दलालों की मंडी बना पेरामेडिकल विभाग
16-Mar-2016 08:12 AM 1234769

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक तरफ  प्रदेश को शिक्षक का एज्यूकेशन हब बनाने में लगे हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ अधिकारी उनके सपनों पर पानी फेरने में लगे हुए हैं। मुख्यमंत्री के सपनों को जहां सबसे अधिक तार-तार किया जा रहा है वह है चिकित्सा शिक्षा विभाग। इस विभाग में बैठे अधिकारी इस तरह काम कर रहे हैं जैसे वे किसी मंडी में बैठे हुए हो। अपना कोई काम लेकर यहां आने वाले लोगों से काम करने के लिए इस तरह मोल-भाव किया जाता है जैसे सब्जी-भाजी खरीदी जा रही हो। इसका नजारा पेरामेडिकल काउंसिलिंग में देखने को मिल रहा है। यहां हर काम का रेट फिक्स कर दिया गया है। इस विभाग में भी एक पांडेय जी हैं जो विभाग के मूलमंत्र-खाता न बही पांडेय जी जो कहे वही सही की तर्ज पर काम कर रहे हैं।
दरअसल प्रदेश में जितने पेरामेडिकल कॉलेज हैं उन्हें हर साल रिन्यूवल के लिए के लिए काउंसिल में आना होता है। यहां आने वाले कालेज संचालकों से रिन्यूवल के नाम पर मनमानी रकम वसूल की जाती है। लेकिन सबसे हैरानी की बात है कि यह पूरा काम विभाग में दैनिक वेतनभोगी के रूप में पदस्थ एक पांडेय जी द्वारा की जा रही है। पांडेय जी कोई ऐसे वैसे व्यक्ति नहीं हैं। उनकी पहुंच ऊपर तक है। दरअसल उनके पिताजी सत्तारूढ़ दल के प्रदेश मुख्यालय में कार्यरत हैं। उन्होंने अपने रसूख से ही अपने पुत्र को पेरामेडिकल काउंसिल में पदस्थ कराया है। जहां वे अपना गुल खिला रहे हैं। बताया तो यहां तक जा रहा है कि सतना सांसद गणेश सिंह ने भी 8 अगस्त 2015 को चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिख पेरामेडिकल कॉलेजों में रिन्यूवल और मान्यता के नाम पर चल रही अवैध वसूली के खिलाफ शिकायत की थी। आरोप है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों की सह पर पेरामेडिकल काउंसिल में पदस्थ अधिकारी और उनके चहेते कर्मचारी केवल उन्हीं सस्थाओं की मान्यता पत्रावली सही तैयार करते हैं जो परिषद में एक लाख से पांच लाख रुपए देते हैं। बाकी संस्थाओं में उनके द्वारा कुछ न कुछ कमी लिखकर शासन को गुमराह करते हुए त्रुटिपूर्ति सहित फाइल शासन को पेश की जाती है। सांसद गणेश सिंह द्वारा तथाकथित तौर पर लगाए गए आरोपों की पुष्टि के लिए कई बार उनके मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे बातचीत नहीं हो सकी।
निरीक्षण समिति द्वारा मान्यता हेतु अनुशंसा किए जाने के पश्चात् भी काउंसिल में यदि पैसा नहीं दिया जाता है तो कई प्रकार की कमियां निकालकर शासन को पत्रावली प्रस्तुत की जाती है। जिससे निरीक्षण समिति की अनुशंसा के बाद भी कई संस्थाओं को मान्यता नहीं मिल पा रही है। आलम यह है कि जहां संसाधन विहीन कॉलेजों को पैसों के दम पर मान्यता दी जा रही हैं वहीं सुविधायुक्त और संसाधनयुक्त कॉलेजों के संचालकों को चक्कर लगाना पड़ रहा है। नियमानुसार एक जिले में तीन-चार पेरामेडिकल कॉलेज होते हैं तो उन्हें अस्पताल खोलना जरूरी है। लेकिन बताया जाता है कि कई मामले ऐसे भी सामने आए हैं जिसमें अधिकारियों की मिलीभगत से अस्पताल न खोलने के लिए फायदा पहुंचाया गया है।
पेरामेडिकल कॉलेज खोलने के लिए सबसे पहले काउंसिल में एप्लाई किया जाता है वहां से फाइल सरकार के पास यानी मंत्रालय में डिप्टी सेक्रेटरी के पास पहुंचती है। यही पर शुरू होता है लेन-देन का हिसाब किताब। काउंसिल में तैनात पांडेयजी पूरा लेन-देन का हिसाब यहां पहुंचाते हैं और उसके बाद पैसा देने वाले कॉलेज की रिपोर्ट तैयार कर मुख्य सचिव को भेजी जाती है। वहां से मामला मंत्री के पास पहुंचता है। जहां बैठे मंत्री के चहेते अधिकारी संस्थाओं से मंत्री की अनुशंसा के लिए पैसों का लेन-देन करते हैं। यहां भी एक पांडेयजी हैं जिनके बिना कोई भी फाइल टस से मस नहीं होती है और इन पांडेयजी की फीस सभी को मालूम है। 
इसी तरह नर्सिंग कॉलेज खोलने के लिए भी दलाली जोरों पर चल रही है। नियम तो यह भी है कि आदिवासी जिलों को छोड़कर सभी जगह नर्सिंग कॉलेज में अस्पताल खोलना जरूरी है। लेकिन चिकित्सा शिक्षा विभाग में नियमों को दरकिनार कर मान्यता का खेल धड़ल्ले से चल रहा है। आरोप तो यह भी लग रहे हैं कि विभाग के अधिकारी मंत्री और बड़े अधिकारियों के नाम पर कॉलेज संचालकों से यह वसूली कर रहे हैं।  बताया जाता है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग में दलाली का धंधा इस कदर चल रहा है कि यहां बिना लिए दिए पत्ता भी नहीं हिलता है।
उधर चिकित्सा शिक्षा विभाग में पदस्थ कई अधिकारियों और कर्मचारियों का आरोप है कि विभाग में दलाली का एक पूरा नेटवर्क चल रहा है। विभाग में इस नेटवर्क से बाहर के किसी भी अधिकारी-कर्मचारी की बात नहीं सुनी जाती है। आलम यह है कि विभाग में मनमानी की नियुक्ति और पदस्थापना की जा रही है। अभी हाल ही में चिकित्सा शिक्षा विभाग में सागर चिकित्सा महाविद्यालय के दो कर्मचारियों की नियुक्ति के साथ ही विभाग के उप सचिव एसएस कुमरे ने एक और स्टेनोग्राफर वंदना कोटेकर को भी संलग्न किया है। नियम विरुद्ध हो रहे संलग्नीकरण को लेकर विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों में रोष है।
-राजेश बोरकर

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