अपनों को बचाने पुलिसगिरी
16-Apr-2016 07:49 AM 1234876

सात साल पहले एक एनकाउंटर में  निगरानीशुदा तस्कर बंशी गुर्जर की जगह एक आम आदमी को मारने के मामले में मंदसौर के तत्कालीन एसपी और वर्तमान में पुलिस मुख्यालय की कार्मिक शाखा के आईजी वेदप्रकाश शर्मा और उनके साथियों को बचाने के लिए पुलिस, सीआईडी और अब सीबीआई ने कोई कसर नहीं छोड़ी। इसका परिणाम यह हुआ कि दोषी अफसर सीना तान कर घूम रहे हैं और जिस निर्दोष व्यक्ति की हत्या की गई उसका आज तक कोई पता नहीं लग सका कि वह कौन था। इस पूरे मामले में षड्यंत्र जैसा कुछ लग रहा है।
दरअसल, पुलिस मुख्यालय की कार्मिक शाखा के आईजी वेदप्रकाश शर्मा जब नीमच एसपी थे उस वक्त उन्होंने कुख्यात तस्कर बंशीलाल गुर्जर का 8 फरवरी 2009 को एनकाउंटर किया था जबकि आश्चर्यजनक बात तो यह है कि जिस बंशीलाल को पुलिस मुठभेड़ में मार गिराना बताया था वह आज रतलाम जेल (1 अप्रैल 2016 को नीमच के कनावटी जेल से शिफ्ट किया गया) में बंद है।
वर्तमान में इस फर्जी एनकाउंटर मामले की जांच सीबीआई कर रही है। वर्ष 2009 से अब तक बंशी गुर्जर के नाम पर किस व्यक्ति को मार गिराया गया यह प्रश्न नीमच पुलिस समेत सभी पुलिस अफसरों के लिए पहेली बना हुआ है। इतना ही नहीं इस प्रकरण की न्यायिक जांच हुई सीआईडी ने भी जांच की लेकिन नतीजा सिफर रहा। चौंकाने वाली बात तो यह है कि जिस एसपी के नेतृत्व में इतना बड़ा फर्जी एनकाउंटर हुआ उन्हें हाल ही में विशिष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
किसी भी फिल्मी कहानी को मात देने वाला मृत तस्कर कांड, पुलिस के लिए चुनौती बन गया है। दरअसल, यह पूरा मामला पुलिस और तस्करों के गंठजोड़ की कहानी कहता है। कुख्यात अपराधी बंशी गुर्जर, घनश्याम धाकड़ और शराब कारोबारी पप्पू गुर्जर, चित्तौडग़ढ़, नीमच में तस्करी के साथ अन्य अपराधों में लिप्त थे। बताया जाता है कि पुलिस से पीछा छुड़ाने के लिए बंशी गुर्जर ने 8 फरवरी 2009 का पहले अपने आपको पुलिस एनकाउंटर में मरवाया। एनकाउंटर में मृत घोषित होने के बाद बंशी गुर्जर को अपने ऊपर लदे एक दर्जन अपराधों से मुक्ति मिल गई। अब वह नए ढंग से जिंदगी जीने लगा। इस दौरान खनन ठेके लेने के साथ मध्यप्रदेश-राजस्थान में तस्करी के जरिए करोड़ों रुपए कमाए। बंशी की खुशनुमा जिंदगी देख उसका सहयोगी छोटी सादड़ी (चित्तौडग़ढ़) निवासी घनश्याम धाकड़ भी अपने अपराधों से मुक्ति चाहता था। यह बात उसने बंशी को बताई, योजना बनी और फिर एक हत्या हुई। मृतक की जेब में घनश्याम से संबंधित दस्तावेज मिले। जिसे देखकर पुलिस ने घनश्याम को भी मृत घोषित कर दिया। यह घटना 10 मार्च 2011 को हुई थी। कुछ माह बाद पुलिस को एक मुखबिर से पता चला था कि घनश्याम जिंदा है तो खोजबीन शुरू हुई और 25 सितंबर 2012 को जावद से घनश्याम को गिरफ्तार कर लिया गया। तब पूछताछ के दौरान पता चला था कि बंशी जिंदा है और उसने ही एक युवक की हत्या कर उसे हादसे में मृत दर्शाया। घनश्याम से मिली इंफारमेशन के बाद तत्कालीन आईजी उपेंद्र जैन ने एक टीम गठित कर जाल बिछाया और उसे गिरफ्तार कर लिया। बंशी गुर्जर की गिरफ्तारी के बाद रिमांड पर आते ही मामले की परतें खुलनी शुरू हो गई हैं। 
खुलासे के बाद तत्कालीन एसपी वेदप्रकाश शर्मा, एएसपी विनीत जैन, मनासा एसडीओपी रहे अनिल पाटीदार और रामपुरा टीआई एडविन कार सहित कई पुलिस अफसर की भूमिका संदेह घेरे में आ गई थी। बंशी गुर्जर के जिंदा पकड़े जाने के बाद मप्र शासन ने धारा 307, 353, 332, आईपीसी 25, 27 आम्र्स एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया गया और एनकाउंटर की जांच पुलिस ने सीआईडी को ट्रांसफर कर दी थी। सीआईडी भी मामले में दो साल से जांच कर रही थी लेकिन ज्यादा कुछ पता नहीं लगा पाई। आश्चर्य की बात यह है कि एक दर्जन पुलिस अफसरों ने बंशी के एनकाउंटर का दावा किया था जबकि यह एनकाउंटर फर्जी ही नहीं बल्कि पहले से ही तय था जिसमें पुलिस वाले भी शामिल थे। इसका मतलब यह हुआ कि पुलिस अफसरों का बंशी को जीवनदान देने का षड्यंत्र। इसमें मोटी रकम बंटी थी। पूछताछ के दौरान बंशी ने बताया कि राजस्थान के एक मुस्लिम युवक को अपनी योजना में शामिल किया, उसे पाठ पढ़ाया और अपने कपड़े व हेलमेट पहना कर मोटरसाइकिल से रवाना कर दिया। दूसरी तरफ उसने पुलिस टीम को सूचना करवा दी कि बंशी आ रहा है। सूचना पाकर पहुंची पुलिस टीम बंशी गुर्जर समझकर युवक को रोकना चाहा तो उसने फायर कर दिया फिर क्या था जवाबी फायरिंग में युवक ढेर हो गया। रामपुरा अस्पताल के चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया। मां, पत्नी व अन्य ग्रामीणों ने उसकी शिनाख्त बंशी के रूप में की। इस आधार पर बंशी गुर्जर को मृत घोषित कर दिया।
सीबीआई ने अब तक नहीं सौंपी जांच रिपोट
न्यायिक जांच-तत्कालीन नीमच कलेक्टर संजय गोयल ने मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए थे। यह जिम्मा तत्कालीन एडीएम सुबोध रेगे को सौंपी गई लेकिन वे घटनास्थल पर एक बार भी नहीं पहुंचीं और जांच रिपोर्ट सौंप दी। इसमें बंशी गुर्जर का ही एनकाउंटर बताया गया। बंशी गुर्जर को जिंदा पकडऩे के बाद पुलिस ने मामले को दबाना शुरू कर दिया। इसी बीच सामाजिक कार्यकर्ता मुलचंद खिची ने मप्र हाईकोर्ट में याचिका लगा दी। तब कोर्ट ने 2013 में इस मामले की सीबीआई से जांच करवाने के आदेश दिए। सीबीआई को 6 महीने की मोहलत दी गई थी लेकिन अब तक उसने जांच रिपोर्ट नहीं सौंपी है। ऐसे में इस पूरी जांच प्रक्रिया पर सवाल उठने लगा है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि पुलिस अधिकारियों को बचाने के लिए जांच में आंच रही है।
-भोपाल से सुनील सिंह

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