03-Mar-2016 08:30 AM
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मध्यप्रदेश चिकित्सा शिक्षा विभाग में इन दिनों मनमानी की पाठशाला चल रही है। विभाग के अधिकारी नियमों को ताक पर रखकर काम कर रहे हैं। ऐसा ही एक मामला सामने आया है जिसमें विभाग के उपसचिव एसएस कुमरे ने सागर

चिकित्सा महाविद्यालय की सहायक ग्रेड-3 कर्मचारी गीतिका ताराचंदानी और चौकीदार अरुण कुमार साहू को मंत्रालय में अस्थायी रूप से संलग्नीकरण किया है। हालांकि विभाग में कई कर्मचारियों को अपनी सुविधा अनुसार संलग्नीकरण किया गया है, लेकिन यह पहला मामला है जिसके लिए बाकायदा लिखित में आदेश निकाला गया है।
मंत्रालयीन सूत्रों के अनुसार सचिवालय में बाहरी कर्मचारियों का संलग्नीकरण प्रतिबंधित है। इसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपने शासनकाल में विधानसभा में आश्वासन दिया था कि मंत्रालय में बाहरी कर्मचारियों की पदस्थ नहीं की जाएगी। हालांकि उक्त नियम होने के बावजूद कई विभागों में बाहरी कर्मचारियों को पदस्थ किया जाता रहा है, लेकिन यह सब मौखिक आदेश पर होता है। लेकिन चिकित्सा शिक्षा विभाग ने तो हद ही पार कर दी और विधानसभा की अवमानना करते हुए दो बाहरी कर्मचारियों की चिकित्सा शिक्षा विभाग मंत्रालय में संलग्नीकरण का आदेश लिखित तौर पर 2 सितम्बर 2015 को विभागीय पत्र क्रमांक एफ-13-11/2013/1/55 में निकाला है। अगर मान भी लिया जाए कि विभागीय आवश्यकताओं को देखते हुए सहायक ग्रेड-3 की जरूरत हो भी सकती है लेकिन विभाग में इस तरीके 365 और महिलाएं हैं फिर ऐसी क्या मजबूरी रही है कि कुमरे ने सागर से उक्त महिला को यहां संलग्न किया है। यही नहीं सवाल यह भी उठ रहा है कि मंत्रालय जैसे सुरक्षित जगह पर चौकीदार की क्या जरूरत है? मंत्रालय में 24 घंटे पुलिस सुरक्षा के लिए तैनात रहती है ऐसे में उक्त चौकीदार वहां किस चीज की रखवाली करेगा। यही नहीं इन नियुक्तियों से विभागीय मंत्री को भी अनभिज्ञ रखा गया।
जब इस संदर्भ में उप सचिव एसएस कुमरे से बात की गई तो उन्होंने पहले तो यह कहकर पल्ला झाडऩा चाहा कि यह कोई बड़ी खबर नहीं है। विभाग में इससे भी बड़ी-बड़ी खबरें हैं। फिर वह थोड़ा संभले और बोले विभागीय जरूरत को देखते हुए ये नियुक्तियां की गई हैं। उन्होंने कहा कि अरुण कुमार साहू भले ही चौकीदार पद पर हैं, लेकिन वह पढ़ा-लिखा है इसलिए उसे विभाग में डिस्पैच के लिए रखा गया है और वह अपना काम बखूबी कर रहा है। उन्होंने बताया कि इन दोनों कर्मचारियों की नियुक्ति अस्थाई रूप से की गई है और इसके लिए उच्च स्तरीय अनुमोदन लिया गया है। जब उनसे पूछा गया कि क्या इस संदर्भ में विभागीय मंत्री से अनुमति ली गई है तो वह बोले उच्च स्तरीय अनुमोदन ले लिया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसी क्या विभागीय जरूरत पड़ी की विभाग को सागर से दो कर्मचारियों को बुलाना पड़ा। ऐसा नहीं कि विभाग में बाहर के कर्मचारी नहीं हैं। वर्तमान समय में शिवप्रसाद रैकवार, ऊषा गुप्ता, अनिल वर्मा आदि प्रतिनियुक्ति पर कार्य कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए कोई लिखित आदेश नहीं निकाला गया। फिर इन दो कर्मचारियों के लिए आदेश निकालने की जरूरत क्यों आन पड़ी? सवाल उठाया जा रहा है कि कहीं कुमरे ने अपने निजी स्वार्थ के लिए तो इन्हें मंत्रालय में संलग्न तो नहीं किया है। कारण कुछ भी हो इससे विभाग की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है।
जानकारों का कहना है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग भर्राशाही का शिकार हो गया है। विभाग में फर्जीवाड़ा इस कदर किया जा रहा है कि सरकार की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में आ गई है। चिकित्सा शिक्षा विभाग भ्रष्टाचार का केन्द्र बिंदु बन गया है और यहां बिना लेन-देन के कोई भी काम नहीं हो रहा है। विभाग के खिलाफ लगातार शिकायतें पहुंच रही हैं, लेकिन उसे न तो विभागीय मंत्री और न ही मुख्यमंत्री तक पहुंचने दिया जा रहा है। वहीं विभागीय सूत्रों का कहना है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार को विभागीय मंत्री के चहेते अफसर और कर्मचारी बढ़ावा दे रहे हैं।
-भोपाल से विशाल गर्ग