16-Mar-2016 07:03 AM
1234846
मध्य प्रदेश का वर्तमान बजट सत्र संभवत: मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल का पहला ऐसा सत्र है जिसमें लगा की प्रदेश में विपक्ष ही नहीं है। लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं कि आखिरकार मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को हो क्या

गया है? क्या यह वही कांग्रेस है जिसने हंगामा करके 2015 के 37 दिन के बजट सत्र को 7 दिन में खत्म करा दिया था? क्या यह वहीं कांग्रेस है जिसके विधायकों ने 2012 में तत्कालीन अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी के कक्ष के सामने धरना दिया था और उन्हें सदन में जाने से रोका था। यही नहीं उसी दिन कांग्रेसी विधायकों ने सदन चला रहे सभापति के पास जाकर न केवल हंगामा किया बल्कि उनका माइक उठाकर फेंक दिया और उन पर कागज उछाल दिया। खैर यह सब तो संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन था। लेकिन उसके बाद भी कांग्रेसी विधानसभा के हर सत्र में हंगामा करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे। लेकिन इस बार कांग्रेस सन्नाटे से घिरी हुई है। हालांकि विपक्ष की नाकामी को सत्तापक्ष के विधायकों ने कुछ हद तक महसूस नहीं होने दिया। सत्ता पक्ष के विधायकों ने सवालों की झड़ी लगाकर अपनी ही सरकार को कई बार कटघरे में खड़ा कर दिया। ऐसे मौकों का विपक्ष ने भी भरपूर फायदा उठाया है सत्तापक्ष के विधायकों के सुर में सुर मिलाया। सत्र के दौरान विपक्ष की नाकामी से इतराने वाले मंत्रियों को अपनी ही पार्टी के विधायकों के सवाल से हलकान होना पड़ा।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश विधानसभा के 44 दिवसीय बजट सत्र की जैसे ही घोषणा हुई थी तो अनुमान लगाया जा रहा था कि कांग्रेस इस सत्र में सरकार को घेरने के लिए कई गड़े मुर्दे उखाड़ेगी। क्योंकि कांग्रेस के पिछले एक दशक का इतिहास देखें तो हम पाते हैं कि वह विधानसभा में ऐसे-तैसे जैसे भी मुद्दे रहे हों उनको विधानसभा में उठाकर सरकार को घेरने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। कई बार ऐसा करने में कांग्रेसी विधायकों ने सदन की मर्यादा को भी तार-तार कर दिया। लेकिन इस सत्र में कांगेस ऐसी दिख रही है जैसे उसे सांप ने सूंघ गया हो। कहा तो यहां तक जा रहा है कि मैहर की हार से कांग्रेस की धार कमजोर हो गई है। दूसरी वजह यह भी है कि नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे अस्वस्थ हैं इस कारण कांग्रेस की स्थिति बिना सेनापति की सेना जैसी हो गई है। इस वजह से अब तक हंगामेदार रहने वाले विधानसभा के सत्र में इस बार बदला नजारा देखने को मिला। बजट सत्र में इस बार विपक्ष के तेवर आक्रामक कम और बजट पर चर्चा वाला रहा। इस सत्र में विपक्ष भले ही चुप रहा लेकिन सरकार को अपने ही विधायकों की नुक्ताचीनी झेलनी पड़ी। भाजपा के कई विधायकों ने सरकारी मशीनरी पर आरोप लगाए।
बजट सत्र में अपनी ही सरकार पर सबसे पहले विधायक बहादुर सिंह चौहान ने हमला किया। उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र में अवैध खनन का मुद्दा उठा दिया। विधायक ने तो यहां तक कह दिया कि अफसर और सरकार दोनों सो रहे हैं। बहादुर सिंह ने महिदपुर विधानसभा क्षेत्र में अवैध खनन का मामला उठाते हुए कहा कि दिनेश पिता मांगीलाल ने तीस करोड़ से ऊपर का अवैध खनन किया है। जांच में यह बात प्रमाणित होने के बाद भी उससे राशि की वसूली नहीं की जा रही है। उन्होंने कहा कि इस मामले में अब तक एफआईआर भी दर्ज नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि सरकार कैसा काम कर रही है। अफसरों के साथ क्या सरकार भी सो रही है। अवैध खनन होता रहा तो अफसरों ने समय पर ध्यान क्यों नहीं दिया। खनिज मंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने कहा कि अवैध उत्खननन करने वाले व्यापारी पर हमने तीस करोड़ का अर्थदंड लगाया है। जल्द ही इस राशि की वसूली की जाएगी। उन्होंने विधायक को भरोसा दिलाया कि अगर नियमों में एफआईआर दर्ज कराने का प्रावधान होगा तो वह भी दर्ज कराई जाएगी। सतना के शंकरलाल तिवारी ने कहा कि सतना के आसपास की सीमेन्ट फैक्ट्रियां प्रदूषण नियंत्रण पर ध्यान नहीं दे रही है। जिससे पूरे क्षेत्र में प्रदूषण फैल रहा है। उन्होंने कहा कि हालात यह है कि फैक्ट्रियों के आसपास के दस किलोमीटर की जमीन न तो फसलों के काबिल तो रह ही नहीं कई उस पर झाड़ तक नहीं उग रहे हैं। तिवारी ने आरोप लगाया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी इस मामले में सोये हुए है। मंत्री लाल सिंह आर्य ने उनकी बात का खंडन करते हुए कहा कि सतना सीएमएच हो ने हाल ही में 16 फरवरी को अपनी रिपोर्ट में कहा है कि किसी व्यक्ति को प्रदूषण से कोई बीमारी नहीं हो रही है। इस पर विधायक ने कहा कि यह रिपोर्ट फर्जी है, भोपाल से किसी उच्च अधिकारी को भेजकर पूरे मामले की जांच करानी चाहिए। मंत्री ने उनकी बात मानते हुए कहा कि वे जांच करा लेंगे। सदन मेंं भाजपा विधायक जब अपनी ही सरकार की कार्यप्रणाली पर हमला बोल रहे थे तो कांग्रेसी सदस्य मेजें थपथपाकर उनका साथ दे रहे थे। कांग्रेस विधायकों ने मंत्रियों से कहा कि आप हमारी बात तो मानते नहीं अब आपके ही दल के सदस्य कमियां गिना रहे हैं तो कम से कम उनकी बात तो मान लीजिए।
अपनी ही सरकार के प्रति भाजपा विधायकों तेवर किस कदर आक्रामक रहा इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक दिन एक घंटे के प्रश्नकाल में सोलह प्रश्न पूछे गए। इनमें ग्यारह भाजपाई सदस्यों के निकले। अपनी ही सरकार की कार्यप्रणाली पर हमला बोलने वाले विधायकों ने नारायण सिंह पंवार, सुदर्शन गुप्ता, भारत सिंह कुशवाहा, ठाकुरदास नागवंशी, कुंवर जी कोठार, बहादुर सिंह चौहान, नरेन्द्र सिंह कुशवाह, शंकरलाल तिवारी, गिरीश गौतम, राजेन्द्र वर्मा, विष्णु खत्री, रामेश्वर शर्मा और वीर सिंह पंवार मुखर रहे। पूरे सत्र के दौरान नजारा देखने लायक था कि सरकार की आलोचना भाजपा सदस्य कर रहे थे तो मेजे थपथपा कर कांग्रेसी सदस्य उनकी हौसला आफजाई कर रहे थे। ऊपर से मंत्रियों पर तंज अलग कस रहे थे कि उनकी बात तो वे सुनते नहीं, कम से कम अपने विधायकों की तो सुन लें।
विधानसभा में प्रश्नोत्तरकाल के दौरान भाजपा विधायक गिरीश गौतम ने रीवा जिले की ग्राम पंचायत महमूदपुर में हुए भ्रष्टाचार का मामला उठाते हुए आरोप लगाए कि जिन अधिकारियों ने भ्रष्टाचार किया उन्हें जांच अधिकारी बना दिया गया। उन्होंने कहा कि करीब साढ़े चार लाख की इस अनियमितता में पंचायत सचिव व सब इंजीनियर की संलिप्तता है, क्योंकि सरपंच बिना पढ़ी-लिखी थी। उन्होंने उक्त दोनों को हटवाकर मामले की जांच करवाने की मांग की। साथ ही इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की। पंचायत मंत्री गोपाल भार्गव ने भरोसा दिलाया कि पीडब्ल्यूडी के दो व निर्माण एजेंसी के दो वरिष्ट अधिकारियों को भेज कर जांच करवा लेंगे। दोषी पाए जाने पर संबंधितों के खिलाफ कार्रवाई भी होगी।
सदन में विपक्ष का सरकार को वॉकओवर!
विधानसभा सत्र विधायकों के लिए एक अच्छा मौका है अपने-अपने क्षेत्रों के मुद्दों को हल कराने का। विपक्ष के लिए भी सरकार को कटघरे में खड़ा करने का इससे अच्छा मौका हो नहीं सकता, लेकिन जिस तरह से किसान-पानी जैसे गंभीर मुद्दों को छोड़कर दिनभर गधे-घोड़े पर चिंतन हुआ, इससे विधायकों की गंभीरता पर सवालिया निशान लग गया है। अब ये बात अलग है कि इस अगंभीरता पर विपक्ष सरकार पर तो सरकार विपक्ष पर आरोप मढऩे का काम करे, लेकिन इसमें छले गए प्रदेश के वे तमाम लोग जिनके पैसों से सदन चलता है। जिस सदन में कभी डंपर, व्यापमं, किसानों की आत्महत्या जैसे मुद्दों के चलते देशभर में चर्चा में रहती थी, वहीं सोमवार को दिनभर गधे, नीलगाय और आवारा पशुओं को गंभीर समस्या मानते हुए चर्चा होती रही।
मध्यप्रदेश विधानसभा का बजट सत्र 23 फरवरी से शुरू हुआ है लेकिन सत्तापक्ष के सामने विपक्ष बचकानी भूमिका में नजर आ रहा है। बजट के बाद इस सत्र में लोकहित का कोई गंभीर मुद्दा नहीं उठ रहा है। गंभीर मुद्दों पर लीपापोती हो रही है तो विधायक छोटे-मोटे मुद्दे उठाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं। सदन की कार्यवाही के दौरान भाजपा के विधायक जितेन्द्र गेहलोत ने प्रश्नकाल में नीलगाय से खेतों को हो रहे नुकसान का मुद्दा उठाया तो शंकरलाल तिवारी ने भी उनके सुर में सुर मिलाया। मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने नीलगाय के नाम से तकलीफ होने की बात कहते हुए समाधान का आश्वासन दिया। बाद में ध्यानाकर्षण में लहारपुर के कांग्रेस विधायक डॉ. गोविंद सिंह ने आवारा पशुओं द्वारा किसानों की फसल नष्ट किए जाने का मुद्दा उठाया। गोविंद सिंह ने कहा कि भिण्ड जिले में गाय, गधे, सांड, सुअर का प्रकोप है। मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने उत्तर देते हुए कहा कि यह जन जागृति का विषय है। इसी दौरान मंत्री गोपाल भार्गव ने व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हुए कहा कि अब प्रदेश में गधशाला और सुअरशाला बनाना संभव नहीं है। बाद में उन्होंने सभी पंचायतों को कांजी हाउस खोलने के लिए पत्र लिखने का आश्वासन दिया। गौरीशंकर शेजवार ने कांग्रेस पर चरनोई की जमीन कांग्रेसियों को देने का आरोप लगाया तो कांग्रेस विधायक राम निवास रावत ने इसका विरोध किया। यह तो सिर्फ बानगी भर है सदन की कार्यवाही से इन दिनों गंभीर मुद्दे गायब हैं। विपक्ष की उदासीनता ने सरकार को खेलने के लिए खाली मैदान सौंप दिया है। हाल ही में सूखे के कारण किसानों की फसलें तबाह हुई हैं और लगातार किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आए। प्रदेश में पेयजल संकट विकराल समस्या बना हुआ है लेकिन अभी तक ऐसे किसी गंभीर मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई है। विपक्ष की उदासीन भूमिका से सरकार बहुत उत्साहित है। पहले तो मुद्दों की हवा निकालने के लिए सरकार को कई हथकंडे अपनाने पड़ते थे। पिछले कार्यकाल में व्यापमं मुद्दे को खत्म करने के लिए सरकार ने विपक्ष में फूट डालकर उपनेता चौधरी राकेश सिंह को अलग करा दिया। इस कार्यकाल में भी शुरूआत में व्यापमं के मुद्दे पर सरकार चारों ओर से घिरी रही लेकिन अब ना तो विपक्ष के पास नेता है और ना ही मुद्दे। नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे के गंभीर रूप से बीमार हो जाने के बाद कार्यवाहक की जिम्मेदारी बाला बच्चन संभाले हुए हैं। लेकिन इस सत्र में वो भी स्लीपिंग मोड में हैं। शायद वे कार्यवाहक की कुर्सी संभालकर ही संतुष्ट हैं। विपक्ष की यह स्थिति देख स्वास्थ्य मंत्री ने व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हुए कहा कि सुबह से रोजड़ पर चर्चा सुन रहा हूं जिससे एक बात तो तय है कि शिवराज सरकार ने बड़ी समस्याओं को समाप्त करने में ठोस पहल की है इसलिए अब विधायकों के पास रोजड़ (नीलगाय) और आवारा पशु सबसे बड़ी समस्या है।
संघ कार्यालय की तरह चल रहा सदन
कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक राम निवास रावत भी सदन में लोकहित के गंभीर मुद्दे ना उठने की बात मानते हैं लेकिन इसके पीछे उनका तर्क है कि सदन सरकार के इशारे पर चल रहा है। सरकार गंभीर मुद्दों पर चर्चा नहीं कराना चाहती है इसलिए ध्यानाकर्षण में गंभीर मुद्दे नहीं लिए जा रहे हैं। उनका आरोप है कि सदन आरएसएस के कार्यालय की तरह चल रहा है। कांग्रेस विधायक का यह तर्क शायद सही हो लेकिन कांग्रेस इसके खिलाफ सदन में अपनी आवाज उठाने में भी नाकाम है। पिछले कई सत्रों से विपक्ष ने जितना गंभीर मुद्दों पर सरकार पर हमला नहीं बोला उससे अधिक भाजपा के विधायकों ने सरकार को निशाने पर लिया। भाजपा के विधायक गिरीश गौतम ने सदन में छात्रवृत्ति घोटाले का मामला उठाया। विधायक ने प्रश्नकाल में यह मुद्दा उठाते हुए पूरे मामले की जांच ईओडब्ल्यू या एसआईटी से कराने की मांग की। इसके पहले भी भाजपा विधायकों के सवाल सरकार के लिए सिरदर्द बन चुके हैं। किसानों के मुआवजा के मुद्दे पर भी भाजपा विधायक अपनी ही सरकार को घेर चुके हैं। आदिमजाति कल्याण विभाग की योजनाओं में करोड़ों के भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए भाजपा विधायक नरेन्द्र सिंह कुशवाह ने अपनी ही सरकार को आड़े हाथो लिया। उन्होंने कहा कि पात्र लोगों को लाभ मिलने के बजाए अफसर भ्रष्टाचार में लगे हैं और सरकार कार्यवाही नहीं कर रही है। विधायक के तीखे तेवरों को देख मंत्री ज्ञान सिंह ने विधानसभा में ही भिंड के आदिमजाति विभाग में पदस्थ दो अफसरों को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने की घोषणा की। उन्होंने यह भी कहा कि मामले की जांच भोपाल से अधिकारी भेजकर कराई जाएगी। प्रश्नकाल के दौरान नरेन्द्र सिंह ने आदिमजाति कल्याण विभाग में चल रही योजनाओं के कामों में व्यापक पैमाने पर गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए कहा कि अनुसूचित जाति बस्ती विकास योजना के तहत विधायकों की अनुशंसाओं पर विभाग ने काम नहीं कराए हैं। अफसरों ने अपने हिसाब से इस योजना में फर्जी काम कराकर पैसे का गोलमाल कर लिया है। इसमें नियमों का पालन भी नहीं किया गया है। मंत्री ज्ञान सिंह ने यह कहने पर कि कामों में नियमों की अनदेखी नहीं की गई है। इस पर विधायक ने तैश में आते हुए कहा कि इस पूरी योजना में जिले में चार करोड़ का भ्रष्टाचार हुआ है। उनके पास इसके प्रमाण हैं। उन्होंने कहा कि भिंड जिले के आदिमजाति कल्याण विभाग में कई अफसर 25 से 30 साल से जमें हैं। मंत्री ने विधानसभा में ही मंडल संयोजक ए के शुक्ला और लिपिक राजेन्द्र मिश्रा को इस मामले में प्रथम दृष्टया दोषी पाते हुए उनके निलंबन की घोषणा की। मप्र विधानसभा के लिए भले ही 230 सदस्यों की संख्या नियत है। लेकिन कार्यवाही के दौरान यह संख्या 23 तक भी नहीं पहुंच पाती है। अनुदान मांगों पर चर्चा के दौरान सदस्य प्रताप सिंह ने इस पर चिंता जाहिर करते हुए आसंदी का ध्यान आकृष्ट कराया। विधायक सुंदरलाल तिवारी ने इसका समर्थन भी किया। क्योंकि सदन में मौजूद कुल विधायकों की संख्या 23 के आंकड़े को भी नहीं छू पा रही थी। वहां गिनती में 21 विधायक मिले। यह बात अलग है, कि सदस्यों की आपत्ति को देखते हुए अध्यक्ष ने 5 मिनट के लिए कार्यवाही स्थगित कर दी। इसके बाद भी कोई सुधार नजर नहीं आया। मंत्रियों की मौजूदगी भी सदन में चुनिंदा समय ही होती है। विभाग से जुड़ी चर्चा के अलावा मंत्री भी सदन में नहीं बैठते हैं। कई बार ऐसी नौबत आ रही है कि दो मंत्री ही सदन में होते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि विधायकों द्वारा मुख्य सचिव से ज्यादा वेतन की इच्छा जताने के बाद सरकार इनको वेतन-भत्तों के तौर पर प्रतिमाह सवा लाख रूपए देने की तैयारी में हैं। लेकिन वह उनकी उपस्थिति को लेकर कोई नीति क्यों नहीं बनाती?
डीएसपी को हटाओ या मेरा इस्तीफा लो
खंडवा के यातायात डीएसपी को हटाने की मांग को लेकर विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ। भाजपा विधायक राजेन्द्र वर्मा ने खंडवा ट्रैफिक पुलिस में पदस्थ डीएसपी पर तानाशाही और मनमानी का आरोप लगाते हुए कहा कि वे लोगों से दुव्र्यवहार कर रहे हैं। यातायात व्यवस्था के नाम पर हरे पेड़ काटे जा रहे हैं। पूरे शहर में वन वे कर दिया गया है जिससे लोगों को भारी परेशानी हो रही है। वर्मा ने कहा कि डीएसपी को हटाने को लेकर शहर में धरना, प्रदर्शन और बंद तक आयोजित हो चुके हैं और वे खुद आला अफसरों से मिल चुके हैं पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। विधायक वर्मा ने आरोप लगाया कि डीएसपी तानाशाही चला रहे हैं और बात करने पर सीधे तबादला करा देने की बात कहते हैं। उनका कहना था कि आखिर सरकार को उन्हें वहां से हटाकर जांच कराने में क्या तकलीफ है। गृह मंत्री बाबूलाल गौर ने कहा कि आप लिखकर दें दें, हम भोपाल से अधिकारी भेजकर जांच करा लेंगे दूसरी ओर विधायक राजेन्द्र वर्मा अपनी मांग पर अड़े रहे। उनके समर्थन में भाजपा के राजेन्द्र पांडे समेत सत्ता पक्ष और विपक्ष के कई विधायक खड़े हो गए। विधायकों का कहना था कि जनप्रतिनिधि के कहने पर एक अधिकारी को वहां से हटाने में दिक्कत क्या है। इसके बाद सदन में हंगामा होने लगा और अध्यक्ष के समझाने पर भी विधायक अपनी सीट पर बैठने को तैयार नहीं हुए। हंगामा बढ़ा देख अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही पांच मिनट के लिए स्थगित कर दी।
विधानसभा में कोई अपना पराया नहीं होता : शर्मा
विधानसभा में कोई भी विधायक अपना पराया नहीं होता है। यहां एक तरफ शासन और दूसरी तरफ विधायक होते हैं। इसलिए हर एक के निशाने पर सरकार और उसकी व्यवस्था रहती है। यह बात विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीताशरण शर्मा ने अक्स से चर्चा में कही। उन्होंने कहा कि विधायक के मन और बुद्धि में उनके क्षेत्र की जनता होती है इसलिए उनकी कोशिश होती है कि वे अधिक से अधिक सवाल अपने क्षेत्र के बारे में पूछे। उन्होंने कहा कि सदन में व्यक्तिगत प्रश्न पूछने की जो प्रवृत्ति चल रही है वह ठीक नहीं है विधायक जनता से जुड़े मुद्दे उठाए तो बेहतर होगा। जहां तक मेरा मानना है। इस बार सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों दलों के विधायकों ने अपना रोल ठीक से अदा किया है। उन्होंने यह स्वीकार किया कि विधानसभा में भाजपा सदस्यों की संख्या अधिक है इसलिए वे अधिक सक्रिय नजर आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश यही रहती है कि हर रोज दोनों दलों के विधायकों को बोलने का बराबर मौका मिले। उन्होंने इस बात पर भी चिंता जाहिर की कि सदन में यह देखने को मिल रहा है कि अलग-अलग विषयों पर कुछ ही व्यक्ति बोलते हैं। उन्होंने कहा कि जबकि होना यह चाहिए कि अलग-अलग विषय पर अलग-अलग विधायक अपना विचार रखे। दरअसल यह टीम वर्क है। अगर कोई पार्टी टीम वर्क के साथ काम करती है तो उसके सभी सदस्यों को अपनी बात रखने का मौका मिलता है।
पांच पूर्व मंत्री और दो दर्जन विधायकों ने नहीं पूछे सवाल
विधानसभा के बजट सत्र में पहली बार 7 हजार 919 सवाल पूछे गए। इसके बाद 5 पूर्व मंत्रियों सहित करीब दो दर्जन के लगभग माननीयÓ ऐसे हंै, जिन्होंने एक भी प्रश्न नहीं लगाया। दिलचस्प पहलू यह है कि सत्र में सदन प्रश्न पूछने वाले 191 माननीयोंÓ में से अधिकांश के निशाने पर पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव, राजस्व मंत्री रामपाल सिंह और कृषि विकास एवं किसान कल्याण मंत्री गौरीशंकर बिसेन रहे है। इनसे जुड़े विभागों से ज्यादातर सवाल पूछे गए है विधायकों ने पंचायत एवं ग्रामीण विभाग से 721, राजस्व विभाग से 556, नगरीय विकास एवं पर्यावरण से 484 स्वास्थ्य विभाग से 469 किसान कल्याण तथा कृषि विकास से 300 सवाल पूछा है वहीं नया विभाग प्रवासी भारतीय से 1, विमानन से 5, गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास से 8 सवाल पूछे गए हैं। नेता-प्रतिपक्ष पद के दावेदार मुकेश नायक मौजूदा बजट सत्र में सबसे अधिक सक्रिय दिखाई दिए उन्होंने सबसे 94 सवाल सरकार से किए हैं। क्षेत्रीय समस्याओं का निराकरण करने जनप्रतिनिधि बनकर मप्र विधानसभा पहुंचे कई सदस्य सरकार से प्रश्न भी नहीं पूछ पा रहे हैं। इसमें न केवल विपक्षी दल कांग्रेस बल्कि भाजपा के वरिष्ठ सदस्य भी शामिल है। 39 दिवसीय बजट सत्र के लिए पांच मार्च तक सवाल लगाने की तिथि तय थी। यह हालात तब सामने आए हैं, जब विधायी कार्यसंचालन को सुदृढ़ बनाने की दृष्टि से समय-समय पर विधानसभा सचिवालय द्वारा सदस्य और उनके निज सचिवों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किए गए हैं।
भाजपा के कैलाश विजयवर्गीय, रूस्तम सिंह, जगदीश देवड़ा, रंजना बघेल, और नारायण सिंह कुशवाह ऐसे चेहरे हैं, जो मंत्री न रहने के बाद भी खामोशी अख्तियार किए हुए हैं। वरिष्ठ नेताओं की कड़ी में भंवर सिंह शेखावत, प्रेम सिंह, दिनेश सिंह अहिरवार, ओमप्रकाश सखलेचा, रणजीत सिंह गुणवान, राजेन्द्र मेश्राम, बालकृष्ण पाटीदार और हर्ष सिंह के नाम प्रमुख रूप से शामिल हैं।