03-Mar-2016 07:36 AM
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राष्ट्रीय राजनीति में लालू प्रसाद की बड़ी और ऐतिहासिक भूमिका को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय जनता दल ने उन्हें भाजपा विरोधी गठबंधन को आकार देने की पहल करने के लिए अधिकृत कर दिया है। हाल ही में पटना में संपन्न हुए पार्टी के

राष्ट्रीय अधिवेशन में लालू प्रसाद को नौंवी बार निर्विरोध राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित होने का औपचारिक ऐलान किया गया। अधिवेशन में उन्हें बिहार विधानसभा चुनाव में महा-गठबंधन की ऐतिहासिक जीत का नायक बताया गया, साथ ही उनसे इस राजनीतिक प्रयोग को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार देने के लिए भी कहा गया, जिसे लालू प्रसाद ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उन्होंने घोषणा की, भाजपा को बिहार से बाहर किया है और अब देश से बाहर करके ही दम लेंगे। इसके लिए मेरा अभियान अब आरंभ हो रहा है।
जिन नेताओं ने लालू प्रसाद से यह अभियान शुरू करने की अपील की, उनमें तेजस्वी प्रसाद यादव भी शामिल हैं। तेजस्वी का मानना है, देश लालू प्रसाद यादव की प्रतीक्षा कर रहा है। आप आइए, सभी को इक_ा कीजिए और भाजपा को बाहर का रास्ता दिखाइए। यह संसदीय चुनावी राजनीति की रणनीतिक अभिव्यक्ति रही, जिसमें लालू प्रसाद और उनके बहाने राजद को प्रासंगिक बनाने की उत्कट चाहत है। इस लिहाज से राजद की राजनीतिक पूंजी पिछड़े एवं अल्पसंख्यक समुदाय की गोलबंदी के ख्याल से अधिवेशन में कुछ विशिष्ट प्रस्ताव भी पारित किए गए। राजद ने मुस्लिम मतदाता समूह को अपनी ओर खींचते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एवं जामिया मिल्लिया इस्लामिया को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान के दर्जे को लेकर मोदी सरकार के रुख की गहरी आलोचना की और इस मसले पर आंदोलन की चेतावनी भी दी। राज्य के वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी के अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए दशकों पुराने पंद्रह सूत्रीय कार्यक्रम को नए सिरे से शुरू करने के प्रस्ताव को तो अधिवेशन ने स्वीकार कर ही लिया, राजद प्रमुख ने इसे आंदोलन का एक बड़ा मसला भी बताया।
राजद के राष्ट्रव्यापी आंदोलन का तीसरा बड़ा मसला जातीय जनगणना की रिपोर्ट का प्रकाशन और सरकारी सेवाओं में उसके अनुरूप आरक्षण का पुनर्निर्धारण है। राजद के अधिवेशन में सात प्रस्ताव पारित किए गए। राजनीतिक प्रस्ताव में बिहार के भाजपा विरोधी महा-गठबंधन की तर्ज पर अन्य राज्यों में मोर्चा बनाने का आह्वान किया गया है। इसके लिए दल ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को राष्ट्र स्तर पर पहल करने और उस राजनीतिक मोर्चे का नेतृत्व संभालने को कहा है। दल का मानना है कि बिहार में लालू प्रसाद की भाजपा विरोधी राजनीतिक पहल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजय रथ रोक दिया। इसके अलावा देश में जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी करने के साथ-साथ अल्पसंख्यक दलितों के लिए सरकारी नौकरी में तीन से चार प्रतिशत आरक्षण की मांग की गई है। दल ने इस मसले पर अपने अध्यक्ष की अगुवाई में आंदोलन करने का फैसला लिया है। इसी तरह महंगाई, शिक्षा के भगवाकरण और किसानों के सवाल पर लालू प्रसाद के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी आंदोलन का फैसला लिया गया। पारित प्रस्तावों में सबसे महत्वपूर्ण है दल का सांगठनिक प्रस्ताव। अधिवेशन में सांगठनिक प्रस्ताव पारित कर युवाओं को राजद से जोडऩे की बड़ी पहल करने के साथ-साथ दल की आंतरिक स्थिति में लालू नाम केवलम को संवैधानिक स्वरूप भी दिया गया। पार्टी ने अपने संविधान में संशोधन कर 15 वर्ष के युवाओं (किशोर) को दल में शामिल करने का फैसला लिया है। ऐसा पार्टी को युवा लुक देने और विस्तार के ख्याल से किया गया। यह काम बिहार की महा-गठबंधन सरकार के उपमुख्यमंत्री एवं लालू-राबड़ी के राजनीतिक उत्तराधिकारी तेजस्वी प्रसाद यादव की पहल पर किया गया। पार्टी के संविधान में एक और महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है कि राजद की संपत्तियों की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट का गठन किया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय अध्यक्ष करेंगे। राजनीतिक एवं अन्य महत्वपूर्ण मसलों पर फैसले लेने के लिए एक कोर ग्रुप का गठन किया जाएगा। इस 11 सदस्यीय कोर गु्रप की सिफारिशें भी राष्ट्रीय अध्यक्ष की सहमति से ही लागू की जा सकेंगी। यानी जो कहें लालू, जो करें लालू।
बिहार में तो 20 साल के लिए फिक्स हो गई सरकार
लालू प्रसाद यादव अपने और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रिश्ते को अटूट बताते हुए कहते हैं कि सूबे में महा-गठबंधन की सरकार अगले बीस वर्षों तक चलेगी। इसलिए अब यहां की चिंता नहीं है और आने वाले दिनों में दिल्ली भी दूर नहीं होगी। राजद प्रमुख ने महा-गठबंधन के विरोधियों का मुंह बंद कराते हुए स्वीकार किया कि नीतीश कुमार बतौर मुख्यमंत्री उनकी राय लेकर ही कोई फैसला करते हैं। उनका कहना था, सब कुछ हमसे राय लेकर होता है, हम हर सवाल पर बात करते हैं। लालू प्रसाद यहीं नहीं रुके और उन्होंने पूछा, आरएसएस की क्या हैसियत है कि मोदी सरकार के मंत्री उसे अपने विभाग के कामकाज का हिसाब देते हैं?
-कुमार विनोद