थायी व्यापारिक-आर्थिक एवं सामरिक भागीदारी की चाहत को प्रमाणित करता है। साथ ही पाकिस्तान पर नकेल कसने की तैयारी भी है।
आखिर, कोई देश यों ही तो अपना बंदरगाह विकसित करने के लिए किसी को नहीं दे सकता। यही नहीं, वह वहां से सड़क और रेल मार्ग बनाने की अनुमति भी दे रहा है तो यह भारत पर उसके विश्वास और स्थायी साझेदारी विकसित करने की चाहत की ही तो परिणति मानी जाएगी। आखिर जब पिछले जनवरी में चीन के राष्ट्रपति शि जिनपिंग वहां गए थे, वह उन्हें भी इसका प्रस्ताव दे सकता था। चीन इसे खुशी से स्वीकार करता। वह बगल में पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह विकसित करके वहां अपना पांव जमा ही चुका है। उसके लिए यह दूसरी रणनीतिक उपलब्धि होती। किंतु ऐसा नहीं हुआ तो इसके कुछ ठोस कारण हैं और यही भारत ईरान संबंधों की महत्ता को दर्शाता है।
चाबहार समझौते के तहत भारत बंदरगाह और संबंधित आधारभूत ढांचे को विकसित करने के लिए 3376 करोड़ रुपये मुहैया कराएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा भी कि इस समझौते का तेजी से कार्यान्वयन करने के लिए दोनों देश प्रतिबद्ध हैं। मोदी ने कहा कि इससे आज इतिहास निर्माण हुआ है। दोनों देशों ने इस समझौते को अंग्रेजी में गेम चेंजर यानी क्षेत्र का परिदृश्य बदलने वाला करार दिया। ध्यान रखिए इस समझौते के दौरान अफगानिस्तान के राष्ट्रपति भी वहां मौजूद थे। यह महत्वपूर्ण है। यह त्रिपक्षीय समझौता हो गया। जिसमें भारत बंदरगाह के साथ वहां से करीब कई सौ कि.मी. की रेल और सड़क मार्ग विकसित करेगा। करीब 200 कि.मी. मार्ग भारत अफगानिस्तान के सहयोग से पहले ही विकसित कर चुका है। इसके बाद इसकी महत्ता को समझने में समस्या नहीं होगी। इसका एक महत्व तो चीन और पाकिस्तान को जवाब के तौर पर देखा जा रहा है। ग्वादर यदि पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है तो चाबहार ईरान के बलूचिस्तान में। भारत के कांडला बंदरगाह से चाबहार की दूरी मुंबई और दिल्ली के इतना ही है। वस्तुत: चाबहार बंदरगाह के तैयार हो जाने के बाद भारत और ईरान के जहाजों को पाकिस्तान की ओर से नहीं जाना पड़ेगा। इससे भारत के जहाज सीधे अफगानिस्तान पहुंच सकेंगे। कहने की आवश्यकता नहीं कि ईरान और अफगानिस्तान तक सीधी पहुंच से भारत आर्थिक एवं सामरिक हर दृष्टि से उस क्षेत्र में काफी मजबूत हो जाएगा। पाकिस्तान ने आज तक भारत के उत्पादों को सीधे अफगानिस्तान और उससे आगे जाने की इजाजत नहीं दी है। इसके बाद हमें उसकी किसी प्रकार आवश्यकता नहीं होगी। हमारे लिए इससे पूरा पश्चिम एशिया तथा मध्य एशिया से लेकर रूस एवं यूरोप तक आने-जाने का सीधा मार्ग मिल गया है।
इस तरह चाबहार बंदरगाह समझौता पाकिस्तान और चीन को भारत का करारा जवाब मान लेने में कोई हर्ज नहीं है। वैसे तो यह समझौता 2015 में ही हो जाता, लेकिन ऐसा हो न सका। अगर प्रधानमंत्री ने ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह समझौते को मील का पत्थर कहा तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है। दरअसल मोदी की विदेश नीति का एक पहलू है कि वह इसे संवेदना और भावना के स्तर पर ले जाते हैं, अतीत से जोड़ते हैं तथा इसके सांस्कृतिक पहलू को पूरा महत्व देते हैं।
करीब आएंगे काशी और काशान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा के दौरान दोनों देशों के संबंधों में नई ऊंचाई पर ले जाने में मदद मिलेगी। खासतौर से चाबहार समझौते से दोनों देशों में सहयोग का नया युग शुरू होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस बात को स्वीकार किया। ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी से मुलाकात के दौरान उनको मिर्जा गालिब का एक शेर सुनाकर संभवत: इसी ओर संकेत किया। मोदी ने कहा, जनूनत गरबे नफ्से-खुद तमाम अस्त/जे-काशी पा-बे काशान नीम गाम अस्त। अर्थात एक बार यदि हम मन बना लें, तो काशी से काशान की दूरी आधे कदम भी नहीं रह जाएगी। उल्लेखनीय है कि काशान ईरान का एक प्रांत है। इस मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने आतंकवाद से मिलकर लडऩे का संकल्प लिया। इसके लिए दोनों देशों में खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान पर सहमति बनी है। दोनों नेता इस बात पर एकमत थे कि आतंकवाद और कट्टरपंथ क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। खामनेई से मिले मोदी भारत लौटने से पहले मोदी ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह खामनेई से भी मिले। प्रधानमंत्री खामनेई के दफ्तर में जाकर उनसे मिले। मुलाकात के दौरान उन्होंने खामनेई को सातवीं सदी में कुफिक लिपि मेंं हाथ से लिखा पवित्र कुरान भेंट किया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने ट्वीट किया, दुर्लभ सम्मान। विशेष रिश्ते की मजबूती को रेखांकित करने वाला। सर्वोच्च नेता अली खामनेई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगवानी की।
-अनूप ज्योत्सना यादव