31-Mar-2016 08:01 AM
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आज से करीब 32 साल पहले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हजारों लोगों को मौत की नींद सुलाने वाली यूनियन कार्बाइड की मिथाईल आईसोसाईनेट गैस अब प्रदेश के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में कहर बरपा सकती है।
दरअसल, यूनियन कार्बाइड के मिथाईल आईसोसाईनेट गैस युक्त जहरीले कचरे को पीथमपुर में जलाने की तैयारी कर ली गई है। पहले से ही मौत के मुहाने पर खड़े पीथमपुर में अब यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को जलाने से निकलने वाला धुआं यहां के आसपास के एक दर्जन गांवों के लोगों का दम घोटेगा। तमाम विरोध के बावजूद केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पीथमपुर स्थित रामकी संयंत्र के भष्मक में जहरीले कचरे को जलाने के लिए हरी झंडी दे दी है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति मिलने के बाद भोपाल गैस और पुनर्वास विभाग ने कचरा पीथमपुर भेजने की तैयार शुरू कर दी है। लेकिन किसी ने इसका आकलन नहीं किया कि इस रासायनिक अवशिष्ट को जलाने के बाद क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा?
उल्लेखनीय है कि 26 जून 2010 को जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर रामकी इनवायरो के इंसीनरेटर में यूनियन कार्बाइड का दस टन कचरा जलाने का ड्राय रन हुआ था तो उस दौरान दौरान रिसी गैस से मजदूरों को जलन, उल्टी व चक्कर आने की शिकायत हुई और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। उसके बाद इस कार्य को रोक दिया गया था। लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने केंद्र सरकार को रिपोर्ट दे दी कि कचरा जलाने से आम जीवन पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा, लिहाजा शेष बचा 340 मीट्रिक टन कचरा जलाया जा सकता है। अब तमाम आरोप-प्रत्यारोप के बीच एक बार फिर यूनियन कार्बाइड के मिथाईल आईसोसाईनेट गैस युक्त जहरीले कचरे को पीथमपुर में जलाने की तैयारी चल रही है। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि जुलाई-अगस्त, 2015 में एक परीक्षण में पाया गया कि पीथमपुर स्थित रामकी संयंत्र यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को जलाने के लिए सुरक्षित है। भोपाल गैस और पुनर्वास विभाग की प्रमुख सचिव गौरी सिंह कहती हैं कि हम कचरे का व्यवस्थित ढंग से परिवहन करने की तैयारी कर रहे हैं। हमारी जिम्मेदारी कचरे को पैक कर पीथमपुर तक पहुंचाने की है। वहां केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी में उसे जलाया जाएगा।
उधर, भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन से जुड़े सतीनाथ षडग़ी और रचना ढींगरा का कहना है कि सरकार की गलत नीतियों और ढीले रवैए के कारण जहरीला कचरा लगातार भोपाल के लोगों की जान ले रहा है। सरकार को बहुत पहले ही इसे यहां से उठाकर नष्ट करा देना चाहिए था। वह कहते हैं की पिछली बार 10 टन कचरा 6 दिन में जलाया गया था। ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि 350 टन कचरा जलाने में कितना वक्त लगेगा। रचना ढींगरा सवाल करती हैं कि इससे निकलने वाले जहरीले धूंए से आसपास के इलाकों के पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका आकलन किसी ने किया है? वह कहती है कि इस कचरे को जलाना भी महंगा पड़ेगा। भारत में किसी भी जहरीले कचरे को प्रति घंटे के हिसाब से जलाया जाता है। ऐसे में इस कचरे को जलाने में ही करीब 100 करोड़ रूपए खर्च हो जाएंगे। यही नहीं इस कचरे को यूनियन कार्बाइड परिसर से पीथमपुर तक ले जाने के लिए एक जर्मन कंपनी जीआईजेड ने 25 करोड़ रुपये की मांग की है। उनका कहना है कि यह सभी खर्च सरकार को वहन करना पड़ेगा। जबकि होना यह चाहिए था कि यूनियन कार्बाइड परिसर की साफाई, कचरे के परिवहन और निष्पादन का खर्चा डाउ केमिकल को उठाना चाहिए था।
उधर, यूनियन कार्बाइड के मिथाईल आईसोसाईनेट गैस युक्त जहरीले कचरे को पीथमपुर में जलाने की खबर मिलते ही इंदौर और पीथमपुर में इसका विरोध होने लगा है। आजादी बचाओं आंदोलन के मध्यप्रदेश संयोजक डॉ. तपन भट्टाचार्य कहते हैं कि विश्व की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदी के तीन दशक बाद भी इसके दुष्परिणाम भोपाल में देखे जा रहेे हैं। इस त्रासदी के बाद दूसरे पीढ़ी के बच्चे अभी भी विकलांग पैदा हो रहे हैं। स्थानीय इलाकों में गुर्दा, हृदय रोग जैसे बीमारियों से ग्रसित लोगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में अगर यह कचरा यहां जलाया जाता है तो औद्योगिक क्षेत्र और उसके आस-पास स्थिति गांवों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा। वह कहते हैं कि रामकी में पहले से ही जलने वाले जहरीले कचरों से तारपुरा, सिटोलिया, छोटी धन्नड़, बड़ी धन्नड़, गवला, माचल, चीरापुर भंवरगढ़, बजरंगपुर और बेटमा और छोटा बेटमा आदि गांव प्रदूषण की चपेट में हैं। ये सभी गांव भष्मक के 4-5 किलोमीटर के दायरे में हैं ग्रामीणों का कहना है कि जब भी भस्मक में खतरनाक कचरा जलाया जाता है उसकी बदबू से गांव में रहना मुश्किल हो जाता है।
पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड के खतरनाक अपशिष्ट के निपटान का लंबे समय से विरोध कर रहे लोकमैत्री संगठन के गौतम कोठारी कहते हैं कि एमपीपीसीबी के निरीक्षण के दौरान कई कमियां पाई गई हैं लेकिन कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। हम भोपाल का जहरीला कचरा यहां जलाने का शुरू से ही विरोध कर रहे हैं।
गौरतलब है कि यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाने के लिए राज्य शासन 15 साल से प्रयासरत है लेकिन पूरी सफलता नहीं मिल पाई है। सबसे पहले गुजरात में कचरा भेजने के लिए फाइलें चलीं थीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे तब इस बात के लिए सहमति हो गई थी कि अंकलेश्वर के इंसीनरेटर में कचरा जलाने में कोई आपत्ति नहीं है। राज्य शासन ने आदेश भी पारित कर दिए थे लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक सदस्य सचिव के मना करने पर कचरा नहीं भेजा गया। राज्य सरकार ने फिर महाराष्ट्र में कचरा जलाने के लिए हाथ-पैर मारे लेकिन यहां भी सफलता नहीं मिली। चेन्नई में जलाने के भी किए गए प्रयास सफल नहीं हो सके। आखिरकार मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद तय हुआ कि धार जिले के पीथमपुर में नष्ट किया जाएगा। जहरीले कचरे को पीथमपुर स्थित रामकी इनवायरो के इंसीनरेटर में जलाकर खत्म करने की सिफारिश केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने की थी। अब सरकार वहां इस जहरीले कचरे को जलाने जा रही है। लेकिन जानकार बताते हैं कि रामकी एनवायरो इंजीनियर्स लिमिटेड की मध्यप्रदेश वेस्ट मैनैजमेंट साईट के भस्मक में कई खामियां हैं और इसमें यूनियन कार्बाइड के मिथाईल आईसोसाईनेट गैस युक्त जहरीले कचरे को जलाना घातक हो सकता है।
पांच साल बाद भी नहीं रखी जांच आयोग की रिपोर्ट
यूनियन कार्बाइड कांड को लेकर सरकार कितनी सजग है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पांच साल बीत जाने के बाद भी विधानसभा में जांच आयोग की रिपोर्ट नहीं रखी जा सकी कै। ज्ञातव्य है कि यूनियन कार्बाइड कांड की जांच के लिए सरकार ने 25 अगस्त 2010 को न्यायमूर्ति एसएल कोचर के नेतृत्व में जांच आयोग गठित किया। आयोग ने पिछले साल 24 फरवरी को रिपोर्ट भी सौंप दी, लेकिन अब तक न तो मंत्रिमंडलीय समिति का गठन किया गया और न ही जांच प्रतिवेदन को विधानसभा पटल पर रखा गया। भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति की साधना कार्णिक कहती हैं कि जब सत्ता और सरकार से जुड़े लोग अपनी ब्रांडिंग में लग जाते हैं तो वे वास्तविक समस्याओं को भूल जाते हैं। वह कहती हैं कि यह भी विडंबना है कि सरकार संगोष्ठी आयोजित कर दुनिया के पर्यावरण और जलवायु पर चिंतन करती है, मगर पर्यावरण प्रदूषण और यूनियन कार्बाइड संयंत्र के दशकों से पड़े जहरीले कचरे की समस्या से जूझ रहे भोपाल का कोई जिक्र तक करने को तैयार नहीं है। इस संगोष्ठी के पहले दिन आर्ट ऑफ लिविंग के श्रीश्री रविशंकर सहित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, भाजपा सांसद अनिल माधव दवे ने दुनिया में बढ़ते प्रदूषण पर चिंता जताई। मगर किसी ने भी भेापाल हादसे के बाद यूनियन कार्बाइड संयंत्र परिसर में जमा कचरे से फैल रहे प्रदूषण और कचरे को ठिकाने लगाने की चर्चा करना तक मुनासिब नहीं समझा। सतीनाथ षडं्गी कहते है कि यूनियन कार्बाइड से हुए हादसे के बाद से रासायनिक कचरे को जलाने की गैस पीडि़तों द्वारा लगातार आवाज उठाई जाती रही है, इसकी वजह पर्यावरण के प्रदूषित होने के साथ मिट्टी और भूजल के प्रदूषित होने का खुलासा कई शोधों के जरिए होता रहा है। कई शोधों के जरिए यह बात भी सामने आ चुकी है कि संयंत्र के आसपास के लगभग तीन किलोमीटर परिधि के क्षेत्र में लगभग सौ फुट की गहराई तक जल प्रदूषित हो चुका है। इसकी वजह संयंत्र परिसर में जमा और तालाबों में दफन जहरीला कचरा है। सरकार इस समस्या से कैसे निपटेगी इसका कहीं कोई उल्लेख नहीं हो रहा है।
-भोपाल से कुमार राजेन्द्र