पहले घर संभालें
04-Jun-2016 08:07 AM 1234900
सुशासन बाबू दिल्ली की गद्दी संभालने का सपना पाले हुए हैं लेकिन उनके ही लोग उन्हें पहले घर संभालने की चुनौती दे रहे हैं। प्रदेश में पूरी तरह जंगलराज चल रहा है। ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सुशासन कुशासन में बदल गया है। सरेआम हत्याओं के खूनी खेल ने राज्य में भय का माहौल पैदा कर दिया है। ऐसे में नीतीश के सुशासन पर उठ रहे सवाल अपना जवाब मांग रहे हैं। बिहार में कानून व्यवस्था के बेलगाम होने के खतरे के बीच नीतीश की देश के भ्रमण पर निकलने की खबरें चौंकाने वाली है। किसी भी मुख्यमंत्री को अपनी पार्टी का प्रचार करने के लिए देश के किसी भी कोने में जाने की स्वतंत्रता है लेकिन उसके लिए समय उचित होना चाहिए। देश भ्रमण पर निकलने से पहले नीतीश को अपने राज्य पर ध्यान देना चाहिए। उस राज्य पर जिसकी जनता ने उन्हें दिल खोलकर समर्थन दिया। बिहार में जब से जदयू और राजद की मिली-जुली सरकार बनी है। अपराध का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। राज्य में रोजाना हत्या, डकैती, लूट, चोरी की घटनाएं रिकार्ड बना रही है। अभी हाल ही में पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या कर दी गई। यही नहीं पिछले दिनों बिहार में एक ऐसी घटना घटी है, जिसे हम बिहार की प्रचलित छवि से मेल खाने वाली घटना के रूप में देख सकते हैं। बिहार की आधुनिक संस्कृति को प्रदर्शित करने वाले भोजपुरी सिनेमा में प्रदर्शित नायकों, खलनायकों की तरह ही कोई, गया की एक सड़क पर, अपनी शान के खिलाफ अतिक्रमण करती एक गाड़ी पर गोलियाँ चलाता है और एक निरपराध नवयुवक मारा जाता है। रॉकी यादव नाम का यह पात्र बिहारी फिल्मों के रौबदार नायक-खलनायक की तरह एक ऐसे रसूखदार परिवार का लाड़ला है, जिसका पिता अपराध और राजनीति के गहन साहचर्य वाली जमीन से उपजा बाहुबली है, जो अब उद्योग धंधों में भी अपना साम्राज्य विस्तार कर रहा है। पिछले तीस वर्षों में बिहार की जो एक खास छवि बनी है, रॉकी यादव और उसके पिता बिन्दी यादव, उस छवि के अग्रिम पंक्ति के पात्र हैं। बिहार की सामाजिक जमीन से उपजी राजनीति और उस राजनीति से तैयार हुए मौकों के लाभार्थी का सामाजिक व्यवहार सड़क, सदन, होटल या अन्य किसी भी सार्वजनिक स्थान पर ऐसे दृश्य उपस्थित करता है, जिसे लेकर माध्यमों में खबर गरम होती रहती है कि बिहार का मतलब जंगल राज है। इस जंगलराज को खत्म करने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की है। लेकिन इन दिनों वे दिल्ली का सपना देख रहे हैं। शायद उन्हें नहीं मालूम की हर बार बिल्ली के भाग्य से छीका नहीं टूटता। राजनीति में महत्वाकांक्षा रखना बुरी बात नहीं पर घर की चिंता छोड़कर देश की चिंता करने को भी अच्छा नहीं माना जा सकता। बीते दिनों की घटनाओं पर नजर डालें तो बिहार में जंगलराज की वापसी की अटकलें सुनाई देने लगी हैं। लोकसभा चुनाव में अभी तीन साल का समय है लेकिन राजनीतिक चौसर अभी से सजने लगी है। नए गठजोड़ों पर चर्चा होने लगी है तो पुराने दोस्तों पर भी नजर रखी जा रही है। प्रधानमंत्री पद के दावेदारों की सूची में नए नाम भी जुडऩे लगे हैं। ऐसा ही एक नाम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का है। बीच में दस महीने के काल को छोड़ दिया जाए तो पिछले 10 साल से राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि ईमानदार और सुलझे राजनेता के तौर पर होती है। पिछले साल अक्टूबर में लालू यादव और कांग्रेस के साथ मिलकर उन्होंने भाजपा के विजयी रथ को बिहार में ऐसा झटका दिया जिससे कमल अब तक मुरझाया लग रहा है। बिहार विधान सभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत के बाद प्रधानमंत्री पद पर नीतीश का दावा मजबूत हुआ है। राजनीति में महत्वाकांक्षा पालना कोई बुरी बात नहीं लेकिन अपने घर की चिंता छोड़कर पूरे देश की चिन्ता करने को भी अच्छा नहीं माना जा सकता। बीते कुछ दिनों की घटनाओं पर नजर डाली जाए तो बिहार में जंगलराज की वापसी की अटकलें सुनाई देने लगी हैं? लोकसभा चुनाव में अभी लंबा वक्त है। बिहार को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाने में नीतीश कामयाब रहे तो उनका प्रचार अपने आप हो जाएगा। नीतीश को फिलहाल उस जिम्मेदारी पर ध्यान देना चाहिए। जो जनता ने उन्हें सौंप रखी है। कहीं ऐसा ना हो कि प्रधानमंत्री बनने की लालसा में बिहार का अहित हो जाए। चौबे जी, छब्बे जी बनने चले और दुबे ही रह जाएं। बेशक नीतीश में राज चलाने की क्षमता है, जो वो पहले साबित भी कर चुके हैं। अपने पिछले कार्यकाल में भी उन्होंने राजनीतिक दबावों को दरकिनार करते हुए साहसिक फैसले लिए थे। तब उन्हें सुशासन कुमार भी कहा जाने लगा था। लेकिन इस कार्यकाल के पहले तीन माह में ही जिस तरह का माहौल बना है, वह चिंतनीय है। कटघरे में सरकार की छवि बिहार में पिछले दिनों हुई कई हत्याओं के पीछे सत्तारूढ़ दल के नेताओं का नाम आ रहा है। एक के बाद एक हो रही हत्याओं से सरकार कठघरे में खड़ी नजर आ रही है। विकास कहीं दिख नहीं रहा, जाति और अपराधी हर तरफ उठते दिखाई दे रहे हैं। आज नीतीश पर बिहार ही नहीं देशभर की नजरें टिकी हैं। उम्मीद की जाती है कि ऐसे दौर में देश को संभालने की बजाए नीतीश बिहार पर ही ध्यान दें तो ठीक होगा।बिहार के बारे में कुछ तथ्यों पर गौर करना जरूरी है। यह एक ऐसा राज्य है, जिसमें शक्तिशाली जातियों में खुद को यादव बताने वालों की संख्या सबसे अधिक है। इन नव-यादवों की ही तरह बाकी अन्य लोग भी, अपनी पहचान मुख्य रूप से अपनी जाति के सापेक्ष ही करते हैं। -कुमार विनोद
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