करोंद मंडी होगी ऑनलाइन सौदों के लिए तैयार
03-Mar-2016 08:06 AM 1234813

अगर यह कहा जाए कि आने वाले वक्त में मध्यप्रदेश देश की कृषि का केंद्र बिंदु रहेगा तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्योंकि प्रधानमंत्री ने मध्यप्रदेश से ही बहुप्रतीक्षित फसल बीमा नीति घोषित की है और ऑनलाइन नेशनल एग्रिकल्चर मार्केट बनाने की घोषणा की है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित करोंद मंडी में देश का पहला नेशनल एग्रीकल्चर मार्केटिंग प्लेटफार्म बनेगा।
उल्लेखनीय है कि 18 फरवरी को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सीहोर जिले के शेरपुर गांव में आए थे तभी उन्होंने घोषणा की थी कि 14 अप्रैल को बाबा साहेब आंबेडकर की जयंती के दिन केंद्र सरकार नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट की शुरूआत करेगी। लेकिन यह किसी को उम्मीद नहीं थी कि देश का पहला एग्रिकल्चर मार्केटिंग प्लेटफार्म भोपाल की करोंद मंडी में बनेगा। इसके जरिए किसानों को अपनी फसलों को बेचने के लिए अधिक विकल्प उपलब्ध होंगे। अभी किसान केवल मंडियों या मार्केट कमिटियों में अपनी फसलें बेचते हैं, जो उनसे कई तरह के टैक्स वसूलती हैं। ऑनलाइन प्लैटफॉर्म बनने से जहां किसान देशभर में गेहूं, सब्जियां, फल और अन्य उत्पाद खरीद और बेच सकेंगे। इस ऑनलाइन ट्रेडिंग की
निगरानी के लिए एक एजेंसी बनाई जाएगी। एजेंसी ऑनलाइन ट्रेड के बाद कृषि उत्पादों की स्टोरेज के लिए गोदाम और ट्रांसपोर्टेशन की सुविधाएं तैयार करने पर भी ध्यान देगी। इस कदम से किसानों की आमदनी बढ़ाने और
कृषि उत्पादों की कीमतों पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी।
कैसे काम करेगा प्लेटफार्म
नेशनल एग्रीकल्चर प्लेटफार्म पर अपने अनाज की बिक्री के लिए जब किसान मंडी पहुंचेगा तो सबसे पहले उसके माल की ग्रेडिंग (छटाई) होगी। उसके बाद गुणवत्ता के आधार पर उसे ऑनलाईन बिक्री के लिए प्रस्तुत किया जाएगा, जो निश्चित समय में देशभर में नेट से जुड़ जाएगा। देशभर के व्यापारी उक्त माल को देख और खरीद सकते हैं। खरीदने की डील पूरी होते ही मंडी द्वारा उक्त माल को रजिस्टर्ड ट्रांसपोर्टर द्वारा खरीददार तक पहुंचाया जाएगा। माल पहुंचने के बाद खरीदने वाला व्यापारी पैमेंट नेट के माध्यम से दे देगा। व्यापारी द्वारा दिए गए पैमेंट में से ही किसान, मंडी टैक्स, इंफ्रास्टक्चर टैक्स, निराश्रित पेंशनर्स और ट्रांसपोर्टर को दिया जाएगा। भोपाल के साथ ही देश की 550 मंडियों को तकनीक से जोड़ा जाएगा ताकि नेशनल एग्रीकल्चर मार्केटिंग प्लेटफार्म पर दर्ज होने वाले कृषि उत्पाद पूरे देशभर में देखा और खरीदा जा सके। इससे किसानों को एक फायदा यह होगा कि उन्हें उनके उत्पाद की सही कीमत मिल सकेगी। ज्ञातव्य है कि प्रधानमंत्री ने भी इस पर चिंता जाहिर की थी कि  किसान मेहनत करता है, मगर उसे सही दाम नहीं मिलता। एक समय में एक ही फसल की कीमत देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग होता है, लेकिन इससे बेखबर किसान उसे नजदीकी मंडी में बेच देता है, जिसके कारण उसे अधिकतम दाम नहीं मिल पाता है। लिहाजा, किसान को अपनी पैदावार का सबसे ज्यादा दाम मिले इसके लिए उनकी सरकार नेशनल एग्रीकल्चर मार्केटÓ का वर्चुअल प्लेटफॉर्म तैयार करेगी।
यह आएंगी समस्याएं
इस योजना के लागू होने से निश्चित रूप से किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य मिल सकेगा। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि वर्तमान में कृषि उत्पादों की ग्रेडिंग कहीं नहीं होती है। ऐसे में अगर ग्रेडिंग करके अनाज को ऑनलाइन किया जाएगा तो व्यापारी सिर्फ फोटो और विश्लेषण देखकर कैसे समझ पाएगा कि उक्त अनाज की गुुणवत्ता क्या है। इसमें दूसरी समस्या यह है कि इस प्र्रक्रिया से अनाज बेचने वहीं व्यापारी या किसान आएंगे जो अधिक मात्रा में अनाज उत्पादित या खरीदते हो। यानी इससे छोटे किसानों और व्यापारियों को लाभ होता नहीं दिख रहा है। जबकि मध्यप्रदेश ही नहीं पूरे देशभर में छोटे और मध्यम किस्म के अधिकांश किसान हैं। मध्यप्रदेश की मंडियों में तो मध्यम वर्ग का कोई व्यापारी ही नहीं जाता है। तीसरी समस्या यह है कि क्या कोई ट्रांसपोर्टर देश के एक कोने से दूसरे कोने तक उत्पादों को ले जाने के लिए तैयार होगा। अगर वह तैयार भी हो जाता है तो उक्त उत्पाद को पहुंचाने में लगने वाला व्यय उसे महंगा नहीं कर देगा? इस प्लेटफार्म से बिकने वाले उत्पाद की चौथी समस्या यह रहेगी कि स्थानीय व्यापारी इसके विरोध में उतर जाएंगे। क्योंकि अपने थोड़े-थोड़े माल को लेकर ये स्थानीय मंडियों में पहुंचते हैं और शाम को उसे बेचकर पैसा लेकर घर चले जाते हैं। लेकिन प्लेटफार्म के जरिए बिक्री करने पर उन्हें पैसा तभी मिलेगा जब उनका माल बिकेगा। ऐसे में निश्चित रूप से छोटे व्यापारी इस प्रक्रिया का विरोध करेंगे। इस प्रक्रिया से होने वाली अनाजों की बिक्री से किसान को कितना फायदा होगा यह अभी साफ नहीं हो पाया है। जहां वर्तमान में किसान अपने उत्पाद को पास की मंडी में या फिर स्थानीय व्यापारियों को एक निश्चित मूल्य पर सभी अनाज बेच देता है वहीं इस प्रक्रिया के तहत उसके उत्पाद की कीमत ग्रेडिंग के आधार पर होगी। इसलिए छोटे और मध्यम श्रेणी के किसान तो इस प्लेटफार्म पर अनाज बेचने जाने से कतराएंगे ही। हालांकि अभी नेशनल एग्रीकल्चर मार्केटिंग प्लेटफार्म की रूखरेखा तैयार नहीं हो पाई है, लेकिन प्रारंभिक संकेत ही बताते हैं कि इससे केवल बड़े व्यापारियों को ही लाभ मिलने की आशंका है।
-अजयधीर

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