घर में कैद 50 फीसदी महिलाएं
31-Mar-2016 09:38 AM 1234852

देश में साक्षरता के स्तर में निरंतर सुधार और महिलाओं का पढऩे-लिखने के प्रति रुझान बढऩे बाद भी महिलाओं का घर की चार दीवारी तक ही सीमित रहना बेहद चिंतनीय है। एक मोटे अनुमान के अनुसार देश में पढ़ी-लिखी महिलाओं में से चार दीवारी से बाहर निकल कर रोजगार से जुडऩे वाली महिलाओं का आंकड़ा 27 फीसदी ही है। यह भी आश्चर्यजनक सत्य सामने आया है कि शहरी महिलाओं की तुलना में ग्रामीण महिलाओं का रोजगार के प्रति अधिक रुझान है। रोजगार से नहीं जुडऩे के कारण महिलाओं का जीडीपी में योगदान कम है। पुरुषों के बराबर नौकरीपेशा महिलाएं हो जाएं तो जीडीपी में सीधे सीधे 27 फीसदी की बढ़ोतरी हो जाए।
विश्व बैंक की हाल ही जारी एक रिपार्ट में सामने आया है कि अन्य एशियाई देशों की तुलना में हमारे देश में कामकाजी महिलाएं कम हैं। पिछले वर्षों में समग्र प्रयासों से महिलाओं की साक्षरता दर बढ़ी है। महिलाओं ने रोजगार के लिए जोखिम वाले क्षेत्रों में भी प्रवेश किया है। आज जोखिम वाले काम भी महिलाएं बड़ी सहजता और सफलता से करने लगी हैं। एक समय था जब नौकरीपेशा महिला का मतलब अध्यापिका या नर्स की नौकरी से लगाया जाता था। किसी महिला के नौकरीपेशा होने का सहज अंदाज यही लगाया जाता था कि वह या तो किसी स्कूल में शिक्षिका होगी या फिर किसी चिकित्सालय में नर्स, पर आज स्थिति में तेजी से बदलाव आया है और अब तो सेना के विमान उड़ाने तक की महिलाओं का अनुमति दी जा रही है। सेना के तीनों अंगों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी तय की जा रही है। बैंकिंग क्षेत्र में तो आज महिलाओं का दबदबा है ही कारोबारी क्षेत्र में भी महिला उद्यमियों ने अपनी पहचान बनाई है। ऐसे में अन्य देशों की तुलना में देश में कामकाजी महिलाओं के कम होने का सीधा सीधा अर्थ महिला शक्ति का आर्थिक विकास में भागीदारी प्रभावित होना है।
विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट के अनुसार देश में 27 फीसदी महिलाएं ही कामकाजी है। इसमें भी जो आश्चर्य जनक पहलू सामने आया है वह यह कि शहरी महिलाओं की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं अधिक कामकाजी है। उत्तरपूर्वी राज्यों से अधिक महिलाएं नौकरीपेशा है। इससे विसंगती तो साफ उभर कर आ ही रही है इसके साथ ही यह भी साफ हो रहा है कि आर्थिक विकास में महिलाओं की पूरी भागीदारी भी तय नहीं हो पा रही है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में महिला साक्षरता की दर 65 फीसदी है। यदि हम नौकरी पेशा महिलाओं को शतप्रतिशत साक्षरता की र्शेणी में ही माने तो भी तकरीबन 39 फीसदी पढ़ी-लिखी महिलाएं कामकाजी नहीं है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि देश में साक्षर महिलाओं में से आधी महिलाएं देश की जीडीपी में अपनी भूमिका तय नहीं कर पा रही है।
पड़ोसी देश नेपाल में 80 फीसदी महिलाएं कामकाजी है। चीन, श्रीलंका, रुस, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, इंडोनेशिया, केन्या, ब्राजिल जैसे अन्य देशों में हमारे देश की तुलना में अधिक महिलाएं कामकाजी है। अन्तररराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख क्रेस्टिन का मानना है कि भारत में पुरुषों के बराबर महिला कर्मचारी हो जाए तो जीडीपी के स्तर में 27 फीसदी बढ़ोतरी हो जाए। यह सब स्थिति तब है जब लड़कों की तुलना में लड़कियां पढ़ाई में लगातार बाजी मार रही हैं। परीक्षा परिणामों में लड़कियां मेरिट में अधिक जगह बना रही हैं। इस सबके बावजूद दर असल हमारी सामाजिक आर्थिक सोच भी इसका एक प्रमुख कारण है।
आज भी पढ़ाई-लिखाई के दौरान ही अच्छा कमाता खाता लड़का मिल जाए और उससे शादी कर देना ही परिजन अपने दायित्व का सही निवर्हन मानते आ रहे हैं। अभी तक यह सोच नहीं विकसित हो रही कि पहले लड़की को भी रोजगार दिलाकर उसे आत्म निर्भर बनाए और फिर उसी के आधार पर लड़का देख कर शादी करे। दरअसल शादी नहीं होने तक बोझ समझने की सोच का ही परिणाम है कि पढ़ी लिखी लड़कियां भी शादी के बाद घर गृहस्थी तक सिमटी रह जाती है। हांलाकि अब स्थितियों में बदलाव आने लगा है पर इसे अभी शुरुआत ही समझना अधिक सही होगा क्योंकि पढ़ी लिखी महिलाओं में से 50 फीसदी महिलाएं आज भी रसोई-चौके तक ही सीमित हैं। 
-माया राठी

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