अब कंपनी करेगी शहरों का विकास
16-Mar-2016 08:06 AM 1234911

जिस तरह स्मार्ट सिटी के निर्माण में नगर निगम और महापौर की भूमिका छीनकर स्पेशल परपस वेकिल (एसपीवी यानी विशेष प्रयोजन साधन) को दे दिया गया है उसी तरह अब शहरों के विकास में भी इनकी भूमिका को कम किया जा रहा है। इसके तहत राज्य सरकार ने विदेशी कर्ज से होने वाले विकास कार्यों के लिए मप्र अर्बन डेवलपमेंट कंपनी (एमपीयूडीसी) का गठन करने जा रही है। अब वल्र्ड बैंक, एडीबी और केएफडब्ल्यू बैंक जर्मनी से मिलने वाले कर्ज की रकम नगरीय निकायों की बजाय कंपनी को मिलेगी और कंपनी इससे शहर का विकास करवाएगी। इसमें नगर निगम और महापौर की भूमिका नगण्य रहेगी। कंपनी शुरूआती दौर में भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर फोकस करेगी।  साथ ही अन्य शहरों में भी छोटे-मोटे काम किए जाएंगे।
हालांकि एमपीयूडीसी के गठन को लेकर चारों शहरों के महापौर नाखुश हैं। लेकिन नगरीय प्रशासन विभाग के अधिकारियों का कहना है मध्य प्रदेश में खस्ता शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर की मार झेल रहे महानगरों को खूबसूरत शक्ल देने में नगरीय निकायों द्वारा की जा रही देरी के कारण  राज्य सरकार ने कंपनी गठित करने का निर्णय लिया है। कंपनी का गठन गुजरात राज्य की तर्ज पर किया जाएगा। अर्बन डेवलपमेंट कंपनी बनने के बाद शहरों का तेजी से विकास होगा। यह कंपनी फंड जुटाने के साथ-साथ नगर निगमों के बड़े प्रोजेक्ट पर काम करेगी। इसके लिए हर विषय के एक्सपर्ट की सेवाएं कांट्रेक्ट पर ली जाएंगी।
विकास के कामों के लिए
कंपनी होगी सर्वेसर्वा
बताया जाता है कि प्रदेश के शहरों में वाटर सप्लाई और सीवरेज का काम अब नगर निगमों के बजाय एमपीयूडीसी करेगी। इसके लिए राज्य सरकार साढ़े चार हजार करोड़ की मंजूरी दी है। शहरों की वाटर सप्लाई और सीवरेज के लिए वल्र्ड बैंक, एडीबी और केएफडब्ल्यू बैंक जर्मनी से मिलने वाले कर्ज की राशि नगर निगमों के बजाय मध्यप्रदेश अर्बन डेवलपमेंट कंपनी को मिलेगी। इन तीनों विदेशी एजेंसियों से वाटर सप्लाई के 57 और सीवरेज के 29 प्रोजेक्ट्स के लिए मध्यप्रदेश को 4500 करोड़ रुपए स्वीकृत हुए है। बताया जाता है कि नगरीय विकास एवं पर्यावरण विभाग के इस प्रस्ताव को पिछले माह कैबिनेट ने मंजूरी भी दे दी है। सभी प्रोजेक्ट्स की डीपीआर बनाने से लेकर कंसल्टेंट नियुक्त करने का अधिकार भी कंपनी का रहेगा। इन प्रोजेक्ट्स की राशि राज्य सरकार सीधे कंपनी के खाते में डालेगी। उल्लेखनीय है कि अभी तक इन बैंकों से मिलने वाली राशि नगरीय निकायों को दी जाती थी। कंपनी सरकार की गारंटी पर विकास के लिए बाजार से कर्ज ले पाएगी। कंपनी नगर निगमों के बड़े प्रोजेक्ट पर काम करेगी, वहीं नगर निगम अपने डेवलपमेंट के काम भी कंपनी के एक्सपर्ट्स की सलाह पर ही करेंगे। यानी नगर निगम स्वतंत्र निकाय होने की बात कहकर विकास के नाम पर मनमानी नहीं कर सकेंगे। मौजूदा व्यवस्था में नगर निगमों पर नगरीय प्रशासन संचालनालय का सीधा हस्तक्षेप नहीं है।
इस फैसले के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि स्थानीय निकाय बड़े प्रोजेक्ट जमीन पर उतारने के लिए तकनीकी और वित्तीय तौर पर सक्षम नहीं हैं। इससे काम समय पर पूरे नहीं होते। प्रोजेक्ट की लागत बढ़ती है। नई व्यवस्था में प्रोजेक्ट्स की डीपीआर बनाने से लेकर कंसल्टेंट नियुक्त करने का अधिकार कंपनी का होगा। रकम भी राज्य सरकार सीधे कंपनी के खाते में डालेगी। अब तक इन बैंकों से मिलने वाली रकम नगरीय निकायों को दी जाती थी। कंपनी जुलाई से पूरी तरह अस्तित्व में आ जाएगी।
मुख्यमंत्री ने की थी पहल
उल्लेखनीय है कि प्रदेश के शहरों में विकास की गति धीमी होने के कारण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अर्बन डेवलपमेंट कंपनी बनाने की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री का कहना था कि मध्य प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में संस्थागत सुधार बड़ी आवश्यकता है। इसी मांग को देखते हुए राज्य सरकार ने अधोसंरचना निर्माण के लिए कंपनी बनाने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में बनने वाली यह कंपनी नगरीय प्रशासन संचालनालय के अधीन काम करेगी। अर्बन डेवलपमेंट कंपनी सरकार की गारंटी पर बाजार से कर्ज उठाकर विकास में पैसा लगाएगी। कंपनी नगर निगमों के बड़े प्रोजेक्ट पर काम करेगी, वहीं संबंधित नगर निगम अपने डेवलपमेंट के काम भी कंपनी के एक्सपट्र्स की सलाह पर ही करेंगे। यानी नगर निगम स्वतंत्र निकाय होने की बात कहकर विकास के नाम पर मनमानी नहीं कर सकेंगे। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में नगर निगमों पर नगरीय प्रशासन संचालनालय का सीधा हस्तक्षेप नहीं है। बजट आवंटन के बाद नगर निगम अपने हिसाब से निर्माण कार्य करते हैं। कंपनी गठन की एक वजह नगर निगमों के पास पैसों के साथ-साथ डेवलपमेंट एक्सपर्ट की कमी को दूर करना भी है। कंपनी में विभागीय मंत्री और मुख्य सचिव उपाध्यक्ष, वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव, विभागीय प्रमुख सचिव सदस्य और नगरीय प्रशासन आयुक्त सचिव होंगे।
शहरों का विकास तेजी से हो सकेगा
नगरीय विकास एवं पर्यावरण विभाग के अधिकारियों का कहना है कि जिस तरह से बड़े प्रोजेक्ट आ रहे हैं, उनके लिए तकनीकी एवं वित्तीय दक्षता की आवश्यकता है। यदि किसी प्रोजेक्ट की टेंडरिंग ठीक से नही होती है तो प्रोजेक्ट की कास्ट बढ़ जाती है। काम वक्त पर पूरे नहीं होते। इस कंपनी के माध्यम से सभी बड़े प्रोजेक्ट वरिष्ठ अफसरों व विशेषज्ञों के जरिए पूरे होंगे। इससे विकास तेजी से होगा। योजना का लाभ उन शहरों को मिलेगा, जिनमें अन्य योजनाओं से जल-प्रदाय योजना मंजूर नहीं है। बड़ी नदियों को प्रदूषित करने वाले निकाय, पर्यटन और धार्मिक महत्व के नगरों को इसमें शामिल किया गया है। परियोजना में विश्व बैंक से कर्ज 50 प्रतिशत और केंद्र सरकार का अनुदान 50 प्रतिशत रहेगा। अन्य शहरों के लिए वित्त व्यवस्था के लिए विश्व बैंक से लोन 70 प्रतिशत और मध्यप्रदेश शासन का अंश 30 प्रतिशत रहेगा।

पाल, इंदौर और जबलपुर को स्मार्ट सिटी की श्रेणी में लाने के लिए वहां के महापौरों   ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन सरकार ने स्मार्ट सिटी के निमार्ण कार्य में महापारों की भूमिका जिस प्रकार खत्त्म कर दी है, उसी प्रकार अब शहरों के विकास में भी उनकी भूमिका पर कैंची चलाई जा रही है। कंपनी के गठन के साथ ही शहर के विकास में नगर निगम और महापौर की भूमिका सीमित हो जाएगी। अपनी भूमिका सीमित होने से इन शहरों के महापौर भी दुखी हैं।  ग्वालियर महापौर विवेक नारायण शेजवलकर कहते हैं कि पहले महापौरों को विश्वास में लेना चाहिए था। कंपनी गठन करने से पहले कोई बातचीत नहीं की गई। चुने हुए जनप्रतिनिधियों को इस तरह अक्षम मानना ठीक नहीं है। हमने स्मार्ट सिटी से महापौरों को बाहर करने पर भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर विरोध दर्ज कराया था। वहीं भोपाल महापौर आलोक शर्मा कहते हैं कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में महापौर सीधे जनता चुनती है। इसलिए जिस शहर के लिए प्रोजेक्ट लाया जाता है, उसके महापौर को कंपनी में जगह मिलना चाहिए। ताकि वह अपने सुझाव दे सके और फैसले में भागीदार रहे। जबलपुर की महापौर डॉ. स्वाति सदानंद गोड़बोले कहती हैं की उन्हें फिलहाल इस कंपनी के संदर्भ में कोई जानकारी नहीं हैं।
चारों शहर का होगा इंटेलीजेंस ट्रैफिक
अस्तित्व में आने के बाद कंपनी महानगरों की ट्रैफिक व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए इंटेलीजेंट ट्रैफिक सिस्टम लागू कराएगी। इसके लिए उसे ट्रैफिक का सर्वे कर रही नोएडा की कंपनी इकरा की रिपोर्ट सौंपी जाएगी। इकरा ये रिपोर्ट नगरीय प्रशासन से मिले ठेके के बाद तैयार कर रही है। इसमें ट्रैफिक के दबाव को ध्यान में रखते हुए मुख्य रूप से वन-वे, पेडेस्ट्रीयन, मल्टीलेवल पार्किंग, सड़क चौड़ीकरण के साथ सहायक सड़कोंं का निर्माण करना प्रमुख होगा।
-भोपाल से कुमार राजेंद्र

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