31-Mar-2016 09:28 AM
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विधानसभा में इस बजट सत्र के दौरान पेश 2013-14 की कैग रिपोर्ट में प्रदेश में खनन के खेल का खुलासा हुआ है। खनन के खेल में करीब 138.96 करोड़ की चपत सरकारी खजाने को लगी है। सरकार को यह राशि खदान मालिकों से

वसूलना थी, लेकिन अफसरशाही के खदान मालिकों से गठजोड़ के कारण सरकार को चपत लगी है। इसमें 35 जिलों में 1097 प्रकरणों में गड़बड़ी सामने आई है। रिपोर्ट बताती है कि खदान मालिकों से वसूली व टैक्स निर्धारण में गड़बड़ी की गई है। इसमें पाया गया कि खदान मालिकों से न तो ठीक से रॉयल्टी वसूल की गई न ही सड़क बनाने के लिए निर्धारित टैक्स लिया गया। नियमानुसार खदान लेने पर संबंधित क्षेत्र में सड़क विकास के लिए 4000 रुपए प्रति हैक्टेयर प्रतिवर्ष की दर से टैक्स देना होता है। छिंदवाड़ा, दमोह, नरसिंहपुर, नीमच, सीधी और टीकमगढ़ में इसमें गड़बड़ी हुई। इसमें 6.47 करोड़ के खिलाफ महज 5.67 लाख रुपए दिए गए। इससे 6.41 करोड़ कम वसूले गए। जिला खनिज कार्यालय के स्तर से यह राशि वसूली ही नहीं गई।
खदानों के पट्टे खदान मूल्य पर आधारित रहते हैं, लेकिन यह पाया गया कि सौ रुपए के स्टाम्प पर करोड़ों की खदान के एग्रीमेंट हो गए। इसमें जुलाई-2013 में चार ठेकेदारों से 45.81 करोड़ का रेत खदानों का अनुबंध सौ रुपए पर हो गया। इससे 4.01 करोड़ की चपत लगी। जनवरी 2013 से जनवरी 2014 के बीच इसमें एक करोड़ 79 लाख रुपए कम वसूले गए। ऐसा अनूपपुर, बालाघाट बैतूल, भोपाल, बुरहानपुर, छतरपुर, छिंदवाड़ा, धार, ग्वालियर, हरदा, हाशेगाबाद, कटनी, रायसेन, रतलाम, सागर, सतना, शहडोल, शाजापुर, सिंगरौली, उमरिया विदिशा में हुआ। खदानों से रॉयल्टी वसूलने में भी सरकार ठेकेदारों पर मेहरबान रही। जनवरी 2012 से दिसम्बर 13 के बीच 6.81 करोड़ के खिलाफ 5.83 करोड़ ही रॉयल्टी में मिले। जनवरी-2009 से दिसम्बर 2014 के बीच एक करोड़ 74 लाख के खिलाफ एक करोड़ 9 लाख ही मिले। कुल मिलाकर एक करोड़ 63 करोड़ कम वसूले गए। लेटेराइट, लौह अयस्क, मैग्नीज के मूल्य में भी 13.7 लाख कम वसूले।
कोयले की राख से चपत
ताप विद्युत गृहों में कोयले की बारीकी को नियंत्रित करने के उपकरण न होने से बायलर में कोयला पूरा नहीं जल पाया। इससे 27.67 करोड़ रुपए की हानि उठाना पड़ी। री-हीटर नलियों को न बदलने से 30 करोड़ के कोयला उत्पादन में कमी आई है। विद्युत गृह एक और दो में ग्रेविमीट्रिक कोल फीडर नहीं है। इससे 63 करोड़ के कोयले का ज्यादा उपयोग करना पड़ गया। कैग ने बायलर उपकरण और फीडर की खरीदी तुरंत करने के सुझाव भी दिए हैं।
सड़क पर नहीं की वसूली
मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम ने भोपाल बायपास के निर्माण के लिए ट्रासंटरी भोपाल बायपास टोलवेज से बीओटी टोल मॉडल पर रियायत अनुबंध किया था। कंपनी ने तीनों वर्ष में रियायत पर ब्याज का भुगतान नहीं किया। निगम ने भी लापरवाही बरती। इससे 3.17 करोड़ का ब्याज नहीं मिला। कंपनी से 43.20 करोड़ वसूल नहीं किए गए हैं।
बिजली कंपनियों को घाटा
प्रदेश में 58 सार्वजनिक उपक्रमों में से 29 ने 566.51 करोड़ का लाभ अर्जित किया। 21 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने 6848.38 करोड़ रुपए का घाटा उठाया है। मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने 2113.02 करोड़, पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने 1887.15 करोड़, पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने 1810.95 करोड़ तथा मध्य क्षेत्र विद्युत उत्पादन कंपनी ने 896.82 करोड़ का नुकसान उठाया है।
स्कॉलरशिप घोटाला
मध्यप्रदेश में व्यापमं के बाद अब स्कॉलरशिप घोटाले सामने आया है। सीएजी (कैग) ने भी इस पर मुहर लगा दी है। मध्यप्रदेश विधानसभा में पेश हुई सीएजी की रिपोर्ट में तल्ख टिप्पणियां की गई हैं। सीएजी ने भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर समेत प्रदेश के 15 जिलों के 540 कॉलेजों में जांच के आधार पर बताया है कि प्रदेश में स्कॉलरशिप में गड़बडिय़ां की गईं हैं। दरअसल, प्रदेश के एससी, एसटी और पिछड़ा वर्ग को ये राशि सीधे जिलों में दी जाती है। कैग ने ये भी कहा कि वास्तविक उपयोगिता प्रमाण पत्र को जांचे बगैर ये राशि आवंटित की गई है। कई जिलों में इस तरह की शिकायत है। कई मामलों की जांच निचले स्तर पर ही चल रही है। हालांकि, राज्य सरकार ने अब तक इसमें किसी प्रदेश से किसी बड़ी जांच का ऐलान नहीं किया है। वहीं, फिलहाल घोटाले की राशि का अनुमान नहीं लगाया जा सका है।
यही नहीं कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्तीय प्रबंधन में पूरी तरह फेल हुई राज्य सरकार अपनी कमाई का अंदाजा भी सहीं नहीं लगा सकी। सरकार ने जितनी आय की उम्मीद की थी, उससे आधी भी हासिल नहीं कर पाई। नतीजा, आय से अधिक खर्च हो गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने वर्ष 2014-15 के बजट में अनुमान लगाया था कि उसे 66,479 करोड़ का राजस्व मिलेगा, लेकिन सिर्फ 29,912 करोड़ ही मिला। यह रकम सरकार के अंदाजे से 36,567 करोड़ रुपए कम थी। इतना ही नहीं खर्च का अनुमान भी सटीक नहीं रहा। वित्तीय वर्ष में सरकार ने 446.28 करोड़ रुपए अपने अनुमान से ज्यादा खर्च कर दिए। उसकी देनदारियां भी सीमा से बाहर हो गईं। इतना ही नहीं सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में पर्याप्त राशि नहीं दी। दूसरे सामान्य श्रेणी के राज्यों की तुलना में यह बहुत ही कम थी। राज्य सरकार को नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग को आकस्मिक निधि से अग्रिम 1.08 करोड़ रुपए की राशि देना पड़ी। कैग की रिपोर्ट में सरकार के वित्तीय प्रबंधन की ऐसी ढेरों खामियां निकली है।
भ्रष्टाचारियों को बचाने में जुटे रहते हैं अफसर
विधानसभा की आश्वासन समिति ने इस विभागों की इस कार्यप्रणाली की निंदा करते हुए देरी के लिए दोषियों को दंडित करने की अनुशंसा की है। शासकीय आश्वासनों संबंधी समिति के दसवें प्रतिवेदन पर समिति के सभापति राजेन्द्र पांडे ने टिप्पणी की है कि आर्थिक अनियमितता, भ्रष्टाचार, शासकीय नियमों के उल्लंघन और पद के दुरुपयोग से जुड़े मामले सदन में विधायकों द्वारा उठाए जाने और उन पर मंत्रियों द्वारा आश्वासन दिए जाने के बाद भी समय रहते कार्यवाही करने के बजाय विभागीय अधिकारी इन मामलों में दोषियों को बचाने के लिए जानबूझकर उदासीनता बरतते है। इस प्रतिवेदन में 28 विभागों के 136 आश्वासनों पर शासन द्वारा की गई कार्रवाई के परीक्षण में यह स्थिति सामने आई कि तेरह वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी तेरह विभागों के 23 मामलों में विभागों ने पूरी जानकारी नहीं भेजी। कुछ मामलों में तो प्रारंभिक जानकारी भी उपलब्ध नहीं कराई। समिति का मानना है कि सदन में विधायकों द्वारा उठाए गए मामलों पर मंत्रियों द्वारा दिए गए आश्वासनों पर कार्रवाई नहीं होंने से शासन के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों को भी हानि होती है और जनता में गलत संदेश जाता है। विभागीय जांच प्रक्रिया तथा निश्चित समयावधि में उसके निराकरण के लिए शासन के स्पष्ट निर्देश होंने के बावजूद प्रशासनिक व्यवस्था की यह गंभीर त्रुटि है कि ऐसे लंबित मामलों की सतत समीक्षा की व्यवस्था विभागों ने नहीं की है। इसी कारण सालों तक मामले लंबित रहते है और दोषी दंडित नहीं हो पाते। कई बार तो दोषी अधिकारी, कर्मचारी सेवानिवृत्त हो जाते है और कुछ की मृत्यु भी हो जाती है।
टीसीएस-इन्फोसिस को सस्ती जमीन
टीसीएस और इन्फोसिस को इंदौर में जमीन आवंटन में सरकार को 129 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है। इन्हें आवंटित भूमि की वसूली राशि 25 प्रतिशत दरों पर 174.86 करोड़ रुपए होना थी। यह जमीन केवल 46.01 करोड़ रुपए में पट्टे पर दी गई है। इस तरह 128.85 करोड़ रुपए की अतिरिक्त छूट दी गई है। यह नीति के अनुसार तय मापदंड 75 प्रतिशत के परे 93.42 प्रतिशत थी। कैग ने स्पष्ट लिखा है कि आईटी कंपनियों को सीधा लाभ दिया है।
-विशाल गर्ग