16-Apr-2016 08:33 AM
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अगर आप एक सामान्य कर्मचारी हैं और आप 10 प्रतिशत या 15 प्रतिशत की दर से सैलरी बढऩे से परेशान हैं तो आप विधायक या सांसद बनने का सपना देख सकते हैं। देश के अलग-अलग राज्यों में निर्वाचित प्रतिनिधियों ने अपनी

सैलरी बढ़ाने के जो कीर्तिमान कायम किए हैं उससे जनता महान को प्रेरणा मिलनी चाहिए कि वो भी कुछ ऐसा करे कि अपनी सैलरी जिसे कभी दरमाहा और तनख्वाह कहते थे, 100 प्रतिशत से अधिक बढ़ा ले। जरूर हमारे विधायकों को जनता की सैलरी न बढऩे का गम सताता होगा तभी वो इसका बदला अपनी सैलरी 400 प्रतिशत बढ़ाकर निकालते हैं। यानी माननीय दिन पर दिन मालामाल हो रहे हैं और जनता बेहाल होती जा रही है।
जन के नहीं, लेकिन जन-प्रतिनिधियों के अच्छे दिन आ गए हैं। मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़... यहां विधायकों और मंत्रियों की तनख्वाह दोगुनी-चौगुनी हो रही है। महंगाई के इस दौर में इन्हें तो भरपूर राहत मिल रही है। हमारे नेता जिनका निजी खर्चों के अलावा चुनाव क्षेत्र में सामाजिक दायित्व भी होता है, इसलिए तनख्वाह बढ़े तो हो-हल्ला नहीं होना चाहिए! दक्षिण के नवोदित प्रांत तेलंगाना के गरीब विधायकों की सैलरी और सुविधा में 160 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मान लीजिए आपकी सैलरी महीने की 10,000 है वो अप्रैल से बढ़कर 26000 हो जाए तो आप खुशी के मारे कूदेंगे कि नहीं। लेकिन आप चुपचाप देखिए क्योंकि आपके कूदने की बारी अभी नहीं आई है। अब विधायकों की सैलरी 95,000 से बढ़कर ढाई लाख हो गई है। मंत्रियों की सैलरी 2 लाख 40 हजार से बढ़कर 4 लाख हो गई है। इस बाबत विधानसभा में एक बिल पेश हुआ और बिना विरोध के पास भी हो गया। प्रस्ताव तो साढ़े तीन लाख प्रति माह करने का था लेकिन विधायकों की संवेदनशीलता देखिये, ढाई लाख ही बढ़ाया। वो भी सर्वसम्मति से।
इसी तरह मध्यप्रदेश कैबिनेट ने विधायकों की सैलरी बढ़ाने का फैसला किया है। 71,000 प्रति माह से बढ़ाकर 1 लाख 10 हज़ार करने का प्रस्ताव किया गया है। मंत्रियों का वेतन 1 लाख सत्तर हजार करने का प्रस्ताव किया गया है। मुख्यमंत्री का वेतन 1 लाख 43 हजार से बढ़ाकर 2 लाख प्रति माह किया गया है। इसमें वेतन और भत्ता सभी शामिल हैं। 9 साल में चौथी बार विधायकों का वेतन बढ़ा है। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार की कैबिनेट के फैसले के अनुसार विधायकों की सैलरी 75,000 से बढ़ाकर 1 लाख दस हज़ार प्रति माह कर दी गई है। एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में तेलंगाना के विधायकों की सैलरी सबसे अधिक है। हमें विधायकों की सैलरी के मामले को तार्किकता के साथ देखना चाहिए। उन्हें विधायकी के काम के लिए संसाधन की जरूरत तो है लेकिन क्या सभी विधायकों का प्रदर्शन एक सा होता है। विधायकों के घर आम लोगों की भीड़ होती है या कार्यकर्ताओं की। उनकी ड्राईंग रूम में किसकी पहुंच होती है ये वो भी जानते हैं और आप भी जानते हैं।
लेकिन सवाल इसलिए उठते हैं जब इतनी बढ़ोतरी के बावजूद कई नेताओं की ईमानदारी पर प्रश्नचिह्न लगते हैं। इस लोकसभा में 542 सासंदो में से 443 करोड़पति हैं यानी 82 प्रतिशत और आपराधिक मामलों वाले 34 प्रतिशत यानी 542 में से 185 सांसद हैं। सुप्रीम कोर्ट साफ कर चुका है ये वो मामूली मुकदमे नहीं होते जो धरना प्रदर्शन पर दाखिल होते हैं, बल्कि वो मामले जिन पर चार्चशीट दाखिल हो चुकी होती है। लोकसभा में भी वेतन बढ़ाने की पेशकश संसदीय समिति कर चुकी है, लेकिन इस पर मुहर लगना बाकी है।
मध्य प्रदेश में विधायकों का वेतन 45-55 प्रतिशत बढ़ गया है। राज्य विधानसभा में करीब 70 प्रतिशत सदस्य करोड़पति हैं, यानी 230 में से 161 करोड़पति है। आपराधिक मामलों वाले 32 प्रतिशत सदस्य हैं यानी 230 में से 173। यह वो राज्य है, जिस पर 1,17,000 करोड़ का कर्ज है। 2003 में कांग्रेस की दिग्विजय सिंह की सरकार के समय यह आंकड़ा 3,300 करोड़ का था, लेकिन 2013 तक आते-आते शिवराज सिंह चौहान की सराकर में ये 91,000 करोड़ का हो गया। शिवराज सरकार का दावा है कि उसने राज्य पर लगे बीमारू का तमगा हटा दिया है, जो उसके साथ 1956 से लगा हुआ था। लेकिन अब वो फिर आईसीयू जैसे हालात में पहुंच गया है। 2001 में छत्तीसगढ़ राज्य बना, तब मध्य प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 18,000 रुपये थी, अब 59,000 रुपये है, जबकि छत्तीसगढ़ में 69,000 रुपये है। ये वो राज्य हैं जहां हमारे किसानों की आत्महत्या लगातार खराब बनी हुई है। एनसीआरबी की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार देश में 5650 किसानों ने आत्महत्या की, जिनमें 2568 किसान महाराष्ट्र के थे। तेलंगाना में 898 किसानों ने और मध्य प्रदेश में 826 किसानों ने खुदकुशी की। लेकिन माननीयों को न तो किसानों की चिंता है और न ही महंगाई से जूझ रहे आम आदमी की।
जैसे-जैसे हमारे नेताओं और उनसे जुड़े लोगों में सेवा करने के बजाय मेवा खाने का चाव बढ़ रहा है, विधायकों के वेतन-भत्तों से सम्बन्धित विसंगतियां भी बढ़ती जा रही हैं। संविधान ने उन्हें खुद इसमें वृद्धि का जो अधिकार प्रदान कर रखा है, उसका इस्तेमाल वे आत्मनियंत्रण के साथ नहीं कर रहे हैं। जनप्रतिनिधियों को अपने सुखों व सुविधाओं को बढ़ाते वक्त अपने मतदाताओं की तकलीफों का भी ध्यान रखना चाहिए।
देश के कई राज्यों में विधायकों ने सर्वसम्मति से अपने वेतन बढ़ा लिये हैं। पहले विधायक ज्यादा से ज्यादा यह कहते थे कि ये वृद्धियां उनके ठीक से कर्तव्यपालन के लिए जरूरी हैं। बाद में वे इन्हें अपने सम्मान से जोडऩे लगे और कहने लगे कि राज्यों के मुख्यसचिवों से ज्यादा तो उन्हें चाहिए ही चाहिए। अब दिल्ली के, जिसे पूर्ण राज्य का दर्जा भी प्राप्त नहीं है, मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने यह कहकर इन्हें उनकी ईमानदारी से भी जोड़ दिया है कि अगर जनता विधायकों से ईमानदार राजनीति की अपेक्षा करती है तो उसे ये वृद्धियां बर्दाश्त करनी ही पड़ेंगी।
लेकिन कई राज्यों के विधायक भारी वेतन वृद्धियों के बावजूद खुश नहीं हैं और चाहते हैं कि उनकी निधियां भी बढ़ें। उन राज्यों में इस पर विचार के लिए बाकायदा समितियां गठित करने का विचार भी चल रहा है, जो समय-समय पर उपयुक्त सिफारिशें करती रहें। यहां याद रखना चाहिए कि राजनीतिक पार्टियों का कोई भी मतभेद कभी इन वृद्धियों और उनका पक्ष लेने वाले तर्कों के आड़े नहीं आता।
वेतन बढ़ोतरी को लेकर माननीयों के अपने-अपने कारण है। एक माननीय का कहना है कि विधायकों को मंदिर और त्योहारों के वक्त चंदे देने पड़ते हैं। ये बहुत बड़ी समस्या है। आज कल कई विधायक बताते हैं कि गांव-गांव में क्रिकेट प्रतियोगिता होने लगी है और इसके लिए चंदा मांग-मांग कर युवकों ने परेशान कर दिया है। क्या हम एक बार भी सोचते हैं कि चंदा देना विधायक का काम नहीं है। एक विधायक कहते हैं कि जिनके ऊपर राष्ट्र निर्माण की जिम्मेदारी है उन्हें अच्छी सैलरी मिलनी चाहिए। खैर जो भी हो माननीय तो मालामाल हो गए। अब देखना है वे जनता का कितना ख्याल रखते हैं।
तो पार्टी करे विधायकों की सहायता
मध्यप्रदेश के सिवनी के निर्दलीय विधायक दिनेश राय कहते हैं कि राजनीति जनसेवा का माध्यम है। जनप्रतिनिधि जनता के नौकर हैं न कि कर्मचारी। इसलिए इनका वेतन बढ़ाने का सवाल ही नहीं उठता। हालांकि भाजपा के पदाधिकारियों का कहना है कि हमारे कुछ विधायक गरीब हैं, इसलिए वेतन बढऩे से वे सही ढंग से समाजसेवा कर सकते हैं। अगर ऐसा है तो पार्टी अपने विधायकों की आर्थिक सहायता क्यों नहीं करती हैं। जनता के पैसे से महंगी-महंगी गाडिय़ों में घूमने की क्या जरूरत है। जो जनसेवा करता है जनता स्वयं उसके दरवाजे चलकर आती है। ऐसे में वेतन की क्या जरूरत है।
जितना वेतन बढ़ा, वो वाजिब?
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने मीडिया से कहा है कि वे स्थिति को समझे। तीस साल पहले जब मैं विधायक बना तो 500 रुपये प्रति माह ही सैलरी थी, लेकिन अब आर्थिक परिदृश्य बदल गया है। विधायकों का सैलरी भत्ता बिल राज्य के एक लाख करोड़ के बजट के आगे तो बहुत मामूली है। एक विधायक 30 कमेटियों का सदस्य होता है, उसे इनकी बैठकों में जाना होता है।
-कुमार राजेंद्र