अविश्वास के साएं में मप्र की नौकरशाही
16-Apr-2016 07:46 AM 1235189

29नवम्बर 2005 को शिवराज सिंह चौहान ने जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो संभावना जताई गई थी की अब प्रदेश में शासन और प्रशासन की चाल, चेहरा और चरित्र बदलेगा।  लेकिन आज एक दशक से अधिक का अरसा गुजर जाने के बाद भी शासन-प्रशासन की चाल और चेहरा वही है जबकि मुख्यमंत्री के राज-दिन के प्रयासों से चरित्र कुछ हद तक बदला है। जानकारों का कहना है कि अगर मुख्यमंत्री पूरवर्ती सरकारों के समय से चली आ रही काम करने की परिपाटी (चाल) और काम करने वाले चेहरों (मंत्री और अफसरों) में बदलाव कर शासन करते होते तो आज प्रदेश में ऐसी नौबत नहीं आती कि खेत सूख जाएं, फसले बर्बाद हो जाएं, जलसंकट से हाहाकार मच जाए और सरकार को इसकी भनक भी न लगे।
अगर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अब तक के कार्यकाल को देखें तो हम पाते हैं कि वे अभी तक प्रदेश की नौकरशाही को अपने सांचे में नहीं ढाल सके। शायद यही कारण है कि 314 आईएएस होने के बाद भी मुख्यमंत्री डेढ़-दो दर्जन अफसरों के सहारे ही काम कर रहे हैं। ये अफसर वही हैं जो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के शासनकाल में भी सत्ता की धुरी हुआ करते थे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शासनकाल में भी इन्हीं अफसरों पर विभागों का बोझ लादा जा रहा है। ऐसे में जहां कुछ अफसर काम के बोझ से दबे हुए हैं तो कुछ बिना काम की आस में तबादला सूची का इंतजार ही करते रहते हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर ऐसी क्या वजह है की सरकार कुछ ही अफसरों पर मेहरबान दिख रही है। इन अफसरों में ऐसी क्या योग्यता है जो अन्य अफसरों में नहीं है? क्या बिना बड़ी जिम्मेदारी के बैठे अफसरों में योग्यता नहीं है? क्या ये अफसर भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं? अगर ये भ्रष्टाचार में डूबे हैं तो सरकार इनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं करती। ऐसे में सरकार की कार्यप्रणाली पर भी ऊंगली उठने लगी है। साथ ही नौकरशाही में अविश्वसनीयता का माहौल निर्मित हो रहा है। कुछ पर अतिविश्वास और अधिकांश को दरकिनार करने की सरकार की इस नीति का परिणाम यह हो रहा है कि सरकार की कई योजनाएं फाइलों में ही दम
तोड़ रही हैं। क्योंकि कई-कई विभागों की जिम्मेदारी संभालने वाले अफसरों को फुटबाल बना दिया गया है और वे फाइलों के बोझ तले इस कदर दबे हैं कि उन्हें फाइलों में कैद योजनाओं-परियोजनाओं की सुध लेने का समय ही नहीं है।
ऐसा नहीं है कि सरकार को इसकी जानकारी नहीं है। लेकिन इसके बावजुद प्रदेश में जब भी प्रशासनिक बदलाव की तैयारी होती है संभावना जताई जाती है कि अधिकारियों को बराबर की जिम्मेदारी दी जाएंगी। लेकिन हर बार 15-20 अफसरों को ही सारी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। अभी हाल ही में 5 अप्रैल को सरकार ने बड़ा प्रशासनिक फेरबदल करते हुए सैंतीस आईएएस अधिकारियों का तबादला किया साथ ही कुछ को और अतिरिक्त प्रभार भी सौंप दिया। इस फेरबदल से ऐसा लगता है कि कुछ ही अधिकारी प्रदेश में काम कर रहे हैं और उन्हें काम के बोझ से लाद दिया गया है। जबकि वरिष्ठ स्तर पर कई ऐसे अधिकारी हैं, जिनके पास उनकी क्षमता, योग्यता और वेतन के हिसाब से काम नहीं दिया है। जिसके कारण आला अधिकारियों में असंतोष है। इसका असर अब सरकारी कामकाज में भी दिखने लगा है। प्रशासनिक कामकाज की स्थिति यह है कि सरकार सागर और नर्मदापुरम संभाग के लिए कमिश्नर नहीं खोज पा रही है। दोनों संभाग के कमिश्नर अतिरिक्त प्रभार में हैं। जहां सागर संभाग का अतिरिक्त प्रभार अलका श्रीवास्तव के पास है वहीं भोपाल कमिश्रर सीबी सिंह को नर्मदापुरम संभाग के कमिश्नर का प्रभार है। इसी तरह कई वरिष्ठ अधिकारी ऐसे हैं जिन पर कई-कई विभागों की जिम्मेदारी है।
1985 बैच के आईएएस अधिकारी दीपक खांडेकर इन दिनों अपर मुख्य सचिव वन, योजना, अर्थिक एवं सांख्यिकी, सचिव योजना आयोग के साथ ही  व्यापमं के अध्यक्ष का अतिरिक्त प्रभार की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। वहीं 1985 बैच के ही राधेश्याम जुलानिया विशेष कर्तव्य अधिकारी-सह-विकास आयुक्त एवं पदेन अपर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास तथा अपर मुख्य सचिव, जल संसाधन विभाग की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। इसी बैच के इकबाल सिंह बैंस प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री और प्रमुख सचिव विमानन का कार्य देख रहे हैं।
1987 बैच के आईएएस मनोज श्रीवास्तव पर हमेशा ही प्रमुख विभागों की जिम्मेदारी रहती है। वर्तमान में वे प्रमुख सचिव न्यासी सदस्य-भारत भवन, वाणिज्यिक कर, संस्कृति, धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व का कार्य देख रहे हैं। वहीं 1990 बैच के मलय श्रीवास्तव प्रमुख सचिव नगरीय विकास, आवास एवं पर्यावरण, आयुक्त, महानिदेशक, एप्को, प्रशासक, राजधानी परियोजना प्रशासन  विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। 1991 बैच के मनु श्रीवास्तव प्रमुख सचिव    विशेष कर्तव्य अधिकारी-आयुक्त, नीवन ऊर्जा, ऊर्जा विकास निगम, नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा विभाग की जिम्मेदारी है। वहीं इसी बैच के आईएएस अधिकारी एसके मिश्रा प्रमुख सचिव    मुख्यमंत्री,  प्रवासी भारतीय विभाग,  प्रमुख सचिव राज्य कृषि उद्योग विकास निगम, विशेष कर्तव्य अधिकारी-आयुक्त जनसंपर्क, प्रमुख सचिव मप्र माध्यम जैसे भारी भरकम विभागों की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। 1993 बैच के अफसर  मनोहर अगनानी सचिव    सामाजिक न्याय विभाग और आयुक्त खाद्य विभाग को देख रहे हैं। 1994 बैच के आईएएस हरिरंजन राव पर भी कई प्रमुख विभागों का भार है। वे मुख्यमंत्री के सचिव, सचिव, आयुक्त मप्र पर्यटन विकास निगम, पर्यटन,  लोक सेवा प्रबंधन, जनशिकायत निवारण विभाग हैं। 1994 बैच के ही विवेक अग्रवाल सचिव मुख्यमंत्री, नगरीय विकास विभाग, आयुक्त नगरीय विकास एवं पर्यावरण, प्रबंध संचालक-म.प्र. मेट्रो रेल परियोजना की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
इन अफसरों के अलावा अन्य कई अफसर भी हैं जो कई विभागों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। इनमें शिखा दुबे प्रमुख सचिव, आयुष विभाग तथा आयुक्त-सह-संचालक, भारतीय चिकित्सा पद्धति एवं होम्योपैथी का अतिरिक्त प्रभार,  वीएल कांताराव प्रमुख सचिव, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विभाग, विशेष कर्तव्य अधिकारी-सह-आयुक्त, उद्योग, प्रबंध संचालक, मध्यप्रदेश राज्य उद्योग निगम, वस्त्र निगम एवं लघु उद्योग निगम का अतिरिक्त प्रभार, अनुपम राजन पर्यावरण आयुक्त तथा कार्यपालक संचालक, पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन (एप्को) तथा आयुक्त जनसम्पर्क (अतिरिक्त प्रभार), सचिन सिन्हा संचालक, आरसीव्हीपी नरोन्हा प्रशासन एवं प्रबंधकीय अकादमी एवं सचिव, खेल एवं युवा कल्याण, जयश्री कियावत आयुक्त, महिला सशक्तिकरण, तथा पदेन प्रबंध संचालक, महिला वित्त एवं विकास निगम, संजीव सिंह संचालक, कौशल विकास तथा नियंत्रक, शासकीय मुद्रण एवं लेखन सामग्री तथा संचालक, आपदा प्रबंधन संस्थान (डीएमआई) का अतिरिक्त प्रभार है।
व्ही किरण गोपाल को संचालक स्वास्थ्य मिशन और एड्स के साथ ट्रायफेक का अपर प्रबंध संचालक व उप सचिव मंत्रालय बनाया गया है। बालाघाट कलेक्टर के पद पर पदस्थापना के दौरान लकड़ी कटाई के मामले में विवाद होने पर किरण गोपाल को हटाया गया था। अब उन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसे बड़े विभाग का विभागाध्यक्ष बनाया गया है। जिसका मुखिया अभी तक वरिष्ठ अधिकारी होता था। तेजस्वी एस नायक अपर आयुक्त, नगरीय विकास तथा पदेन उप सचिव, नगरीय विकास एवं पर्यावरण विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। इन अफसरों में अधिकांश अफसर ऐसे है जिन्हें हमेशा महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलती रही है। चाहे सरकार भाजपा की हो या कांग्रेस की।
5 अप्रैल को जो फेरबदल हुए हैं उसको लेकर नौकरशाही में असंतोष है। असंतोष की वजह है वरिष्ठता और योग्यता को दरकिनार कर पदास्थापना। इस बार के बदलाव में सरकार में एक नई परम्परा शुरू हुई है, जिसमें विभागाध्यक्ष और प्रमुख सचिव एक ही व्यक्ति को बनाया गया है। इसका असर भी कामकाज पर पड़ रहा है। इससे चेक एवं बैलेंस सिस्टम समाप्त हो गया है, जो अधिकारी विभागाध्यक्ष की हैसियत से प्रस्ताव तैयार करके भेजता है, वही प्रमुख सचिव की हैसियत से उसे मंजूर करता है। लघु और मध्यम उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव बनाए गए वी एल कांताराव के पास आयुक्त उद्योग तथा एमडी लघु उद्योग निगम का भी प्रभार है। अब वे आधी फाइलें प्रमुख सचिव वाणिज्य व उद्योग मोहम्मद सुलेमान को भेजेंगे और आधी फाइलों को खुद मंजूरी देंगे। शायद इस तरह की स्थिति पहली बार बनी है। राज्य सरकार द्वारा किए गए प्रशासनिक फेरबदल में रस्तोगी दंपत्ति मनीष और दीपाली को काम के बोझ से लाद दिया गया है। दोनों अब दो प्रमुख सचिव के साथ कार्य करेंगे। मनीष रस्तोगी एमडी सड़क विकास निगम तथा सचिव लोक निर्माण और सूचना प्रौद्योगिकी को मुख्य कार्यपालन अधिकारी ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण का भी प्रभार सौंपा गया है। जबकि दीपाली रस्तोगी को आयुक्त लोक स्वास्थ्य व परिवार कल्याण के साथ आईजी रजिस्ट्रेशन का भी प्रभार दिया गया है। श्रीमती रस्तोगी को दो अतिमहत्वपूर्ण विभागों का विभागाध्यक्ष
बनाया गया है, जहां हमेशा अलग-अलग अधिकारी रहे हैं। यही स्थिति मनीष रस्तोगी की भी है, लेकिन उनका मुख्य काम सड़क
निर्माण है।
पांच वर्ष से अधिक समय से जलसंसाधन विभाग की कमान संभाल रहे अतिरिक्त मुख्य सचिव राधेश्याम जुलानिया को पंचायत और ग्रामीण विकास का भी प्रभार सौंपा गया है। तीन माह पूर्व अरूणा शर्मा के प्रतिनियुक्ति पर जाने के बाद से विभाग को नियमित एसीएस नहीं मिला, जबकि इस विभाग का सीधा संबंध प्रदेश  की 70 फीसदी आबादी से है। हमेशा विवादों में रहे पंचायत और ग्रामीण विकास में जुलानिया की नियुक्ति में राजनीति की बू आ रही है। क्योंकि अपने अडिय़ल रूख के कारण जुलानिया की मंत्रियों से पटरी नहीं बैठ पाती है। वहीं पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव भी अफसरों से पटरी नहीं बैठा पाते हैं। ऐसे में कहा जा रहा है की यह जानते हुए भी मुख्यमंत्री ने करैले को नीम पर चढ़ाने का जो प्रयास किया है वह और कसैला न हो जाए। जुलानिया एसीएस के तौर पर ही काम करेंगे। ऐसे में कहीं उन्हें मुख्य सचिव बनाने की तो तैयारी नहीं हो रही है। इसमें दोनों बातें हैं। अगर वो कसौटी पर खरे उतरते हैं तो वह सीएस के प्रबल दावेदारों में होंगे परंतु प्रशासनिक वीथिकाओं में इसे चाल भी समझा जा रहा है।
व्यापमं के कारण मध्यप्रदेश की बहुत बदनामी हुई, लेकिन सरकार उसका अलग मुखिया नहीं खोज पाई। अपर मुख्य सचिव वन दीपक खांडेकर के पास व्यापमं के अध्यक्ष का अतिरिक्त प्रभार है। यह विभाग उमाशंकर गुप्ता के पास है जो अपनी धुन में चलते हैं और सरकार ने पहले से ही तुनक मिजाज अफसर उमाकांत उमराव को सचिव, आयुक्त उच्च शिक्षा, परियोजना समन्वयक-राज्य उच्च शिक्षा मिशन बनाकर बैठाया है। वहीं प्रमुख सचिव के तौर पर आशीष उपाध्याय भी आ गए हैं। ये सभी अपना-अपना राग अलापते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि यह विभाग सामंजस्य बैठाकर कैसे काम कर पाएगा। क्योंकि कोई किसी की सुनने को तैयार नहीं होगा। क्या ये नियुक्तियां किसी राजनीतिक कारण से हुई हैं। यह सवाल उठने लगा है।
एक तरह सरकार ने कुछ चहेते अधिकारियों को काम के बोझ में लाद दिया, जिससे समय पर कार्य नहीं हो रहे हैं, दूसरी तरफ प्रभांशु कमल, विनोद सेमवाल, बीआर नायडू, एसएन मिश्रा, मोहम्मद सुलेमान, आशीष उपाध्याय, श्रीमती वीरा राणा, अरूण तिवारी जैसे अधिकारियों को अपेक्षाकृत छोटे और कम काम वाले विभागों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। कई विभागों में चेक एवं बैलेंस सिस्टम समाप्त हो गया है। इससे किसी भी दिन स्थिति खतरनाक बन सकती है। विभागाध्यक्ष और एमडी के रूप में जो अधिकारी सरकार को प्रस्ताव भेजता है, वही मंत्रालय में प्रमुख सचिव या सचिव की हैसियत से मंजूर करता है। यह स्थिति आयुष, सामाजिक न्याय, नवीन और नवकरणीय ऊर्जा, पर्यटन तथा लघु व मध्यम उद्योग विभाग में है। केंद्र की प्रतिनियुक्ति से वापस लौटे गोविल दंपत्ति मनोज और पल्लवी जैन गोविल को पदस्थापना का इंतजार है। सूत्रों का कहना है कि मनोज गोविल को वित्त विभाग में पदस्थ किया जा सकता है, जबकि पल्लवी को आईजी रजिस्ट्रेशन बनाकर दीपाली रस्तोगी को कार्यमुक्त किया जा सकता है।
पांच आईएस अफसरों को पहली बार कलेक्टरी
राज्य सरकार ने बड़ी प्रशासनिक सर्जरी में पांच आईएस अफसरों को पहली बार कलेक्टरी करने का मौका दिया है जबकि सीनियर आईएएस अफसरों में  एसीएस राधेश्याम जुलानिया को और ताकतवर बनाया गया है। वहीं प्रमुख सचिव स्तर के अफसरों में केके सिंह का विभाग भोज आधा कर दिया गया है। सिंह लगातार मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री को संकेत दे रहे थे कि उनके पास कोई एक विभाग रहने दिया जाए। इसमें वे उच्च शिक्षा को अधिक पसंद कर रहे थे। रमेश थेटे को शासन ने एक बार फिर मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया है। प्रशासनिक सर्जरी में महिला आईएएस अफसरों पर ज्यादा भरोसा जताया गया है। इनमें 1992 बैच की आईएएस कल्पना श्रीवास्तव को प्रमुख सचिव पद पर प्रमोशन के बाद तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास जैसा महत्वपूर्ण विभाग सौंपा गया है। वहीं 87 बैच की शिक्षा दुबे को आयुष, भारतीय चिकित्सा पद्धति और होम्योपैथी का अलग प्रभार दिया गया है। मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति के विकास पर ज्यादा जोर दे रहे हैं, इसके लिए उन्होंने प्रमुख सचिव अलका उपाध्याय पर भरोसा जताया है। महिला एवं बाल विकास विभाग की सचिव रहीं रजनी उइके के स्थान पर डॉ. मधु खरे को लाया गया है। इसी विभाग में जयश्री कियावत को आयुक्त महिला सशक्तिकरण की जिम्मेदारी दी गई है। महिला अफसरों में सबसे बड़ा भरोसा डिंडोरी की कलेक्टर रहीं छवि भारद्वाज पर जताया गया है। उन्हें नगर निगम भोपाल का आयुक्त बनाकर स्मार्ट सिटी की सबसे बड़ी जिम्मेदारी दी गई है।

पुलिस विभाग का भी हाल बेहाल
पुलिस विभाग में भी हाल बेहाल है। विभाग में 48 एडीजी हैं लेकिन अधिकांश के पास कोई काम नहीं है। एडीजी पुरूषोत्तम शर्मा, असन प्रताप सिंह, डॉ. आर.के. गर्ग,सीबी मुनिराजू के पास कोई काम नहीं है। इनके पास मुश्किल से रोज एक भी फाइल नहीं आती। वहीं राजीव टंडन के पास ओएसडी मुख्यमंत्री के साथ एडीजी एससीआरबी का भी प्रभार है। जबकि एडीजी प्रशासन सुधीर सक्सेना, स्पेशल डीजी गुप्त वार्ता सरबजीत सिंह के पास बहुत काम है। अगर सरकार बेकाम बैठे अफसरों को भी काम पर लगाती तो प्रदेश की कानून व्यवस्था शायद सुधर जाती।
मंत्रीमंडल में भी पुराने चेहरों के भरोसे
नौकरशाहों की तरह मंत्रीमंडल पर भी गौर करें तो हम पाते हैं कि पिछले एक दशक से मुख्यमंत्री पुराने चेहरों को ही तवज्जो दे रहे हैं। आलम यह है कि अभी तक हुए तमाम सर्वे और रिपोर्ट में यह बात सामने आ चुकी है कि प्रदेश सरकार के अधिकांश मंत्री फेल हो गए हैं। फिर भी उन्हें सरकार बर्दाश्त कर रही है। मुख्यमंत्री शुरू से रिपोर्ट के आधार पर मंत्री मंडल विस्तार की बात कर रहे हैं। उनके इस कार्यकाल के तीन साल गुजर गए हैं, लेकिन मंत्रीमंडल विस्तार केवल बयानों में ही सिमट गया है। दरअसल मुख्यमंत्री सरकार में जमें पुराने चेहरों को हटाकर नयों का नाम जोडऩे की हिम्मत नहीं कर पा रही है। प्रदेश सरकार के मंत्रियों के यहां जो स्टाफ तैनात है वह भी दो से ढाई दशक पुराना है। संघ की हिदायत और मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद भी मंत्री अपने स्टाफ को नहीं हटा रहे हैं। आखिर मंत्रियों का अपने स्टाफ से इतना मोह क्यों है। जबकि सबकों विदित हैं कि यह स्टाफ वही है जो पूर्ववर्ती सरकारों के मंत्रियों के साथ काम कर चुका है। बदला क्या है सिर्फ यह कि प्रदेश में पंजे की जगह कमल छाप वाली सरकार चल रही है। सरकार हर बार ताश के 52 पत्तों की तरह उन्हीं अफसरों को इधर से उधर फेंट देती है बाकी अपनी बारी का इंतजार करते रहते हैं।
फिर गांव की ओर क्यों?

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