31-Mar-2016 09:35 AM
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कभी उधार पैसे लेकर सब्जियां बेचने वाले छगन भुजबल ने राजनीति के सहारे काली कमाई का ऐसा पहाड़ खड़ा किया की वह कईयों की आंख में चुभने लगी। ईष्र्या और लालच उनके लिए अभिशाप बन गए। न उनकी पार्टी, न उनका

राजनीतिक कौशल, न उनकी जाति और न ही व्यवस्था को अपने हाथों में रखने की उनकी काबिलियत उन्हें बचा पा रही है। वो अकेले और अलग-थलग पड़े हुए हैं। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री और एनसीपी के कद्दावर नेता छगन भुजबल को प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार करेगा और उन्हें जेल जाना पड़ेगा।
काली कमाई के आरोपों से जूझ रहे महाराष्ट्र के नेता छगन भुजबल का एक अलग ही तरह का व्यक्तित्व रहा है। मुंबई की सड़क पर सब्जी बेचते-बचते छगन भुजबल कब महाराष्ट्र के कद्दावर नेता बन गए, ये शायद किसी सक्सेस स्टोरीÓ से कम नही है। मुंबई के माझगांव में शिवसेना के शाखा प्रमुख से लेकर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री तक का सफर, राजनीति में यशस्वी होने की कोशिश करने वाले किसी भी राजनीतिक कार्यकर्ता के लिए सीखने लायक है। महाराष्ट्र के दो बड़े नेता शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे और मराठा स्ट्रॉन्गमैन शरद पवार दोनों के साथ नजदीकी से काम करने का अनुभव महाराष्ट्र में शायद ही किसी को मिला होगा।
भुजबल का मुंबई की सब्जी मंडी के एक सब्जी बेचने वाले परिवार से ताल्लुक है। इसलिए वो इस शहर की गरीबी, झुग्गी-झोपड़ी, गंदगी और प्रदूषण से अच्छी तरह से वाकिफ थे लेकिन वो मराठा नहीं थे बल्कि ओबीसी समुदाय से थे। महाराष्ट्र में करीब 35 फीसदी मराठा आबादी है और उन्हें स्वभाविक रूप से राज्य का शासक वर्ग समझा जाता है। माटुंगा में एक इंजीनियरिंग छात्र भुजबल ने शिवाजी पार्क में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की एक रैली अटैंड की थी, जहां वे सेना चीफ के भाषण से काफी प्रभावित हुए और उसके बाद शिवसेना ज्वाइन करने का फैसला किया। साल 1973 में ठाकरे ने उनकी बीएमसी पार्षद बनने में मदद की। उसके बाद वे दो बार मेयर भी रहे। 1985 में मझगांव से शिवसेना विधायक बने और दो बार जीते। लेकिन बाद में शिवसेना में रहते हुए उन्हें चीजें कुछ अपने मुताबिक नहीं लग रही थी। 1991 में मंडल आंदोलन अपने चरम पर था तो यह कहते हुए कि पार्टी छोड़ दी कि शिवसेना ओबीसी आरक्षण के खिलाफ है। उसके बाद उन्होंने अपने आपको बतौर ओबीसी नेता पेश किया, लेकिन जो उन्हें जानते हैं उनका कहना है कि उनके पार्टी छोडऩे की मुख्य वजह थी कि वे महसूस कर रहे थे कि उन्हें साइडलाइन कर दिया गया है। भुजबल ने तब सत्ता के लिए दूसरा रास्ता अख्तियार करने का फैसला लिया। राजनीतिक ताकत और गठजोड़ पैसे से कायम रखा जा सकता है। वो यह नहीं कह सकते हैं कि उनके साथ धोखा हुआ है क्योंकि उन्होंने सत्ता और पैसा धोखे से ही हासिल की थी। एनसीपी के सबसे बड़े ओबीसी चेहरे के रूप में फेमस भुजबल कभी बाला साहब के बेहद करीब हुआ करते थे। पुलिस से बचने के लिए वे वेश बदलकर बालासाहब से मिलने जाया करते थे।
वो बाला साहब ठाकरे के प्रिय थे और अगर किस्मत साथ देती तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी बन सकते थे। लेकिन या तो राजनीति को ठीक से नहीं समझ पाने के कारण या फिर शरद पवार की चालाकी की वजह से उन्होंने 1991 में शिवसेना का दामन लगभग 25 साल के बाद छोड़ दिया। शरद पवार जैसे राजनीति के माहिर खिलाड़ी भी भुजबल से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके थे। भुजबल ने इस बात को बड़ी ख़ूबसूरती से उनके सामने रखा कि शिवसेना में दो फाड़ हो जाएंगे और इसका फायदा कांग्रेस उठाएगी। उसी साल कांग्रेस-एसीपी गठबंधन की सरकार बनी और भुजबल को डिप्टी सीएम बनाया गया, इसके साथ ही उनके पास गृहमंत्रालय भी था। होम मिनिस्टर रहते हुए उन्होंने ऐसे कदम उठाए जिनके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। उन्होंने बाल ठाकरे को गिरफ्तार करने की अनुमति दी।
69 वर्षीय भुजबल को प्रवर्तन निदेशालय(ईडी) द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप में 14 मार्च को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर आरोप है कि 2004-14 तक कांग्रेस-एनसीपी की सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री रहते हुए उन्होंने भ्रष्टाचार किया था। उन्होंने पैसा कमाने के लिए सारे हथकंडे अपनाए थे। 90 के दशक के आखिरी में राजनीति में पैसे की अहमियत बहुत बढ़ गई थी। छगन भुजबल ने पैसा इक_ा करने के लिए राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल शुरू कर दिया। यह बिल्कुल साफ है कि बिना राजनीतिक संरक्षण के वे इतना पैसा नहीं कमा सकते थे।
बांद्रा में खड़ी मुंबई एजुकेशन ट्रस्ट की विशाल इमारत भुजबल की बिजनेस साम्राज्य की गवाही देती है। जहां बिजनेस मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग और फार्मेसी सहित कई कोर्स करवाए जाते हैं। यह ट्रस्ट नासिक में भुजबल नोलेज सिटी भी चलाता है, जिसके चार कॉलेज चलते हैं। भुजबल परिवार का घर नासिक स्थित भुजबल फार्म में है। इस घर को 2012-14 में दोबारा से तैयार किया गया था, जब भुजबल पीडब्ल्यूडी मंत्री थे। ईडी ने बांद्रा में हबीब महल और सांताक्रूज में ला पेटीट फ्लियूर के नाम से अटैच की हैं, जिनकी कीमत 250 करोड़ रुपए है। हबीब महल पंकज और समीर भुजबल की थी। दूसरी इमारत प्रवेश कंस्ट्रक्शन द्वारा बनाई गई थी। पंकज और समीर इस फर्म के 2007 से 2011 तक डायरेक्टर थे। ईडी अभी मालेगांव में गिरनार सुगरकेन मील्स को अटैच करने की योजना बना रही है, जो कि भुजबल परिवार की है। यानी भुजबल ने जिस गलत तरीके से 8 सौ करोड़ से अधिक की संपत्ति बनाई है वही अब उनके लिए घातक बन गई है।
-मुंबई से बिन्दु ऋतेन्द्र माथुर