उज्जयिनी बनेगा धार्मिक पर्यटन की मिसाल...?
04-Jun-2016 08:16 AM 1234933
सिंहस्थ 2016 यानी धर्म, आध्यात्म, आस्था, विश्वास, अनुभूति, आनंद, सहयोग, सामूहिकता, सद्भाव, चिंतन, मनन, कला, भक्तिभाव और व्यवस्था, स्वच्छता, कुशल प्रबंधन और आत्म अनुशासन का ऐसा अभूतपूर्व संगम जो अनुसंधान का विषय बन गया है। भारत ही नहीं विश्वभर में इस आयोजन की सफलता पर चर्चा हो रही है। सिंहस्थ महाकुंभ को अद्भूत, अद्वितीय, अलौकिक और अकल्पनीय बनाने में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका रही। चाहे फिर वो अखाड़ा परिषद की एकजुटता हो या फिर सिंहस्थ में वैचारिक बहस छेडऩे के लिए अंतरराष्ट्रीय विचार महाकुंभ का आयोजन या फिर क्राउड मैनेजमेंट मुख्यमंत्री ने खुद को सिंहस्थ में व्यक्तिगत तौर पर झोंके रखा। जिसका परिणाम यह हुआ कि सिंहस्थ 2016 को नागा साधुओं ने न भूतो न भविष्यत कह हर विदा लिया। निश्चित रूप से आज भारत में ही नहीं विदेशों में भी इनदिनों सिंहस्थ, शिवराज और उनका मैनेजमेंट चर्चा का विषय बना हुआ है। मध्यप्रदेश सरकार के 35 विभागों ने करीब 3,500 सौ करोड़ रुपए खर्च कर महाकाल की नगरी को स्मार्ट सिटी बनाया है और यहां के मंदिरों को सजाया-संवारा है उससे यहां आने वाले हर एक श्रद्धालु के मन में यही सवाल उठ रहा था कि क्या देवताओं के शहर इलाहाबाद की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशानुसार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस शहर को धार्मिक पर्यटन का केंद्र बनाएंगे। उज्जैन न केवल धार्मिक शहर है बल्कि यह राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक गतिविधियों का केंद्र पुरातन से रहा है। ऐसे में अगर सरकार प्रयाग राज की तर्ज पर यहां भी हर माह या छह माह या फिर साल में एक बार ऐसा धार्मिक आयोजन करे जिसमें देश-विदेश से श्रद्धालु यहां आएं तो न केवल शहर का वर्तमान सौंदर्य बरकरार रहेगा बल्कि प्रदेश और उज्जैन को आर्थिक लाभ भी मिलेगा। निनौरा में आयोजित विचारकुंभ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी साधु-संतों से कहा है कि वे ऐसे विचारकुंभ हर माह आयोजित करें। यानी सरकार को दिशा मिल गई है बस क्रियान्वयन की जरूरत है। दरअसल, उज्जैन को सरकार ने जिस तरह नयनाभिराम बनाया है उससे सिंहस्थ में आने वाला हर श्रद्धालु यहां बार-बार आने की मंशा पाले हुए है। इसकी वजह है सरकार ने सिंहस्थ महाकुंभ का रूप ही बदल दिया था। सिंहस्थ महाकुंभ का नाम आते ही हमारे मस्तिस्क में एक ऐसे धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महापर्व की तस्वीर प्रकट होती है जहां आकर व्यक्ति को आत्मशुद्धि और आत्मकल्याण की अनुभूति होती है। इस अनुभूति की आस में हर बारह वर्ष पर देश और विदेश के साधु-महात्मा, सिद्ध-साधक , संत और श्रद्धालु महाकाल की नगरी उज्जयिनी में क्षिप्रा के पावन पवित्र अमृत तुल्य जल में स्नान करने उमड़ पड़ते हैं। इस प्रक्रिया में उन्हें कई तरह की बाधाओं और कष्टों का सामना करना पड़ता है। लेकिन इस बार मध्य प्रदेश सरकार ने सिंहस्थ को जितना भव्य रूप दिया उस उतना ही सरल और सुगम बना दिया कि लाखों लोग रोजाना यहां आराम से पहुंचे, क्षिप्रा में स्नान और महाकाल के दर्शन कर अपने जीवन को धन्य किया। महीनेभर की चहल-पहल, रोशनी के मेले, आस्था का सैलाब, उत्साह-उमंग-आनंद से दमकते चेहरे, संन्यास के नए-नए कौतुक, साधुओं के जयघोष, पंडालों की चमक-दमक, वैदिक सनातनी परंपरा का महापर्व सिंहस्थ भले ही संपन्न हो गया है, लेकिन यहां की संरचनाएं  अभी भी रौनक बिखेरे हुए हैं। सिंहस्थ में एक महीने तक श्रद्धालुओं, साधु-महात्माओं, सिद्ध-साधकों और संतों को निर्विघ्न आत्मशुद्धि और आत्मकल्याण का जो सौभाग्य प्राप्त हुआ वह सरकार की वर्षो की मेहनत और लगन का परिणाम है। सरकार ने वर्ष 2011 से ही सिंहस्थ के आयोजन की तैयारी शुरू कर दी थी। इस दौरान मुख्यमंत्री, मंत्री और अधिकारियों ने इलाहाबाद, हरिद्वार और नासिक जाकर वहां की व्यवस्थाओं और कुव्यवस्थाओं को अध्ययन किया। उसके आधार पर योजना बननी शुरू हुई। जहां 2011 में 50 करोड़ रूपए का बजट निर्धारित किया गया था वह अंतत: 3,500 करोड़ पहुंच गया, जो इस आयोजन को सफल बनाने में सरकार की इच्छा शक्ति का दर्शाता है। उज्जैन में अधोसंरचना के विकास के साथ ही सिंहस्थ की पवित्रता और पावनता का भी ख्याल रखा गया। ऐसे में सरकार ने लोगों की भावनाओं का ध्यान रखा और क्षिप्रा में नर्मदा का जल निरंतर प्रवाहित कर श्रद्धालुओं के आकर्षण को बढ़ाया। यही नहीं सरकार ने एक तीर से दो शिकार करने की दृष्टि से मंदिरों के जीर्णोद्धार के साथ ही क्षिप्रा के 8 किलोमीटर घाट को विकसित किया। ताकि उज्जैन को धार्मिक पर्यटन का केंद्र बनाने के लिए लोगों के मन में पावनता का भाव भरा जा सके और सिंहस्थ के दौरान यह देखने को भी मिला। जहां पहले शाही स्नान में करीब 10 लाख ही लोग शामिल हुए वहीं अंतिम शाही स्नान में यह आंकड़ा 90 लाख से ऊपर पहुंच गया। यही नहीं इतने बड़े आयोजन में श्रद्धालु पूरी तरह संतुष्ट दिखे। अब विश्व के इस सबसे बड़े धार्मिक समागम की सफलता पर दुनिया भर की नजर है। दरअसल सिंहस्थ 2016 में कई ऐसे अध्ययन किए गए, जो दुनिया भर के लिए उदाहरण बनेंगे। खासकर क्राउड मैनेजमेंट को लेकर दुनिया भर ने सिंहस्थ 2016 का अध्ययन किया। एक सीमित क्षेत्र में सिंहस्थ मेले का आयोजन और क्षमता के हिसाब से कई गुना श्रद्धालु का व्यवस्थित प्रबंधन, नियंत्रण शोध का विषय बना रहा। नीदरलैंड, सिंगापुर और रशिया जैसे देश भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलुरू, आईआईटी कानपुर, महिंद्रा सहित कुछ भारतीय स्टार्ट-अप कम्पनियों ने यहां के भीड़ प्रबंधन एवं नियंत्रण का अध्ययन किया है। महाकाल मंदिर और हरसिद्धि मंदिर का भी थ्री डी मॉडल तैयार किया गया है। दोनों मंदिरों में कैसे व्यवस्थित तरीके से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को सुविधा से दर्शन करवाने का मॉडल तैयार किया गया है। इस अध्ययन के बाद ऐसा सॉफ्टवेयर एवं गाइडलाइन तैयार होगी जो विश्व स्तरीय आयोजनों में भीड़ नियंत्रण एवं प्रबन्धन के लिए उपयोगी होगी। सिंहस्थ की जनता से कनेक्टिविटी के लिए सरकार ने पूरे देश में विज्ञापनों का जाल बिछा दिया था। सिंहस्थ की व्यवस्थाओं को देखकर हर्षित होते हुए पायलट बाबा कहते हैं कि जनता की धर्म की धड़कन में शासन कैसे अपने को धड़का सकता है, इसे यदि समझना है तो सिंहस्थ 2016 को केस स्टडी बना कर आईआईएम या किसी राजनैतिक संस्थान से उस पर अध्ययन कराया जाना चाहिए। सिंहस्थ में लोग तीन करोड़ पहुंचे हों या पांच करोड़, हर व्यक्ति क्षिप्रा में डुबकी लगाने के साथ उज्जैन के विकास, मध्यप्रदेश सरकार के प्रबंधों, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की भागदौड़ आदि की उपस्थिति का जो मैसेज लेकर घर लौटा है वह अकल्पनीय है। कल्पना नहीं हो सकती है कि कोई मुख्यमंत्री 30 दिन के सिंहस्थ में 20 दिन उज्जैन पर फोकस रखे। साधु-संतों और आस्थावानों के लिए अपने को चौबीसों घंटे तत्पर बताए। स्थानीय जनता हो, साधु-संत हों या डुबकी लगाने पहुंचे आस्थावान हों, सबके आगे, सबके सामने मुख्यमंत्री, मंत्री, अधिकारी, कर्मचारी जिस विनीत भाव से उपस्थित रहे उससे जनता में उनकी ऐसी पुण्यता बनी है जो वर्षों तक कायम रहेगी। सिंहस्थ में पहले ऐसा कभी हुआ हो, किसी को याद नहीं। भारी आंधी के बीच असमय बारिश भी याद नहीं बुजुर्गों को। पर प्रकृति की बेरुखी ने जनहानि और अव्यवस्था ऐसी फैलाई कि सरकारी अमला हिल गया। और तो और खुद मुख्यमंत्री शिवराज चौहान भी शायद ही चैन से सो पाए होंगे उस रात। प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह की रात तो जागते हुए कटी ही। लेकिन शासन के काम आया आस्था और सहयोग का जनतंत्र। उज्जैन ही क्यों देवास और आस-पास के दूसरे गांवों से भी उमड़ पड़ी मदद। एक तरफ सेवा और सहयोग का जज्बा दिखाने वाले लोग, सरकारी अधिकारी-कर्मचारी थे तो दूसरी खुद मुख्यमंत्री। देखते-देखते आपदा से निजात पा ली गई। हैरानी की बात तो यह है कि इस विपदा की घड़ी में सुबह से ही पंचक्रोशी यात्रा कर मेला क्षेत्र में प्रवेश करने वाले लाखों श्रद्धालु भी ऐसे भाव में जुट गए। श्रद्धा का ऐसा अनूठा भाव कि किसी सुविधा की दरकार ही नहीं। हर किसी ने स्वत: स्फूर्त होकर निभाई अपनी जिम्मेवारी। तभी तो नहीं लग पाया सिंहस्थ की छवि पर कोई दाग। श्रद्धा और सेवा के इसी अद्भुत रूप को ही तो माना जाएगा असली धर्म। सिंहस्थ में स्वच्छता की प्रशंसा सम्पूर्ण विश्व में हो रही है। घाटों और मेला क्षेत्र में स्वच्छता का विशेष ख्याल रखा गया। सिंहस्थ कुंभ में हिस्सा लेने आए विदेशियों ने भी ग्रीन उज्जैन-क्लीन उज्जैनÓ अभियान से जुड़कर स्वच्छता का संदेश दिया है। सिंहस्थ पहला ऐसा कुंभ महापर्व रहा जिसमें धर्म भाव के साथ ही सामाजिक सरोकार को विशेष महत्व दिया गया है। इनमें बेटी बचाओ, नशा मुक्ति, बालिका शिक्षा, स्वच्छता, योग-आरोग्य, पौध रोपण, जैसे मुद्दे प्रभावी रहे हैं। सरकार ने जिन मुद्दों को अब तक प्रमुखता से उठाया है और सिंहस्थ के जरिये जो सामाजिक सन्देश देने का प्रयास किया है वह सार्थक हुआ। सभी साधु संतों ने इन सामाजिक मुद्दों से स्वयं को जोड़ा और समाज को जागृत किया। हम गर्व से कह सकते हैं कि सिंहस्थ महापर्व धार्मिक आयोजन के साथ ही समाज सुधार एवं जन चेतना का माध्यम भी बना। मानना होगा शिवराज सिंह चौहान और उनके प्रबंधकों को जो उन्होंने इस दफा अखाड़ों की इस खुन्नस को पाटा कि यदि हम शैव हैं तो वैष्णव के साथ स्नान नहीं करेंगे। शैव, वैष्णव का यह झगड़ा शताब्दियों पुराना है। उस झगड़े को पाट देना प्रशासन की ऐसी उपलब्घि है जिसकी शायद ही चर्चा हुई हो मगर यह था काम भारी। लेकिन सरकार ने अपनी इच्छा शक्ति और कुछ अलग करने के जुनून से वह कर दिखाया है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। सिंहस्थ में साधना के साथ स्वास्थ्य सेवा सिंहस्थ में साधना, सत्संग, संकीर्तन और सेवा के अलावा स्वास्थ्य पर भी जोर दिया गया। स्वास्थ्य विभाग की ओपीडी में करीब 3 लाख 21 हजार लोग आए। विभाग की प्रमुख सचिव गौरी सिंह लगातार इसकी निगरानी करती रहीं। पूरे मेला क्षेत्र में 65 वाटर बॉडी बनाई गई थी। पूरे मेले के दौरान 416 डॉक्टर, इनमें से 85 विशेषज्ञ और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ था। इसका परिणाम यह हुआ कि करोड़ों लोगों के आने के बाद भी मेला क्षेत्र में डेंगू और मलेरिया नहीं फैला। लेकिन लोगों को परेशानी इस बात से हुई कि मेले के बीचो-बीच अस्पताल बनाया गया था। जबकि होना यह चाहिए था कि अस्पताल कहीं किनारे पर एकांत स्थान पर बनना चाहिए था। मेला क्षेत्र 6 जोन और 22 सेक्टर में बंटा था। तथा हर जोन में 20 बिस्तरीय व सेक्टर में 6 बिस्तरीय अस्थायी अस्पताल विभाग ने बनाए थे। सेटेलाइट टाउन में भी मरीजों को इलाज मुहैया कराया गया। अस्थायी अस्पतालों के लिए डॉक्टरों की टीम नियुक्त की गई थे। जहां मरीज को तुरंत उपचार उपलब्ध कराया जाता था। अत्यधिक गंभीर होने की स्थिति में टीम उसे जिला अस्पताल रैफर करती थी। मेले में डेंगू-मलेरिया जैसी बीमारी की रोकथाम के लिए विशेष एहतियात बरती गई थी। इसका परिणाम यह हुआ कि एक माह तक चले मेले में बीमारियों पर पूरी तरह अंकुश रहा। पंचक्रोशी यात्रा के दौरान 115 ड्रम वैसलीन की खपत हुई ताकि कोई बीमारी न फैले। विभाग ने ढाई करोड़ के बजट में पूरे मेले को स्वस्थ रखा। इस दौरान ग्रीन कॉरीडोरी की कमी महसूस की गई। साथ ही अस्पताल या सेंटर्स पर एसी की भी जरूरत महसूस की गई। सफल सिंहस्थ जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि: भूपेंद्र सिंह सिंहस्थ को सफल बनाने में परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही। वे अपना घर-बार छोड़कर करीब तीन माह से अधिक समय तक उज्जैन में प्रभारी मंत्री के रूप में डेरा जमाकर चाक-चौबंद व्यवस्थाओं में जुटे रहे। सिंह कहते हैं कि  महाकाल की कृपा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कुशल मार्गदर्शन के कारण सिंहस्थ बिना किसी बाधा के सम्पन्न हो गया, यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। वह कहते हैं कि निश्चित रूप से यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी। जिसमें पूरे प्रदेश की प्रतिष्ठा का सवाल था। शुरू में लगा कि यह सब कैसे होगा। समय बहुत कम था, लेकिन मुख्यमंत्री ने मनोबल बढ़ाया और कहा कि महाकाल की कृपा से सब कुछ अच्छा होगा। मुख्यमंत्री खुद हर रोज समीक्षा कर रहे थे। मैं हर रोज मुख्यमंत्री को दिन भर में हुए कार्यों की जानकारी देता था। शुरू में अधिकारियों और कर्मचारियों में तालमेल की कुछ कमी थी, लेकिन मुख्यमंत्री के निर्देश पर पहुंचे आला अधिकारियों ने तत्काल स्थिति को संभाल लिया। परिवहन और पर्यावरण संतुलन सबसे बड़ी थी चुनौती सिंहस्थ के दौरान परिवहन व्यवस्था दुरुस्त करना और पर्यावरण संतुलन बनाए रखना सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। इसके लिए परिवहन विभाग और नगरीय प्रशासन एवं पर्यावरण विभाग ने बेहतर ढंग से काम किया। सिंहस्थ के दौरान उमडऩे वाली भीड़ को देखते  परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव एसएन मिश्रा ने जिस तरह का मैनेजमेंट किया वह भी सराहनीय है। मेले में क्राउड मैनेजमेंट के लिए उनके निर्देशन में विभाग ने कई स्तरों पर तैयारी की थी। एक हजार वाहनों की व्यवस्था की गई थी जो कम भाड़े में उज्जैन पहुंचा सके। इसके लिए वाहनों को अस्थाई परमिट दिया गया था। इसके अलावा उज्जैन शहर में 7 सेटेलाइट जगहों से लोगोंं को लाने के लिए पाँच सौ वाहन तैनात किए गए थे। जिनसे करीब डेढ़ लाख लोग रोज परिवहन कर रहे थे। शाही स्नान के दिन भीड़ को कंट्रोल करने के लिए उज्जैन के आसपास के क्षेत्रों में 8 सौ वाहन तैनात किए गए थे। मेला क्षेत्र में परिवहन की उचित व्यवस्था की गई थी। साथ ही मेला परिसर में ई-रिक्शा और मैजिक भी चलाए गए थे। सबसे बड़ी बात यह देखी गई कि श्री मिश्रा ने पुरानी टीम से ही पूरी व्यवस्था को बेहतर ढंग से व्यवस्थित किया। पूर्व के अनुभवों और जनसंख्या में वृद्धि को देखते हुए इकरा मैनेजमेंट कम्पनी से सर्वे कराकर ट्रैफिक फ्लो के हिसाब से पुलों और पैतुन पुल का निर्माण कराया गया था। क्षिप्रा में पानी की कमी को दूर करने के लिए नर्मदा का पानी निरंतर प्रवाहित किया गया। साथ ही खान नदी को डायवर्ट कर दिया गया। इससे क्षिप्रा का जल हमेशा निर्मल बना रहा। क्षिप्रा किनारे इस बार 36 घाट बनाए गए थे इससे भीड़ नियंत्रण में भी कोई परेशानी नहीं आई। क्षिप्रा के जल की स्वच्छता की 24 घंटे जांच होती रही इससे पानी दूषित नहीं हो सका। नींव के पत्थर की भूमिका निभाई पुलिस ने सिंहस्थ में पुलिस जवानों ने नींव के पत्थर की भूमिका निभाई। उनकी कत्र्तव्य परायणता से ही सिंहस्थ निर्विघ्न सम्पन्न हुआ है। इस बात को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी गर्व से कह रहे हैं। दरअसल सिंहस्थ में पुलिसकर्मियों ने आत्मीयता और अनुपम व्यवहार के साथ सेवा की। पुलिस के सामने भीड़ नियंत्रण, हादसा रोकना चुनौती था। जिसमें वह सफल रही। पूरे मेले के दौरान एडीजी वी मधु कुमार, डीआईजी राकेश गुप्ता, डीआईजी छतरपुरव महाकाल मंदिर प्रभारी केसी जैन, एसपी एमएस वर्मा, ट्रैफिक एएसपी शिवदयाल सिंह, एसपी फायर राजेश सहाय की भूमिका महत्वपूर्ण रही। पुलिस महानिदेशक सुरेंद्र सिंह निरंतर मॉनीटरिंग करते रहे। एडीजी वी मधु कुमार कहते हैं कि पूरे मेले के दौरान पुलिस के जवान चुनौती के साथ अपनी ड्यूटी में जुटे रहे। करोड़ों श्रद्धालुओं के अनुमान को देख टारगेट था भगदड़ न मचे, हादसा न हो। लोग स्नान व दर्शन कर सके। भीषण गर्मी में भीड़ का दबाव व पुलिसकर्मियों से लंबी ड्यूटी करवाना चुनौती था। कई वीआईपी पूरे महीने आए, उनके इंतजामों में भी लगना पड़ा व साधु-संत नाराज न हो यह भी ध्यान रखा। महाकाल की कृपा से सब कुछ ठीक रहा। डीआईजी राकेश गुप्ता कहते हैं कि अंतिम शाही स्नान की सुबह साढ़े पांच बजे का नजारा कभी नहीं भूल पाऊंगा, हरिफाटक ब्रिज से भीड़ देख लगा भगदड़ न मच जाए। महाकाल से प्रार्थना की। भीड़ को वाकणकर ब्रिज की ओर डायवर्ट किया। हालात नहीं संभले तो यंत्रमहल मार्ग के वीआईपी घाट की ओर श्रद्धालुओं को मोड़ दिया। पेंटून ब्रिज से लोगों को डायवर्ट किया तब राहत मिली। एसपी एमएस वर्मा कहते हैं कि शहर में महाकुंभ का आयोजन था, पूरे समय फोकस इसी बात पर रहा सबकुछ ठीक से हो जाए। कोई गड़बड़ या अनहोनी न रह जाए। 24 घंटे अलर्ट रहना पड़ा। बार-बार फोर्स को ब्रीफ करते रहे। शहर या मेला क्षेत्र में किसी प्रकार की कोई दुर्घटना नहीं हुई, इसकी वजह रही कि हमारा आपसी समन्वय काम आया। बाबा महाकाल की कृपा रही। सिंहस्थ के दौरान बने सात वल्र्ड रिकॉर्ड कुंभ नगरी में सिंहस्थ के दरमियान सात वल्र्ड रिकॉर्ड बने हैं, जो दुनियाभर में उज्जैन का मान बढ़ाएंगे। इनमें से चार की घोषणा कर दी गई है। शेष तीन रिकॉर्ड की घोषणा होना बाकी है। गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड ज्यूरी के नेशनल हेड मनीष विश्नोई ने बताया सिंहस्थ अवधि में सात वल्र्ड  रिकॉर्ड बने हैं, जिनमें से चार की घोषणा कर सर्टिफिकेट प्रदान किए जा चुके है। पहला रिकॉर्ड एक रोटी बाबा के नाम से मशहूर ओंकारेश्वर के शिवोहम भारती के नाम बना, जिन्होंने उजडख़ेड़ा क्षेत्र में ढाई लाख से ज्यादा मंत्रोच्चारित किताबों का सर्वाधिक 25 फीट ऊंचा पिरामिड बनाया था। दूसरा रिकॉर्ड साध्वी कनकेश्वरी देवी के बडऩगर रोड स्थित अस्थायी किचन शेड में 9 मई को सर्वाधिक 55 हजार से ज्यादा लोगों द्वारा भोजन किए जाने का बना। तीसरा रिकॉर्ड 20 मई को 5 हजार से ज्यादा सफाई मित्रों द्वारा 5 मिनट में साढ़े तीन किमी लंबी सड़क की सफाई किए जाने का बना है। चौथा रिकॉर्ड अहमदाबाद के नंदकिशोर शर्मा द्वारा सर्वाधिक 4500 से ज्यादा भजन स्टेज परफारमेंस दिए जाने का बना है। 21 मई को शिप्रा में 80 लाख से ज्यादा लोगों ने स्नान किया। ऐसा पहली बार हुआ है। एक-दो दिन में आने के बाद इसका सर्टिफिकेट सरकार को प्रदान किया जाएगा। 1 से 5 मई के बीच 13 लाख से ज्यादा लोगों ने पंचकोसी यात्रा की। हेडकाउंटिंग रिपोर्ट के आधार पर प्रमाणित होकर बने रिकॉर्ड का सर्टिफिकेट जल्द जिला पंचायत को दिया जाएगा। सिंहस्थ क्षेत्र में 50 से ज्यादा स्थानों पर फ्री वाई-फाई इंटरनेट सुविधा का उपयोग 50 लाख से ज्यादा लोगों द्वारा किए जाने का रिकॉर्ड बना है, जिसकी घोषणा जल्द होगी। उज्जैन से श्यामसिंह सिकरवार
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