आरक्षण के बहाने ये कैसी मनमानी!
03-Mar-2016 08:14 AM 1234803

हरियाणा और उसके आसपास का बड़ा इलाका जाट समुदाय की आरक्षण की मांग की आग में झुलस गया। इन मांगों का कभी अंत भी नहीं होगा। आरक्षण आंदोलन का ऐसा भयावह हश्र समाज और राजनीतिक दलों के साथ-साथ नीति-नियंताओं को आगाह करने वाला भी है। आरक्षण की जाटों की मांग नई नहीं है। वे 1995 से ही आरक्षण की मांग करते चले आ रहे हैं, लेकिन ऐसी भीषण हिंसा कभी नहीं हुई। इस बार आरक्षण मांगने सड़कों पर उतरे जाटों का उग्र रूप कल्पना से परे रहा। कुछ इलाकों और खासकर हिंसा से प्रभावित रोहतक में तो स्कूलों तक को निशाना बनाया गया। अगर जाट प्रदर्शनकारी सरकार से खफा थे तो फिर उन्होंने गैर जाटों को क्यों निशाना बनाया? जाट प्रदर्शनकारियों ने जिस तरह गैर जाटों के घर और दुकानें जलाईं और कई जगह हिंसा का विरोध करने वालों को मारा, उससे सामाजिक सद्भाव को गहरी चोट पहुंची है। आर्थिक नुकसान की भरपाई तो जैसे-तैसे हो सकती है, लेकिन कोई नहीं जानता कि सामाजिक नुकसान की भरपाई कब और कैसे होगी?
केंद्र व हरियाणा सरकार के आश्वासन के बाद जाट नेताओं ने आंदोलन वापस तो ले लिया है, लेकिन हालात सामान्य होने में समय लगेगा। जाट समुदाय आरक्षण की अपनी मांग के समर्थन में चाहे जैसे तर्क दे, लेकिन तथ्य यह है कि जाट सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक रूप से प्रभावशाली हैं। इसी कारण पिछड़ा वर्ग आयोग व सुप्रीम कोर्ट भी उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करने से मना कर चुका है। हरियाणा में जाटों की प्रभावी हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस समुदाय के कई नेता मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री तक बन चुके हैं। प्रशासनिक पदों में भी जाटों का खासा प्रतिनिधित्व है। आश्चर्यजनक है कि इतने सक्षम समुदाय ने न सिर्फ आरक्षण की मांग की, बल्कि इसके लिए पूरे राज्य को हिंसा की आग में भी झोंक दिया। आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह व्यवस्था बनाई जा चुकी है कि इसकी सीमा पचास प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती। किस जाति को आरक्षण दिया जाए या नहीं अथवा उसे किस श्रेणी में रखा जाए, इसके निर्धारण की एक प्रक्रिया है और कुछ मानक भी। कोई जाति न तो आरक्षण की मांग के लिए जोर-जबर्दस्ती का सहारा ले सकती है और न ही किसी अन्य जाति की देखा-देखी खुद को आरक्षण के लिए उपयुक्त बता सकती है। लगता है कि आरक्षण के बहाने जाट समुदाय ने हरियाणा को हिंसा की आग में इसलिए झोंका, क्योंकि गत विधानसभा चुनाव में भाजपा की विजय के बाद मनोहर लाल खट्टर के रूप में एक गैर जाट नेता को मुख्यमंत्री बनाया गया। क्या जाट समुदाय को यह कहकर गुमराह किया गया कि अब उनकी कोई सुनने वाला नहीं है, क्योंकि उनके हाथ से सत्ता चली गई? यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि लगभग सभी दलों के जाट नेताओं ने सियासी रोटियां सेंकने के लिए आरक्षण के बहाने अपने समुदाय के लोगों के मन में जहर भरने का काम किया। इसी का प्रभाव था कि चुन-चुनकर गैर जाटों को निशाना बनाया गया और उनकी संपत्तियों के साथ सार्वजनिक संपत्तियों को भी आग के हवाले किया गया। ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि उग्र भीड़ ने महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाओं को भी अंजाम दिया। यदि वाकई ऐसा हुआ है तो यह न केवल जाट समुदाय, बल्कि पूरे देश के लिए शर्मनाक है।
जाट प्रदर्शनकारी पहले भी आरक्षण की अपनी मांग के समर्थन में ट्रेनों को रोकने से लेकर सड़कों को जाम करने तक का काम कर चुके हैं, लेकिन इस बार उन्होंने सारी हदें पार कर दीं और इसीलिए सेना बुलानी पड़ी। यह चिंताजनक है कि आरक्षण की मांग बढ़ती ही जा रही है। हरियाणा में जाट समुदाय आरक्षण चाह रहा है तो गुजरात में पटेल समुदाय और आंध्र प्रदेश का कापू समुदाय। कापू आंदोलनकारियों ने पिछले दिनों एक ट्रेन को आग के हवाले कर दिया था। इन सभी मांगों ने आरक्षण के संदर्भ में एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता जता दी है। समस्या यह है कि जब भी कोई आरक्षण की समीक्षा की बात करता है तो उसे आरक्षण समाप्त करने की कोशिश के रूप में प्रस्तुत कर दिया जाता है। यह तब है जब क्रीमीलेयर की व्यवस्था का मनमाना इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे में सरकारों के सामने दिन पर दिन चुनौती खड़ी होती जा रही है।
नेताओं ने भड़काया
ऐसे तथ्य सामने आना भी शर्मनाक है कि जाट नेताओं ने सुनियोजित तरीके से हिंसा भड़काने का काम किया। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के राजनीतिक सलाहकार प्रो. वीरेंद्र सिंह की एक ऑडियो क्लिप चर्चा और साथ ही जांच का विषय बनी हुई है जिसमें वह आंदोलन को भड़काने की बात कहते सुनाई दे रहे हैं। अभी इस क्लिप की प्रामाणिकता सिद्ध होनी शेष है, किंतु आंदोलन के दौरान की हिंसक घटनाओं से साफ पता चलता है कि इस आंदोलन का उद्देश्य कुछ और था और कोई व्यक्ति पूरे घटनाक्रम को नियंत्रित कर रहा था। उन लोगों को बेनकाब किया जाना जरूरी है, जिन्होंने हरियाणा को आर्थिक और साथ ही सामाजिक रूप से तहस-नहस कर दिया।
-राजेश बोरकर

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