04-Jun-2016 08:20 AM
1234801
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की राजनीति से 1998 से बाहर बीजेपी 35 प्रतिशत के आंकड़े में उलझी हुई है। पार्टी में कई बड़े रणनीतिकार हैं, बावजूद इसके 35 के चक्रव्यूह से बीजेपी बाहर आने में नाकाम रही है। आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये 35 का आंकड़ा क्या है। दरअसल, दिल्ली में पिछले बीस सालों में दिल्ली विधानसभा में जब भी चुनाव हुए, बीजेपी को 35 प्रतिशत के आसपास वोट मिले, बावजूद इसके वो दिल्ली में सरकार बनाने की स्थिति तक नहीं पहुंच सकी।
सबसे पहले बात करते हैं, 1998 की, जब कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से बेदखल किया, तो पार्टी ने 34 फीसदी के करीब मत हासिल किए। बावजूद बड़ी जीत कांग्रेस को मिली, क्योंकि उस समय 47 फीसदी से ज्यादा मतदाताओं ने उस पर विश्वास किया था। इसके बाद चुनाव हुआ 2003 में। बीजेपी को फिर मिले 35 फीसदी मत, लेकिन सत्ता कांग्रेस को मिली।
अगले चुनाव यानी 2008 में बीजेपी को फिर 36 फीसदी के करीब मत मिले, लेकिन सत्ता मिली कांग्रेस को। अब आया चुनाव 2013 का। ये बीजेपी के लिए बेहद महत्वपूर्ण चुनाव था। अन्ना आंदोलन के बाद बनी नई राजनीतिक पार्टी आम आदमी मैदान में आ गई थी। बीजेपी को उम्मीद थी कि वो कांग्रेस के वोट काटेगी और सत्ता तक वो पहुंच जाएगी। चुनाव हुआ, लेकिन वही ढाक के तीन पात। बीजेपी को 33 फीसदी से ज्यादा मत मिले। 31 सीटे लेकर सबसे बड़ी पार्टी भी बनी। लेकिन सरकार बनाने के जादुई आंकड़े से पीछे रह गई और आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली। इधर, इसके बाद आया 2015 का चुनाव, जिसने देश की राजनीति में एक नया अध्याय लिखा। एक नई नवेली राजनीतिक पार्टी आम आदमी पार्टी ने अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में वो इतिहास लिखा, जो देश के चुनावी इतिहास में पहली बार हुआ। किसी राजनीतिक दल को सबसे ज्यादा 54 फीसदी वोट मिले और इसके बदौलत दिल्ली की 70 में से 67 सीट उसके नाम हो गई। हालांकि इस दौरान भी बीजेपी का वोट शेयर लगभग उतना ही बना रहा, जितना इससे पहले के चुनाव में मिलता था। बीजेपी को पिछली बार यानी 2013 के मुकाबले सिर्फ एक फीसदी यानी 32 फीसदी वोट मिले। लेकिन इस एक फीसदी वोट की कमी का असर ये हुआ कि पार्टी की सीटे जो 2013 में 31 थी, वो 2015 में घटकर 3 रह गई।
ये तमाम उदाहरण ये साबित करने के लिए काफी है कि दिल्ली में जब भी चुनाव हुए, बीजेपी का वोट प्रतिशत 35 के आसपास ही रहता है। यानी कि दिल्ली के कुल वोटर में से 35 हर अच्छी बुरी स्थिति में उसके साथ रहते हैं। लेकिन इससे एक और बात भी साबित होती है कि इन 35 फीसदी की बदौलत वो दिल्ली में सत्ता नहीं पा पाती। इस बात को 2014 के देश में हुए लोकसभा के चुनाव ने भी साबित किया। इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने दिल्ली में 46 फीसदी के करीब मत पाए और सातों लोकसभा सीट जीतीं। सबसे खास बात ये कि सातों सीटें एक लाख वोट से अधिक के मार्जिन से जीती। ये बात इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि जब भी चुनाव में हार का सामना करना पड़ता है, बीजेपी की दलील होती है कि उसका वोट प्रतिशत कम नहीं हुआ है।
ऐसे वोट बैंक का क्या फायदा
बीजेपी के रणनीतिकारों को सोचना चाहिए कि दिल्ली के 35 फीसदी वोटर उसके साथ सदैव रहते हैं, लेकिन कभी वो उसे सत्ता तक नहीं पहुंचा पाते। ऐसे में जब तक पार्टी 35 के चक्रव्यूह से बाहर निकलने की कोशिश नहीं करेगी, कोई फायदा नहीं होगा। जब तक उसे वोट देने वाले वोटरों की संख्या 35 से ज्यादा नहीं होगी, उसे सत्ता नहीं मिल सकती। अब इसके दो तरीके हैं। पहला तो बीजेपी को ये समझना होगा कि दिल्ली की राजनीतिक डेमोग्राफी अब पूरी तरह से बदल चुकी है। दो दर्जन से ज्यादा ऐसी सीटे हैं, जिन पर बिहार-पूर्वी उत्तर प्रदेश के वोटर निर्णायक साबित होते हैं।
-अरविंद नारद