क्या महिलायें अभी भी दोयम दर्जे की है?
03-Mar-2016 08:09 AM 1234888

महिलाये सभी समाजों में सभी देशों में और सभी कालों में महत्वपूर्ण भूमिका में रही है। चाहे वेदों की बात करें, जो महिलाओं को पूजनीय बताते है, या गांधी जी की बात करें जो उन्हें परिवार की धूरी बताते है, हर समय महिलायें महत्वपूर्ण रही है। वेद कहते हैं कि वह व्यवस्था सबसे उत्तम है, जहां महिलाओं का सम्मान होता है। गांधीजी मानते थे कि अगर पूरे परिवार को और आगे आने वाली पीढ़ी को सुसंस्कृत बनाना है, तो केवल उस परिवार की महिलाओं को शिक्षित कर देना चाहिये। विदेशी आक्रमणों ने महिलाओं के विकास को धीमा कर दिया। महिलाओं की भूमिका को परदे के पीछे छिपा दिया गया और उन्हें केवल दैहिक आवश्यकताओं की पूर्ति का निमित्त माना जाने लगा। ना केवल भारत में बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मध्यकाल में महिलाओं को दोयम दर्जा दिया जा रहा था। फैक्ट्री में काम करने पर, घर में परिवार में यानी हर जगह महिलाओं से पक्षपात किया जाता है। इंग्लैंड की औद्योगिक क्रान्ति की सफलता में महिलाओं को कम वेतन दिये जाने की महत्वपूर्ण भूमिका है। शिक्षा के प्रसार के कारण धीरे-धीरे स्थितियों में सुधार होने लगा। महिलाओं की अपने अधिकारों के प्रति जागरुकता बढऩे लगी। सुधारवादी विचारकों ने महिलाओं को शिक्षित बनाने पर जोर दिया। इसी के परिणाम स्वरूप आज महिलाओं का शिक्षा का प्रतिशत भारत में 60 प्रतिशत से ऊपर हो गया है। निश्चित रूप में शिक्षा ने महिलाओं को सजग व जागरूक बनाया है और आज अच्छी संख्या में कामकाजी महिलाओं को देखा जा सकता है। यों तो प्राचीनकाल में भी योग्य महिलायें घर से बाहर जाकर काम करती थी, पर चूंकि उस काल में भौगोलिक दूरियां अधिक होती थी, अत: उनके कार्य का स्थल घर के आसपास ही रहता था, दूसरा इस तरह की महिलाओं का प्रतिशत भी कम होता था। आज पूरे विश्व में भौगोलिक दूरियां वैज्ञानिक साधनों के कारण घट गई है, अब महिलाओं को घर परिवार को पूरे दिन के लिये छोड़कर कार्य पर जाना पड़ता है। बढ़ती हुई जनसंख्या ने एक शहर में कार्य के अवसरों को भी सीमित कर दिया है, अत: महिलाओं के कार्यक्षेत्र में बढ़ावा हुआ है।
इस बात से सभी सहमत है कि महिलायें परिवार की धुरी होती है। मां ना केवल बच्चों की शारीरिक जनक होती है, बल्कि उनके सर्वांगीण विकास का आधार भी होती है। छत्रपति शिवाजी जैसे कई सफल व्यक्तियों के उदाहरण हमारे सामने है। जिनको शक्ति संपन्न करने के पीछे एक मां थी। वास्तव में बच्चे तो कोमल मिट्टी के बने होते है, यह मां पर निर्भर करता है कि वे उस मिट्टी को कैसा आकार देती है। चूंकि महिलायें कुुशल प्रबंधक होती है (कई उदाहरण हमारे सामने है जैसे आईसीआईसीआई की चेयरमैन, एसबीआई की पूर्व चेयरमैन अरुंधती राव, बायोकान की किरण मजूमदार) अत: उनको कार्य के अवसर भी पुरुषों की तुलना में अधिक ऑफर किये जाते है। शिक्षा के विस्तार ने महिलाओं में कार्य करने के उत्साह को जागृत किया है, पर इससे इनके कंधों पर तिहरी जवाबदारी आ गई है। परिवार के बच्चों की और कार्यक्षेत्र में कार्य की और यह महिलाओं का विशेष ही गुण है कि वे हर कार्य को कुशलता के साथ करती है। यूं तो हर मां अपने बच्चों पर अपनी क्षमता के अनुसार ध्यान देती है, परंतु कई बार मजबूरीवश, परिस्थितियों से विवश होकर उन्हें बच्चों के पालन पोषण में समझौता करना होता है, कई बार उन्हें कार्य करने के लिये दूसरे शहर में भी अधिक घंटों के लिये जाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में सबसे अधिक दु:खद स्थिति में बच्चे होते हैं, क्योंकि उनके पास भावनात्मक व नैतिक सहारा देने के लिये उनकी मां नहीं होती है। बोर्ड की परीक्षाओं में तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में बच्चों का मनोबल बढ़ाने के लिये मां की अहम भूमिका होती है, जिसे वे बच्चों के पास रहकर पूरा कर सकती है।
मां की अनुपस्थिति कई बार बच्चों को अपराधों के दल-दल में फंसा देती है। टीन एज ऐसी स्टेज होती है, जिसे भावनात्क सहारा देकर मां सही दिशा दे सकती है। विगत कई वर्षों  से टीनएजर्स में अपराधों (नशे की आदत, अश्लील फिल्में देखना, छोटी उम्र में दैहिक सम्बन्ध बनाना, हत्या, लूटमारी करना आदि) में लिप्त हो रहे है। कई अध्ययनों में यह सामने आया कि इस उम्र में बच्चों को मां का सपोर्ट (भावनात्मक सहारा) ना मिलना सबसे बड़ा कारण है। क्योंकि नौकरी के चलते महिलाओं को पुरुषों के समान अधिक घंटे काम करना पड़ता है। इस समस्या का निदान महिला आयोग व कई अन्य प्रबुद्ध महिलाओं की सिफारिशों पर छठे वेतन आयोग ने संतान पालन अवकाशÓ घोषित करने की सकारात्मक पहल की। इस के तहत 18 वर्ष तक के बच्चों के लालन पोषण के लिये महिलाओं को अधिकतम दो वर्षों का स्वैछिक अवकाश देने की घोषणा की गई। चूंकि मध्यप्रदेश सरकार भी कल्याणकारी सरकार है, अत: प्रदेश में भी अगस्त  2015 से इस अवकाश का लाभ महिलाओं को सरकार की इस कल्याणकारी नीति का सभी विभागों ने समाज के विकास के लिये हितैषी मानकर स्वागत किया और कुछ विभागों को छोड़कर पूरे प्रदेश की महिलाओं और बच्चों ने राहत की सांस ली। अब कामकाजी महिलाओं के बच्चों को इस बात का तनाव नहीं है कि बोर्ड के पेपर में उनको दिन भर घर में कौन सपोर्ट करेगा। पूरे प्रदेश की कामकाजी मां तथा बच्चे इस हेतु सरकार के आभारी है। परंतु कुछ विभागों की महिलाये जिन पर शिक्षा के विकास की अहम जवाबदारी है, अभी भी इस अधिकार से वंचित है। ये मांताएं चिन्ता में है कि उनके बच्चों को वे भावनात्मक सहारा देकर कैसे महिला आयोग की चिन्ता को दूर कर सकती है? निश्चिय ही यह पुन: एक प्रश्न को जन्म देता है कि क्या महिलायें अभी भी दोयम दर्जे की है?
-ज्योत्सना अनूप यादव

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