नहीं चाहिये ऐसा महिला दिवस
16-Mar-2016 07:52 AM 1234809

हर बार की तरह इस बार भी 8 मार्च को महिला दिवस   हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। भले ही यह दिवस महिलाओं के लिए था लेकिन आयोजन में बड़ी भागीदारी पुरूषों की रही। मप्र की राजधानी भोपाल सहित देश भर में कार्यक्रमों की सप्ताहभर श्रृंखलाएं चलीं और कईयों ने इस मौके पर लंबे-लंबे खर्रे तैयार कर स्पीच दी। स्कूली बच्चों के माता-पिता ने महिला दिवस पर बच्चों के लिए निबंध तैयार किए तो सामाजिक संगठन इस उधेड़बुन में लगे रहे कि उनका कार्यक्रम सबसे अच्छा हो, उनके आयोजन में कोई बड़ी हस्ति मुख्य अतिथि बने। यानी एक दिन में महिलाओं के मान-सम्मान और उत्थान के इतने वादे किए गए, कशिदे गढ़े गए। यह हमारे समाज में कैसे विसंगति है कि यहां नारी को एक दिन भरपूर प्यार बांटा जाता है और उसके बाद 364 दिन उसका बलात्कार(हर तरह की जबरदस्ती) किया जाता है।
जी हां मेरी यह बात कड़वी जरूर है, लेकिन अफसोस सच तो यही है। हमारे पुराणों मे कहावत हुआ करती थी कि जिस इन्सान का भाग्य 100 प्रतिशत अच्छा होता है, उनके घर बेटी जन्म लेती है, पर अब तो यह सिर्फ एक मिथ्या प्रतीत होती है। भारत में जब जिसका मन किया रेप कर दिया, कत्ल कर दिया, तेजाब फेंक दिया, लड़की मानी तो बढिय़ा नहीं तो घर से उठा लिया, और तो और लड़की की आबरू से खेलने से पहले ये दरिंदे उसकी उम्र भी नहीं देखते। भारत सरकार ने पोक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस) नाम का कानून तो बनाया। लेकिन इन आंकड़ों को देखने के बाद वह भी खोखला सा लगने लगता है- 2013 में बेंगलुरु में पोक्सो के अंतर्गत 72 केस आये, 69 गिरफ्तारियां हुईं और सभी 69 को बेल पर रिहा कर दिया गया। 2014 में बेंगलुरु में पोक्सो के अंतर्गत 283 केस आये, 263 गिरफ्तारियां हुईं और उनमें से 235 बेल पर रिहा हो गये। 2015 में बेंगलुरु में पोक्सो के अंतर्गत 263 केस आये, 238 गिरफ्तारियां हुईं और उनमें से 167 बेल पर रिहा हो गये। नवम्बर 2012 से मार्च 2015 तक छत्तीसगढ़ में पोक्सो के अंतर्गत 2708 मामले दर्ज हुए, जिनमें मात्र 198 में ही सजा हुई। 2009 से 2014 तक छोटी बच्चियों से बलात्कार के मामलों में 151 प्रतिशत बढ़ोत्तरी दर्ज हुई। बच्चों से दुष्कर्म के मामलों में मध्य प्रदेश सबसे ऊपर। दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र और फिर यूपी। अगर पिछले एक दशक में पलट कर देखें तो छोटी-छोटी बच्चियों, यहां तक 6 महिने तक की बच्ची को अपनी हवस का शिकार बनाया गया है। फिर भी न जाने क्यों कानून सख्त नहीं होता।
और फिर ये सब होता है
सबसे पहले तो समझौता करवा दिया जाता। दूसरा पीडि़ता के घर वालों को पुलिस को सूचना देने से रोका जाता है। उन वहशी दरिन्दों को बेल पर रिहा कर दिया जाता है। विपक्ष सत्ताधारी पार्टी पर कीचड़ उछालने लगता है। नेता कहते हैं- गलती तो किसी से भी हो सकती है... ज्यादातर मामलों में तो पीडि़तों को ही लोग गलत ठहराते हैं। मीडिया टीआरपी गेन करने में जुट जाता है। अखबार व अन्य मीडिया संस्थान रेप की खबरों में मसाला ढूंढ़ते हैं। सोर्स और पैसा लगते ही पुलिस केस को हलका कर देती है। कुछ दिन समाज में इसकी गरमा-गरमी बनी रहती है। फिर सब शांत हो जाता है। जनता धरना प्रदर्शन करती है, युवक युवतियां कैंडल मार्च निकालते हैं। और कुछ ही दिन बाद फिर से दरिंदगी की बड़ी वारदात घट जाती है। गंदी मानसिकता रखने वाले गूगल पर हर रोज रेप सर्च करते हैं। सब बस एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में लगे हैं। पता नहीं और कितनी दामिनी और मिनाक्षी को दरिन्दगी की आग में झुलसते हुए देखना है। बात करते हैं बेटी को पढ़ाने की। अरे! जब बेटियां इन हैवानों से बचेंगी तब न पढ़ेंगी। खैर यह सब महज एक गुबार है जो केवल मेरे ही नहीं, देश की हर लड़की के दिल में भरा है। यह तब तक भरा रहेगा जब तक महिला दिवस के नाम पर एक दिन की वाहवाही बंद नहीं होती। एक दिन प्यार और अगले दिन बलात्कार! इस प्रथा को बदलना होगा। जी हां बदलना ही होगा।
अब अन्य देशों के कानून पर एक नजर
साऊदी अरब में रेप की सजा में अपराधी का सर एक ही वार में धड़ से अलग कर दिया जाता है। चीन में अपराधी की स्पाईनल कॅार्ड पर गोली मार दी जाती है। या फिर उसे नपुंसक बना दिया जाता है। नॉर्थ कोरिया मे एम प्रैक्टिस करते हुए अपराधी को गोली मार दी जाती है। अफगानिस्तान मे अपराधी को फांसी पर लटका के गोली मार दी जाती है। ईरान में अपराधी को फासी की सजा दी जाती है। फ्रांस में अगर छेड़छाड़ की है तो 20 वर्ष की जेल और अगर दरिन्दगी से शोषण हुआ तो उम्र कैद। सउदी अरब में बलात्कारी का सिर कलम कर दिया जाता है।  हमारे भारत में जब जब कहीं ऐसा होता है, तब सबसे पहले लोग पुलिस केस से बचने की सोचते हैं। यानि उसी वक्त से दरिंदे के बच निकलने की संभावनएं बढ़ जाती हैं।
-अनूप ज्योत्सना यादव

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