पेट्रोल की तरह शक्कर में भी लगेगी आग
15-Apr-2013 10:22 AM 1234837

अब खुले बाजार में शक्कर के दाम हर हफ्ते चढ़ते और उतरते दिखाई दें तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि सरकार ने शक्कर को भी खुले बाजार के हवाले करने की तैयारी कर ली है। शक्कर के नियंत्रण मुक्त होने के साथ ही आशंका जताई जा रही है कि इसके दामों में तेजी आ सकती है। वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों का मानना है कि खुले बाजार में बगैर नियंत्रण के शक्कर बिकने से

प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और दाम गिरेंगे। लेकिन पेट्रोल नियंत्रण मुक्त होने के बावजूद सस्ता नहीं हो पाया है। इसीलिए यह आशंका बेबुनियाद प्रतीत हो रही है।
शक्कर उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने के अलावा उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी की संभावना की वजह से भी बीते दिनों शक्कर के वायदा भाव में 2.5 प्रतिशत और हाजिर भाव में 1 प्रतिशत का इजाफा हुआ था। तदुपरांत उत्तर प्रदेश में शक्कर का भाव (मिल कीमत) तकरीबन 1 प्रतिशत बढ़कर 3200-3275 रुपये प्रति क्विंटल हो गया था, वहीं महाराष्ट्र में यह भाव 3100-3150 रुपये और दिल्ली में 3400-3450 रुपये क्विंटल हो गया था। जानकारों का मानना है कि जल्द ही इसकी कीमत में 3 प्रतिशत की और भी बढ़ोतरी हो सकती है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने शक्कर पर उत्पाद शुल्क को 71 पैसे बढ़ाकर 1.5 रुपये प्रति किलो करने के खाद्य मंत्रालय के प्रस्ताव का समर्थन किया था।
सूत्रों के अनुसार शक्कर की कीमत में बढ़ोतरी का अंदेशा पहले से ही था, क्योंकि किसी भी जिंस की कीमत को उत्पादन लागत से कम नहीं रखा जा सकता है। ध्यातव्य है कि मौजूदा समय में शक्कर की कीमत इसके लागत भाव से कम है। वैसे शक्कर की कीमत में उबाल आने का कारण सिर्फ शक्कर पर उत्पाद शुल्क की बढ़ोतरी को नहीं माना जा सकता है। इसके अतिरिक्त शक्कर की कीमत में होने वाला उतार-चढ़ाव, आयात-निर्यात में व्याप्त असंतुलन, पर्याप्त भंडारण की कमी आदि को भी महत्वपूर्ण कारण माना जा सकता है। इस संदर्भ में ध्यान देने योग्य बात है कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के अध्यक्ष सी रंगराजन की अगुआई वाली समिति ने पिछले साल ही शक्कर से जुड़े हुए दो तरह के नियंत्रण, मसलन-निर्गम प्रणाली और लेवी शक्कर को अविलंब समाप्त करने की सिफारिश की थी। इतना ही नहीं, इस समिति ने शक्कर उद्योग पर आरोपित अन्यान्य नियंत्रणों को भी समाप्त करने की बात कही थी।
माना जा रहा है कि शक्कर उद्योग को विनियंत्रित करने के लिए बढ़ते चौतरफा दवाब के ही कारण ही 80,000 करोड़ रुपये के शक्कर उद्योग को अंत में सरकार को नियंत्रण मुक्त करना पड़ा। उल्लेखनीय है कि शक्कर के विनियंत्रण के संबंध में दो सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र को छोड़कर अन्य 10 शक्कर उत्पादक राज्यों ने विनियंत्रण के पक्ष में अपना मत देकर इस दिशा में सरकार द्वारा निर्णायक फैसला लेने का रास्ता साफ कर दिया था। इस मामले में पवार का कहना है कि शक्कर क्षेत्र को विनियंत्रित करने से किसानों को लाभ होगा। वे अपनी मर्जी से सबसे अधिक कीमत देने वाले शक्कर मिल मालिक को अपना गन्ना बेच सकेंगे। पवार का यह भी कहना है कि विनियंत्रण के बावजूद सरकार गन्ना के लिए एफआरपी तय करना जारी रखेगी। एफआरपी उस न्यूनतम मूल्य को कहते हैं जो किसानों को शक्कर के मिल मालिकों के द्वारा गन्ने की कीमत के रुप में अदा की जाती है।
जाहिर है शक्कर उद्योग के विनियंत्रण के लिए निजी शक्कर मिल मालिकों के द्वारा व्यापक स्तर पर लॉबीइंग की गयी। शक्कर उद्योग के पेड विश्लेषकों का कहना है कि शक्कर उद्योग में विनियंत्रण लाकर गन्ना के उत्पादन में स्थिरता लाई जा सकेगी, जबकि सच ठीक इसके उलट है। भारत में गन्ना या किसी भी दूसरे फसल का उत्पादन मानसून पर निर्भर करता है। दूसरे परिप्रेक्ष्य में इसे देखें तो विगत वर्षों में किसानों के मन में पनपने वाली निराशा के भाव ने भी गन्ना के उत्पादन को प्रभावित करने में अपनी महती भूमिका निभाई है। दरअसल, गन्ना किसानों को पिछले सालों में गन्ना की फसल से उनकी लागत भी नहीं निकल सकी है। कम या अल्प उत्पादन के साथ-साथ आमतौर पर बिचैलियों और कृत्रिम बाजार के दो पाट में पिसकर किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं। गन्ने का अच्छा उत्पादन हो या कम दोनों स्थितियों में किसानों को व्यापारियों और शक्कर मिल मालिकों की मर्जी से ही गन्ने की कीमत मिलती है। विगत वर्षों इस वजह से महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के कुछ गन्ना किसानों ने मौत को भी गले लगा लिया था। स्पष्ट है कि वर्तमान परिवेश में गन्ना किसानों के पास गन्ना बोने से तौबा करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। इसलिए यह कहना कि शक्कर के क्षेत्र को विनियंत्रित करने से गन्ना के उत्पादन में स्थिरता आयेगी, पूर्णरुपेण गलत संकल्पना है।
फिलहाल शक्कर उद्योग पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में है। उत्पादन से लेकर वितरण तक सरकार का इस पर नियंत्रण है। मूलत: दो तरीके से इस पर नियंत्रण रखा जाता है। निर्गम प्रणाली के अंतर्गत सरकार शक्कर का कोटा तय करती है, जिसे खुले बाजार में बेचा जाता है। लेवी प्रणाली के तहत सरकार शक्कर मिलों के उत्पादन का 10 प्रतिशत हिस्सा राशन दुकानों को उपलब्ध करवाती है। वर्तमान में सरकार हर महीने मिलों के लिए खुली बिक्री और लेवी शक्कर के लिए कोटे की घोषणा करती है। इस आलोक में अब खुले बाजार में शक्कर बेचने के लिए कोटा व्यवस्था को समाप्त किया जाएगा। रंगराजन समिति ने भी कहा है कि शक्कर मिलों को खुले बाजार में शक्कर बेचने की स्वतंत्रता दी जाए। साथ ही, एक स्थिर आयात-निर्यात नीति का भी निर्धारण किया जाए। समिति का मानना है कि इस संबंध में जिंस वायदा बाजार के समुचित विकास को भी प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। वर्ष, 2010 का एफसीआरए संशोधन विधेयक भी वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) को वित्तीय स्वायत्तता और संस्थागत निवेषकों को बाजार में कारोबार करने की सहूलियत देने की वकालत करता है।
ज्योत्सना अनूप यादव

 

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^