मुसीबत में फंसे मुशर्रफ
16-Mar-2016 08:10 AM 1234785

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ इनदिनों मुसीबत में फंसे हुए हैं। देशद्रोह के आरोप से निजात पाने के लिए वे हाथ-पांव मार रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। इसलिए सरकार और सेना को अपने पक्ष में करने के लिए उन्होंने भारत के खिलाफ लगातार जहर उगलना शुरू कर दिया, बावजूद सहानुभूति हासिल नहीं कर सके। उनके खिलाफ देशद्रोह के मुकदमे का जल्दी फैसला होगा। इसमें उन्हें सजा-ए-मौत भी मिल सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय ने राजद्रोह के मसले पर उनके विरूद्ध सुनवाई पूर्ण करने का निर्णय लिया है। इस तरह का निर्णय मिलने तक पाकिस्तान से बाहर जाने की अनुमति को मुशर्रफ हेतु प्रतिबंधित कर दिया गया है। दरअसल वर्ष 2007 में सैन्य शासक के तौर पर परवेज मुशर्रफ ने आपातकाल लगाने की परिस्थितियां निर्मित की थीं और आपातकाल के लिए जोर दिया था। 72 वर्ष के पूर्व सैन्य प्रमुख के विरूद्ध इस तरह का आदेश दिया गया है और कहा गया कि मुशर्रफ के दोषी सिद्ध होने पर उन्हें मृत्युदंड तक दिया जा सकता है। वरिष्ठ न्यायालय ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश अब्दुल हमीद डोंगर की याचिका पर सुनवाई की। इस मामले में डोंगर ने आदेश दिया और डोंगर ने स्वयं को आरोपी बनाए जाने को चुनौती थी दी थी। परवेज मुशर्रफ के विरूद्ध तीन सदस्यीय विशेष न्यायालय ने 27 नवंबर 2015 को संघीय जांच एजेंसी को जांच के आदेश दिए।
पूर्व प्रधानमंत्री शौकत अजीज, पूर्व मंत्री जाहिद हमीद और डोंगर को परवेज मुशर्रफ के ही साथ आरोपी बनाते हुए उनकी भूमिका जांचने के लिए कहा। डोंगर द्वारा विशेष न्यायालय के निर्णय को इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी गई। 12 दिसंबर वर्ष 2015 को उनकी याचिका खारिज कर दी गई। जिसके बाद मुशर्रफ सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे थे। अप्रैल वर्ष 2014 में मुशर्रफ को राजद्रोह के मामले में आरोपी बना दिया गया। जिसके बाद कई कारणों से मामला आगे नहीं बढ़ सका। प्रमुख न्यायालय के निर्णय के बाद इस मामले में तेजी आने की संभावना भी जताई गई। परवेज मुशर्रफ ने वर्ष 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपदस्थ कर दिया था। वे वर्ष 2008 तक सत्ता में भी रहे थे। हालांकि उन्होंने पहले विदेश जाने  लिए और अपना उपचार करवाने के लिए अनुमति मांगी थी। मगर अब न्यायालय ने उन्हें पाकिस्तान से बाहर जाने की अनुमति भी नहीं दी है।
मुशर्रफ के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं। सरकार भी साक्ष्य पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। ऐसे में मुशर्रफ की उम्मीद सेना प्रमुख पर टिकी है। यह पाकिस्तानी व्यवस्था की हकीकत है। यदि वर्तमान सेना प्रमुख चाहें तो पूर्व सेनापति मुशर्रफ की जान बच सकती है। चर्चा है कि पाकिस्तान छोड़कर चले जाने और राजनीति से तौबा करने की शर्त पर उन्हें सजा-ए-मौत की सजा से छुटकारा मिल सकता है। ऐसी सौदेबाजी की शुरुआत मुशर्रफ ने ही की थी। उन्होंने अपने सियासी प्रतिद्वंदी नवाज शरीफ और बेनजीर भुट्टो को देश छोडऩे की शर्त पर मुकदमों से छूट दी थी, लेकिन सेना प्रमुख पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद जब मुशर्रफ की सत्ता कमजोर होने लगी थी, तब उन्हें नवाज और बेनजीर दोनों की मुल्क वापसी मंजूर करनी पड़ी थी। वर्तमान प्रधानमंत्री नवाज शरीफ कभी मुशर्रफ के हाथों मिले दर्द को भूल नहीं सकते। मुशर्रफ ने उन्हें प्रधानमंत्री पद से अपदस्त करके सत्ता पर कब्जा किया था। इसके बाद शरीफ को जेल जाना पड़ा। अन्तत: देश छोडऩे की शर्त स्वीकार करनी पड़ी थी। अब नवाज शरीफ चाहते हैं कि कानून अपना काम करे, लेकिन सेना के प्रभाव को वह बखूबी जानते हैं। यदि सेना मृत्युदण्ड का विरोध करेगी तो फिर देश छोडऩे पर समझौता हो सकता है।
लेकिन इतना मानना पड़ेगा कि मुशर्रफ के लिये आने वाला समय तनावपूर्ण होगा। कुछ समय से वह भारत के खिलाफ जहर उगल रहे थे। इसका कारण यह था कि वह नए सिरे से सेना और गुप्तचर संस्था का विश्वास हासिल करना चाहते थे। भारत विरोधी बातों से सेना को संतुष्टि मिलती है। मुशर्रफ के ऐसे बयान पिंजरे में फडफ़ड़ाने जैसे थे। इस प्रकरण में क्या होगा यह भविष्य में पता चलेगा, लेकिन मुशर्रफ अपनी वाहवाही में ऐसी बात बता चुके हैं, जिनसे पाकिस्तान की हकीकत पुन: जगजाहिर हो गयी है। वहां की सेना आतंकी संगठनों को संरक्षण, ट्रेनिंग और वित्तीय सहायता देती है। गरीब मुसलमानों को मोहरा बना कर सीमा पार का आतंकवाद चलाया जाता है देखना होगा ये बातें मुशर्रफ का जीवन बचाने में कितनी कारगर होंगी। इधर एक अन्य मामले में भी मुशर्रफ के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया गया है। सत्र न्यायाधीश ने लाल मस्जिद मामले में पूर्व राष्ट्रपति को ये वारंट जारी किया है। वर्ष 2007 में लाल मस्जिद में हुई सैन्य कार्रवाई के दौरान मुस्लिम धर्मगुरु अब्दुल रशीद गाजी की हत्या के इस मामले में मुशर्रफ को 16 मार्च को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया गया है। अदालत ने इस मामले में पेशी से स्थायी छूट देने की मुशर्रफ की याचिका को भी नामंजूर कर दिया गया है। उनके वकील ने फैसले को चुनौती देने की बात कही है। इस मामले में 55 सुनवाई के दौरान मुशर्रफ कभी भी अदालत में हाजिर नहीं हुए। ज्ञात हो कि 2007 में लाल मस्जिद की तीन दिवसीय सैन्य घेराबंदी में छात्रों और सैन्यकर्मियों सहित कई लोगों की जान गई थी। गाजी के परिवार ने 2013 में इस मामले में मुशर्रफ के खिलाफ मामला दर्ज कराया था।
-बृजेश साहू

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^