31-Mar-2016 08:19 AM
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सेडमैप मध्यप्रदेश सरकार के लिए गले में फंसी ऐसी हड्डी बन गया है, जिसे न तो निगला जा सकता है और न ही उगला जा सकता है। यानी सेडमैप के खेल में सरकार दिन पर दिन फंसती जा रही है क्योंकि अफसर सरकार से गोलमोल

करवा रहे हैं। विधानसभा के इस बजट सत्र के दौरान भी अफसरों ने सरकार की नाक कटवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आलम यह रहा कि अधिकारियों के कारण उद्योग मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया की जगह ध्यानाकर्षण का जवाब दे रहे संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा की जमकर फजीहत हुई। हालांकि इस अवसर पर मंत्री ने एक आश्वासन यह भी दिया कि सेडमैप में अनुबंध पर रखे कर्मचारियों को नहीं निकाला जाएगा। इससे संस्था में कार्यरत सैकड़ों कर्मचारियों को राहत मिली है।
दरअसल इस बार विधानसभा में सेडमैप को लेकर ध्यानाकर्षण सूचना लगाई गई थी। इस पर चर्चा के दौरान संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा से अधिकारियों ने कुछ ऐसे जवाब दिलवा दिए जिससे सेडमैप और उद्योग विभाग के अधिकारियों की विश्वसनीयता ही संदेह के घेरे में आ गई। अपने जवाब में संसदीय कार्यमंत्री ने कहा कि सेडमैप स्वयं के नियमों के अनुरूप कार्य करती है एवं इसके संचालन के लिए राज्य शासन द्वारा कोई अनुदान नहीं दिया जाता है। सेडमैप के कर्मचारी भी शासकीय सेवक की परिधि में नहीं आते। मंत्री के इस जवाब को विधायक शंकरलाल तिवारी, रामनिवास रावत और गोविंद सिंह ने सिरे से खारिज कर दिया। दरअसल इसके पीछे तथ्य यह है कि सरकार द्वारा सेडमैप को 30.3.2009 को विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से करोड़ों रुपए उपलब्ध कराए गए थे जिसमें स्वयं राज्य सरकार ने 12 करोड़ रुपए, लघु उद्योग निगम ने 11 करोड़ रुपए, वित्त विकास निगम ने 5 करोड़ रुपए दिए थे। यही नहीं 2002 में सेडमैप को कार्यालय भवन, प्रशिक्षण केन्द्र एवं छात्रावास के लिए उद्योग विभाग के माध्यम से 0.7 एकड़ जमीन दी गई। यही नहीं इस भूखण्ड पर निर्माण कार्यों के लिए उद्योग संचालनालय द्वारा 50 लाख रुपए दिए गए। जो इस बात का संकेत है कि सेडमैप सरकार से मिले विभिन्न अनुदानों से चल रहा है।
सवाल यह उठता है कि आखिर सरकार सेडमैप को लेकर गोलमोल क्यों हो रही है। सरकार बार-बार कह रही है कि उक्त संस्था का संचालन उसके द्वारा नहीं किया जाता है जबकि विभाग के बोर्ड में 8 आईएएस अधिकारी हैं। फिर सरकार सेडमैप पर नियंत्रण क्यों खो रही है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस मामले में लोकायुक्त विवेचना में कुछ लोगों पर आंच आने के डर से सरकार बचना चाहती है।
सूत्रों का कहना है कि लोकायुक्त की विवेचना में जीतेन्द्र तिवारी के 2006 के बाद स्वयं सेडमैप का कार्यकारी निदेशक बनने पर कई आईएएस अधिकारी भी घेरे में फंसते दिख रहे हैं। आलम यह है कि मध्यप्रदेश की नौकरशाही लाख कोशिशों के बाद भी सरकार के सांचे में नहीं ढल पा रही है। इस कारण न केवल विकास कार्य रुके हैं बल्कि दागदारों को भी संरक्षण मिल रहा है। इसका सेडमैप में देखने को मिल रहा है। आय से अधिक संपत्ति के मामले में लोकायुक्त की छापामार कार्रवाई के बाद भी उद्योग विभाग के अधिकारी सेडमैप के पूर्व कार्यकारी निदेशक जितेन्द्र तिवारी को संरक्षण दे रहे हैं। लेकिन अधिकारियों का संरक्षण अब काम नहीं देने वाला है। क्योंकि लोकायुक्त छापे के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर गुहार लगाने वाले तिवारी ने मामला उल्टा पड़ता देख अपनी पिटीशन वापस ले ली है। दरअसल तिवारी अपने ही जाल में फंस गए थे। उन्होंने हाईकोर्ट में पिटीशन लगाई थी कि सेडमैप एक प्राइवेट संस्था है और उसके अधिकारी के खिलाफ लोकायुक्त को कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है। वहीं तिवारी ने 1 मार्च 2013 को जारी एक प्रमाण पत्र में बताया है कि सेडमैप मध्यप्रदेश शासन का एक उपक्रम है। अपने ही कदमों पर अपनी कुल्हाड़ी पड़ता देख तिवारी ने पिटीशन वापस तो ले ली है, लेकिन आज भी उद्योग विभाग के अफसर उन्हें बेदाग साबित करने में लगे हुए हैं। यही कारण है कि विधानसभा में अधिकारियों द्वारा हर बार उल्टे-सीधे जवाब देकर सरकार की फजीहत कराई जा रही है।
हालांकि अब इस मामले को गंभीरता से लेते हुए हाल ही में मुख्य सचिव एंटोनी डिसा ने उद्योग विभाग के अधिकारियों के साथ एक बैठक की। इस बैठक में उन्होंने कहा कि सेवा प्रशिक्षण देने वाले सेडमैप की तरह माध्यम को भी क्यों न प्राइवेट संस्था मान लिया जाए।
-भोपाल से सुनील सिंह