03-Mar-2016 08:00 AM
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हाल ही में 12 सीटों पर हुए उपचुनाव में एनडीए का 7 सीटों पर मिली जीत ने गठबंधन को सुकून तो मिला ही है भाजपा भी उत्साहित है। भाजपा को सबसे अधिक सुकून इस बात को लेकर है कि उसने उत्तर प्रदेश में एक सीट जीती है। ऐसा

इसलिए की राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले है और मुजफ्फरनगर सीट पर हुए उपचुनाव में न केवल भाजपा ने यह सीट सपा से छिनी है बल्कि राजनाथ सिंह के रूप में एक नाम सामने आया है जिस पर दांव खेला जा सकता है। दरअसल इस सीट को जीतने में राजनाथ की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है इसलिए पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में इन्हें दांव पर लगाने का मन बना रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बीच पिछले दिनों हुई मुलाकात केंद्रीय मंत्रिमंडल के संभावित फेरबदल के साथ जोड़कर देखी गई, लेकिन मामला केवल यही नहीं था। नरेंद्र मोदी एवं राजनाथ सिंह के बीच उत्तर प्रदेश में भाजपा संगठन को लेकर हो रहे बिखराव को संभालने और आने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीतियों को लेकर विस्तार से बातचीत हुई। इस मुलाकात ने एक बार फिर यह चर्चा और संभावना दोनों बढ़ाई कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उतरने के लिए भाजपा का चेहरा कहीं राजनाथ सिंह ही तो नहीं हो रहे! हालांकि, भाजपा के चाल-चरित्र-चेहरे को गहराई से जानने वाले कुछ समीक्षकों का यह भी कहना है कि राष्ट्रीय राजनीति में कद्दावर व्यक्तित्व के साथ उभर रहे राजनाथ सिंह को क्षेत्रीय राजनीति के छोटे कैनवस पर समेटने के लिए भी उन्हें दांव देने की सियासत चल सकती है। राजनाथ सिंह मोदी द्वारा हाशिये पर धकेल दिए गए सारे वरिष्ठ नेताओं के चहेते हैं। लालकृष्ण आडवाणी हों या डॉ. मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा हों या विद्रोही शत्रुघ्न सिन्हा, ये सब राजनाथ सिंह को पसंद करते हैं। ऐसे में, हाशिये पर पड़े वरिष्ठों की मदद से भविष्य में किसी उठापटक की संभावना या आशंका के मद्देनजर उन्हें केंद्र की राजनीति से हटाकर प्रदेश में समेटने की कोशिश के तर्क कमजोर नहीं दिखते। बहरहाल, राजनाथ को सामने रखकर चुनाव लडऩे की संभावनाओं पर भाजपा आलाकमान और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष नेतृत्व में लगातार मंथन चल रहा है। इसके साथ-साथ भाजपा के अंदर बने अलग-अलग खेमे भी कभी कल्याण सिंह, तो कभी उमा भारती, कभी ओम प्रकाश सिंह, तो कभी वरुण गांधी का नाम लेकर नियोजित-भ्रम की स्थिति पैदा करने में सक्रिय हैं। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आता गया, वैसे-वैसे नेतृत्व को यह समझ में आता गया कि अगर पार्टी का चेहरा मजबूत नहीं हुआ, तो उत्तर प्रदेश भी हाथ से निकल जाएगा और, अगर उत्तर प्रदेश हाथ से निकला, तो पार्टी के ताकतवर होने की सारी संभावनाएं चौपट हो जाएंगी। दिल्ली और बिहार के परिणामों के बाद भाजपा नेतृत्व चुनावी-चेहरे पर कोई जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं है। खास तौर पर बिहार चुनाव के बाद पार्टी के भीतर यह मांग पुरजोर तरीके से उठी कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उतरने के पहले नेतृत्व को मुख्यमंत्री पद के लिए स्थानीय एवं दमदार चेहरे की घोषणा कर देनी चाहिए। भाजपा नेता यह मुद्दा उठा रहे हैं कि लोकसभा चुनाव के समय पार्टी ने कांग्रेस के समक्ष सवाल उछाला था कि वह प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित करने से क्यों हिचक रही है? फिर भाजपा ने बिहार चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा पहले घोषित क्यों नहीं किया? और, पार्टी ऐसी गलती दोबारा न करे। लिहाजा, इस बात की पूरी संभावना है कि राजनाथ सिंह को दिल्ली छोड़कर उत्तर प्रदेश चुनाव की जिम्मेदारी संभालने के लिए कहा जाए। अगर राजनाथ सिंह यह दायित्व संभालते हैं, तो निश्चित तौर पर प्रदेश के अध्यक्ष के साथ-साथ संगठन की टीम भी उसी मुताबिक बनेगी। लेकिन, जिलाध्यक्षों की टोली के अधिकांश सदस्य दिल्ली-दल द्वारा पहले ही चुने जा चुके हैं जो राजनाथ सिंह के लिए भी एक बड़ी समस्या है।
-लखनऊ से मधु आलोक निगम