31-Mar-2016 10:07 AM
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हरियाणा के जाटों को आरक्षण मिलने और राज्य में भी भरतपुर-धौलपुर को छोड़ कर बाकी जगह जाटों को आरक्षण हासिल हो जाने का असर दूसरी जातियों खासकर ब्राह्मण-राजपूतों पर भी देखा गया। खासतौर पर राजपूतों ने इस दिशा में

पहल की। राजपूतों के कद्दावर कहे जाने वाले नेता देवी सिंह भाटी और लोकेंद्र सिंह कालवी ने सामाजिक न्याय मंच का गठन किया, जिसके जरिए उन्होंने राजपूतों समेत दूसरी सवर्ण जातियों के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग रखी।
दरअसल, राजस्थान में आरक्षण को लेकर चर्चा से पहले यहां आरक्षण की चाह रखने वाली जमात की स्थिति और समीकरणों के बारे में भी जानना जरूरी है। सरसरी तौर पर देखा जाए, तो भले ही जाट समुदाय की आरक्षण की मांग और गुर्जरों की मांग के बीच कोई लिंक दिखाई न देता हो, लेकिन यह कटु और प्रमाणित तथ्य है कि राजस्थान के सर्वाधिक हिंसक आंदोलनों के इतिहास में अंकित हो चुके गुर्जर आंदोलन की वजह दरअसल जाट आंदोलन की कोख से ही निकली है। इसलिए एक बार फिर से राजस्थान में धौलपुर-भरतपुर के जाटों के अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण का मुद्दा फिर गरमा गया है। इस मामले में कांग्रेस और भाजपा के नेता आमने-सामने हो गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो आरक्षण व्यवस्था पर वसुंधरा सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि सरकार जनता को भ्रमित करने में लगी है। पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत काकहना है कि सवर्णों को 14 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था देना उनकी सरकार का फार्मूला था। इसके लिए हमने केंद्र सरकार को संविधान में संशोधन करने के लिए पत्र भी लिखा था। पर मौजूदा वसुंधरा सरकार आरक्षण को लेकर बार-बार बिल ला रही है, जो सही नहीं है। उन्होंने कहा कि आरक्षण के मामले मेंं वसुंधरा सरकार गलत परंपरा डाल रही है। सरकार को पता है कि जिस तरह की आरक्षण व्यवस्था को लेकर बिल लाया जा रहा है, उसे लागू नहीं करवाया जा सकता है। सरकार प्रदेश की जनता को भ्रमित करने के लिए इस तरह के कदम उठा रही है जो यह परंपरा सही नहीं है।
भरतपुर-धौलपुर के जाटों को ओबीसी में आरक्षण के मसले पर पिछले दिनों भरतपुर में हुई रैली में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बयान के बाद तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अशोक परनामी भी मैदान में आ गए हैं। पायलट ने भरतपुर में इस मुद्दे पर कहा था कि आरक्षण में देरी के लिए भाजपा सरकार जिम्मेदार है। पायलट ने कहा था कि कांग्रेस इस मुद्दे को विधानसभा में उठाएगी। इसके बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष परनामी और संसदीय कार्य मंत्री राजेंद्र राठौड़ ने सरकार का पक्ष रखा। परनामी का कहना है कि जब कांग्रेस सत्ता में थी तब क्यों नहीं भरतपुर-धौलपुर के जाटों को आरक्षण देने के कदम उठाए गए। कांग्रेस बेवजह इस मामले को राजनीतिक तूल देने में लगी है। इस मामले में राठौड़ का कहना है कि सरकार ने इस मामले में संवेदनशीलता बरतते हुए ही ओबीसी आयोग का गठन किया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही इस मामले का निपटारा हो जाएगा।
इस बीच राज्य के भरतपुर और धौलपुर इलाकों के जाट समय-समय पर अपने समुदाय को आरक्षण दिए जाने की मांग उठाते रहे, लेकिन उन्हें कभी गंभीरता से नहीं लिया गया। हालांकि, इस दौरान एक बड़ा बदलाव यह हुआ कि धौलपुर-भरतपुर के जाटों की मांगों के साथ हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली समेत आठ अन्य राज्यों के जाट भी जुड़ गए। हरियाणा के जाटों के आंदोलन के साथ ही अंतिम के दो-तीन दिनों में भरतपुर और धौलपुर के जाट भी जुड़ गए। उन्होंने खासतौर से भरतपुर-मथुरा रेलखंड और आगरा-जयपुर रोड को निशाने पर लिया। हरियाणा के आंदोलनकारियों की ही तर्ज पर उन्होंने आंदोलन को हिंसक बनाने की भी कोशिश की, नतीजे में हेलक स्टेशन के पास खड़ी एक मालगाड़ी के इंजन में आग लगा दी गई, जबकि एक अन्य स्टेशन को तो उन्होंने तहस-नहस ही कर डाला। हरियाणा में जाट आंदोलन के थमते ही राजस्थान सरकार ने भी बातचीत की पहल कर दी। जाट आंदोलनकारियों ने मांग रखी कि ओबीसी कमीशन को विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने से पहले ही भरतपुर भेजा जाए। साथ ही ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जाए। सरकार ने उनकी मांगें मान लीं और फिलहाल भरतपुर-धौलपुर के जाटों ने आंदोलन वापस ले लिया।
सुगबुगाहट नए आंदोलन की
हरियाणा के जाटों को आरक्षण मिलने और राज्य में भी भरतपुर-धौलपुर को छोड़ कर बाकी जगह जाटों को आरक्षण हासिल हो जाने का असर दूसरी जातियों खासकर ब्राह्मण-राजपूतों पर भी देखा गया। खासतौर पर राजपूतों ने इस दिशा में पहल की। राजपूतों के कद्दावर कहे जाने वाले नेता देवी सिंह भाटी और लोकेंद्र सिंह कालवी ने सामाजिक न्याय मंच का गठन किया, जिसके जरिए उन्होंने राजपूतों समेत दूसरी सवर्ण जातियों के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग रखी। अब यूं तो सामाजिक न्याय मंच भंग हो चुका है। देवी सिंह भाटी भाजपा में शामिल हो चुके हैं और विधायक भी हैं, लेकिन इसके बावजूद ताजा घटनाक्रम से एक बार फिर खासतौर से राजपूत समुदाय में आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग फिर से जोर पकड़ती दिखाई दे रही है। फरवरी का अंतिम सप्ताह मानों राजस्थान में आरक्षण की कशमकश को लेकर भविष्य में होने वाली खींचतान का संकेत ही दे गया, जब बाड़मेर-बीकानेर इलाके में करणी सेना और कुछ राजपूत संगठनों के माध्यम से राजस्थान के राजपूतों ने भी अपने लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग करके हजारों की तादाद में रैली निकाली।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी