04-Jun-2016 08:46 AM
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प्रदेश में 29 जून को रिक्त हो रही तीन राज्यसभा की सीटों के लिए भाजपा और कांग्रेस के बीच बिसात बिछ गई है। दो सीटों के लिए भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी अनिल माधव दवे और एमजे अकबर ने 31 मई को नामांकन पर्चा दाखिल कर दिया। तीसरी सीट के लिए भाजपा ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर विनोद गोटिया को उतारा है। जो इस बात का संकेत है कि भाजपा तीसरी सीट भी कब्जाने की फिराक में है। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के हिस्से की इस सीट के लिए कांग्रेस ने विवेक तन्खा को प्रत्याशी बनाया है और उन्होंने नामांकन दाखिल कर दिया है।
दरअसल, विधानसभा सीटों के लिहाज से भाजपा के हिस्से में दो सीटें आती हैं। यदि 6-7 वोटों की जुगाड़ कर ली तो तीनों सीटों पर भाजपा का कब्जा हो सकता है जबकि एक वोट की जुगाड़ करके कांग्रेस अपनी सीट बचा सकती है। प्रदेश में राज्यसभा में जाने के लिए 58 विधायकों की जरूरत एक सीट के लिए होती है जबकि कांग्रेस के पास वर्तमान में 57 विधायक हैं। ऐसे में कांग्रेस को अपने विधायक तो एकजुट रखना ही है, एक विधायक की जुगाड़ उसे बसपा एवं निर्दलीयों में से करना है। यही कारण है कि पार्टी ने विवेक तन्खा को मैदान में उतारा है जो एक वोट का मैनेजमेंट कर सकते हैं। वहीं दूसरी ओर भाजपा के पास वर्तमान में 165 विधायक हैं। इस लिहाज से भाजपा के दो उम्मीदवार तो आसानी से चुनाव जीत जाएंगे लेकिन पार्टी कोशिश कर रही है कि अन्य विपक्षी दलों में सेंध लगाकर यदि वोटों की संख्या 165 से बढ़ाकर 171 कर ली तो फिर तीनों सीटों पर भाजपा उम्मीदवार चुनाव जीत सकते हैं। साम, दाम, दंड, भेद के आधार पर पार्टी अब तक कांग्रेस नेताओं को विधानसभा और लोकसभा चुनावों के पहले तोड़ती आई है। इस कारण पार्टी के रणनीतिकारों को भरोसा है कि आखिरी वक्त तक पार्टी तीन सीटों के लिए जरूरी विधायकों की जुगाड़ विधायकों की जुगाड़ कर लेगी..लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है क्योंकि कांग्रेस को केवल एक वोट की जुगाड़ करना है और उसके पास दमदार प्रत्याशी भी है।
फिर भी भाजपा ने विनोद गोटिया को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतार दिया है। उधर बसपा के सत्यप्रकाश सखवार का कहना है कि उनकी नेता मायावती तय करेंगी की चुनाव में क्या करना है। लेकिन भाजपा सहित प्रदेश की राजनीतिक वीथिका में एमजे अकबर को प्रत्याशी बनाया जाने को लेकर चिंता का विषय है। पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि आखिर ऐसी क्या वजह रही है कि अकबर जैसे लोगों को इतनी तवज्जो दी जा रही है। यह वही एमजे अकबर हैं जिसने गुजरात दंगे के बाद भाजपा के खिलाफ जमकर कैंपेन की थी। यही नहीं इन्होंने देश के लिए भाजपा को सबसे खतरनाक और सांप्रदायिक पार्टी बताया था। लोग तो यह भी कह रहे हैं कि जरा सी बात पर बड़वानी कलेक्टर अजय गंगवार को हटाने जैसा कदम उठाने वाली भाजपा को अकबर मेंं ऐसा क्या दिख रहा है। क्या पार्टी में अन्य कोई प्रतिभाशाली नेता नहीं है क्या। सब जानते हैं कि अकबर राजीव गांधी के करीबी थे और उन्होंने उनके साथ मिलकर कांग्रेस के लिए काम भी किया है। अकबर हमेशा भाजपा के खिलाफ खबरों के माध्यम से हल्ला बोलते रहे हैं। फिर भी पार्टी ने 2014 में इन्हें भाजपा में शामिल कर लिया। वह जून 2015 में झारखंड से राज्यसभा के लिए चुने गए। उधर भाजपा नेता विनोद गोटिया ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन कर कांग्रेस प्रत्याशी विवेक तन्खा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। अब देखना यह है कि शह मात का यह खेल क्या गुल खिलाता है। उधर कांग्रेस प्रत्याशी विवेक तन्खा ने चुनौती देते हुए कहा है कि अगर भाजपा की तरफ से विधायकों की खरीद-फरोख्त होती है तो हम भी तैयार हैं। इस बार कांग्रेस ही नहीं बल्कि वकील और व्हीसिल ब्लोअर क्या करते हैं यह सब लोग देख लेंगे।
दवे को मिला उनकी मेहनत का इनाम
अनिल माधव दवे का दावा सीट पर शुरू से ही मजबूत था। उन्होंने सबसे पहले विश्व हिन्दी सम्मेलन और उसके बाद निनौरा में आयोजित वैचारिक कुंभ में जिस तरह मेहनत और लगन के साथ काम किया उससे तय था कि उन्हें राज्य सभा भेजा जाएगा। वे लोकसभा में आवास योजना से जुड़ी समिति के चेयरमैन हैं। इस समिति की रिपोर्ट को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री वैंकेया नायडू ने सराहा था। पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने भी कहा था कि दवे को बाकी समितियों का भी चेयरमैन बना देना चाहिए। लिहाजा, केंद्रीय नेतृत्व की नजर में उनकी छवि अज्छी थी। प्रदेश नेतृत्व भी दवे को राज्यसभा भेजने के समर्थन में था, क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वर्ष 2018 के चुनाव के हिसाब से रणनीति पर काम कर रहे हैं। दवे पिछले चुनावों में कैम्पेन प्रमुख रहे हैं। दवे को लेकर कोई विरोध की स्थिति नहीं थी, लेकिन वरिष्ठ नेता विक्रम वर्मा का दावा मजबूत था। वर्मा को कोई खास मदद नहीं मिलने से वे दौड़ से बाहर हो गए।
-भोपाल से अजयधीर