16-Apr-2016 07:26 AM
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हजारों करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी बुंदेलखंड को अकाल से राहत न मिलना बताता है अब यह सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं है। बल्कि भ्रष्टाचार के आगोश से निकली भयावह तस्वीर है। दरअसल, बंदेलखंड को जनप्रतिनिधियों और अफसरों

ने कमाई का ऐसा कुंआ बना दिया है जो लगातार उनकी जेब भरता रहता है। जबकि पूरे क्षेत्र में अरबों रूपए खर्च करने के बाद भी न लोगों की प्यास बुझ रही है और न ही खेतों को पानी मिल रहा है। इस क्षेत्र में स्थिति कितनी भयावह है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 6 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए सूखे से निपटने का उपाय करने को कहा है।
बुंदेलखंड की त्रासदी इस तथ्य से समझी जा सकती है कि 2011 में सभी 13 जिलों में औसत से अधिक वर्षा दर्ज की गई थी लेकिन तब भी पूरे क्षेत्र को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ा था। झांसी के बंगरा विकास खंड के गांव खिसनी की प्रधान किरण देवी बताती हैं कि गांव में 28 हैंडपंप हैं लेकिन सिर्फ दो ही पानी दे रहे हैं। एक तालाब था, जो सूख चुका है। स्वच्छता अभियान के तहत गांव में 100 शौचालय बने हैं लेकिन लगभग सब बंद हैं। महिलाएं भी खेत-जंगल में ही शौच को जाती हैं। वजह यह है कि शौचालय की साफ-सफाई के लिए अधिक पानी की जरूरत पड़ती है, जबकि खुले में शौच के बाद में सफाई नहीं करनी पड़ती। बुंदेलखंड में पानी की कमी से उपजी ऐसी कई व्यथाएं सुनने को मिलती हैं। 1967 के बाद यह पहली बार है कि लगातार चार साल बुंदेलखंड ने सूखे की मार झेली हो।
बांदा और महोबा में भूजल स्तर तेजी से घट रहा है। यहां रोज चार इंच पानी नीचे की तरफ सरक रहा है। पिछले साल के मुकाबले लोगों को अपनी बोर को 30 से 40 फीट नीचे इन्स्टॉल करवाना पड़ रहा है। जैसे अतर्रा बेल्ट में लोगों को कभी सबमर्सिबल की जरूरत नहीं पड़ी थी। लोग मोनोब्लॉक पंपसेट से 20 फुट की गहराई से पानी निकालते आए हैं। इस बार सारे मोनोब्लॉक पंप फेल हो गए। अभी ही वहां पानी 20 फुट से नीचे चला गया है। और जहां जलस्तर 35 से 40 फीट रहता था वहां अब 90 से 100 फुट के बीच पहुंच गया है। कई जगह तो पानी 160 फीट से नीचे तक पहुंच गया है। इससे किसान का खर्च बहुत बढ़ गया है। ऐसा ही चलता रहा तो धीरे-धीरे सभी बोरवेल सूख जाएंगे।Ó
चित्रकूट धाम मंडल के चार जिलों में हमीरपुर, बांदा, महोबा और चित्रकूट में कुल 1,113 सरकारी नलकूप हैं। सिंचाई विभाग का दावा है कि इनमें से 1,068 नलकूप काम कर रहे हैं। निजी नलकूपों की संख्या की कोई जानकारी सरकार के पास नहीं है। लेकिन इसे दूसरे आंकड़े से समझा जा सकता है। भूजल बोर्ड के मुताबिक बांदा में पिछले साल 29,526 हेक्टेयर जल उपलब्ध था जबकि 36,897 हेक्टेयर मीटर जल का दोहन किया गया। इसी तरह हमीरपुर में 16,731 की जगह 33,042 हेक्टेयर मीटर और चित्रकूट में 7535 के बजाए 16197 हेक्टेयर मीटर भूजल का दोहन हुआ है। इसका परिणाम यह हुआ कि साल भर में इन जिलों में भूजल का स्तर 3.5 से 4.5 मीटर तक नीचे गिर गया है। यह आने वाले जल संकट की भयावहता की बानगी भर है।
राहत नाममात्र भी नहीं
2001 से 2007 के बीच पड़े पांच सूखों के बाद यूपीए-2 सरकार ने 7,500 करोड़ रुपये के बुंदेलखंड पैकेज की घोषणा की थी। इस राशि से बुंदेलखंड में बार-बार पड़ रहे सूखे के हालात से निपटने के लिए सिंचाई के साधनों का विकास किया जाना था। लेकिन बुंदेलखंड पैकेज ने यहां सूखे को और अधिक भयावह बनाने में अपनी भूमिका निभाई है। नवंबर, 2012 तक नेशनल रेनफेड एरिया अथॉरिटी के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बुंदेलखंड पैकेज के लिए आवंटित 1,005 करोड़ रुपए में से सिर्फ 179 करोड़ रुपए का इस्तेमाल हो पाया था। लेकिन अगले सिर्फ चार महीनों में यानी मार्च, 2013 तक यह राशि 58 फीसदी पर पहुंच गई। हद दर्जे की सुस्ती और उसके बाद बरती गई चुस्ती से अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि राहत राशि को खर्च करने के पीछे गंभीरता नदारद है।
-जबलपुर से धर्मेंंद्र सिंह कथूरिया