04-Jun-2016 08:26 AM
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मध्यप्रदेश के वृक्षारोपण की हकीकत जाननी हो तो प्रदेश के किसी भी आदिवासी बाहुल्य जिले में इसका नजारा देखा जा सकता है। हर साल प्रदेश में वन विभाग वृक्षारोपण के नाम पर करोड़ों रूपए खर्च करता है लेकिन न तो वन क्षेत्र बढ़ रहा है और न ही हरियाली छा रही है। आखिर क्यों? तो इसका जवाब आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में देखने को मिल रहा है। जिले में कराए गए पौधा रोपण कार्य में करोड़ों रुपए की हेराफेरी का सनसनीखेज मामला सामने आया है। मलपहरी बीट के कुंडाटोला में जिस तीस हेक्टेयर वनभूमि पर तीस हजार पौधे लगाने का दावा किया जा रहा है, वहां तीस हेक्टेयर भूमि है ही नहीं।
ग्रामीणों की मानें तो वनविभाग के पास सिर्फ सत्रह एकड़ वनभूमि है, जिसमें करीब पंद्रह हजार पौधे विभाग ने रोपे हैं। वहीं, बचे हुए हजारों पौधों को जंगल के रखवालों ने गांव के सूखे कुएं और नालों में दफना दिया था। जब ग्रामीणों ने सुनसान इलाकों के नाले और कुएं में दफन पौधों को देखा तो मामले की शिकायत आला अधिकारियों के समक्ष दर्ज कराई। इसके बाद कई ग्रामीणों को झूठे वन अपराधों में फंसाकर जेल तक भिजवा दिया गया। मामला उजागर होने के बाद अब डीएफओ जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कर रहे हैं।
शिकायतकर्ता अशोक मरावी ने बताया कि हजारों सूखे पौधे प्लांटेशन के लिए यहां लाए गए थे, लेकिन वन विभाग ने अपनी जेबें भरने के लिए हजारों हरे भरे पौधों को जमीन में दफन कर दिया। उन्होंने बताया कि बाजार में भले ही एक पौधे की कीमत पांच रुपए है, लेकिन वनविभाग को पौधा रोपने और उनकी देखरेख के लिए सरकार से तीन साल तक मोटा बजट मिलता है। स्थानीय रहवासी आनंद कुमार के मुताबिक, पौधारोपण में भ्रष्टाचार की शुरुआत उस भूमि के रकबे से होती है जहां पौधारोपण किया जाना सुनिश्चित होता है। कम रकबे को ज्यादा बताकर वन विभाग पहले तार फेंसिंग के नाम पर लाखों रुपए का गड़बड़झाला कर देता है। उसके बाद क्षमता से अधिक पौधा खरीदी कर प्रत्येक पौधे को लगाने के लिए मजदूरी और देखरेख के नाम पर तीन साल तक मलाई खाता रहता है। इस बारे में मोहगांव रेंज के रेंजर विभाष बिल्लौरे कैमरे के सामने कुछ भी कहने से बचते नजर आए। वहीं, डीएफओ लालजी मिश्रा ने मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
वहीं सिंगरौली जिले में करीब डेढ़ साल पहले लाखों की रकम से तीन लाख से ज्यादा पेड़ लगाकर गिनीज बुक में रिकार्ड दर्ज कराने के बाद देखरेख के अभाव में पेड़ सूख गए। वन विभाग के आला अधिकारी इस बारे में चुप्पी साधे हैं। जबकि वन विभाग सौ हेक्टेयर से ज्यादा भू-भाग में वृक्षारोपण कराने की तैयारी कर रहा है। जुलाई 2014 महीने पर्यावरण की बिगड़ती सेहत के मद्देनजर विभागीय लक्ष्य के मुताबिक, प्रदेश सरकार वृक्षारोपण अभियान के तहत सिंगरौली समेत पूरे राज्य में एक करोड़ पेड़ लगाने का लक्ष्य तय किया था। इस तरह से सिंगरौली जिले में ही तीन लाख 69 हजार और 150 पेड़ लगाए गए थे। इसके लिए जिले में 50 वन क्षेत्रों समेत 193 स्थान तय किए गए थे। उस समय जानकारी दी गई थी जिले में वन विभाग द्वारा 3.06 लाख पेड़ लगाए जाएंगे। किसानों द्वारा 35 हजार 5 सौ तथा विद्यालयों आदि द्वारा 27 हजार 6.50 पौधों को रोपित करने का लक्ष्य दिया गया है। निर्धारित वन क्षेत्रों में गड़रिया, सुुहिरा, कुबरी, मकरी, अगहरा, ओडग़ड़ी, बिंदूल, धरी, गोरबी, परसौना आदि वन क्षेत्रों में पेड़ लगे थे। वानिकी प्रजाति के सागौन, बांस, आंवला, करंज, नीम, सिरस इत्यादि पौधे लगाए गए थे। वन विभाग ने 50 लाख रुपए से ज्यादा की रकम पेड़ लगाने में खर्च की थी। निर्धारित सभी साइटों पर तीन-तीन स्वतंत्र पर्यवेक्षकों की तैनाती कलेक्टर द्वारा की जाएगी, जो गिनीज बुक ऑफ रिकाड्र्स द्वारा प्रदत्त 7 प्रपत्रों में चाही गई जानकारी भरेंगे। इसी के माध्यम से लगाए गए पौधों की गणना की जानी थी।
...तो कागजों में ही रोप
दिए लाखों पौधे
सिंगरौली की नवजीवन विहार पुनर्वास कालोनी में लगभग पांच साल पहले एनटीपीसी, विंध्याचल की ओर से लगाये गए 18 लाख पेड़ कहां गये? स्थानीय लोगों की मानें तो पेड़ लगाये ही नहीं गए थे, लेकिन प्रबंधन 19 जनवरी 2011 को पर्यावरण प्रदूषण लोक जन सुनवाई में जिला प्रशासन को बताया था कि कालोनी में 18 लाख पेड़ शीशम, महुआ, आम, पीपल आदि के लगाये गए हैं। मगर, पूरी कालोनी में हजार से ज्यादा पेड़ नहीं पाये गए। एनटीपीसी परियोजनाओं के लिए जयनगर, गहिलगढ़, जैतपुर, तेलगवां, जुवाड़ी, पिपरालाल, सरसबालाल, जूड़ी, चंदावल, हर्रई समेत 20 गावों की 36.0 एकड़ जमीन 1982 के आसपास अधिग्रहित की थी। विस्थापितों के लिए इन्द्रा चौके के पास नवजीवन विहार पुनर्वास कालोनी बनाई गई। जो चार सेक्टरों में बंटी है। मौजूदा वक्त में कालोनी की आबादी लगभग 50 हजार के आसपास है। ये तो महज कुछ उदाहरण है प्रदेशभर में पौधारोपण के नाम पर फर्जीवाड़ा चल रहा है।
-श्याम सिंह सिकरवार