वादों और विवादों का एक साल
03-Mar-2016 07:55 AM 1234803

14 फरवरी 2014 को पहली बार दिल्ली में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी ने 49 दिनों की सत्ता को त्यागा था। ठीक एक साल बाद 14 फरवरी 2015 को रामलीला मैदान में अरविंद केजरीवाल ने फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और सरकार बनाई। 14 फरवरी 2016 को केजरी सरकार ने एक साल पूरे कर लिए हैं। इन एक साल के दौरान सरकार और मुख्यमंत्री केजरीवाल हमेशा चर्चा में रहे। कभी मुफ्त पानी, कभी सस्ती बिजली, कभी ऑड एंड इवन नंबर के वाहनों के परिचालन तो कभी नर्सरी में कोटा सिस्टम बंद करने को लेकर। जहां सरकार के कुछ कदम दूसरे राज्यों की सरकारों को भी भाए वहीं कुछ निर्णय विवाद का कारण भी बने। सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही पार्टी के अंदरुनी मसले बाहर आने लगे। परिणाम ये हुआ कि एक समय संगठन की शुरुआत करने में अहम भूमिका निभाने वाले योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। दोनों ने पार्टी पर नीतियों से भटकने के आरोप लगाए थे। दिल्ली सरकार के कानून मंत्री जीतेंद्र तोमर की फर्जी डिग्री उन्हें जेल की सलाखों के पीछे तक ले गई। यहां तक की उनकी कानून की डिग्री ही फर्जी नहीं बल्कि बीएससी की डिग्री भी नकली निकली।
किसानों को मुआवजा देने के मुद्दे पर जंतर-मंतर पर हो रही रैली में राजस्थान के किसान गजेंद्र ने आत्महत्या कर ली। जिस वक्त गजेंद्र दम तोड़ रहा था उस वक्त अरविंद केजरीवाल भाषण दे रहे थे। इस पर सरकार की जमकर आलोचना हुई और विरोधियों ने भी खूब कोसा। केजरीवाल ने जब आसिम को मंत्री बनाया तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन वो पार्टी के लिए एक बड़ी मुसीबत बन जाएंगे। आसिम पर बिल्डर से रिश्वत मांगने का आरोप लगा। इस बार पार्टी ने मामला सामने आने से पहले ही गड़बड़ी का खुलासा कर आसिम को मंत्री पद से हटा दिया। साथ ही कोंडली से विधायक मनोज कुमार की वजह से भी केजरीवाल और पार्टी के दामन पर दाग लगे। मनोज कुमार को जमीन की खरीद में हेराफेरी के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
दिल्ली में सरकार बनने के साथ ही केजरीवाल की केंद्र से ठन गई। दोनों बात-बात पर आमने-सामने होने लगे। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का सबसे बड़ा हथियार दिल्ली सरकार का एंटी करप्शन ब्यूरो था। लेकिन एसीबी के मुखिया के नाम पर भी एलजी नजीब जंग और केजरीवाल में ठन गई। एक अरसे तक तो यही साफ नहीं हुआ कि एसीबी के चीफ हैं कौन। सरकार से नियुक्त एसएस यादव या फिर एलजी के बनाए मुकेश मीणा। साथ ही एलजी ने इस दौरान ऊर्जा सचिव शंकुतला गैमलीन को कार्यकारी मुख्य सचिव बना दिया। सरकार ने असहमति जताई और केजरीवाल ने खुलेआम गैमलीन पर कई आरोप मढ़ दिए। यही नहीं गैमलीन की नियुक्ति का पत्र निकालने वाले अनिंदो मजूमदार के दफ्तर पर ताला जड़ दिया गया। बवाल इतना बढ़ा कि केन्द्र और केजरीवाल की जंग में नौकरशाहों के पसीने छूटने लगे। उधर सरकार का आरोप था कि एलजी के बहाने केंद्र सरकार दिल्ली को हथियाना चाहती है। विज्ञापनों के माध्यम से दिल्ली सरकार ने अपने काम के बखान के साथ-साथ मोदी सरकार पर भी खूब हमला किया। ऐसे में सरकार पर विज्ञापन में बेहताशा खर्च और नियमों के उल्लंघन के खूब आरोप लगे। एक मजबूत जनलोकपाल की मांग ने ही दिल्ली में एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया था। इसी मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल ने 49 दिनों में सत्ता छोड़ दी थी। लेकिन दूसरी बार जब अरविंद सत्ता में आए तो जनलोकपाल बिल पर सरकार की खामोशी बवाल का कारण बनती रही। बाद में जनलोकपाल बिल पास जरूर हुआ।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के दफ्तर पर सीबीआई के छापों ने केंद्र और राज्य के रिश्तों में एक बार फिर खटास ला दी। केजरीवाल ने आरोप लगाया कि ये छापे राजेंद्र कुमार पर नहीं बल्कि सीएम के दफ्तर पर थे। छापे इसलिए पड़े कि सीबीआई डीडीसीए घोटाले से जुड़े वो दस्तावेज हासिल करना चाहती थी जिसमें अरुण जेटली के खिलाफ सबूत थे। विवाद इतना बड़ा कि बाद में जेटली ने केजरीवाल समेत छह लोगों के खिलाफ मानहानि का मुकदमा ठोक दिया। बंगला, गाड़ी और वीआईपी कल्चर के खिलाफ बड़ी-बड़ी बातें करने वाले केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने सत्ता में आकर वहीं सब किया जो तमाम दूसरी सरकारें और नेता करते रहे हैं। सैलरी न मिलने से एमसीडी कर्मचारी हड़ताल करते रहे, अस्थाई कर्मचारियों की नौकरी पक्की नहीं हुई, लेकिन विधायकों की सैलरी 400 फीसदी बढ़ गई।
-ऋतेन्द्र माथुर

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