15-Apr-2013 11:23 AM
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सीबीआई सरकार को बचाने और विरोधियों को फंसाने का काम करती है यह एक बार फिर जाहिर हो गया है। देश के कानून मंत्री कानून बनाने का ही काम नहीं करते बल्कि कानून से बचने का तरीका भी बताते हैं। करोड़ों रुपये के कोयले घोटाले की सीबीआई जांच को सरकार के पक्ष में करने के लिए कानून मंत्री ने जो टिप्स सीबीआई को दी थी उसका खुलासा हाल ही में एक अंग्रेजी अखबार ने किया है। जिसके मुताबिक इस मामले पर पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट देने से पहले सीबीआई ने कानून मंत्री अश्विनी कुमार और प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ बैठकें की थीं। कानून मंत्री के साथ सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक में इस रिपोर्ट में कई संशोधन सुझाए गए थे और सीबीआई ने इन्हें मान लिया। इस बैठक में सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा भी मौजूद थे।
इस ताज़ा रहस्योद्घाटन ने राजनीतिक तापमान बाधा दिया है। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा है कि ये गंभीर मामला है और प्रधानमंत्री को बचाने के लिए सीबीआई पर दबाव डालने का सबूत है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने भी इस मामले में सरकार से सफाई मांगी है और इस घोटाले की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने की मांग की है।इस मामले में सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह का कहना है कि सीबीआई सरकार का एक मंत्रालय है और कोई भी सरकार इसे निष्पक्ष तरीके से काम नहीं करने देती। ज्ञात रहे कि कोयला ब्लाक आवंटन मामले में आरोपों से घिरी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से भी मार्च माह में करारा झटका लगा था। कोर्ट ने जहां केंद्र सरकार की पैरोकारी कर रहे अटार्नी जनरल से कहा था कि वह जांच के बारे में संभल कर बयान दें और ध्यान रखें कि उनके बयान से सीबीआइ जांच प्रभावित न हो। वहीं, सीबीआइ को भी निर्देश दिया था कि वह अपनी जांच राजनैतिक नेतृत्व से साझा न करे। लेकिन लगता है कोर्ट की सलाह से पहले ही सीबीआई अपना काम कर चुकी थी। 2जी के बाद यह दूसरा मौका था जबकि सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की साख पर सवाल उठा। न्यायमूर्ति आरएम लोधा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कोयला ब्लाक आवंटन घोटाले की एसआइटी से जांच कराने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान ये निर्देश जारी किए थे। गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज व वकील एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर कोयला ब्लाक आवंटन की निष्पक्ष जांच कराए जाने की मांग की है। मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सीबीआइ की ओर से दाखिल जांच की प्रगति रिपोर्ट देखने के बाद कोर्ट ने कहा था कि इससे पता चलता है कि कोयला ब्लाक आवंटन में अनियमितताएं हुई हैं। जब याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने मामले की जांच में सीवीसी को भी शामिल करने की बात कही तो पीठ ने इन्कार करते हुए कहा कि इसकी जरूरत नहीं है। वे अलग-अलग मामलों पर विचार नहीं कर रहे हैं। वे तो सिर्फ यह देखेंगे कि आवंटन में निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन हुआ है कि नहीं।
पीठ ने कहा था कि सीबीआई की रिपोर्ट देखने से पता चलता है कि अनियमितताएं हुई हैं। कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि 2006 से 2009 के बीच उसे कोयला ब्लाक आवंटन के लिए 2100 आवेदन मिले थे जबकि सिर्फ 151 कंपनियों को कोयला ब्लाक आवंटित किए गए। पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह तीन सप्ताह में अतिरिक्त हलफनामा दाखिल कर स्पष्ट करे कि किस आधार पर कुछ कंपनियों को कोयला ब्लाक आवंटित करने के लिए चुना गया और बाकी को छोड़ दिया गया। इससे पूर्व भी न्यायालय ने 24 जनवरी को कंपनियों को कोयला ब्लाक आवंटन करने के अधिकार पर सवाल उठाते हुये कहा था कि उसे बहुत सारे स्प्ष्टीकरण देने होंगे क्योंकि कानून के तहत ऐसा करने का अधिकार सिर्फ राज्यों को ही है। न्यायालय ने यह भी कहा था कि केन्द्र खान और खनिज कानून को नजरअंदाज नहीं कर सकता है जिसमें उसे कंपनियों को कोयला ब्लॉक आवंटन करने का कोई अधिकार नहीं प्राप्त है।
ज्ञात रहे कि कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सरकार ने प्राइवेट कंपनियों को कौडिय़ों के भाव कोयला खानों का आवंटन कर दिया, जिससे सरकारी खजाने को 1 .86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। साथ ही कैग ने अनिल अंबानी की कंपनी को करीब 29,033 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाए जाने की बात भी कही थी। रिपोर्ट के मुताबिक, मनमानी पूर्ण आवंटन के बजाय इन खदानों की नीलामी की गई होती तो सरकारी खजाने में करीब 1.86 लाख करोड़ रुपये का ज्यादा राजस्व आता। कैग ने अपनी रिपोर्ट में रिलायंस पावर, टाटा स्टील, टाटा पावर, भूषण स्टील, जिंदल स्टील ऐंड पावर, हिंडाल्को और एस्सार ग्रुप समेत 25 कॉर्पोरेट घरानों को फायदा मिलने की बात कही थी।
अक्स ब्यूरो