03-Mar-2016 08:11 AM
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एक हार के बाद अक्सर लोग निराशा के भाव में डूब जाते हैं लेकिन शिवराज सिंह चौहान ऐसी मिट्टी के बने हैं कि वे हार से जीत का रास्ता निकालने में माहिर हैं। इसका ताजा उदाहरण झाबुआ-रतलाम संसदीय क्षेत्र में हार और उसके

बाद मैहर में एतिहासिक जीत है। झाबुआ-रतलाम हार के लगने लगा था कि प्रदेश में भाजपा के दिन लद गए हैं। मैहर चुनाव का बिगुल बजते ही सबकी नजर मैहर पर टिक गई।
चुनाव भले ही मैहर में थे, पर हलचल पूरे प्रदेश की राजनीति में मचा दी। झाबुआ की हार और कांग्रेस के चेहरे नारायण त्रिपाठी (कांग्रेस के विधायक ने भाजपा की सदस्यता ली) के साथ चुनाव लडऩे की रिस्क भाजपाई बहुत पहले ही भांप चुके थे, इसलिए पूरे चुनाव को सीएम शिवराज सिंह के फेस पर लड़ा गया। पिछले चुनावों में मैहर के नतीजे भाजपा के पक्ष में भी नहीं रहे इसलिए भाजपाइयों ने इस टेढ़ेपन के मायने को समझने में कोई देरी नहीं की। कुल वोट 1 लाख 63 हजार 499 का 50.55 फीसदी भगवा के पक्ष में करने के सभी दांव-पेंच अजमा लिए गए। इस जीत ने और उसके नतीजों में भाजपाई को मैहर की धरती पर ढोल-नगाड़े बजाने का मौका मिल गया। और कांग्रेस को ढोल-मंजीरे की आवाज सुनाई देना बंद हो गई।
नारायण त्रिपाठी के सितारे कितने बुलंद है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस दल से चुनाव लड़ा जीत हासिल की। इससे पहले 2003 में समाजवादी पार्टी, फिर 2013 में कांग्रेस और अब 2016 में भाजपा से विधायक बने है। भाजपा के लिए झाबुआ चुनाव की करारी हार बड़ी सबक बन गई। मैहर चुनाव गढ़ कांग्रेस का था और कांग्रेस के ही नारायण त्रिपाठी को लेकर चुनाव लडऩा थ। इस वजह से भाजपा ने पूरे चुनाव कैंपेन के दौरान कोई रिस्क नहीं उठाया। लगभग पूरा चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही लड़ रहे ऐसा माहौल बनाया । इससे भाजपा के भीतर भी बिखराव नहीं दिखा। भाजपा प्रत्याशी को हराने के लिए कांग्रेस की कमान अजय सिंह राहुल भैया ने अपने हाथ में ले रखी थी। इस वजह से पूरे चुनाव में कांग्रेस के बड़े नेता आए भी और ऐसा प्रयास भी हुआ कि कांग्रेस एकजुट दिखे। भाजपा नेता जानते थे कि अकेले नारायण त्रिपाठी के बल पर चुनाव नहीं जीता जा सकता। सीएम को फेस ऑफ इलेक्शन बनाया। विध्य-महाकौशल के सारे बड़े नेता उस क्षेत्र में भाजपा की वीकनेस को खत्म करने में जुट गए। ये साइलेंट वर्किंग थी। जिसे कांग्रेस वक्त रहते नहीं भांप सकी। तीन चुनाव के नतीजों का विष्लेषण भाजपाई कई बार कर चुके थे। चुनाव के पहले अलग-अलग तीन सर्वे रिपोर्ट साफ कह रही थी कि माहौल नारायण त्रिपाठी के पक्ष में नहीं है। इन रिपोटर्स के आधार पर भाजपा ने 6 माह पहले मैहर के गांव में टीम को सक्रिय कर दिया था। जिस जातिगत समीकरण के आधार पर बहुजन समाजवादी पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस इस क्षेत्र में वोट बैंक मानती थी उसको अपने पक्ष में करने उसी समाज में दखल रखने वाले नेताओं से बगैर हो-हल्ला किए काम करवाया।
73 फीसदी वोटर ग्रामीण क्षेत्र के निवासी थे। जातिगत आधार के अलावा मैहर में वोट डलवाने के लिए भाजपा ने गांव की सामान्य बिजली, पानी, और डेम के मुआवजे जैसी मांगों पर फोकस किया। और ताबड़तोड़ मामलों के निराकरण करवाए। इसकी मॉनीटरिंग का जिम्मा मंत्रियों के हाथ में दिया। ताकि कोई चूक न हो। इससे माइंड सेट बदला और भाजपा ने कमिटेड वोट बैंक में भी सेंध लगा दी और जीतकर इतिहास बना दिया।
शिवराज ने ऐसे बदल दी कांग्रेस की चाल
- इस बीच कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने जमकर प्रचार किया। भाजपा की हार के कयास लगने लगे थे।
- भाजपा ने मंत्रियों और संगठन के नेताओं से क्षेत्र छुड़वा दिया था। प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार और संगठन महामंत्री मेनन ने एक सप्ताह पहले ही मैहर छोड़ दिया।
- यह बयान तक नंदकुमार ने दिया कि मैहर सीट हमेशा कांग्रेस की रही है।
- इसके बाद आखिरी चरण में सीएम ने रिपोर्ट के आधार पर नई रणनीति के तहत मैदान संभाला।
- आखिरी तीन दिन सारी विधानसभा में रोड-शो और सभाएं की।
- इसका असर हुआ कि चुनाव बदल गया। आखिरी तीन दिन के प्रचार से बाजी कांग्रेस के हाथ से फिसल गई।
इस जीत के पांच बड़े कारण
- मुख्यमंत्री ने 2800 करोड़ के विकास पैकेज की घोषणा कर मतदाताओं को रिझाया।
- भाजपा जातिगत समीकरण साधने में आगे रही। ठाकुर और ब्राम्हण भिड़ाए। मनीष पटेल के सामने पटेल चेहरा उतारा।
- रतलाम हार से सबक लेकर भाजपा ने बाहरी नेताओं को चुनाव प्रचार से पूरी तरह दूर रखा।
- शिवराज ने अपनी भरोसेमंद टीम को लगाया। क्षेत्रीय नेताओं को महत्व दिया गया।
- कांग्रेस की नकारात्मक प्रचार-प्रसार पर भाजपा के विकास का एजेंडा भारी पड़ा।
-भोपाल से सुनील सिंह