राज्यसभा की रार
16-Mar-2016 07:57 AM 1234761

जून के अंतिम दिनों में राज्यसभा के लिए मप्र से खाली हो रही तीन सीटों के लिए दावेदार नेताओं में रार शुरू हो गई है। जहां वर्तमान सांसद अपने आपको दोहराने की जुगाड़ में लगे हुए हैं, वहीं अन्य नेता इनकी जगह जाने के लिए जोड़-तोड़ में जुट गए हैं। भाजपा के खाते में जाने वाली दो सीटों पर जिनकी नजर है, उन्हें भरोसा है कि उनका संघ कनेक्शन उनकी दावेदारी को पुख्ता करेगा तो कांग्रेस के हिस्से में आने वाली एक सीट को लेकर जरूर कइयों की नजर टिकी है जो या तो चुनाव हार चुके हैं या फिर खुद को सोनिया-राहुल का करीबी मानते हैं। आलम यह है कि दोनों दलों के नेता अपने-अपने आकाओं को पटाने में लग गए हैं।
उल्लेखनीय है कि 29 जून 2016 को राज्यसभा के जिन तीन सांसदों का कार्यकाल खत्म हो रहा है उनमें अनिल दवे, चंदन मित्रा और विजयलक्ष्मी साधो शामिल हैं। इसके बाद 2 अप्रैल 2018 में 5 और 2020 में 3 सीटें खाली होना है इसलिए फिलहाल मारामारी ज्यादा रहेगी। भाजपा की 2 और कांग्रेस की 1 सीट के लिए उम्मीदवारों के दावों पर यदि गौर किया जाए तो पहले इन राज्यसभा सांसदों की एक और पारी की गुंजाइश को टटोलना होगा। सबसे पहले बात यदि अनिल दवे की होगी तो वो 6 साल का कार्यकाल पूरा करने से पहले खाली हुई सीट पर करीब आधा कार्यकाल भी बतौर राज्यसभा सदस्य पूरा कर चुके हैं। भाजपा में लगातार राज्यसभा में 2 बार तक भेजे जाने की व्यवस्था बनाई गई थी। ऐसे में उन्हें तीसरी पारी के लिए कड़ी मशक्कत करना पड़ेगी क्योंकि दो बार वे सदन के सदस्य रह चुके हैं। उनके लिए अच्छी बात ये है कि कार्यकाल पहली बार का अधूरा था। संघ की पृष्ठभूमि वाले इस नेता ने भाजपा की सरकार बनाने में चुनाव प्रबंधन की जो कमान संभाली उसकी जरूरत शिवराज और उनकी सरकार को 2018 में महसूस होगी ऐसे में शिवराज का वीटो ही नहीं मोदी-शाह की पसंद बनना दवे के लिए जरूरी हो जाएगा। अनिल दवे की काट यदि कोई हो सकता है तो वो संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े राम माधव हो सकते हैं जिन्हें राज्यसभा में भेजने के फैसले में पर्दे के पीछे ही सही यदि संघ लेता है तो फिर दूसरे दावेदारों को नए सिरे से सोचना होगा।
दावेदारों में सबसे बड़ा नाम कैलाश विजयवर्गीय का भी तय है। कैलाश की नजर भले ही एमपी पर टिकी हो लेकिन उन्होंने अभी तक विधायक पद से इस्तीफा नहीं दिया है। शाह की टीम में नंबर 2 और सबसे मजबूत और सुर्खियों में रहने वाले कैलाश को शाह के मार्फत ही सही मोदी का आशीर्वाद हासिल करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। बशर्ते वो खुद रुचि लें। विजयवर्गीय इन दिनों पश्चिम बंगाल के प्रभारी हैं जहां जल्द विधानसभा के चुनाव होना हैं। पश्चिम बंगाल से ही ताल्लुक रखने वाले पत्रकार-राजनेता चंदन मित्रा का कार्यकाल खत्म हो रहा है ऐसे में भाजपा को इनके बारे में सोचना होगा कि राज्यसभा में इस चुनाव के मद्देनजर वो कितने उपयोगी हैं। कभी आडवाणी की पसंद के तौर पर संसद में बैकडोर इंट्री के लिए चंदन मित्रा को मप्र से चुना गया था। भाजपा से एक और दावेदार मप्र के प्रभारी और अमित शाह की टीम में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे की दावेदारी को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता है जो नितिन गडकरी की पसंद हैं। संघ से जुड़े रहे। सहस्रबुद्धे ने सांसद, मंत्रियों और विधायकों के प्रशिक्षण में बड़ी भूमिका निभाते हुए एक नई पौध को अनुभवी और ऊर्जावान बनाया है। यानी कह सकते हैं कि राज्यसभा की 2 सीटों के लिए 4 बड़े दावेदार अनिल दवे, राम माधव, कैलाश विजयवर्गीय और विनय सहस्रबुद्धे भले ही भाजपा की राजनीति कर रहे हों लेकिन वो आज जिस मुकाम पर भी हैं उसमें संघ का बड़ा और अहम रोल रहा है। देखना दिलचस्प होगा कि 3 महीने बाद संसद की बैकडोर इंट्री के लिए इन चार नेताओं का संघ कनेक्शन आखिर क्या गुल खिलाता है। क्योंकि कैलाश विजयवर्गीय और अनिल दवे प्रदेश इकाई की पसंद होंगे तो विनय सहस्रबुद्धे और राम माधव हाईकमान की पसंद बनकर सामने आएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वहीं संभावना यह भी जताई जा रही है कि पार्टी दूसरे राज्यों के कुछ नेताओं को मप्र से राज्यसभा भेज सकती है।
कांग्रेस में साधो की सीट पर सामने आ रहे हैं तीन दावेदार
जहां तक बात कांग्रेस की विजयलक्ष्मी साधो का कार्यकाल खत्म होने पर उनके विकल्प की है तो 3 नामों का चर्चा में आना तय है। यदि विजयलक्ष्मी को दूसरी पारी का मौका नहीं मिला तो फिर पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, कांग्रेस महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष और टीम राहुल में गहरी पैठ बना चुकी शोभा ओझा के साथ सीनियर एडवोकेट विवेक तन्खा में से किसी एक की लॉटरी खुल सकती है। फिलहाल कांग्रेस के एजेंडे में दलित राजनीति जिस तरह सबसे ऊपर नजर आ रही है उसके बाद विजयलक्ष्मी को लेकर हाईकमान को सौ बार सोचना होगा लेकिन ये भी सच है कि प्रदेश की राजनीति से उन्होंने लगभग दूरी बना रखी है। साधो के विकल्प के तौर पर यदि महिला का दावा बना तो शोभा ओझा लेकिन 10 जनपथ के करीबी सुरेश पचौरी के दावे को भी नकारा नहीं जा सकता क्योंिक दिग्विजय सिंह और सत्यव्रत जैसे राज्यसभा में पहले ही भेजे जा चुके हैं तो कमलनाथ और सिंधिया के साथ कांतिलाल भूरिया जैसे दिग्गज लोकसभा में पहुंच चुके हैं। राहुल गांधी की नई टीम में यदि अरुण यादव को एमपी से दिल्ली ले जाया जाता है तो उन्हें भी राज्यसभा में भेजकर संतुष्ट किया जा सकता है। लेकिन दिग्विजय सिंह की पसंद जो शिवराज को घेरने के लिए व्यापमं की लड़ाई लंबे समय से लड़ रहे हैं विवेक तन्खा पर भी कांग्रेस गौर कर सकती है जिनकी कोशिश एक बार सफल नहीं हुई थी। वह बात और है कि इन दिनों विवेक तन्खा की शिवराज से भी दूरियां कम हुई हैं।
-भोपाल से विकास दुबे

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