मोदी की गर्मी से डरे बाबू?
03-Mar-2016 08:16 AM 1234836

आपको विश्वास हो या न हो लेकिन यह हकीकत है कि जो नौकरशाही यूपीए शासनकाल में केंद्र में जाने के लिए कतार लगाए रहती थी वह एनडीए शासनकाल में केंद्र में जाने से कतरा रही है। आलम यह है कि वर्तमान समय में केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों के कामकाज संभालने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के उनके कोटे के 991 आईएएस अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर होने चाहिए है लेकिन इस समय 566 ही पदस्थ है। यानी अभी केंद्र में 425 आईएएस अफसरों की जरूरत है। इसकी पूर्ति के लिए केंद्र सरकार राज्यों को कई बार राज्यों को पत्र लिख चुकी है लेकिन राज्यों से अफसर जाने को तैयार नहीं हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि कई विभागों में सरकार आईएफएस से काम करवा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केंद्र सरकार की कमान संभालते ही नौकरशाही उनकी रफ्तार के साथ कदम मिलाने की कोशिश में जुट गई। लेकिन उनसे कदम ताल मिलाने में कई नौकरशाह हांफने लगे तो कई कांपने। आलम यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम-काज को देख कर नौकरशाहों में खलबली मची हुई है। नौकरशाह मोदी के काम के प्रति जुनून से हतप्रभ है। मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद जिस तरह से अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श कर एजेंडा तैयार करने में जुटे रहे, उससे अधिकारी हैरत में है। मोदी के काम-काज के इस तरीके को देख काम करने वाले नौकरशाह उत्साहित हैं। हालांकि मोदी के काम-काज के तरीके से एक सकारात्मक बदलाव भी दिख रहा रहा है। मोदी ने अपने मंत्रियों से भी 16 से 17 घंटा काम करने की बात कही है और मंत्री ऐसा कर भी रहे हैं। मंत्रियों की देखा देखी अफसर भी काम में लगे रहते हैं। लेकिन अफसरों की जरा सी गलती पर जिस तरह का व्यवहार केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा है उससे आईएएस अफसरों का एक धड़ा आहत भी है। यही कारण है कि केन्द्र सरकार की लगातार मांग के बाद भी आईएएस अफसर केंद्र में जाने से कतरा रहे हैं। आलम यह है कि मोदी सरकार के अभी तक 56 आईएएस ऑफिसर्स सेंट्रल पोस्टिंग को छोड़कर अपने स्टेट कैडर में वापस चले गए हैं। वापस जाने का ऑप्शन चुनने वाले ज्यादातर ऑफिसर्स सीनियर हैं। वे जॉइंट सेक्रेटरी या इससे ऊपर के रैंक के हैं। आमतौर पर आईएएस अधिकारी इस तरह से वापस अपने राज्य का रुख नहीं करते हैं। इससे पहले इस तरह के मामले कम देखने को मिलते थे। केंद्र ने कहा है कि उसके पास उपसचिव, निदेशक स्तर के आईएएस अधिकारियों की बहुत कमी है। जो आईएएस 14 साल की सेवा पूरी कर चुके हैं वे निदेशक तथा जो 9 साल की सेवा पूरी कर चुके हैं वे उपसचिव पर प्रतिनियुक्ति पर भेजे जा सकते हैं। इसके अलावा संयुक्त सचिव स्तर के आईएएस अधिकारियों की भी मांग की गई है।  प्रतिनियुक्ति पर जाने से पहले आईएएस अधिकारियों को विजिलेंस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट भी लेना होगा।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पदभार संभालते ही सबसे पहले नौकरशाही पर नकेल कसने की कोशिश की। इसके लिए कई तरह की गाइड लाइन बनाई। मोदी की आक्रामकता देख नौकरशाह भी सहम गए। बताया जाता है कि मोदी सरकार की कार्यप्रणाली और जरा-सी चुक पर मिडनाइट ट्रांसफर से घबराकर किसी भी प्रदेश का कोई भी आईएएस दिल्ली जाना नहीं चाहता है। आईएएस की कमी के कारण जहां एक-एक अफसर पर कई विभागों की जिम्मेदारी है वहीं कई महत्वपूर्ण विभाग और कार्य बाबुओं के कंधों पर है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पदभार संभालते ही जिस तरह की आक्रामकता दिखाई, उससे नौकरशाहों में अनजाना-सा भय समा गया है। इसका परिणाम यह हुआ की केंद्र में पदस्थ नौकरशाह अपने राज्य की ओर रूख कर गए, वहीं केंद्र की बार-बार की मांग के बावजुद भी राज्य से आईएएस दिल्ली जाने को तैयार नहीं हो रहे हैं। ऐसे में मोदी ने सभी प्रमुख विभागों की निगरानी के लिए सुपर पीएमओ का गठन कर डाला। अब लगभग हर विभाग में सुपर पीएमओ का हस्तक्षेप बढ़ गया है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि जहां एक साल पहले तक दिल्ली में जो नौकरशाह अपने विभागों में बिना दबाव और बिना तनाव के कार्य कर रहे थे, अब उन्हें सुपर पीएमओ की निगरानी में काम करना पड़ रहा है। आलम यह है कि केंद्र में जितने अहम मंत्रालय हैं उनकी डोर सुपर पीएमओ ने अपने हाथ में ले रखी है।
मोदी की वर्किंग स्टाइल से डरे अफसर
केंद्र की अफसरशाही में अब प्रदेश के नौकरशाहों की रुचि कम होने लगी है। इसे केंद्र सरकार का असर माना जाए या अफसरों की हिचकिचाहट लेकिन केंद्र में मप्र कॉडर के आईएएस अफसरों की आमद में कमी आने लगी है। गौरतलब है कि यूपीए सरकार के समय मप्र के अफसरों का केंद्र सरकार व महत्वपूर्ण मंत्रालयों में काफी दबदबा रहा है। एक समय यह संख्या 60 से ज्यादा थी इनमें सचिव स्तर के 11 अफसर थे। मप्र कॉडर की संख्या के मान से नियमानुनसार 67 आईएएस केंद्र में पदस्थ किए जा सकते हैं, लेकिन अमूमन राज्य सरकार इतने अफसर नहीं देती हैं। अभी केंद्र में मप्र के अफसरों की संख्या 29 है।
मंत्रियों की गाज अफसरों पर
पीएमओ की कार्यप्रणाली को अच्छी तरह जानने वाले एक आईएएस कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उन्हीं मंत्रियों और अफसरों की पट रही है जिनकी बुलेट ट्रेन रफ्तार वाली कार्यशैली है। लेकिन आलम यह है कि अधिकांश मंत्री बैलगाड़ी मिजाज वाले साबित हो रहे हैं। मंत्रियों की रफ्तार धीमी होने का खामियाजा अफसरों को भूगतना पड़ रहा है। उन विभागों के अफसर मोदी की पाठशाला में पास हो गए हैं जिने विभाग के मंत्री अपनी तरफ से पीएमओ में प्रस्ताव, नोट ले कर पहुंचते हैं। ये नरेंद्र मोदी के कहे आईडिया को लपकते हैं और तुरत फुररत प्रस्ताव बना कर पीएमओ को भेज देते हैं। इससे फैसले भी होते हैं और काम भी। एक और पेंच है। जो मंत्री ई मेल, ई-गर्वनेश को अपना रहे हैं वे पीएमओ से फटाफट काम करवा ले रहे हैं। जानकर आश्चर्य होगा कि मोदी के पीएमओ की कार्यसंस्कृति से बुनियादी परिवर्तन हुए हैं। ई-मेल, ई-गवर्नेश में प्रधानमंत्री निवास और पीएमओ दोनों धड़ल्ले से काम कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी ई-मेल पर प्रस्ताव, नोट, ड्राफ्ट लेने-देने और उसी पर तुरंत मंजूरी का रिकार्ड बना रहे हैं। यदि मंत्री और उनके अफसरों ने ई-मेल से नोट, प्रस्ताव, मसला भेजा तो पीएमओ से तुरंत रिस्पोंस होगा। तुरंत काम होगा। और फाइलों के अंदाज में यदि मंत्रालयों से प्रस्ताव, नोट और मसले आए तो उनमें देरी मुमकिन है।
केंद्र में पदस्थ एक आईएएस कहते हैं कि नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री कार्यालय की गरिमा और उसकी खोई हुई ताकत लौटाई है। पिछली सरकार में कई सत्ता केंद्रों में से एक सत्ता केंद्र पीएमओ भी था, लेकिन आज यह इकलौता सत्ता केंद्र है। केंद्र सरकार के कामकाज की केंद्रीय कमान प्रधानमंत्री कार्यालय में होनी चाहिए, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। यह कमान सिर्फ निर्देश देने और निगरानी करने तक हो तो बेहतर है। लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार के मंत्री अपने हर काम के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय के भरोसे बैठे हैं। वे पीएमओ का मुंह ताकते हैं। फैसले करने से हिचक रहे हैं। और तभी मंत्रालयों के मामूली फैसलों की फाइलें प्रधानमंत्री के पास जा रही हैं। मंत्री पीएमओ का मुंह देख रहे हैं कि वहां से कोई निर्देश आए तो वे आगे बढ़ें। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके दफ्तर ने अपने कंधों पर इतना बोझ ले लिया हैं जिससे अनिर्णय की स्थिति बनी हुई है मप्र कैडर के एक आईएएस कहते हैं कि संदेह नहीं है कि नरेंद्र मोदी और उनके दफ्तर ने देश-दुनिया की तमाम चिंताओं का बोझ लिया हैं। सबका साथ, सबका विकास के साथ सबका काम खुद करने का भी पीएमओ का अंदाज हैं। जाहिर है कई मंत्री बात-बात के लिए पीएमओ की तरफ देखते हैं। पीएमओ पहल करे और कहे तो बात आगे बढ़ेगी। ऐसे में विभिन्न विभागों की कमान संभाल रहे नौकरशाह भी पंगू बने हुए हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि कई विभागों में तो काम ही नहीं हो रहा है। मंत्रियों के पीएमओ पर निर्भर होने का एक नतीजा यह हुआ है कि प्रधानमंत्री कार्यालय पर बहुत ज्यादा बोझ बढ़ गया है।
प्रमोटी तो जाना ही चाहते केन्द्र में
दरअसल प्रदेशों में आईएएस का जो कोटा निर्धारित है उसमें 33 फीसदी प्रमोटी आईएएस होते हैं। राज्यों की कार्यप्रणाली में रचे-बसे ये अफसर केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर जाना ही नहीं चाहते। बताया जाता है कि केंद्र में आईएएस अधिकारियों पर न केवल काम का दबाव रहता है बल्कि काम करने की बाध्यता भी रहती है। जबकि राज्य में काम की टरकाऊ प्रवृत्ति काम करती है। ऐसे में अधिकांश अफसर खासकर प्रमोटी नहीं चाहते हैं कि वे केंद्र में जाए। इससे भी केंद्र में आईएएस अधिकारियों का टोटा बढ़ता जा रहा है।
केंद्र में पदस्थ राज्यों के आईएएस  का ब्यौरा
राज्य    कोटा    वर्तमान स्थिति
आंध्रप्रदेश    36    16
असम मेघालय    44    36
बिहार    44    43
छत्तीसगढ़    28    05
गुजरात    44    16
हरियाणा    33    20
हिमाचल प्रदेश    22    24
जम्मू-कश्मीर    21    11
झारखंड    31    09
कर्नाटक    46    18
केरला    32    39
मध्यप्रदेश    67    26
महाराष्ट्र    60    22
मणिपुर    17    14
नागालैण्ड    13    08
ओडिशा    38    27
पंजाब    37    15
राजस्थान    45    21
सिक्किम    07    06
तमिलनाडु    58    33
तेलंगाना    26    12
त्रिपुरा    15    12
उत्तरप्रदेश    99    68
उत्तरांचल    19    11
पश्चिम बंगाल    51    18

-कुमार राजेंद्र

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