भूखे बुंदेलखंडÓ में अनाज की लूट
31-Mar-2016 08:13 AM 1234896

सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड में लोग भूख से इतने बेहाल होने लगे हैं कि अब वे अनाज भी लूटने लगे हैं। ऐसी एक नहीं करीब दर्जनभर घटनाएं सामने आईं हैं। पिछले दिनों बांदा जिले में हुई ऐसी ही एक घटना में लोगों ने सार्वजनिक वितरण के लिए आईं राशन की बोरियां लूट लीं। ऐसी ही घटनाएं झांसी के ग्रामीण क्षेत्रों में भी सामने आई हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यहां जैसे हालात हैं, उसके चलते ऐसी घटनाएं हो रही हैं।
बांदा जिले के नरैनी में हुई घटना में पता चला है कि ग्रामीणों ने वहां सस्ते गल्ले की दुकान पर जा रही राशन की गाड़ी पर धावा बोलकर 76 बोरियां लूट लीं। बांदा के जिलाधिकारी सुरेश कुमार का कहना है कि अनाज लूटने की कोई घटना नहीं हुई है बल्कि दुकानदार ने ही घपलेबाजी के चलते यह कहानी गढ़ी है। जिलाधिकारी के अलावा अन्य अधिकारी भी कुछ ऐसा ही कह रहे हैं। मगर स्थानीय लोगों की राय अलग है। भारतीय किसान यूनियन के स्थानीय पदाधिकारी आशीष सागर दीक्षित कहते हैं कि घटना को कई लोगों ने देखा और उसके बाद अनाज लूटने वालों ने सड़क पर जाम भी लगाया, जिसे बाद में प्रशासन ने हटा दिया।
आशीष सागर दीक्षित के मुताबिक, यहां सरकारी राशन की दुकानों पर लोगों को पिछले कई महीने से राशन नहीं मिल रहा था। जब दिया गया, तो निर्धारित मात्रा से बहुत कम। ऐसे में गरीब ग्रामीण उत्तेजित हो गए और उन्होंने सरकारी अनाज लूट लिया। स्थानीय लोगों का भी कहना है कि अनाज की बोरियां लूटी गईं या नहीं, इस पर बहस हो सकती है लेकिन भूख से बेहाल बुंदेलखंड में स्थिति ये है कि लोग अब भूख मिटाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। नरैनी के जिस गांव में कथित तौर पर अनाज लूटने की यह वारदात हुई, वहां के स्थानीय निवासी देवी दयाल कहते हैं, तीन साल से खेतों में अनाज नहीं हो रहा है। लोगों के पास खाने को कुछ नहीं। जो सरकारी मदद आ रही है, वह किसे मिल रही है पता नहीं। ऐसे में लोगों के पास से भूख से बचने का जो रास्ता दिख रहा है, वही अपना रहे हैं।
उधर, सरकार बार-बार बुंदेलखंड को हरसंभव मदद का भरोसा देती रहती है और सरकारी आंकड़ों में अतिरिक्त अनाज भी बुंदेलखंड को मुहैया कराया गया है, पर उन्हें मिल कितना रहा है, यह देवीदयाल जैसे ग्रामीणों से बात करने पर पता चलता है। बुंदेलखंड में स्वराज अभियान नामक संस्था द्वारा कराए गए एक सर्वे में पाया गया है कि पिछले आठ महीनों में 53 प्रतिशत गरीब परिवारों ने दाल नहीं खाई। 69 प्रतिशत ने दूध नहीं पिया और हर पांचवां व्यक्ति कम से कम एक दिन भूखा सोया। यह तथ्य किसी को भी झकझोर देने वाले हैं। यह सर्वेक्षण बुंदेलखंड की सभी 27 तहसीलों के 108 गांवों में किया गया।
स्वराज अभियान ने अपने सर्वेक्षण में पाया कि बुन्देलखण्ड के सबसे गरीब परिवारों के लिए भुखमरी की नौबत आ सकती है। इस क्षेत्र में लगातार तीसरे साल सूखा पड़ा है। बुंदेलखंड में खरीफ की फसल लगभग बर्बाद हो गयी है। ज्वार बाजरा मूंग और सोयाबीन उगाने वाले 90 प्रतिशत से अधिक परिवारों ने फसल बर्बादी की रपट दी। अरहर और उड़द में यह प्रतिशत कुछ कम था। केवल तिल की फसल ही कुछ बच पायी है। वहां भी 61 प्रतिशत किसानों ने फसल बर्बादी का जिक्र किया।  साथ ही इस साल ओलावृष्टि, अतिवृष्टि से रबी की फसल भी नष्ट हो गयी है।  सर्वेक्षण के मुताबिक दो तिहाई गांव में पिछले साल की तुलना में घरेलू काम के पानी की कमी आई है आधे के अधिक गांव में पानी पहले से अधिक प्रदूषित हुआ है। पानी का मुख्य स्रोत हैण्डपम्प है। लेकिन सरकारी हैण्डपम्पों में कोई एक तिहाई बेकार पड़े हैं। लोग पलायन तक करने को मजबूर हैं। सरकार ने मदद की तमाम घोषणाएं की हैं लेकिन लोगों का कहना है कि उन तक कोई मदद नहीं पहुंची है।
हालांकि उत्तरप्रदेश में अगले साल होने वाले चुनाव को देखते हुए अखिलेश यादव की सरकार ने इस क्षेत्र के उत्थान के लिए कई योजनाओं और परियोजनाओं की घोषणा की है। लेकिन स्थानीय लोगों को इन घोषित योजनाओं-परियोजनाओं पर विश्वास नहीं है। क्योंकि जब भी लोकसभा या विधानसभा के चुनाव आते हैं पार्टियां इस क्षेत्र की दुर्दशा को देखकर आंसू बहाती हैं लेकिन चुनाव बाद सब अपने वादे भूल जाते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि हमारी नियति में बदहाली ही लिखी हुई है। उधर इस बार स्वराज अभियान सहित कुछ सामाजिक संगठन क्षेत्र की बदहाली दूर करने के लिए सरकारों से वादे नहीं आदेश की मांग कर रही है।
भुखमरी और कुपोषण बढ़ा
सर्वेक्षण के सबसे चिंताजनक संकेत भुखमरी और कुपोषण से सम्बधित है। पिछले एक महीने के खानपान के बारे में पूछने पर पता लगा कि एक औसत परिवार को महीने में सिर्फ 13 दिन सब्जी खाने को मिली। परिवार में बच्चों या बड़ों को दूध छह दिन नसीब हुआ और दाल सिर्फ चार दिन। गरीब परिवारों में आधे से ज्यादा ने पूरे महीने में एक बार भी दाल नहीं खायी थी और 69 प्रशित ने दूध नहीं पिया था। गरीब परिवारों में 19 प्रतिशत को पिछले माह कम से कम एक दिन भूखा सोना पड़ा।
-जबलपुर से धर्मेंंद्र सिंह कथूरिया

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