16-Mar-2016 06:47 AM
1235019
यह कैसी विडंबना है, विश्वास नहीं होता कि विजय माल्या ने देश का 9000 करोड़ रुपए हड़पा फिर विदेश भागने का एलान किया और भाग भी गया लेकिन कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सका। अब वह विदेश में बैठे-बैठे भले ही कितनी भी

बड़ी बाते करें लेकिन एक बात तो तय हो गई है कि देश में आम आदमी की कमाई से चलने वाले बैंकों को लूटने वाले का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। माल्या भारत वापस आएंगे ऐसा नहीं लगता! क्योंकि सुब्रत रॉय यानि सहारा श्री से सबक लेकर बाकियों की भी आंखें खुल गयी हैं। लेकिन देश की बैंकों को लूटने वालों में अकेले माल्या ही नहीं हैं बल्कि हजारों की कतार लगी हुई है।
अभी पिछले साल ही 31 मार्च 2015 तक बैंकों ने 7035 डिफॉल्ट घोषित किए हैं। 1000 मामलों के साथ एसबीआई में सबसे ज्यादा डिफॉल्ट हुए हैं। बैंकों के कुल एनपीए (नॉन परफॉरर्मिंग एसेट्स) का 40 फीसदी सिर्फ 30 मामलों से संबंधित है। सिर्फ इन 30 बड़े देनदारों ने ही 1.20 लाख करोड़ रुपए डुबोए हैं। यानी कर्जदार कर्ज लेकर मस्त हो रहे हैं और सरकार सो रही है। जरा आंकडें पर भी गौर करिए 2013 से 2015 के बीच भारत के सरकारी बैंकों ने बड़ी-बड़ी कंपनियों का 1.14 लाख करोड़ का डूबा हुआ कर्ज माफ कर दिया। देश के करीब आधे किसान कर्ज में डूबे हैं। इनमें से 42 फीसदी बैंकों के कर्र्जदार हैं और 26 फीसदी महाजनों के कर्जदार हैं। 31 मार्च, 2015 तक देश के टॉप पांच बैंकों का 4.87 लाख करोड़ रुपया सिर्फ 44 बड़ी कंपनियों पर बकाया था। ये सभी बकाएदार वो हैं जिन पर पांच हजार करोड़ से ज्यादा का बकाया है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने ऐलान किया है कि 21,313 करोड़ का कर्ज अब वापस नहीं मिल सकता। यानी बैंक बड़े डिफॉल्टरों से लोन वसूलने में नाकाम रहे। कई कंपनियों ने कर्ज में घोटाला किया, पैसे का निजी इस्तेमाल भी किया।
वाकई बैंकों का लगातार बढ़ता एनपीए (वित्तीय घाटा) बैंकों की सेहत के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। विडंबना यह है कि छोटे कर्जदारों, गरीबो, किसानों, श्रमिक और छोटे तबके को लोन देते वक्त बैंक कड़ी शर्तें रखते हैं और वसूली में रहम नहीं दिखाते। तो फिर देश के बड़े-बड़े लोगों का लाखों-करोड़ रुपये बट्टे खाते में डालने का क्या आधार है? आखिर क्यों बड़े उद्योगपतियों को भ्रष्टाचार व राजनीतिक संरक्षण के चलते कर्ज वसूली में छूट मिल जाती है कि विजय माल्या जैसे उद्योगपतियों को बैंको ने कंगाल घोषित कर दिया, लेकिन वो आज भी देश के गिने चुने अमीरों में शामिल है। जब देश की बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था तो हमारी सरकारों ने तर्क दिया गया था कि बैंक बड़े उद्योगपतियों का अस्त्र बने थे। आज बैंक फिर इन्हीं ताकतों (सत्ता और उद्योगपतियों) के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। ये किसी भी तरीके से साम-दाम, दंड-भेद के बलबूते बैंकों से मोटी रकम उधार लेने में सक्षम हो जाते हैं। बैंक भी पूरी प्रक्रिया के अनुपालन में यह नहीं देखते कि कर्ज लेने वाले की कर्ज लौटाने की क्षमता कितनी है। लेकिन वही बैंक देश के गरीब को 1 लाख रुपए का कर्ज देने के पहले कम से कम दर्जनों कड़ी शर्त रख देते है। बैंकों को इस हाल तक पहुंचाने में राजनेताओं के स्वार्थ भी रहे हैं। वे भी इन औद्योगिक घरानों से लाभ उठाते रहे हैं। इसके चलते ही बैंक पेशेवर ढंग से काम नहीं कर पाये। बैंकों की बड़ी नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप रहा है। जरूरी है कि सरकार दृढ़ इच्छाशक्ति दिखा कर्जखोरों को सजा दिलाये ताकि बैंकों की साख बचे। हजारों करोड़ का कर्जा लेकर नहीं चुकाने के बावजूद विदेश भाग गए माल्या ने यह भी साबित कर दिया है कि ऐसे मामलों में सारी सरकारों का रुख एक-सा ही रहता है। ललित मोदी लंदन भागे तो केन्द्र में यूपीए सरकार थी। भाजपा आज तक यूपीए को कोस रही है पानी पी-पीकर कि ललित मोदी उसके राज में उडऩ-छू हो गए और उन्हें कोई नहीं रोक पाया। अब माल्या भागे हैं तो केन्द्र में एनडीए सरकार है और कांग्रेस उसे घेरने में जुटी है। हैरानी वाली बात ये है कि न मोदी एक दिन में भागे और न माल्या। ऐसा लगता है दोनों को भागने का पूरा मौका दिया गया। परेशान करने वाली बात ये नहीं कि इतने हो-हल्ले के बावजूद माल्या को रोकने के उपाय क्यों नहीं किए गए बल्कि ये है कि एक तरफ 17 बैंक सुप्रीम कोर्ट में माल्या के देश छोडऩे पर रोक लगाने की गुहार लगाते हैं लेकिन माल्या उससे पहले ही उडऩ-छू हो चुके होते हैं। इसका मतलब है माल्या को पता था कि उनके देश छोडऩे पर पाबंदी लगाई जा सकती है। लिहाजा वे पहले ही खिसक लिए। ये अकेले मोदी-माल्या की कहानी नहीं है। देश में मोदी-माल्या जैसे कितने बड़े नाम हैं जो बैंकों का यानी देश की जनता का कर्जा लेकर ऐशो-आराम की जिंदगी बिता रहे हैं। इनमें से कोई दिवालिया घोषित होकर कानून के शिकंजे से बच रहा है तो कोई विदेशों में जाकर कानून को ठेंगा दिखा रहा है। बैंक प्रबंधन अपने कर्ज की वसूली नहीं होने को लेकर चिंतित है लेकिन वसूली कैसे हो, इसका रास्ता ढूंढे नहीं मिल रहा। मनमोहन सिंह की सरकार दस साल तक सत्ता में रही लेकिन चिंता जताने के अलावा कर कुछ नहीं पाई। नरेन्द्र मोदी सरकार भी 22 महीने से शासन में है और चिंता जताने में कोई कसर नहीं छोड़ रही।
भागने-भगाने का खेल
आम आदमी 10 हजार का कर्जा नहीं चुका पाए तो बैंक वाले उसके घर के बाहर डुगडुगी पिटवाकर अपनी कर्तव्य परायणता जताने का कोई मौका नहीं छोड़ते लेकिन हजारों करोड़ डकारने वालों का कुछ नहीं बिगाड़ पाते। कभी एण्डरसन और क्वात्रोची और अब ललित मोदी के बाद विजय माल्या ने इस तथ्य पर मोहर लगा दी है कि अगर प्रभावशाली लोग आपके साथ हैं या फिर आपकी जेब में पैसा है तो देश का कानून आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। कितने भी घोटाले कर लो, बैंकों से कर्जा लेकर डकार जाओ लेकिन आपका बाल भी बांका नहीं हो सकता।
माल्या की ठसक और ठाठ ने बनाया कंगाल
संसार में शराब के सबसे बड़े व्यापारियों में से एक भारत में कभी अमीरों की जमात के सरदार रहे विजय माल्या कंगाली की कगार पर देश छोड़ कर फुर्र हो गए हैं। भाजपा ने शराब के सबसे बड़े व्यापारियों में से एक माल्या को कर्नाटक से राज्यसभा में फिर से पहुंचाया था। लेकिन उन्होंने भाजपा के शासनकाल में देश छोड़कर पार्टी की किरकिरी करा दी है। मालामाल होने के बावजूद माल्या कोई पांच साल से अपने कर्मचारियों को तनख्वाह नहीं दे पा रहे थे। लेकिन पांच साल की की कंगाली के बावजूद माल्या के ठसक और ठाट भारत छोडऩे के दिन तक वही थे। चार साल पहले ही यह तय हो गया था कि वे कंगाल हो गए है। विजय माल्या अपने काम निकालने के लिए हर तरह के फंडे अपनाते रहे हैं। माल्या को कितनी कमाई, किसके जरिए, कैसे निकालनी है, और जिन रास्तों से निकालनी है, उन रास्तों की रपटीली राहों तक के अंदाज का पता है। बहुत सारे हवाई जहाजों और दो बहुत भव्य किस्म के आलीशान जल के जहाजों के मालिक होने के साथ साथ अरबों रुपए के शराब का कारोबार करनेवाले विजय माल्या की हालत इन दिनों सचमुच बहुत पतली हैं। यहां तक कि उनकी किंगफिशर विमान सेवा के सारे के सारे विमान तीन साल से जमीन पर खड़े हैं। और जैसा कि अब तक कोई उनकी मदद को नहीं आया, इसलिए सारे ही विमान जो बेचारे आकाश में उडऩे के लिए बने थे, वो स्थायी रूप से जमीन पर खड़े रहने को बंधक हो गए है। कंगाल के रूप में बहुप्रचारित माल्या के बारे में ताजा तथ्य यह है कि वे अपनी अरबों रुपए की संपत्ति बचाने की कोशिश में कंगाली का नाटक करते हुए भारत में ज्यादा दिन जी नहीं सकते थे, इसी कारण भारत छोड़कर गायब हो गए हैं। लेकिन, मालामाल माल्या, दरअसल दुर्लभ किस्म के शौकीन आदमी हैं। वे जहां भी रहेंगे, अपने शौक पूरे करते रहेंगे।
रिलांयस एडीएजी : 1.13 लाख करोड़ का है कर्ज
अनिल अंबानी की अगुआई वाले समूह एडीएजी ग्रुप पर सबसे ज्यादा कर्ज है। इस पर करीब 1.13 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। इसके लिए अनिल अंबानी पूरे समूह के पुनर्गठन पर फोकस कर रहे हैं। अनिल अंबानी की कंपनी डिफेंस, फाइनेंस, टेलिकॉम, ऊर्जा और मनोरंजन के क्षेत्र में काम करती है। आपको बता दें कि मार्च 2015 की बैलेंसशीट में अनिल अंबानी की कंपनी ने 1.25 लाख करोड़ रुपए का घाटा दिखाया था।
वेदांता ग्रुप : 90 हजार करोड़ का कर्ज
क्रेडिट सुइस की रिपोर्ट के मुताबिक, अनिल अग्रवाल की अगुआई वाले वेदांता ग्रुप पर 90,000 करोड़ रुपए से ज्यादा कर्ज है। यह भारत की दूसरी सबसे ज्यादा कर्ज वाली कंपनी है। अगले वित्त वर्ष से कंपनी को 100 करोड़ डॉलर (करीब 6,694 करोड़ रुपए) के कर्ज का भुगतान करना है, जबकि इसके बाद अगले 2 साल में कंपनी को हर साल 150 करोड़ डॉलर (10,000 करोड़ रुपए) कर्ज का भुगतान करना है।
जयप्रकाश एसोसिएट ग्रुप : 85 हजार करोड़ का कर्ज
जेपी ग्रुप इन्फ्रास्ट्रक्चर, रियल एस्टेट, पावर और सीमेंट कारोबार में शामिल है। जेपी गौड़ के जेपी ग्रुप पर 31 मार्च 2015 तक कुल कर्ज 85,726 करोड़ रुपए था, जबकि कंपनी की कुल एसेट करीब 1 लाख करोड़ रुपए है। जेपी ग्रुप अपना कर्ज घटाने के लिए एसेट बेच रहा है, जिसके तहत कंपनी ने पिछले दिनों दिल्ली-आगरा एक्सप्रेसवे के बेचने की भी बात कही थी। 2006 से 2012 के बीच कंपनी ने 60,000 करोड़ रुपए रियल एस्टेट में निवेश किए थे, लेकिन रियल एस्टेट में निवेश किए थे, लेकिन रियल एस्टेट की हालत खराब होने के बाद कंपनी की मुश्किलें भी बढ़ती चली गईं।
करोडों के कर्ज तले दबा जेपी ग्रुप अब मुसीबत में फंसता दिख रहा है। विभिन्न बैंक अब अपना कर्ज वसूलने के लिए जेपी ग्रुप की कंपनी जेपी इन्फ्राटेक पर धावा बोलने के तयारी शुरू कर दी है। गौरतलब है कि आईसीआईसीआई बैंक पहले ही जयप्रकाश असोसिएट्स लि. के यमुना एक्सप्रेसवे पर स्थित 300 एकड़ का प्लॉट अपने अधीन कर चुका है। पचास हजार करोड़ रुपये के कर्ज तले दबा जेपी ग्रुप नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे स्थित अपना आइकॉनिक हेड ऑफिस निर्माण सदन को करीब 3,000 करोड़ रुपये में बेचने जा रहा है। इस डील की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने एक डेली अखबार को बताया कि कर्मचारियों को बता दिया गया है कि उनका ऑफिस कभी भी बदल सकता है। जेपी इन्फ्राटेक पर करीब 9,000 करोड़ रुपये का कर्ज है।
अडानी ग्रुप : 72 हजार करोड़ का कर्ज
अडानी ग्रुप के मालिक गौतम अडानी हैं। कंपनी पर कुल 72,632 करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है। ऑस्ट्रेलिया में अडानी ग्रुप को माइन के के लिए एसबीआई के 100 करोड़ डॉलर के कर्ज पर विश्लेषकों ने सवाल खड़े किए थे। कंपनी पहले ही भारी कर्ज तले दबी है। ऐसे में इस कंपनी को और कर्ज देना कितना उचित है। कंपनी पर शॉर्ट टर्म कर्ज 17,267 करोड़ और लॉन्ग टर्म कर्ज करीब 55,364 करोड़ रुपए है।
जेएसडब्ल्यू ग्रुप : 58 हजार करोड़ का कर्ज
सज्जन जिंदल की कंपनी जेएसडब्ल्यू ग्रुप पर कुल 58 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है। सज्जन जिंदल हाल ही में पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच मुलाकात कराने के कारण सुर्खियों में रहे हैं। जेएसडब्ल्यू स्टील सेक्टर की बड़ी कंपनी है, लेकिन विदेश से आयात होने वाले सस्ते स्टील डिफॉल्ट घोषित किए हैं।
-दिल्ली से रेणु आगाल