31-Mar-2016 08:28 AM
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छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित झीरम घाटी कांड एक बार फिर से चर्चा में है। इसकी चर्चा की वजह दो वजह है। पहली यह की इस कांड के पीछे कोई राजनीतिक साजिश बताई जा रही है और दूसरी यह की सरकार ने इस कांड की जांच सीबीआई से
कराने की बात कही है। इससे प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया है। हर तरफ एक ही सवाल उठ रहा है कि झीरम घाटी कांड की सीबीआई जांच की जरूरत आखिर तीन साल बाद क्यों पड़ी? छत्तीसगढ़ विधानसभा में भी इस मामले की सीबीआई जांच की घोषणा के बाद सबसे बड़ा यही सवाल उभरकर सामने आया है। सूबे के मुखिया डॉ. रमन सिंह ने इस सवाल के जवाब में केवल यही कहा है कि अब तक एनआईए मामले की जांच कर रही थी, यह जांच पूरी होने के बाद अब लगता है कि मामले से जुड़ा कोई तथ्य सामने नहीं आया है तो वह सीबीआई जांच से सामने आ जाएगा।
सरकार को कभी किसी जांच से परहेज नहीं रहा, लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि कहीं सीबीआई जांच के आदेश का संबंध सीडी मेकर फिरोज सिद्दीकी के उस दावे से तो नहीं है, जिसने हाल ही में यह दावा किया है वह झीरम घाटी कांड की सीडी जारी करेगा और देश की सबसे बड़ी राजनीतिक साजिश को उजागर करेगा। हाल ही में उजागर हुए छत्तीसगढ़ के चर्चित अंतागढ़ टेप कांड के सूत्रधार माने जाने वाले फिरोज के इस दावे को लेकर प्रदेश के राजनीतिक हल्कों में खासी सरगर्मी है। यह भी माना जाता है कि इस व्यक्ति के पास कई बड़े राजनेताओं के काले कारनामे से भरी सीडीए ऑडियो-वीडियो भी है। अंतागढ़ कांड से पहले भी वह सनसनी फैलाने वाले टेप जारी कर चुका है। इधर पिछले दिनों इस संवाददाता से बातचीत में फिरोज ने दावा किया था कि उसके पास झीरम घाटी से संबंधित टेप है, वह इसे उजागर करने की तैयारी में है। लेकिन ऐसा करने से पहले वह दिल्ली जाकर सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर जज से यह सलाह लेने की कोशिश में है कि यह टैप किस तरीके से उजागर किया जाए? क्या यह टेप सबूत बन सकता है? इस टेप से जुड़े कानूनी पहलू क्या हो सकते हैं? यह टेप जारी करना उचित होगा या नहीं? फिरोज ने ये सारी बातें किस मकसद से कहीं, यह तो साफ नहीं है, लेकिन वह अपने इस दावे पर कायम है कि उसके पास झीरम से जुड़े सुबूत मौजूद हैं।
वहीं दूसरी तरफ मरवाही विधायक अमित जोगी कहते हैं कि अंतागढ़ टेप कांड में किसी को सुपारी देकर मेरी राजनीतिक हत्या का प्रयास किया गया है। बिना किसी जांच के बिना कुछ साबित हुए, केवल आरोपों के आधार पर हमें बदनाम किया गया। हमारी सहनशीलता की भी सीमा है। वह कहते हैं कि अब अगर किसी ने हमें फंसाने की कोशिश की तो छत्तीसगढ़ में जो हमारा अपार जनाधार है वो साजिशकर्ताओं का राजनीतिक अस्तित्व मिटा देगा।
अमित जोगी कहते हैं कि महामंत्री पद का लालच, पैसे का प्रलोभन, पत्रकारिता का दुरुपयोग, पद का दुरुपयोग, एक सजायाफ्ता मुजरिम, सारे मसाले हैं इस पिक्चर में। हमारे विरोधी हमारे खिलाफ चाहे कितने भी टैप, वीडियो, डीवीडी, सीडी, मूवी, प्रोड्यूस करें, डायरेक्ट करें और रिलीज करें। उनकी ये पिक्चर छत्तीसगढ़ में नहीं चलने वाली। वह कहते हैं कि पुलिस से जांच, एसआईटी से जांच, इससे जांच, उससे जांच, हम तो सीबीआई से जांच कराने की मांग करते हैं। तथाकथित टेप केवल एक राजनीतिक साजिश है और कुछ नहीं। अगर अभी इस सदन में गुप्त मतदानÓ की व्यवस्था करा दिया जाए तो सदन में मौजूद 98 फीसदी विधायक इसके खिलाफ वोट देंगे। दो फीसदी विधायक क्यों इसका समर्थन करेंगे, ये बताने की जरूरत नहीं है।
गौरतलब है की झीरम कांड को लेकर शुरू से कहा और माना जा रहा है कि यह महज नक्सली वारदात न होकर एक राजनीतिक साजिश का मामला है। एनआईए ने मामले की पूरी जांच कर चालान भी पेश कर दी है, लेकिन अब तक यह रहस्य अनसुलझा है कि क्या यह नक्सली हमला था या राजनीतिक साजिश।
कई रहस्य अभी भी बरकरार
तीन साल पहले 25 मई, 2013 को छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने देश के सबसे बड़े नरसंहार को अंजाम दिया था। आज भी रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका है। हालांकि नरसंहार के बाद एनआईए और न्यायिक जांच तो हुई, लेकिन अभी भी कई रहस्य बरकरार हैं। 25 मई 2013 को दरभा के झीरम घाटी में 25 गाडिय़ों से निकले 200 कांग्रेसी कार्यकर्ताओं पर 300 से अधिक माओवादियों ने हमला किया था, जिसमें मारे गए 32 लोगों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल, तत्कालीन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार, दिनेश पटेल और योगेंद्र शर्मा आदि शामिल थे। वहीं 38 लोग घायल हो गए थे। इस नरसंहार के बाद झीरम घाटी की घटना के लिए सरकार ने जांच आयोग का गठन किया था। इसके नोडल अधिकारी आईपीएस दिपांशु काबरा बनाए गए थे। उन्होंने 200 पन्नों के दस्तावेज के साथ 8-10 गवाहों के नाम भी जांच आयोग के सामने रखे थे। अभी तक 50 लोगों की गवाही के बाद एक ही बात सामने आ रही है कि सुरक्षा में चूक के चलते यह वारदात हुई थी। नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश को घटनास्थल से दूर ले जाकर गोली मारने, विद्याचरण शुक्ल की क्रास फायरिंग में मौत, कुछ लोगों को नक्सलियों द्वारा छोड़ देना भी अभी तक अनसुलझा है।
-रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला