अवनÓ में उबली राजनीति
31-Mar-2016 08:09 AM 1234870

बिहार की राजनीति में इन दिनों तोहफे काफी अहम हो चुके हैं। शिक्षा विभाग ने विधानसभा में विधायकों को माइक्रोवेव अवन क्या बांटे, नीतीश सरकार पर हमलों का दौर ऐसा शुरू हुआ कि मुख्यमंत्री ने विधानसभा में गिफ्ट बांटने की परंपरा पर ही रोक लगा दी। दरअसल, इस हंगामे की वजह माइक्रोवेव अवन नहीं, बल्कि नियोजित शिक्षकों का बीते आठ महीने से अटका हुआ वेतन है। ऐसे में राज्य सरकार द्वारा विधायकों का करीब 36 लाख रुपए का तोहफा देना भारी पड़ गया। ऊपर से शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी ने महंगे तोहफे को जायज बताकर लगी हुई आग में घी डालने का काम किया। उनका तर्क था, ये अवन विधायकों को मिड-डे मिल को गर्म करके खाने के लिए दिया जा रहा है।
गौरतलब है कि राज्य में हर विधायक को वेतन और भत्तों के मद में हर महीने करीब एक लाख रुपये मिलते हैं। साथ ही, विधानसभा सत्र या समितियों की बैठक के दौरान पटना आने-जाने के मद में यात्रा भत्ता अलग से मिलता है। ऐसे में विधायकों को गिफ्ट देने की परंपरा का लगातार विरोध होता रहा है। लेकिन कभी किसी ने इसे रोकने के लिए कदम नहीं उठाया। भाजपा विधानमंडल दल के नेता सुशील मोदी, नेता-विपक्ष प्रेम कुमार, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडे और नंद किशोर यादव ने इन महंगे तोहफों का विरोध करते हुए इन्हें लौटा दिया है। उनके मुताबिक जब लाखों शिक्षकों को सैलरी नहीं मिली हो, तो वे महंगे उपहार कैसे ले सकते हैं। लेकिन भाजपा के अन्य विधायक अभी भी अपने पास गिफ्ट रखे हुए हैं।
सुशील मोदी के मुताबिक विधायकों को अपने स्वविवेक के आधार पर कोई फैसला लेने को कहा गया है। उन पर पलटवार करते हुए तेजस्वी यादव ने पूछा है, जब उपहार वापस ही करना था, तो इन लोगों ने लिया ही क्यों था और सिर्फ अवन ही क्यों। बाकी पुरस्कार भी तो लौटाने चाहिए इन लोगों को इस बारे में जब सुशील मोदी से सवाल दागा गया तो उन्होंने सिर्फ ये कह कर पिंड छुड़ा लिया कि, गलती से ले लिया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि, सत्र के दौरान विधायकों को गिफ्ट देने की पुरानी परंपरा रही है। लेकिन अब जब इस पर राजनीति होने लगी है तो इसे बंद कर देना ही बेहतर होगा।
उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के मुताबिक राज्य के विधायक इतने संपन्न नहीं हैं कि एक अवन खरीद सकें और इसीलिए सरकार उन्हें अवन खरीद कर दे रही है। भले ही तोहफे में अवन ने इस मुद्दे को सामने ला दिया, लेकिन बिहार विधानमंडल के चालू सत्र में विधायकों और विधान परिषद सदस्यों को अब तक एक्सटर्नल हार्ड डिस्क, महंगे स्मार्ट फोन, ट्रॉली-बैग, सूटकेस और स्काई बैग समेत कई उपहार पहले ही मिल चुके हैं। ऐसे में भाजपा के मौजूदा नैतिकता के दावे की पोल खुल रही है। साथ ही सत्ताधारी दल के हाथ भाजपा को घेरने का एक मौका भी आ गया है। आज की तारीख में विधायक उपहारों को सरकार की कृपा कम और अपना अधिकार ज्यादा समझते हैं। इसका इस्तेमाल कई विधायक अपने समर्थकों को खुश करने के लिए करते हैं। भाजपा के एक विधायक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, ये तोहफे जनसंपर्क के काम में बहुत मदद करते हैं। अगर किसी समर्थक के घर शादी है, तो ट्राली बैग को उपहार में दिया जा सकता है। या फिर किसी कार्यकर्ता को खुश करने के लिए सूटकेस बड़े काम आता है। अब हर किसी को तो हम अपने पैसे से खरीद कर तोहफे नहीं दे सकते।
बिहार सरकार ने विधायकों को तोहफों के लिए करीब 3.5 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। हालांकि, ओवन या स्मार्ट फोन जैसे महंगे उपहारों को माननीय अपने पास ही रखते हैं। कई तो उपहारों पर रोक लगाने की बात से ही नाराज हैं। उनके मुताबिक अगर सरकार अगर अधिकारियों को उपहार देती है, तो बुरा क्या है? आखिर निजी कंपनियां भी तो अपने वरिष्ठ अधिकारियों को उपहार देती हैं।
उपहार की परंपरा
राज्य में विधायकों को तोहफा बांटने की परंपरा काफी पुरानी है। हालांकि, 1980 के दशक तक विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से साल में एक बार सूटकेस उपहार में मिलता था। इस सूटकेस में एक कैलेंडर, कुर्ता-पजामे का कपड़ा, एक डायरी, एक कलाई घड़ी और एक कलम होती थी। विभागों की तरफ से अलग-अलग उपहार नहीं दिए जाते थे। विभागों की तरफ से उपहार 80 के दशक के आखिरी दिनों में मिलने शुरू हुए, लेकिन ऊर्जा, पथ-निर्माण, कृषि जैसे बड़े विभाग ही इस तरह के उपहार देते थे। ये उपहार भी विधानसभा अध्यक्ष और विधान परिषद के सभापति के जरिये भेजे जाते थे। 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों में विधायकों को सोने की घड़ी उपहार स्वरूप दी गई थी। उस वक्त सीपीआई (एमएल) के विधायक दल के नेता महेंद्र प्रसाद सिंह ने पहली बार इस परंपरा का विरोध किया था। नई सदी के आते-आते सभी विभागों की तरफ से विधायकों को छोटे-मोटे उपहार दिए जाने लगे। नीतीश कुमार के सत्ता में आने के साथ ही इस परंपरा की जड़ें गहरी होती चली गईं। 2006 के बजट सत्र में पहली बार सभी विभागों ने विधायकों को महंगे उपहार बांटे थे। इसके बाद से विभागों द्वारा पुरस्कार बांटने की परंपरा शुरू हो गई। मिसाल के तौर पर राज्य सरकार ने विधायकों को तोहफों के लिए करीब 3.5 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। उपहार का लालच कितना है, वह इस बात से समझा जा सकता है कि मंत्री से लेकर नेता-प्रतिपक्ष तक तोहफे लेने से नहीं हिचकते। बाकायदा इसके लिए वे विभागों की रसीद पर नाम-पते के साथ हस्ताक्षर भी करने को तैयार रहते हैं। जो विधानसभा में नहीं ले पाते, वे विभागीय अधिकारियों से पैरवी करवाकर तोहफों को घर मंगवा लेते हैं।
-कुमार विनोद

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