जादू की असली परीक्षा अब!
16-Mar-2016 08:16 AM 1234865

देश में अभी तक जितने भी सर्वे आ रहे हैं उनमें कहां जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू अभी भी सिर चढ़कर बोल रहा है। लेकिन विपक्ष इस बात को मानने को तैयार नहीं है। इसको लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में शीत युद्ध चल रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि अभी तक यूपीए सरकार की विफलताओं का असर ही चुनाव में देखने को मिला है। प्रधानमंत्री मोदी के जादू की असली परीक्षा तो अब होनी है।
इस साल पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुदुच्चेरी में चुनाव होने हैं। पिछले साल ने दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जादू को उतरते देखा है। सवाल उठता है कि क्या नये साल में भी क्या यह उतार जारी रहेगा या नरेन्द्र मोदी अपने जादू को फिर स्थापित करने में सफल हो पाएंगे? 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद उस साल जहां कहीं भी आम चुनाव हुए भाजपा को सफलता मिली। हरियाणा में वह कोई ताकत थी ही नहीं, लेकिन उसकी वहां सरकार बन गई। महाराष्ट्र में वह शिवसेना के साथ चुनाव लड़ा करती थी, लेकिन 2014 में उसने वहां शिवसेना का साथ छोड़कर चुनाव लड़ा और उसने अपूर्व सफलता प्राप्त की। झारखंड में भी उसने अपनी सहयोगी पार्टियों के साथ वहां सरकार बना ली। ल्ेकिन 2015 में हुए दो महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों में उसे हार का मुंह देखना पड़ा। दिल्ली की हार तो उसके लिए बहुत ही शर्मनाक थी।
बिहार की हार तो दिल्ली से भी ज्यादा मारक थी। इसका कारण यह है कि बिहार में उसकी स्थिति बहुत अच्छी थी। लालू और नीतीश के गठबंधन के बावजूद भाजपा भारी दिख रही थी, क्योंकि लालू का समर्थक वर्ग नीतीश के नेतृत्व को पचा नहीं पा रहा था और नीतीश समर्थक वर्ग उनकी लालू के साथ को पसंद नहीं कर रहे थे। उस विरोधाभास के बावजूद वहां भारतीय जनता पार्टी ने करारी हार प्राप्त की, जबकि नरेन्द्र मोदी ने अपना सब कुछ वहां दांव पर लगा दिया था। वे आरक्षण छीनने की कोशिश पर अपनी जान की बाजी लगाने की घोषणा भी कर रहे थे। उसके बावजूद उनकी पार्टी और सहयोगियों की करारी हार हुई। 2016 में 5 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। क्या उन चुनावों में मोदी का जादू बरकरार रहेगा या वह उतरता हुआ दिखाई पड़ेगा। यह सच है कि चुनाव में जाने वाले राज्यों में से किसी में भी भाजपा की सरकार नहीं है, लेकिन पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा को उन राज्यों में पहले से ज्यादा मत मिले थे। पश्चिम बंगाल में तो भाजपा का मत प्रतिशत बढ़कर 17 पहुंच गया था, भले ही उसे दो सीटें प्राप्त हुई थीं। 17 फीसदी मत किसी भी राजनैतिक दल के लिए कम नहीं होता। उसे आधार बनाकर वह दल आगे जीतने की उम्मीद कर सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पश्चिम बंगाल में भाजपा अपने मत प्रतिशत को बढ़ा पाती है या नहीं। वैसे वहां उसकी सरकार बनने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है और ममता बनर्जी की सरकार वहां बनना लगभग तय है। मोदी के जादू की कसौटी वहां भाजपा द्वारा पाए गए मतों का प्रतिशत ही होगा।
पुडुचेरी में भाजपा की नहीं, लेकिन उसकी एक सहयोगी क्षेत्रीय पार्टी की सरकार है। उस सरकार के फिर से बनने या न बनने में भाजपा का शायद कोई योगदान न हो, लेकिन फिर भी नरेन्द्र मोदी के बारे में सवाल तो उठेंगे ही कि उन्होंने एनडीए की सरकार को फिर से सत्ता दिलाने में मदद की या नहीं। तमिलनाडु में मुख्य मुकाबला वहां की क्षेत्रीय पार्टियों के बीच ही होता रहा है। पिछले चार दशक से कांग्रेस वहां हाशिए पर चली गई है और क्षेत्रीय पार्टियों में से किसी एक के साथ गठबंधन कर ही वहां लोकसभा और विधानसभा में सीटें हासिल कर पाती हैं। भारतीय जनता पार्टी की पहुंच वहां नहीं थी, लेकिन अपने उत्कर्ष काल में भाजपा भी एकाध सीटों पर जीत हासिल कर लेती है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी वहां की राजनीति में स्थायी प्रवेश कर पाएगी या नहीं- यह देखना दिलचस्प होगा। मोदी का जादू इस कसौटी पर कसा जाएगा कि भाजपा का प्रदर्शन कांग्रेस से बेहतर होता है या नहीं।
केरल में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं। वहां पिछले 4 दशक से एक परंपरा बन गई है कि दो में से एक मोर्चा बारी-बारी से सत्ता में आता है। एक बार सीपीएम के नेतृत्व वाला एलडीएफ सत्ता में आता है, तो उसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूडीएफ सत्ता में आता है। इस बार सरकार में यूडीएफ है और बारी एलडीएफ की सरकार बनाने की है। दोनों के बीच भारतीय जनता पार्टी किस तरह का प्रदर्शन करेगी, इस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। भाजपा ने कभी भी केरल से लोकसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं की है और न ही विधानसभा में कोई जीत हासिल की है। नरेेन्द्र मोदी के जादू के बल पर पिछले लोकसभा चुनाव में उसके वोटों की संख्या बढ़ गई है और उस बढ़े हुए वोटों को आधार बनाकर भाजपा वहां खाता खोलने की उम्मीद पाल रही है। यदि पार्टी इसमें सफल होती है, तो माना जाएगा कि मोदी का जादू सफल रहा। वैसे पार्टी वहां के जातीय अंतर्विरोधों का लाभ उठाने की कोशिश भी कर रही है।
भाजपा 2016 में यदि किसी राज्य में सरकार बनाने की सोच सकती है, तो वह है असम। मोदी के जादू की असली परीक्षा असम में ही होगी। मोदी के जादू ने भाजपा को वहां 2014 में 7 लोकसभा सीटें दिलवा दी थीं। वहां असम गण परिषद ढलान की ओर है और उसका समर्थक आधार भाजपा की ओर मुखातिब है। पिछले 15 सालों से वहां कांग्रेस की सरकार है और इसलिए परिवर्तन कामी लोगों का मूड भी भाजपा की ओर हो सकता है। यही कारण है कि वहां का चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए आसान लगता था। लेकिन आसान तो बिहार का चुनाव भी था, लेकिन वहां उसे मुंह की खानी पड़ी थी। क्या असम के लोग मोदी को इस बार भी उसी तरह अपने दिल में बसा कर भाजपा को वोट डालेंगे, जैसा उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनावों में दिया था? यह तभी संभव हो सकेगा, जब मोदी का जादू लोगों के सिर पर चढ़कर बोलेगा। वैसे मोदी सरकार के मंत्रियों के ऊपर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोप और भ्रष्टाचार के मामलों में मोदी सरकार द्वारा नहीं की जा रही कार्रवाई उनके जादू को प्रभावित जरूर कर रहा है। हालांकि भाजपा ने असम में असम गण परिषद के साथ गठबंधन कर लिया है। जो यहां पर भाजपा की मजबूत दावेदारी को दर्शाता है। यदि बात करें यहां पर नेतृत्व की तो यहां भाजपा को सर्वानंद सोनोवाल का साथ मिला है। सोनोवाल की साख इस राज्य में बेहतर है बतौर मुख्यमंत्री पद के दावेदार सोनोवल को प्रोजेक्ट करना भाजपा और असम गण परिषद के लिए फायदे वाला साबित हो सकता है फिर यहां पर कांग्रेस का जनाधार भी कम है। राज्य का विकास, नॉर्थ इस्ट के लिए केंद्र सरकार द्वारा दिया जाने वाला ध्यान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा असम का अपने भाषणों में किया गया उल्लेख भाजपा को जीत दिलवा सकता है लेकिन अन्य राज्यों में  भाजपा की कुछ मुश्किल हो सकती है। यदि बात की जाए पश्चिम बंगाल की तो यहां भाजपा को तृणमूल और वाम दलों से कड़ी टक्कर मिल सकती है वैसे यहां पर कांग्रेस की राह भी आसान नजऱ नहीं आ सकती है। माना जा रहा है कि कांग्रेस केंद्र में अपने पुराने साथ वाम मोर्चे  के साथ गठबंधन की राजनीति कर अपनी साख बचाने में लगे। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नेतृत्व तृणमूल कांग्रेस को अग्रणी बना सकता है। फिर अकेले ममता बनर्जी का जनाधार राज्य में बहुत ही मजबूत है। तृणमूल कांग्रेस को राज्य में किए गए विकास कार्यों और सरकार में मौजूदगी का पूरा लाभ मिलेगा।
ऐसे में सरकार में उनकी वापसी भी हो सकती है हालांकि तृणमूल के नेताओं के लिए सारधा चिट फंड मामला परेशानी खड़ी कर सकता है। अल्पसंख्यक वोटर भी यहां पर कांग्रेस और तृणमूल के बीच बंट सकते हैं। कर्नाटक में कांग्रेस सत्ता में है। यहां पर भाजपा को बीफ मामले में मुख्यमंत्री पर लगाए गए आरोपों और हंगामों का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। हालांकि भाजपा यहां पर खुद को मजबूत करने का प्रयास करेगी लेकिन कर्नाटक में सिद्धारमैया मजबूत नजऱ आते हैं। दूसरी ओर केरल में भी ओमान चांडी का नेतृत्व कांग्रेस को मजबूती प्रदान किए हुए है फिर यहां पर अल्पसंख्यक मतदाता कांग्रेस के पक्ष में ही जा सकते हैं।
भाजपा यहां पर काफी कमजोर है। पुदुचेरी केंद्र शासित प्रदेश है। यहां भी कांग्रेस ही मजबूत नजर आती है। जहां तक भाजपा के ब्रांड मोदी का सवाल है। इन चुनावों में मोदी लहर कुछ फीकी पड़ सकती है। भाजपा को सांप्रदायिक बयानबाजियां, देशभर में असहिष्णुता के मसले पर मचा बवाल, हैदरबाद के केंद्रीय विश्वविद्यालय में दलित छात्र द्वारा की गई आत्महत्या और सबसे ज्यादा जेएनयू में देशविरोधी नारेबाजी को लेकर विरोध यहां भी झेलना पड़ सकता है हालांकि विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय विकास भी अहम मसला होगा लेकिन इन मसलों का भाजपा के जनाधार पर व्यापक असर हो सकता है। ऐसे में भाजपा को पीएम मोदी के खिलाफ होने वाले प्रचार का सामना करना पड़ सकता है। भाजपा के लिए महंगाई को काबू में न कर पाने को लेकर भी सवाल उठाए जा सकते हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस को क्षेत्रीय नेतृत्व का लाभ कुछ राज्यों में मिल सकता है।
मोदी लहर को प्रभावित करेंगे क्षेत्रीय नेता!
भारत निर्वाचन आयोग ने पांच राज्यों में चुनावी बिगुल बजा दिया। मार्च माह में चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी और 19 मई तक चुनाव का यह बिगुल पटाखों, ढोल-ढमाकों के शोर में बदल जाएगा। अरे भई इन राज्यों में सरकार गठन का रास्ता जो साफ होगा। इसी के साथ विभिन्न दलों ने पांच राज्यों असम, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, पुदुचेरी और केरल में चुनाव प्रचार की रणनीति बनाने में जुट गए हैं। भारती जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए ये चुनाव काफी अहम हैं। दरअसल दोनों की ही प्रतिष्ठा और इन राज्यों में इनका भविष्य इस चुनाव से जुड़ा है।
-अजयधीर

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