31-Mar-2016 08:32 AM
1234873
एक अप्रैल से मोदी सरकार ने बाढ़, सूखा, तूफान और दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की मार झेल रहे किसानों को सहायता देने के लिए ऐतिहासिक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू कर दी है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भले ही

किसानों के लिए हित में हो, लेकिन राज्य सरकार पर प्रत्येक किसान के लिए फसल बीमा के प्रीमियम का अतिरिक्त भार बढ़ जायेगा। वर्तमान में लागू फसल बीमा के तहत राज्य सरकार ने पिछले 4 साल में अपने हिस्से में 440 करोड़ रुपए खर्च किए, लेकिन सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार नई योजना के तहत सरकार को हर साल लगभग 1 हजार करोड़ का भार आएगा। वर्तमान में बीमा के लिए किसान लगभग 8 से 10 प्रतिशत प्रीमियम राशि भरता है। लेकिन नई योजना के तहत किसान को मात्र 2 प्रतिशत प्रीमियम देना होगा और शेष 8 फीसदी केंद्र और राज्य सरकार बराबर-बराबर यानी 4-4 प्रतिशत वहन करेगी। राज्य पर वित्तीय भार बढऩे की एक वजह यह भी है कि वर्तमान योजना का प्रदेश के 28 लाख किसान लाभ ले रहे हैं, जबकि नई योजना के तहत इस संख्या को दो गुना करने का लक्ष्य तय किया गया है। दरअसल प्रदेश सरकार नई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू होने के कारण अपने ही जाल में फंस गई है। राज्य सरकार ने प्रदेश में कृषि उत्पादन बड़ा हुआ दर्शाने के लिए न केवल खेती-किसानी के रकबे को कागजों पर बढ़ाया बल्कि आपदा की स्थिति में पीडि़त किसानों की संख्या भी बढ़ा दी। ऐसा इसलिए भी किया गया ताकि आपदा के दौरान केन्द्र सरकार से ज्यादा से ज्यादा मुआवजा लिया जा सके। इसका परिणाम अब यह होगा कि सरकार को अधिक से अधिक किसानों का बीमा कराना होगा। जितने कम किसान बीमा योजना में भाग लेंगे बीमा कंपनी उतना ज्यादा प्रीमियम वसूलेगी।
बता दें कि मप्र में इस वर्ष 2187 करोड़ और पिछले साल 4300 करोड़ रुपए किसानों को बांटे गए। एक अप्रैल से प्रभाव में आने वाली नई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों द्वारा भरी जाने वाली प्रीमियम की राशि बढ़कर 2000 करोड़ रुपये होने की संभावना है। इसके साथ ही केंद्र 8800 करोड़ रुपये मुहैया कराएगा। इतना ही राज्यों की ओर से मिलने की उम्मीद है। इस प्रकार प्रीमियम की कुल राशि 19600 करोड़ रुपए हो जाएगी। कहां पहले बीमा कंपनियों को 7000 करोड़ रुपये मिल रहे थे, लेकिन अब 19600 करोड़ रुपये मिलेंगे। ऐसे में यह योजना किसानों के बजाए बीमा कंपनियों के लिए गेम चेंजर जरूर है। अगर मध्यप्रदेश के नजरिए से देखें तो यहां वर्ष 2016-17 के बजट में कृषि के लिए 2448 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है। इसी में से किसानों के बीमें का प्रीमियम दिया जाएगा।
अभी कर्ज लेने वाले किसानों के लिए फसल बीमा लेना जरूरी है। नई योजना सभी किसानों के लिए होगी। पूरे राज्य में कोई एक ही बीमा कंपनी स्कीम लागू करेगी। अभी दो फसल बीमा योजना लागू हैं। वर्ष 1999 में लागू राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना और 2010 में लागू संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना। पुरानी योजना में प्रीमियम रेट 15 प्रतिशत है, लेकिन ज्यादा जोखिम वाले इलाकों में यह 57 प्रतिशत तक हो जाता है। इसलिए सिर्फ 23 प्रतिशत किसानों ने इसका फायदा लिया। सरकार के फैसले को ऐसे समझिए। अगर बीमित राशि 1,00,000 रुपए है तो प्रीमियम रेट 10 प्रतिशत यानी 10,000 रुपए होगा। जिसमें केंद्र सरकार 4 प्रतिशत यानी 4,000 रुपए देगी और राज्य सरकार 4 प्रतिशत यानी 4,000 रुपए देगी। इसके तहत किसान को 2 प्रतिशत यानी 2,000 रुपए देना होगा। यानी इस योजना में राज्य सरकारों को अपने बजट से किसानों का प्रीमियम भरना होगा।
नई स्कीम में फसल तैयार होने के बाद भी नुकसान की भरपाई होगी। अभी तक सरकारी सब्सिडी की ऊपरी सीमा तय होती थी। नुकसान की पूरी भरपाई नहीं होती थी। नई स्कीम में पूरी बीमित राशि दी जाएगी। अब इस बात पर विचार करते हैं कि यह योजना किसानों के लिए कैसे काम करेगी? इस योजना के तहत किसान बीमा राशि का रबी फसलों के लिए 1.5 फीसदी, खरीफ फसलों के लिए दो फीसदी और बागवानी फसलों के लिए पांच फीसदी रकम प्रीमियम के रूप में भुगतान करेंगे। इससे पहले राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एनएआइएस) के तहत किसान बीमा राशि का गेंहू के लिए 1.5 फीसदी और रबी फसलों के लिए दो फीसदी रकम प्रीमियम के रूप में भर रहे थे। मानसून के महीने में खरीफ फसलों जैसे धान और दलहन के लिए 2.5 फीसदी, लेकिन जोखिम वाले बाजारा और तिलहन के लिए प्रीमियम की राशि 3.5 फीसदी थी। वहीं बागवानी फसलों के लिए प्रीमियम की राशि फसल की प्रकृति और क्षेत्र के आधार पर तय की जाती थी। नई फसल बीमा योजना में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं है, लेकिन बीमा की प्रीमियम राशि में एकरूपता एक अच्छा कदम है। बैंक कर्मियों ने बताया है कि बीमा कंपनियां एक सीजन में सिर्फ एक बार प्रीमियम का हिस्सा लेने के लिए ही बैंक आती हैं। नई फसल बीमा योजना को भी इन्हीं बीमा कंपनियों के हवाले किया जाएगा। दरअसल प्रीमियम की लागत के कारण किसान फसल बीमा के प्रति अनिच्छा जाहिर नहीं करते। उनकी इसमें अरुचि की बड़ी वजह यह है कि फसल खराब होने के बाद बीमा के लिए दावा करने की प्रक्रिया काफी जटिल और दोषपूर्ण है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में भी एक गांव या गांव पंचायत को बीमा इकाई के रूप में दर्शाया गया है। इसका अर्थ हुआ कि ओलावृष्टि या आंधी से तबाह हुए एक किसानों के नुकसान की भरपाई करने के बजाय एक पूरे गांव में फसल उत्पादन में औसत हानि के आधार पर उनको दी जाने वाली मुआवजा की राशि तय होगी। किसानों का फसल बीमा से दुराव होने की मुख्य वजह यही है।
जिस तरह एक आवासीय कॉलोनी में किसी एक घर में आग लग जाती है तो मालिक को उसके दावे के आधार पर भुगतान होता है। कृषि क्षेत्र में भी यही तरीका क्यों नहीं अपनाया जाना चाहिए? आखिरकार कुल बीमा का साठ फीसदी पूरे देश में जोखिम वाले पचास जिलों में ही किया जाता है। देश में ग्यारह बीमा कंपनियां इस कारोबार में शामिल हैं। ऐसे में इन कंपनियों को प्रत्येक किसान के जोतों के नुकसान का आंकड़ा जुटाने के निर्देश क्यों नहीं दिए जा सकते हैं? इन पचास जिलों में इसकी शुरुआत की जाए तो प्रत्येक कंपनी हर पांच गांव के हरेक खेत में नुकसान का आंकड़ा जुटा सकती है। वास्तव में बीमा कंपनियों को प्रत्येक खेत में नुकसान की भरपाई करने का आदेश नहीं दिया जाना संदेह का असली कारण है। व्यावहारिकता की कसौटी पर देखें तो नई योजना पहले से चली राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना की रीपैकेजिंग है। एनएआइएस योजना 18 राज्यों में चलाई जाती है। अधिकांश समस्याएं कुछ साल पहले संशोधित राष्ट्रीय फसल बीमा योजना की शुरुआत के साथ ही चली आ रही थीं। अधिकतर राज्य जिन्होंने एमएनएआइएस को अपनाया अब उससे हाथ खींच चुके हैं।
फसलों के नुकसान का आकलन करने के लिए तकनीक का उपयोग निश्चित रूप से एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन सिर्फ ड्रोन और स्मार्ट फोन के जरिये क्षति की सही तस्वीर सामने नहीं आ सकती। नुकसान की गणना जमीनी स्तर ही करनी पड़ती है। फसलों की कटाई करने का प्रयोग नुकसान का आकलन करने का एक अच्छा तरीका है। इसमें औचक तौर पर एक निश्चित क्षेत्र में फसलों की कटाई कर संभावित पैदावार और वास्तविक पैदावार के अनुपात के जरिये नुकसान का आकलन किया जाता है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों को बहुत उम्मीदें थीं। 2015 में आई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण राज्य में बड़ी मात्रा में फसलें तबाह हो गईं। जिसके परिणामस्वरूप कई किसानों ने आत्महत्या कर ली थी। ऐसे में कृषक समाज काफी उत्सुकतावश नई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को बड़ी उम्मीद भरी नजरों से देख रहा था। हालांकि नई फसल बीमा योजना को लीक तोडऩे वाला बताने और सरकार की ओर से भी उसे गेम चेंजर कहने के बाद जब इसकी गहराइयों में गया तब निराशाजनक तस्वीर सामने आई। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना निश्चित रूप से बीमा कंपनियों के लिए बड़ा उपहार है, लेकिन किसानों के दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह एक झुनझुने से ज्यादा नहीं है। सबसे पहले इस बात की पड़ताल करते हैं कि बीमा कंपनियां इससे किस तरह मालामाल होंगी। वर्ष 2015 में बीमा कंपनियों ने किसानों से प्रीमियम के रूप में 1500 करोड़ रुपये कमाई की और इसके अतिरिक्त केंद्र और राज्यों की ओर से सब्सिडी के रूप में उन्हें 5500 करोड़ रुपये मिले। इस प्रकार उन्हें कुल सात हजार करोड़ रुपये हासिल हुए।
नई योजना का क्या है दावा?
नई फसल बीमा योजना से दावा किया जा रहा है कि जोखिम वाली खेती पूरी तरह सुरक्षित हो जाएगी। योजना से देश के कम से कम आधे इलाके की फसलों को कवरेज मिलने की उम्मीद है। इसके अलावा अभी तक सरकारी सब्सिडी की ऊपरी सीमा तय होती थी। इसके चलते किसानों के नुकसान की पूरी भरपाई नहीं हो पाती थी। इन बीमा योजना में पूरी बीमित राशि किसानों को दी जाएगी। इसके कारण सरकार ने फसल बीमा को मौजूदा 23 फीसदी रकबे से बढ़ाकर 50 फीसदी तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है।
नई योजना में किसानों को खरीफ की फसल के लिए 2 फीसदी और रबी की फसल के लिए 1.5 फीसदी प्रीमियम देना होगा। वहीं बागवानी के लिए प्रीमियम 5 फीसदी होगा। बचा हुआ प्रीमियम राज्य और केंद्र सरकार आपस में बराबर-बराबर बांटकर भरेंगी। नई योजना में किसानों को कम प्रीमियम देना होगा और क्लैम ज्यादा मिलेगा। सरकार ने पिछली योजना से प्रीमियम पर लगाई गई सीमा को हटा दिया है। साथ ही क्लैम का 25 फीसदी तुरंत किसानों के खाते में जमा हो जाएगा। अब तक बीमा की रकम मिलने में बहुत देरी होती थी। नई स्कीम सभी किसानों पर लागू होगी चाहे उन्होंने बैंक से लोन लिया है या नहीं। जिन किसानों ने बैंक से कर्ज नहीं लिया है वो फसल बोने की शुरूआत के समय ही संबंधित इलाके के सरकारी बैंक में जाकर प्रीमियम की रकम जमा करवा सकते हैं।
नई सरकार द्वारा काफी विचार-विमर्श के बाद लागू की जा रही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना निश्चित ही किसानों के कल्याण की दिशा में एक बड़ा कदम है, क्योंकि इसमें उन सभी जोखिमों को शामिल करने की कोशिश की गई है, जिनकी वजह से किसानों को अपनी बोई गई और लहलहाती फसल से हाथ धोना पड़ता है, और बिना किसी उचित राज-सहायता के कर्ज में डूबकर आत्महत्या करने को विवश होना पड़ता है। योजना के तहत किसानों द्वारा जमा किए जाने वाले प्रीमियम के बोझ को कम करने के लिए, इनकी दरों को पूर्ववर्ती सरकार द्वारा वर्ष 2013 में लागू किए गए राष्ट्रीय फसल बीमा कार्यक्रम के तहत निर्धारित खुली दरों के पायदानों के बदले एक न्यूनतम स्तर पर फिक्स कर दिया गया है।
सरकारी सहायता के दायरे को बढ़ाकर पहले की योजना के तहत दी जा रही राजसहायता के सीमित प्रतिशत के स्थान पर अवशेष समस्त प्रीमियम के बराबर की राजसहायता देने की व्यवस्था की गई है। इसी के साथ ही पुरानी योजना के तहत लागू प्रीमियम के परिसीमन (कैपिंग) को भी समाप्त कर दिया गया है। कारण, उससे प्रिमियम कैप से ज्यादा होने की दशा में जोखिम का कवरेज वास्तविक बीमित राशि की तुलना में कैप के अनुरूप आनुपातिक रूप से घटा दिया जाता है। यह उदार वित्तीय व्यवस्था मौसम आधारित फसल बीमा के लिए भी की गई है तथा इस उपयोजना के तहत जहां पहले केवल सीमित संख्या में रबी सीजन की अधिसूचित फसलों को ही शामिल किए जाने की व्यवस्था थी, वहां अब दलहनी फसलों सहित सभी तरह की खाद्यान्न-फसलों, तिलहनी फसलों व समस्त सालाना वाणिज्यिक व बागवानी फसलों को शामिल कर लिया गया है।
यही नहीं, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बीमा कंपनियों को फसल के नुकसान की रिपोर्टंिग सरल बनाने के लिए किसानों के स्तर पर आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी व मोबाइल फोन तकनीक के उपयोग को बढ़ावा देने
के लिए भी राज्यों को अलग से वित्तीय
सहायता प्रदान करने की भी व्यवस्था है। निश्चित ही इस नई योजना से देश के किसानों में बड़ी उम्मीदें जगेंगी।
कितना प्रीमियम भरेंगे किसान?
अनाज एवं तिलहन फसलों के बीमा के लिए अधिकतम दो प्रतिशत प्रीमियम रखा गया है। बागवानी व कपास की फसलों के लिए अधिकतम पांच प्रतिशत प्रीमियम रखा गया है। रबी के अनाज एवं तिलहन फसलों के लिए डेढ़ प्रतिशत, जबकि खरीफ के अनाज तथा तिलहन के लिए दो प्रतिशत प्रीमियम राशि देनी होगी। बाकी प्रीमियम केंद्र और राज्य सरकारें बराबर-बराबर देंगी। कम से कम 25 प्रतिशत क्लेम राशि सीधे किसानों के बैंक खाते में आएगी। शेष राशि भी 90 दिनों के भीतर मिल जाएगी। अभी कर्ज लेने वाले किसानों के लिए फसल बीमा लेना जरूरी है। नई योजना सभी किसानों के लिए होगी। इतना ही नहीं प्राकृतिक आपदा की वजह से बुवाई न होने पर भी किसानों को बीमा राशि मिलेगी। फसल कटने के 14 दिन तक अगर फसल खेत में है और कोई आपदा आती है तो नुकसान होने पर बीमा का लाभ मिलेगा। योजना पर साल में 17,600 करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान है। इसमें से 8,800 करोड़ रुपये केंद्र सरकार देगी, जबकि इतनी ही राशि राज्य सरकारें देंगी।
क्लैम कैसे निर्धारित होगा
मा न लीजिए किसी किसान का बैंक में
2 लाख रुपए का किसान क्रेडिट कार्ड का लोन है। तो उसे खरीफ की फसल के लिए 5 हजार प्रीमियम देना है। अगर 50 फीसदी फसल का नुकसान हुआ है तो किसान को 1 लाख रुपए का इंश्योरेंस क्लैम मिलेगा। अब तक इस क्लैम पर प्रीमियम के आधार पर सरकार ने सीमा लगा रखी थी। इसलिए किसानों को कम क्लैम मिल रहा था। फसल के नुकसान के आकलन के लिए सरकार ने अब टेक्नोलॉजी का उपयोग भी जरूरी कर दिया है। राष्ट्रीय किसान आयोग (एनसीएफ) ने 2006 में पूरे देश में फसल बीमा को लागू किए जाने की सिफारिश की थी। इसके अलावा आयोग ने प्रीमियम दरों में भी कटौती करने की सिफारिश की थी। एनसीएफ को स्वामीनाथन आयोग के नाम से भी जाना जाता है। जाहिर है इस आयोग की सिफारिशों को अभी तक लागू नहीं किया जा सका है। आयोग ने फसलों को हुए नुकसान का आकलन करने के दौरान प्रखंड की बजाय गांवों को ईकाई बनाए जाने की सलाह दी थी। हालांकि इस सिफारिश को लागू नहीं किया जा सका है। कृषि के क्षेत्र में मौजूद समस्या की प्रकृति को देखते हुए इससे निपटने के लिए चौतरफा नीति की जरूरत होगी।
कई खामियों को जस का तस परोस दिया गया
भूमि अधिग्रहण में प्रस्तावित संशोधन को लेकर अपना हाथ जला चुकी मोदी सरकार ने इस बार किसानों का दिल जीतने के लिए नई फसल बीमा योजना को मंजूरी दी है जिसमें प्रीमियम बोझ को कम कर दिया गया है। विश्लेषकों के मुताबिक नई योजना मौजूदा योजना से बेहतर तो है लेकिन इसमें कई खामियां को जस का तस छोड़ दिया गया है। मसलन फसल के नुकसान का आकलन और पूरे देश में योजना को लागू नहीं किए जाने के फैसले पर विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं। सरकार के मुताबिक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के कल्याण की दिशा में की गई ऐतिहासिक पहल है। फसलों को होने वाला नुकसान और बेकार की बीमा योजना अभी तक की बड़ी चिंता रही है। नई योजना की मदद से इन खामियों को दुरुस्त करने की कोशिश की गई है। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार उसमें अभी भी कई खामियां हैं। सरकार की सब्सिडी की कोई ऊपरी सीमा तय नहीं की गई है। अगर बैलेंस प्रीमियम 90 फीसदी होती तो भी इसका भुगतान सरकार को ही करना होगा। जबकि मौजूदा योजना में छोटे और मझोले किसानों के लिए 50 फीसदी सब्सिडी की सीमा तय की गई थी और इसे केंद्र और राज्य सरकार बराबर साझा करती हैं। नई योजना में प्रीमियम दरों को लेकर कोई सीमा तय नहीं की गई है। किसानों को उनके दावे की पूरी रकम मिलेगी जबकि मौजूदा योजना में प्रीमियम दर की एक सीमा तय की गई थी। इस वजह से किसानों को उनके दावे की पूरी रकम से कम का भुगतान किया जाता था। नई योजना के तहत स्मार्ट फोन की मदद से फसलों की कटाई की तस्वीर खींच कर अपलोड की जाएगी और इस कारण किसानों के दावे को तेजी से निपटाया जा सकेगा। इसके अलावा रिमोट सेंसिंग तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाएगा। जबकि मौजूदा योजना में यह काम कर्मचारियों की निगरानी की मदद से किया जाता था जिसमें लंबा समय लगता था। अतएव, प्रधानमंत्री कृषि बीमा योजना का पहले जैसा हश्र न हो और यह किसानों की दशकों की उम्मीदों पर खरी उतरे, इसके लिए अब इसे यथानियोजित समयबद्ध रूप से लागू करने के लिए केंद्र और व राज्यों की सरकारों को कमर कसकर ही मैदान में उतरना होगा।