कांग्रेस की पतवार प्रियंका गांधी के हाथ!
16-Mar-2016 08:24 AM 1234825

यूपी में लंबे अर्से से राजनीति में हासिए पर चल रही कांग्रेस अब 2017 में अपना सबसे अहम चेहरा सियासत में उतारने की तैयारी में लगता है जुट गई है। बीते दो दिनों तक यूपी के आगामी चुनाव के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में हुई बैठक में कई चौंकाने वाले फैसले किए जाने से सूबे की सियासत अचानक गर्म हो गई है।
यह बात तो तय है कि यूपी चुनाव की कमान प्रशांत कुमार के हाथ में रहेगी। जिसके बाद एक और खबर ने समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी व भारतीय जनता पार्टी को झकझोर दिया है। दिल्ली में हुई बैठक से मिले संकेतों के बाद कांग्रेसियों को मानों पंख लग गए हैं।  हालांकि अभी कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है, लेकिन अचानक कांग्रेसियों के तेवर तल्ख दिखाई देने लगे हैं। उनमें उत्साह भी साफ दिखाई दे रहे हैं। वे यह भी कहने लगे हैं, कि अब तो यूपी में कांग्रेस ही सरकार बनाएंगी। इसके पीछे की वजह बता रहे हैं, कि अब यूपी में मुख्यमंत्री पद का चेहरा कांग्रेस प्रियंका गांधी बाड्रा को बनाने पर मंथन कर रही है। प्रियंका गांधी बाड्रा के नाम की गूंज कब जंगल में आग की तरह फैल गई, कोई कुछ समझ नहीं पा रहा है, लेकिन इस चर्चा ने कांग्रेसियों की आंखों में चमक पैदा कर दी है। कांग्रेस कार्यालय के बाहर भी काफी हलचल बढ़ गई। बताया जाता है कि प्रशांत कुमार को यूपी चुनाव के निर्देश की कमान सौंपने के बाद उन्होंने नेतृत्व व टीम के बारे में जाना। यूपी के दिग्गज नेताओं से उनकी सांगठनिक संरचना को समझा। यूपी कांग्रेस के पास मौजूद आंकड़ों के आलवा वर्तमान में कार्यकर्ताओं की टीम व रुझान के बारे में भी नेताओं से बात की। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष निर्मल खत्री, प्रदेश प्रभारी मधुसूदन मिस्त्री के अलावा राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी समेत एक दर्जन से अधिक पुराने कांग्रेस पदाधिकारियों से उन्होंने अलग-अलग बात भी की। बातचीत में वर्तमान के साथ ही राजनीतिक भविष्य के निहितार्थ भी तलाशने में प्रशांत ने प्रदेश कांग्रेस पदाधिकारियों से खूब माथापच्ची करवाए जाने की बात बतायी जा रही है। इस मंथन के बाद प्रशांत को मिली जमीनी हकीकत पर आधारित रिपोर्ट कार्ड कांग्रेस आलाकमान के पास पेश किया।
यूपी में कांग्रेस की सियासी फसल फिर लहलहाने के लिए नए प्रयोग के बजाए, गांधी परिवार के ही चेहरे को प्रोजेक्ट कर आगे जनमत की राह बनाए जाने का सुझाव दिया गया। इसके बाद से ही प्रियंका गांधी को यूपी में मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाकर चुनावी संग्राम लड़े जाने के कायासों का दौर शुरू हो गया। प्रियंका गांधी वाड्रा के यूपी में चुनावी संग्राम में सीधे उतारे जाने की खबर ने सियासी दिग्गजों को सन्न कर दिया है। इसी के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है। फिलहाल अभी इस मसले पर कांग्रेस के प्रवक्ता वीरेंद्र मदान का कहना है, कि यह निर्णय कांग्रेस आलाकमान को करना है। उनकी ओर से जब निर्णय होगा, तो पूरा देश जानेगा।
प्रियंका की जनता में स्वीकार्यता
प्रियंका अपनी मां सोनिया गांधी के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली और अमेठी में जाती रही हैं। इन क्षेत्रों में उनकी स्वीकार्यता भी है इसलिए लोगों को लगता है कि यदि 2017 के चुनाव में उनकी ही अगुवाई में चुनाव मैदान में जाया जाए तो बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद की जा सकती है। प्रियंका गांधी द्वारा बार-बार राजनीति में न आने की घोषणा के बाद भी पार्टी के कार्यकर्ता उनसे लंबे समय से यूपी में सक्रिय होने की अपील कर रहे हैं। प्रियंका गांधी भले चुनाव न लड़ी हों, लेकिन अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के चुनाव प्रबंधन का काम वह बखूबी संभालती आई हैं।
दरअसल देश की सबसे पुरानी पार्टी एक तरह से बेबस नजर आ रही है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के अंदर किसी प्रमुख क्षेत्रीय क्षत्रप नेता के अभाव में कांग्रेस नेहरू-गांधी परिवार पर ही निर्भर है। बहुत सारे कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि राहुल या प्रियंका अगर सरकार बनाने या चलाने का अनुभव लेना चाहते हैं तब उन्हें इसे उत्तर प्रदेश में अजमाना चाहिए। इसके पीछे तर्क यह है कि अगर पहले वो 20 करोड़ लोगों की समस्याओं को सुलझाने में कामयाब हो जाते हैं तब वो एक अरब से अधिक की आबादी की समस्या को सुलझा पाने के लायक होंगे। प्रशांत किशोर को भी यह बहुत साफ तौर पर दिख रहा है कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ आकर्षक नारों से काम नहीं चलेगा। कांग्रेस को राज्य में एक ऐसे चेहरे की जरूरत पड़ेगी जो बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी की संगठनात्मक ताकत को चुनौती दे सके। राज्य के चुनावों में नवीन पटनायक या चंद्रबाबू नायडू जैसे क्षेत्रीय नेताओं को लोग वोट देते हैं। उत्तर प्रदेश के वोटर श्रीप्रकाश जयसवाल या बेनी प्रसाद वर्मा जैसे कम लोकप्रिय कांग्रेसी नेताओं को वोट नहीं देंगे। 2012 में राहुल गांधी के नजदीकी नहीं चाहते थे कि उत्तरप्रदेश में राहुल कोई हस्तक्षेप करें। 2017 में भी राहुल या प्रियंका के लिए उत्तरप्रदेश में कोई हस्तक्षेप करना मुश्किल होगा। इसमें कोई शक नहीं है कि अगर उत्तर प्रदेश के चुनाव में ये दोनों नंबर दो की भूमिका निभाते हैं तो राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को बड़ा सहारा मिलेगा। औम तौर पर पार्टी के लोग 2004 और 2009 की चुनावी जीत के लिए नेहरू-गांधी परिवार के प्रति एहसानमंद हैं और यह बात पार्टी में किसी विद्रोह की संभावना को खारिज करती है। मई 2014 में हुई चुनावी हार के लिए बहुत सारे कांग्रेसी अब तक राहुल गांधी को ही जिम्मेदार मानते हैं। जैसे हार की तोहमत काफी नहीं था, पार्टी के अंदर राहुल को एक प्रेरणादायक नेता या भविष्य के नेता के तौर पर पूरी तरह से स्वीकृति नहीं मिल रही है।
यूपी में आसान नहीं कांग्रेस की डगर
सूत्रों के अनुसार कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की अगुवाई में पार्टी के उत्तर प्रदेश के नेताओं की दिल्ली में हुई दो मार्च को हुई बैठक में किशोर का मत था कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को 25 साल पुरानी स्थिति में लाना बहुत आसान नहीं है लेकिन यदि कोई चमत्कारी चेहरा आगे किया जाए तो यह काम हो भी सकता है। प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में लाकर आगे किये जाने की कई बार मांग उठ चुकी है हालांकि राहुल गांधी ने हर बार कहा, वह मेरी बहन है, वह जो भी करना चाहेगी मैं हरसंभव मदद करुंगा। वह काफी समझदार है। जनता के बीच उसे काम करने में कठिनाई नहीं होती।
द्यलखनऊ से मधु आलोक निगम

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^