31-Mar-2016 09:24 AM
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देश में बाघों की लगातार कम हो रही संख्या के बाद 2012 में बाघों के संरक्षण की दिशा में कदम उठाते हुए उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी थी कि देश भर में बाघ अभयारण्यों के भीतरी इलाकों में कोई पर्यटन संबंधी गतिविधि नहीं

होगी। ऐसा करने से बाघों की रिहायश के आसपास की राजस्व भूमि पर वाणिज्यिक गतिविधियां नियमित हो जाएंगी और अस्तित्व के संकट का सामना कर रहे इन प्राणियों को बचाने में मदद मिलेगी। लेकिन अब चार साल बाद उच्चतम न्यायालय के उक्त निर्देश को दरकिनार करते हुए सरकार ने वन क्षेत्रों में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ाने की तैयार कर ली है। एक बात तो तय है सरकार के इस कदम से प्रदेश में पर्यटन बढ़े या न बढ़े वनों में घुसपैठ जरूर बढ़ेगी। लाजमी है घुसपैठ बढऩे से शिकार की घटनाएं भी बढ़ेगी। लेकिन शायद सरकार को इसकी चिंता नहीं है।
उल्लेखनीय है की मप्र का बजट पेश करते हुए वित मंत्री जयंत मलैया ने इसका संकेत दिया था। प्रदेश में पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देने के प्रयासों के तहत राज्य सरकार ने ईको पर्यटन के लिए वैधानिक स्वरूप देने के लिए नियम बना दिए हैं। जिसके लिए हाल ही में मप्र वन (मनोरंजन एवं वन्यप्राणी अनुभव) 2015 की अधिसूचना जारी कर दी गई है। जिसके चलते अब राज्य सरकार वन इलाकों में मनोरंजन व वन्यजीव सुविधाओं का विकास कर सकेगी। यही नहीं अब सरकार किसी भी वन क्षेत्र को मनोरंजन क्षेत्र घोषित कर सकेगी। इस नियम के दायरे में राज्य के आरक्षित वन क्षेत्रों, जो वन्य जीव सुरक्षा कानून 1972 के तहत अधिसूचित हैं, को छोड़कर सभी वन क्षेत्र शामिल होंगे। इसके तहत संभागीय अधिकारियों को ऐसी सुविधाएं विकसित करने और उसके संचालन या ऐसी गतिविधियां आयोजित करने का अधिकार होगा। सरकार का दावा है कि इन गतिविधियों के लिए करीब तीन से पांच हजार हेक्टेयर खत्म हो रहे वन क्षेत्र शामिल होंगे, जिनमें विकास कार्यों के लिए निजी क्षेत्र को शामिल किया गया है। इन वनों से बाघों के स्थानांतरण के साथ चारा भी मुहैया कराया जाएगा, ताकि जानवरों और मनुष्यों के बीच संघर्ष की स्थिति न बने। इस तरह की गतिविधियों की अनुमति केवल खत्म हो चुके वनों में दी जाएगी। भारतीय वन कानून 1927 के तहत राज्य सरकार को ऐसे क्षेत्र घोषित करने की अनुमति दी गई है। निजी क्षेत्र को वन क्षेत्र के एक हिस्से में प्रबंधन करने का काम सौंपा जा सकता है। इससे होने वाली आय का इस्तेमाल वन संरक्षण में किया जाएगा। यानी सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने की आड़ में वन क्षेत्रों को निजी हाथों में सौंपने जा रही है।
जहां एक तरफ प्रदेश में वन्य प्राणियों के शिकार के मामले बढ़ते जा रहे हैं वहीं सरकार के इस कदम से पर्यावरणविद् चिंतित हैं। अपनी योजना के तहत सरकार वन्य प्राणियों के विचरण वाले क्षेत्रों में कैफेटेरिया, कैपिंग हट या टेंट, मचान, पैगोड़ा, सिट आउट, बोट जेटीस, सोबेनियर शॉप, पर्यटक केंद्र और पार्किंग विकसित करेगी। यह काम निजी कंपनियों को सौंपा जाएगा। मप्र ईको टूरिज्म के सीईओ विनय बर्मन कहते हैं कि मप्र देश में पहला ऐसा राज्य है जिसमें वन क्षेत्र में ईको टूरिज्म की गतिविधियां शुरू करने के लिए बकायदा वैधानिक नियम बनाए गए हैं। यह अपने आप में एक कीर्तिमान है। इससे वन क्षेत्र में टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा। वन क्षेत्रों में आने वाले लोग वन्य प्राणियों को देखने के साथ ही यहां चलने वाली गतिविधियों कैपिंग, ट्रैकिंग, हाईकिंग, बोटिंग, फोटोग्राफी, जिप लाइनिंग, प्रकृति पथ, बर्ड वाचिंग, वन्यप्राणी सफारी, रोड सफारी, साइकिलिंग, पिकनिक, वाटर क्रूज आदि का लुत्फ उठा सकते हैं। पर्यावरणविद जीव विज्ञानी कीर्ति के कारंत कहते हैं कि मप्र के अभयारण्यों में स्थिति कई रिसोट्र्स के रसोईघर में जंगल की लकडिय़ां ईंधन के रूप में इस्तेमाल होती हैं। रिजोर्ट सिर्फ व्यावसायिक उद्देश्य के लिए चलाए जा रहे हैं। वन्य जीवन और पर्यावरण की उन्हें कोई परवाह नहीं है। ज्यादा ट्रैफिक की वजह से हवा और शोर का प्रदूषण बढ़ गया है। धूम्रपान निषेध का कानून न पर्यटक मानते हैं और न स्थानीय लोग। पार्क प्रबंधन पर्यटकों द्वारा छोड़े गए कचरे के निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं करता। अगर ऐसे में और पर्यटक अभयारण्यों में पहुंचते हैं तो क्या स्थिति होगी?
स्वदेश दर्शन योजना के
तहत मिले 93 करोड़
वन मंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार कहते हैं कि मध्यप्रदेश के पांच प्रमुख टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में पर्यटन के विकास के प्रस्ताव को केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय ने स्वीकृति दे दी है। इसके मद्देनजर मध्यप्रदेश ईको-टूरिज्म बोर्ड ने स्वदेश दर्शन योजना में प्रदेश के टाइगर रिजर्व में वाइल्ड लाइफ टूरिज्म सर्किट के विकास के लिये राज्य पर्यटन विकास निगम के माध्यम से केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजा था। इसके लिए केंद्र सरकार ने स्वदेश दर्शन योजना के तहत 93 करोड़ रुपए दिया है। वह कहते हैं की इस दौरान वन क्षेत्र में जाने वाले लोगों पर पूरी निगरानी रखी जाएगी।
एक तरफ सरकार वन क्षेत्रों में पर्यटन गतिविधियां बढ़ाने जा रही है वहीं पिछले कुछ माह में वन्य प्राणियों के शिकार और तस्करी के मामले भी बढ़े हैं। वन विभाग को सुराग मिले है कि चीन व म्यांमार के वन्यप्राणी तस्करों से प्रदेश के तार जुड़े हुए हैं और यहां उन्हीं की डिमांड पर वन्य प्राणियों का शिकार किया जा रहा है। प्रदेशभर में मिले सुराग के आधार पर वन विभाग ने इस मामले में सीबीआई को पत्र लिखकर मदद मांगी है। यह मदद इंटरपोल के लिए मांगी गई है। इस पत्र में विदेश के चार वन्य तस्करों का उल्लेख किया गया है। वन विभाग का मानना है कि इन चारों तस्करों की गिरफ्तारी से वन्य प्राणियों की तस्करी के कई मामले सामने आ सकते हैं। फिर सवाल उठता है कि ऐसी क्या वजह है कि सरकार वन क्षेत्रों में लोगों को प्रवेश दे रही है। वन विभाग भी स्वीकारता है कि तमाम कोशिशों के बाद भी जानवरों की तस्करी नहीं रूक पा रही है। वन्य जीवों की तस्करी करना अपराध है। इसके लिए वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत तीन साल की सजा और 25 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान है। किसी भी तरह के जंगली जानवर जैसे कछुआ, उल्लू, चमगादड़, सांप, शेर, तेंदुआ, भालू आदि को पकडऩा या खरीदना-बेचना गैरकानूनी है। सख्त कानून के बाद भी इनमें से कई को पकड़कर बेचा जा रहा है तो कई को मारकर तस्करी की जा रही है। इसके कारण दोमुंहा सांप, उल्लू और चमगादड़ की कुछ प्रजातियां, पानी के कछुए की प्रजाति विलुप्त होने की स्थिति में है। यूं तो सरकार विलुप्त होते जा रहे प्राणियों को बचाने की बात करती है, लेकिन इस तरह लगातार हो रहे शिकार और प्राणियों की तस्करी को रोकने के लिए कोई सख्त कदम नहीं उठाया जा रहा। उस पर वनों में पर्यटन के नाम पर लोगों की भीड़ जुटाई जा रही है।
ज्ञात हो कि 2013 में भी महाराष्ट्र के वन अफसरों ने नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी सहित प्रदेश के वन अफसरों को पत्र लिखकर मप्र में अंतरराष्ट्रीय वन्य प्राणी तस्करों की सक्रियता का खुलासा किया था। लेकिन उस पर भी प्रदेश सरकार नहीं चेती थी। जिसका परिणाम यह हुआ कि प्रदेश में बाघ, तेंदुए, भालू आदि का खुब शिकार हुआ।
निशाने पर अभयारण्य
अपनी स्थापना के समय से ही ये नेशनल पार्क और अभयारण्य रसूखदारों और तस्करों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए है। जानकार बताते हैं कि जब नेशनल पार्क तथा अभयारण्यों के आसपास फार्म हाउस और रिजॉर्ट बढऩे लग तब से प्रदेश में वन्य प्राणियों के शिकार के मामले भी बढ़ गए।
देश का पहला वाइल्ड लाइफ कॉरीडोर मप्र में
देश के पहला वाइल्ड लाइफ कॉरीडोर मध्य प्रदेश में बनेगा। केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने प्रदेश में वन्यजीवों की बाहुल्यता को देखते हुए यह फैसला लिया है। खास बात यह है कि इस कॉरीडोर में मप्र के लगभग सभी प्रमुख वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को जोड़ा गया है। पर्यटन मंत्रालय के मुताबिक स्वदेश दर्शन योजना के तहत मध्य प्रदेश में वाइल्फ लाइफ कॉरीडोर बनाने का फैसला लिया गया है। जो देश में अपनी तरह की अनूठी पहल है। इसका उद्देश्य लोगों को वन्यजीवों के करीब लाना और देश की प्राकृतिक संपदा से परिचित कराना शामिल है। बता दें कि पर्यटन मंत्रालय द्वारा शुरु की गई स्वदेश दर्शन योजना के तहत पिछले दो सालों में आठ कॉरीडोर को मंजूरी दी गई है। इनमें पिछले साल बिहार में बौद्ध परिपथ, अरुणाचल में पूर्वोत्तर कॉरीडोर और आंध्र प्रदेश में तटवर्ती कॉरीडोर के प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई थी। मप्र में बनने वाले देश के पहले वाइल्ड लाइफ कॉरीडोर के दो हिस्से होंगे। पहला हिस्सा पन्नाा से शुरु होकर मुकुंदपुर-गोविंदगढ जलाशय होते हुए संजय गांधी नेशनल पार्क-डुबरी-बांधवगढ़ व जीवाश्म स्थलों को जोड़ेगा। जबकि दूसरा हिस्सा डिंडोरी से शुरु होकर कान्हा-मुक्की-नैनपुर और पेंच को जोड़ेगा।
मप्र वन अधिनियम 2016 बनाया सरकार ने
प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के बाहर व्याप्त नैसर्गिक सौंदर्य तथा वन्य जीवों की उपस्थिति का लाभ लेकर ऐसे वनों में पर्यटन की गतिविधियों को बढ़ावा देने का निर्णय सरकार ने लिया है। इसके लिए प्रदेश में मप्र वन(मनोरंजन एवं वन्यप्राणी अनुभव) नियम, 2016 बनाया गया है। इस नियम के अंतर्गत राज्य शासन द्वारा अधिसूचित आरक्षित वन क्षेत्रों में पर्यटक प्रवेश शुल्क देकर आमोद-प्रमोद के लिए प्रवेश कर सकेंगे। प्रवेश शुल्क के रूप में मिली राशि से वन क्षेत्र के संरक्षण,पयर्टन सुविधाओं का विस्तार और स्थानीय सुमदाय का विकास किया जाएगा।
-भोपाल से अरविंद नारद