विरोध तय करेगा टिकट
16-Apr-2016 08:29 AM 1234776

कांग्रेस में विधायक का टिकट अब पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं और विधायकों की सरकार विरोधी गतिविधियों से तय किया जाएगा।  इसके लिए राजधानी भोपाल में दो दिनों तक मंथन किया गया। प्रशिक्षण के नाम पर आयोजित कार्यक्रम में पार्टी के दिग्गज नेता मणिशंकर अय्यर ने सभी पदाधिकारियों को टारगेट दिया कि वे प्रदेश सरकार के खिलाफ जोरदार अभियान चलाए। कांग्रेस आलाकमान ने कांग्रेस नेताओं को साफ तौर से ये संदेश दिया है कि प्रदेश सरकार की मुखालफत नहीं करने पर उनका चुनावी टिकट कट सकता है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान इस बात से नाराज है कि कांग्रेस विधायकों को जनविरोधी मुद्दे पर सरकार को जिस तरह से घेरना चाहिए था, वो ऐसा कर पाने में नाकाम रहे।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि प्रदेश में संपन्न हुए चुनाव में पार्टी की लगातार हार के बाद यह बात सामने आई है कि प्रदेश के नेता और विधायक पूरी तरह निष्क्रिय हैं। कई जनविरोधी मुद्दे हाथ लगने के बाद भी सरकार के खिलाफ कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं हो सका। इसलिए अब यह रणनीति बनाई गई है। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को लगता है कि व्यापमं, किसान आत्महत्या, मुआवजा सहित कई ऐसे मुद्दे को कांग्रेस विधायकों ने ठंडे तरीके से जनता के सामने रखा। यही नहीं इस बार बजट सत्र के दौरान सदन में कांग्रेसी विधायक जिस तरह ठंडे नजर आए उससे आलाकमान संतुष्ट नहीं है। इसलिए पार्टी ने तय किया है कि जो नेता प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ लगातार आंदोलन करेगा, उसे आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट दिया जाएगा। आलाकमान के इस निर्देश से पार्टी के सभी पदाधिकारियों को पहुंचाया जा रहा है और इसकी रिपोर्ट तैयार कर आलाकमान को भेजी जाएगी।
प्रदेश में 13 वर्ष  से सत्ता से दूर देश की सबसे प्रमुख राजनैतिक पार्टी कांग्रेस इन दिनों सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। हालत यह है कि दिग्विजय शासन काल में लगातार दस सालों तक सत्ता की मलाई खाने वाले नेता पार्टी के बुरे दिनों में निष्क्रिय होकर घर बैठ गए हैं। हालांकि पार्टी की इस दुर्दशा की वजह दिग्विजय सिंह के कार्यकाल को ही माना जा रहा है। खास बात यह है कि पार्टी के सत्ता में रहने के दौरान मलाई खाने वाले नेता इन दिनों न तो आंदोलन, धरना व प्रदर्शन में दिखाई देते हैं और न ही संगठन के लिए काम करते नजर आते हैं। संगठन के एक पदाधिकारी का कहना था कि यदि दिग्विजय सिंह के राज में मलाई खाने वाले ये मंत्री ही एकजुट होकर कांगे्रस की वापसी के प्रयास करते तो पार्टी की स्थिति कुछ और होती पर उन्हें कांग्रेस को उबारने में कोई रुचि नहीं है। ये सिर्फ तब सक्रिय होते हैं जब खुद टिकट चाहिए हो या फिर अपने किसी समर्थक को टिकट दिलाना हो। पदाधिकारी का कहना था कि यदि कांग्रेस से सबसे ज्यादा लाभ व शोहरत कमाने वाले नेता ही सक्रिय नहीं होंगे, तो कांगे्रस की वापसी कैसे संभव होगी।
दिग्विजय सिंह के 10 साल के कार्यकाल में ताकतवर रहे मंत्रियों महेंद्र सिंह कालूखेड़ा, अजय सिंह, सज्जन सिंह वर्मा, हजारीलाल रघुवंशी, डॉ. गोविंद सिंह, इंद्रजीत कुमार, नरेंद्र नाद, सुभाष सोजतिया, दीपक सक्सेना, महेंद्र बौद्ध, हुकुम सिंह कराड़ा, आरिफ अकील, केपी सिंह, बाला बच्चन, हीरालाल सिलावट, मुकेश नायक, वीर सिंह रघुवंशी, रामनिवास रावत, यादवेंद्र सिंह आदि में से कुछ ही सक्रिय हैं। ये नेता भले ही सक्रिय पर स्वयं के लिए, पार्टी के लिए इनकी सक्रियता कहीं भी नजर नहीं आती है। वहीं दिग्विजय मंत्रिमंडल सदस्यों में महेंद्र सिहं कालूखेड़ा, अजय सिंह, सज्जन सिंह वर्मा, डॉ. गोविंद सिंह, आरिफ अकील, रामनिवास रावत, मुकेश नायक, इंद्रजीत कुमार, केपी सिंह, बाला बच्चन, यादवेंद्र सिंह जैसे कुछ नेता अपने-अपने ढंग से सक्रिय तो हैं लेकिन समूची कांगे्रस को मजबूत करने के लिए नहीं, बल्कि खुद को मुख्यधारा में बनाए रखने के लिए। ऐसे में आलाकमान न सबको चेतावनी दी है कि अगर आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट चाहिए तो उन्हें अपनी सक्रियता दिखानी होगी।
दिग्विजय सिंह कार्यकाल के कुछ मंत्री ऐसे भी थे जो हमेशा ताकतवर रहे और अपनी पहचान बनाए रखने में सफल रहे पर अब इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन इनके परिजन पार्टी के लिए बेहतर काम कर रहे हैं। इनमें आदिवासी नेत्री जमुना देवी के भतीजे उमंग सिंगार अब विधायक हैं। एक अन्य उप मुख्यमंत्री सुभाष यादव, के एक पुत्र अरुण यादव प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं दूसरे सचिन यादव विधायक हैं। इसी तरह हरवंश सिंह, इनके पुत्र रजनीश सिंह विधायक हैं। ये सभी नेता कांग्रेस को मैदानी स्तर पर जीवित रखने के प्रयास में जुटे हुए हैं, जो नाकाफी साबित हुआ है। अब यह देखना है कि आलाकमान का सख्त कदम कांग्रेसियों में जान फूंकता है कि नहीं।
गुटबाजी अभी भी हावी
कांग्रेस सत्ता में नहीं है फिर भी गुटबाजी कायम है। सभी बड़े नेता पार्टी की बजाए एक-दूसरे की टांग खिंचाई को ज्यादा महत्व देते हैं। दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रहे नेता चूंकि इन्हीं नेताओं के समर्थक हैं, इसलिए एक नेता के हाथ में पार्टी की कमान होती है तो अन्य नेताओं के समर्थक घर बैठकर तमाशा देखते हैं। कहावत है कि एक अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकताÓ तो अकेले प्रदेश अध्यक्ष के बूते पार्टी को मजबूत कैसे किया जा सकता है। प्रदेश अध्यक्ष भी यदि करेला नीम चढ़ाÓ कहावत चरितार्थ करें और वह ऐसा हो कि सभी को साथ लेकर चलने का प्रयास ही न करे तब तो पार्टी का भगवान ही मालिक है।
-भोपाल से रजनीकांत पारे

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